जीवन के छोटे काल खंड में सफलता के शिखर को छूनेवाला फ्रांस से आया आधुनिक वनस्पति अन्वेषण कर्ता “विक्टर जैक्वेमों” हर समय संदेह की नज़र से देखा गया और मात्र ३१ वर्ष की छोटी आयु में इस दुनिया से अलविदा कर गया। लेकिन भारत में बिताये मात्र चार वर्षों में ,लगभग आधे देश का भ्रमण करते हुए और राजस्थान में उनके द्वारा बिताये गए मात्र चार दिन उन्हें राज्य का प्रथम आधुनिक वनस्पति अन्वेषण कर्ता बनने का गौरव प्रदान कर गये।

आज से लगभग 200 वर्ष पूर्व, राजस्थान के प्रथम वनस्पति आधुनिक अन्वेषण कर्ता विक्टर जैक्वेमों एक अतिउत्साहित वनस्पति शास्त्री था, जो अपनी 28 वर्ष की छोटी उम्र में फ्रांस से भारत आया। इन्हें फ्रांस के एक प्रसिद्ध वनस्पति उद्यान ‘जार्डिन डेस प्लांट्स’ ने भारत में पेड़ पौधो के अध्ययन के लिए भेजा था। जैक्वेमों एक साधारण परिवार से थे एवं उन्हें उद्यान द्वारा हर वर्ष २४० पोंड की तनख्वाह पर रखा गया था।

भारत में उनकी यात्रा के दौरान पंजाब के प्रसिद्ध महाराजा श्री रंजीत सिंह उनकी विद्वता से अत्यंत प्रभावित थे, परन्तु साथ ही संदेह में भी थे कि, यह कोई शत्रुओं का जासूस तो नहीं। महाराज ने रावी नदी के किनारों पर उचित पेड़ लगाने की सलाह भी इसी वनस्पति विशेषज्ञ से ली, जो पेड़ आज भी रावी के किनारे पर मौजूद है।

विक्टर जैक्वेमों

5 मई 1829 में फ्रांस से वह कोलकत्ता के बंदरगाह पर पहुंचे। भारत में उस समय ब्रिटिश हुकूमत कायम हो चुकी थी और यह शोधकर्ता एक फ्रेंच होने के कारण हुकूमत के हर समय संदेह के घेरे में रहा और उन्हें भारत में यात्रा करने की इजाजत भी आसानी से नहीं मिली। खैर यह समय उन्होंने भारत की वनस्पति अध्ययन में कोलकत्ता के प्रसिद्ध बोटैनिकल गार्डन में निकाला एवं तत्पश्च्यात कई माह बाद वह भारत में वनस्पतियों की खोज के लिए निकल पड़े। उनकी खोज यात्राओं को तीन मुख्य भागो में बांटा गया है –

  1. कोलकत्ता से दिल्ली और हिमालय की यात्रा
  2. पंजाब और कश्मीर की यात्रा
  3. दिल्ली से अजमेर होते हुए बॉम्बे की यात्रा

इन यात्राओं में उन्होने अनेक प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ा एवं महीनो के लम्बे सफर के साथ वह गहराई से अपने अवलोकन को लिपिबद्ध करते रहे। उन्होंने इन यात्राओं के दौरान 4787 पेड़ पौधों के नमूने इकठे किये जिनमें 1185 अलग अलग प्रजातियों के नमूने थे।

दिल्ली से बॉम्बे की यात्रा के समय उन्होंने राजस्थान में 4 दिन बिताये थे। उन्होंने इन 4 दिनों (1-4 मार्च 1832) में राजस्थान के अलवर, जयपुर, अजमेर, चित्तौड़ शहरों को देखा। जयपुर को उन्होंने भारत के बेहद शानदार शहर का दर्जा दिया एवं अजमेर को उनके द्वारा देखे गये सबसे सुन्दर स्थान माना, जबकि वह उस समय तक कश्मीर और हिमालय यात्रा चुके थे।

अजमेर से वह ब्यावर की और गये एवं वहां के स्थानीय लोगों के सामाजिक व्यवस्था का जायजा लिया। वह आश्चर्यचकित थे कि, किस प्रकार कुछ समाज के लोग अपनी बेटियों को बेचते है और कुछ लोग उन्हें खरीदते हैं। इसके बाद वे चित्तौड़ के दुर्ग के पास अपना टेंट लगा के रहे। उन्होंने आगे लिखा की किस प्रकार उन्हें उदयपुर राज्य में प्रवेश की इजाजत नहीं मिली और उन्होंने लिखा की यह अंगूर खट्टे है जैसे अनुभव था, जिस शहर का नाम उन्होंने पहले से सुना था वहां जा नहीं पाये। राजस्थान भ्रमण के दौरान उन्होंने कई वनस्पतियो के नमूने एकत्रित किये।
खैर वो मध्य प्रदेश के रास्ते बॉम्बे पहुंचे और आगे वो हुआ जिसका अनुमान कोई नहीं लगा रहा था। राजस्थान से जाने के बाद वह घोड़े की पीठ से गिर गये एवं उन्हें हैजे की बीमारी भी होगयी और इन दोनों वजह से मात्र ३१ वर्ष की उम्र में बॉम्बे में विक्टर जैक्वेमों की दिसंबर १९३२ में मृत्यु होगयी। चार वर्षो में इकठे किये गये हजारो पेड़ पौधों के नमूनों पर काम कर उनके बारे में लिखने की उनकी तमन्ना अधूरी ही रह गयी। उनके साथी वनस्पति विशेषज्ञो ने उनके द्वारा एकत्रित किये गये नमूनों की जाँच की और पाया उनमें कई नए प्रजाति के पेड़ पौधे है, जिन्हे आज भी उनके नाम से जाना जाता है। एक साहसी और कर्मठ वनस्पति शास्त्री अपने जीवन के अल्प समय में इस देश के इतिहास के पन्नो में दर्ज होगया।

शिकागो के बोटैनिकल गार्डन की लेनहार्डट लाइब्रेरी में आज भी उनके द्वारा किये गए महान कार्य ;Voyage dans l’Inde pendant les années 1828 – 1832 जो उनके मरणोपरांत प्रकशित हुआ था को रखा गया है। इनके कार्य को ६ बड़े खंडो में बांटा गया है जिनमें चार मूलपाठ है एवं २ में रेखांकन है। इसके आलावा पारवारिक सदस्यों , मित्रो, सहकर्मियों को लिखे गए अनेक पत्र भी यहाँ सुरक्षित रखे है।
यह फ्रैंच के साथ इंग्लिश में भी अनुवादित किये गए है।
उनके नाम से कई पेड़ पौधों के नाम रखे गए जैसे एकेसिया जैक्वेमोंटी, बेतुला जैक्वेमोंटी, करीलुस जैक्वेमोंटी , प्रूनस जैक्वेमोंटी, अरिसीमा जैक्वेमोंटी आदि .
उनकी जीवन यात्रा भले ही छोटी रही (8 अगस्त 1801 – 7 दिसंबर 1832) परन्तु उनके द्वारा की गयी साहसी यात्राओं को जमाना सदैव याद रखेगा की उन्होंने अपना समय भरपूर जीया। आप भी उन्हें याद करे और इस दुनिया को सुन्दर बनाने के लिए कार्य करें।

लेखक:

Dr. Dharmendra Khandal (L) has worked as a conservation biologist with Tiger Watch – a non-profit organisation based in Ranthambhore, for the last 16 years. He spearheads all anti-poaching, community-based conservation and exploration interventions for the organisation.

Mr. Ishan Dhar (R) is a researcher of political science in a think tank. He has been associated with Tiger Watch’s conservation interventions in his capacity as a member of the board of directors.