राजस्थान के चूरू जिले में स्थित तालछापर वन्यजीव अभ्यारण्य में वैज्ञानिकों ने ग्रीन लिंक्स मकड़ी की एक नई प्रजाति की खोज की है। यह खोज डॉ. विनोद कुमारी के मार्गदर्शन में शोध कार्य कर रही सीकर निवासी निर्मला कुमारी द्वारा की गई है।

लिंक्स मकड़ियाँ

ये स्थलीय शिकारी मकड़ियां प्रभावी अरैक्निडा वर्ग की जंतु है जो कि पारिस्थितिकी तंत्र के की-स्टोन प्रजाति हैं। ऑक्सीओपिडी कुल के सदस्यों में आठ आंखें, तीन टारसल नखर, तीन जोड़ी स्पिनरेट्स, अधिजठर खांच के किनारों पर बुकलंग्स खुलना के सामान्य लक्षण होते हैं। इन मकड़ियों को अध्ययन क्षेत्र में इनके पैरो पर उपस्थित असंख्य खड़े स्पाइंस,  तीव्र गति की अचानक छलांगों  से पहचाना जाता है। इनकी खोज और वर्गीकरण का श्रेय स्वीडिश अरच्नोलॉजिस्ट टॉर्ड टैमरलान टेओडोर थोरेल को जाता है, जिन्होंने 1869 में इन मकड़ियों का अध्ययन किया था।

इन मकड़ियों की आदतों एवम अपेक्षाकृत तेज दृष्टि के कारण इन्हें लिंक्स मकड़ियां कहा जाता हैं ये मकड़ियां ऑक्सीओपिडी कुल के 9 वंशों की लगभग 445 प्रजातियों से संबंधित है । इनकी उत्कृष्ट दृष्टि शिकार को सक्रिय रूप से तलाशने, उनका पीछा करके उन पर घात लगाकर हमला करने एवं दुश्मनों से बचाने के लिए छलांग के उपयोग में सहायता प्रदान करती है।

व्यवहार

  • शिकारी: ये मुख्य रूप से हेमिप्टेरा, हाइमेनोप्टेरा, और डीप्टेरा गण के कीटों का शिकार करती हैं।
  • घात लगाकर शिकार: ये अक्सर पत्तियों या फूलों पर छिपकर शिकार की प्रतीक्षा करती हैं
  • तेज दौड़: ये अपने शिकार का पीछा करने के लिए तेजी से दौड़ सकती हैं और यहां तक कि उड़ने वाले कीड़ों को पकड़ने के लिए कुछ सेंटीमीटर हवा में छलांग लगाती है
  • मातृ देखभाल: इन मकड़ियो के द्वारा दिए गए अंडे एगसेक छोटी वनस्पतियो के शीर्ष से जोड़ा जाता हैं एवम मादा लिंक्स मकड़ियाँ एगसेक के स्पूटन तक अंडों की रक्षा करती हैं।

नई खोज का महत्व

  • यह खोज भारतीय जैव विविधता को समृद्ध करती है और वैज्ञानिकों को इस अद्भुत प्राणी के बारे में अधिक जानने का अवसर प्रदान करती है।
  • यह मकड़ी वन पारिस्थितिकी तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
  • इस खोज से तालछापर वन्यजीव अभ्यारण्य को एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक महत्व मिलता है।

मकड़ी की विशेषताएं

  • यह मकड़ी हरे रंग की होती है जो इसे पेड़ों की पत्तियों में छिपने में मदद करती है।
  • इसके लंबे पैर इसे तेज़ी से शिकार का पीछा करने में सहायता प्रदान करती है।
  • यह दिन के समय सक्रिय होती है और छोटे कीड़ों का शिकार करती है।
  • यह मकड़ी अत्यधिक गर्म और ठंडी जलवायु परिस्थितियों में भी जीवित रह सकती है।

नामकरण

इस मकड़ी की प्रजाति का नाम “प्यूसेटिया छापराजनिरविन” रखा गया है।

  • छापराज” शब्द खोज स्थल के नाम पर आधारित है जो कि छापर एवम राजस्थान से लिया गया है।
  • निर” निर्मला कुमारी और “विन” डॉ. विनोद कुमारी के नाम के पहले अक्षरों से लिया गया है।

शारीरिक पहचान

  • आकार: सामान्यतः इनका आकार 4-25 mm होता है, किन्तु प्यूसेटिया छापराजनिरविन का आकार 11.2mm पाया गया है।
  • रंग: इनका रंग प्रायः चमकीले हरे से पीले भूरे रंग तक होती हैं, जिससे कारण यह अपने आसपास के वातावरण में आसानी से घुल-मिल जाती हैं। प्यूसेटिया छापराजनिरविन के शिरोवक्ष का रंग  हल्का भूरा एवं उदर का रंग हल्का हरा पाया गया है।
  • आँखें:  प्राय: इन मकड़ियों की तेज दृष्टि उनकी आठ आंखें के कारण होती है जिनमे से छह समान आकार की आंखें जो शीर्ष पर एक षट्भुज बनाती हैं  एवम एक जोड़ी आंखें चेहरे के सामने षट्भुज के नीचे स्थित होती हैप्यूसेटिया छापराजनिरविन के  आंखों की आगे की पंक्ति प्रतिवक्रित जिसमें आगे मध्य की आंखें छोटी तथा पार्श्व की सबसे बड़ी होती है पीछे की पंक्ति की  सभी आंखें समान आकार तथा अग्रवक्रित होती है।
  • टांगें: सामान्यतः लिंक्स मकड़ियों की टांगें लंबी, काँटेदार स्पाइन्स युक्त होती हैं, जो शिकार को पकड़ने, तेजी से दौड़ने में मदद करती हैं। प्यूसेटिया छापराजनिरविन की मजबूत टांगे पीले भूरे रंग की तीन टारसल नखर युक्त होती है जिसका पाद सूत्र 1243 होता है।
  • आंतरिक जननांग: प्यूसेटिया छापराजनिरविन के आंतरिक जननांग में दो गोलाकार स्पर्मेथिका युक्त होती है जो कि विशिष्ट मैथुन वाहिनी एवम निषेचन वाहिनी युक्त होती हैं।

तालछापर वन्यजीव अभयारण्य

तालछापर वन्यजीव अभ्यारण्य 7.19 km2 में फैला हुआ है जो कि काले हिरणों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ पर लगभग 4958 हिरणो के साथ ही साथ चिंकारा, नील गाय, जंगली सूअर, जंगली बिल्ली, मरू बिल्ली, कॉमन फॉक्स, डेजर्ट फॉक्स , सियार, भेड़िया, शिकारी पक्षी , मोर, सांडा व खरगोश जन्तुओ के साथ मोथिया घास, बबूल, देशी बबूल, कैर, जाल, रोहिड़ा, नीम, खेजड़ी आदि वनस्पतियो की प्रजातियां भी पायी जाती है। इसलिए यह अभ्यारण्य प्रकृति प्रेमियों और वन्यजीव उत्साही लोगों के लिए एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है।

यह खोज निश्चित रूप से भारत के वन्यजीव संरक्षण और जैव विविधता अनुसंधान के लिए महत्वपूर्ण योगदान देगी।

References

  • Kumari, N., Kumari, V., Bodhke, A. K. and Zafri, A. H. (2024). New species of genus Peucetia Thorell, 1869 (Araneae: Oxyopidae) from India. Serket  20(2): 73-77.

Authors

Dr. Vinod Kumari (Left) is an accomplished Associate Professor at the University of Rajasthan, Jaipur, and is renowned for her work in sustainable agriculture and environmental conservation. Her research focuses on biological pest control using natural agents and green nanoparticles, reducing the need for harmful chemicals. Ms Nirmala Kumari (Right), a research scholar under Dr. Vinod Kumari, is studying spider diversity in Taal Chhaper Wildlife Sanctuary, Rajasthan. During her research, she discovered a new species of green lynx spider, named Peucetia chhaparajnirvin, which has been officially recognized and included in the World Spider Catalog.