राजस्थान में सर्पदंश से जुड़े मुद्दे और मुश्किलें
राजस्थान देश का विशालतम राज्य है, जहाँ हर वर्ष हज़ारों लोग सर्प दंश से मारे जाते है। सांपो के बारे में कुछ लोग अज्ञानतावश और कई लोग अपने स्वार्थ के लिए भ्रामक जानकारियां फैला रहे हैं।
पास के एक गांव से मुझे किसी जानकार का फ़ोन आया कि, किसी को सांप ने हाथ में काटा है, मुझे लगा जरूर कोई महिला होगी, क्योंकि महिलाये ही हाथ से अधिकांश काम करती है, पांव में सांप काटता तो पुरुष होने की अधिक सम्भावना रहती है, जो इधर-उधर घूमते फिरते हैं। गांव वाला बोला हाँ महिला ही है और उसे एक देवता के लेकर आये हैं, परन्तु आराम नहीं आया, आप कुछ करो। मेरा सहज सुझाव था, आप डॉक्टर के लेकर जाओ। गांव वाला बोला, यह बहुत मुश्किल है, क्योंकि लोग मानेगे नहीं। अक्सर विभिन्न देवताओं के स्थानों पर सांप काटे के इलाज के लिए सर्प दंश से पीड़ित लोगों को लेकर आते है। यह एक आम परिदृश्य है, जो राजस्थान के सभी जिलों में देखने को मिल जाता है। कुछ दिनों बाद महिला अपने दूध मुहे बालक को छोड़ कर परलोक सिधार गयी।
राजस्थान में सांपो के इलाज से जुड़े अनेक लोक देवता है जैसे – गोगाजी, देलवारजी, हरबूजी, रामदेवजी, तेजाजी, कारिशदेवजी आदि, इन देवताओं में स्थानीय लोगों की अटूट आस्था है। इन देवता में आस्था ने लोगों को सांप काटने के बाद मानसिक रूप से सबल भी किया है। इन देवताओं का यदि इतिहास देखे तो पता चलता है कि, यह योद्धा रहे हैं, जो स्थानीय युद्ध वीरता से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गये थे। इनके स्थलों पर जिस प्रकार के वाद्य यंत्र आदि बजाये जाते हैं, वह किसी युद्ध के माहौल में बजाये जाने वाले ध्वनि यंत्रो की भांति होते है। सर्प दंश से पीड़ित को जब उत्सावर्धक माहौल मिलता है वह प्लेसिबो इफ़ेक्ट से अपने आप को कुछ हद तक समस्या से उबार लेता है। प्लेसिबो इफ़ेक्ट का मतलब है मानसिक रूप से अपने आप को मजबूत कर बिना दवा और इलाज के अपने कष्ट से लड़ना अथवा कष्ट को नगण्य मानना। इसके लिए इन देव स्थलों पर अनोखा माहौल होता है जहाँ अनेको लोग आप के कष्ट में शामिल होते हैं और उत्तेजक धुन पर लोग नाच गा रहे होते हैं। पीड़ित व्यक्ति को देवताओं के स्थलों पर जाने से जीवित रहने की आशा तो मिलती है, परन्तु यह पर्याप्त नहीं, उसे उचित इलाज मिलना आवश्यक है।
इंडियन कोबरा Indian cobra (Naja naja) : नाग भारतीय मिथको का सबसे अधिक विषमयकारी प्राणी जिसे देवताओं के गले की शोभा बढ़ाने का दर्जा दिया गया है। अत्यंत विषैला परन्तु उतना ही शर्मीला सरीसृप अक्सर अपने सिर के आस पास की त्वचा को फन के रूप में फैला कर और फुफकार कर अपने दुश्मन को दूर रखने की चेष्टा करता है। इस का विष हेमो और न्यूरो टॉक्सिक दोनों प्रकार के गुणों से युक्त होता है। (Photo: Dr. Dharmendra Khandal)
असल में सांपो के काटने के बाद उसका सही इलाज होना ही कोई आधी सदी पूर्व से शुरू हुआ है। एन्टीवेनॉम का चलन और उसका निर्माण का इतिहास कोई अधिक लंबा नहीं है, इसी कारण भारत की विशाल अनपढ़ जनसंख्या अपने पारम्परिक तरीके से दूर नहीं हो पायी। हज़ारों वर्षो तक इन देवस्थलों पर पीड़ितों को मानसिक तोर पर सबल बनाकर सांप काटे का इलाज होता रहा है।
इन स्थलों पर पीड़ित के बचने के कई कारण थे -कई बार सर्प दंश में विष की मात्रा थोड़ी छोड़ पाता है, कई बार तो सर्प काटने के बाद भी अपना विष छोड़ता नहीं जिसे ड्राई बाईट कहते है, कई बार केवल सांप की फुफकार आदि से व्यक्ति डर जाता है, अनेक बार विषहीन सर्प ही काट लेता है, राजस्थान में 40 सांपो की प्रजातियों में 35 तो विषहीन ही है। इस तरह के मामलो में जब व्यक्ति बच जाते है, तो आस्था के इन स्थलों में और अधिक विश्वास बढ़ता चला जाता है। इन सभी मसलों को गहराई से बिना समझे लोग झाड़ फूंक में लगे रहते हैं और इन देवताओं के स्थलों के संचालक, लोगों को भर्मित कर, अपना उल्लू सीधा करते रहते हैं, और साथ ही ऐसे लोग सही इलाज से भी लोगो को दूर रखते हैं।
यह तय मान के चलिए की यदि किसी विषैले सांप ने काटा है तो एंटीवेनम के अलावा कोई इलाज नहीं है। आपको ऐसे कई उदहारण मिलेंगे जिसमें व्यक्ति देवता के स्थान पर पहुंचे है और मारे गए, उसके बाद देवता के पुजारी बिना जिम्मेदारी लिए पीड़ित और उसके परिवार को ही लापरवाह बता कर उसी की गलती सिद्ध कर देते हैं।
सांपो के सही इलाज का विचार भी भारतीय उपमहाद्वीप की ही देन है, वर्ष 1870, में सर्जन मेजर एडवर्ड निकोल्सोन ने मद्रास मेडिकल जर्नल में एक बर्मा देश के सपेरे के बारे में आलेख प्रकाशित किया की किस प्रकार वह अपने आपको सर्प दंश करवाकर भविस्य में होने वाले सांपो के दंशो से सुरक्षित रखता था। इस तरह के उल्लेख भारतीय मिथको में पढ़ने को भी मिलते रहे है। खैर इसी तरह के कई और शुरुआती पर्यवेक्षण आधार बने एक विशेष शोध के कारण 1896 में पहली बार एक फ्रेंच चिक्तिसक अल्बर्ट कालमेट्टे ने पहले मोनोक्लेड कोबरा सर्प दंश के टीके का निर्माण किया। इन्होने इस टीके का निर्माण वियतनाम में बाढ़ ग्रस्त इलाके में फसे अनेक लोगो के सर्प दंश से मारे जाने के बाद किया था।
100 वर्ष से अधिक पहले विकशित हुए इस इलाज को कई वर्षो तक कोई अधिक मान्यता नहीं मिली परन्तु 1950 के आस पास जाकर ही लोगो ने इसे स्वीकारा एवं पिछले कुछ दशकों से ही इसकी उपलब्धता बढ़ी है। यद्दपि आज भी देश में एंटीवेनम की कमी है।
राजस्थान में कितने लोग सर्प दंश से प्रभावित होते है ?
विश्व स्वास्थ्य संघठन (World Health Organization -WHO ) के अनुसार विश्व में 81,000–138,000 लोग सर्प दंश से मारे जाते है और इनसे तीन गुणा लोग स्थायी तौर पर अपने अंगो से विकलांग हो जाते हैं।
मिलियन डेथ स्टडी (MDS) भारत सरकार के द्वारा किया गया ऐसा अध्ययन है, जिसमें अल्पायु में मृत्यु के कारणों पर आंकड़े संगृहीत किये गए थे। यह अनूठा अध्ययन वर्ष 1998-2014 के मध्य संपन्न किया गया। इसी अध्ययन के अनुसार वर्ष 2001 to 2014 के मध्य 14 वर्षो में भारत देश में लगभग 808,000 लोगो की जान सर्प दंश से गयी। यानी एक वर्ष में भारत में 58000 लोग सर्प दंश से मारे जाते है। जिनमें से 94% लोग ग्रामीण इलाको में और उनमेसे 77% अस्पताल नहीं पहुंचे थे।
सर्प दंश से मारे जाने वालों की संख्या के हिसाब से भारत के अन्य राज्यों की तुलना में राजस्थान का शीर्ष से पांचवा स्थान है जो कि, एक अत्यंत चिंता का विषय है। इस अध्ययन के अनुसार 14 वर्षो में राजस्थान में 52,100 लोगों की मृत्यु हुई जिसका प्रतिवर्ष हुई मृत्यु का औसत 3722 होता है।
सूरवीरा एवं साथियो 2020 द्वारा प्रकाशित आलेख ”Trends in snakebite deaths in India from 2000 to 2019 in a nationally representative mortality study ” – (https://elifesciences.org/articles/54076) के अनुसार भारत में होने वाले सर्प दंशो में रसल्लस वाईपर (Daboia russelii) द्वारा 43%, करैत द्वारा (Bungarus species) द्वारा 18%, कोबरा द्वारा (Naja species) 12% एवं सर्प प्रजाति की पहचान नहीं हो पायी 21%, अन्य सांप की प्रजातिया ने 6 % लोगो की मृत्यु के कारण बने। इन्होने प्रकाशित शोध एवं अन्य तथ्यों के आधार पर कई प्रकार के अन्य आंकड़े भी जुटाए और पाया की 59 % पुरुषो एवं 41 % महिलाओं की मृत्यु हुई। इनके अनुसार सबसे अधिक जून से सितम्बर के मध्य 48 % सर्पदंश से मारे गए जबकि जनवरी फरवरी में सबसे कम 9 % लोगो को ही सांपो ने द्वारा मारे गए।
बचाव और प्राथमिक चिकित्सा आदि:
सर्प दंश से बचने के लिए प्रस्तावित प्राथमिक चिकित्सा के उपायों में अत्यंत भ्रम की स्थिति है, आपको भली प्रकार याद होगा की सर्प दंश के पश्च्यात अक्सर लोग कहते थे, उस स्थान पर “X” अथवा “+” के निशान के चीरे लगाए एवं रक्त के श्राव को होने दे। यह प्राथमिक चिकित्सा की पुस्तिकाओं में भी छपा हुआ मिल जाता है। परन्तु यह तरीका अत्यंत घातक होसकता है एवं पीड़ित अति रक्त स्त्राव से अपनी जान गवां सकता है। अनेक बॉलीवुड फिल्मो में आपने देखा होगा की एक हीरो चाकू से चीरा लगाकर मुँह से विष चूस कर हेरोइन की जान बचा लेता है। यह अत्यंत गलत उपाय है।
हमें सर्प दंश वाले स्थान पर किसी भी प्रकार का चीरा नहीं लगाना चाहिए – सर्प के विष दो प्रकार के होते है – हेमोटोक्सिक एवं न्यूरोटॉक्सि। दोनों वाईपर प्रजाति के सर्पो में हेमोटोक्सिक विष विद्यमान है एवं यह जब काटते है तो परिसंचरण तंत्र या वाहिकातंत्र बुरी तरह प्रभावित होता है और परिणाम स्वरुप नाक, मुँह, मूत्रमार्ग एवं सर्प द्वारा काटे जाने वाले स्थान पर रक्त का स्त्राव शुरू होजाता है। इस स्थिति में यदि किसी प्रकार का चीरा लगाकर और रक्त निकलने का प्रयास किया जाए तो बिना चिक्तिसक की मदद के रक्त प्रवाह रुकना बहुत दूभर कार्य होजाता है। इस तरह व्यक्ति की मृत्यु विष से पूर्व अति रक्तप्रवाह से ही हो जाती है। अतः याद रखे कभी चीरा नहीं लगाये।
दूसरा प्रचलित प्राथमिक चिकित्सा का तरीका है , सर्प के काटे स्थान से थोड़ा ऊपर ताकत के साथ एक रस्सी या कपडे का बंध बांधना। यह तरीका भी पुरानी प्राथमिक चिकित्सा की पुस्तकों में आम तोर पर पढ़ने को मिलता है परन्तु यह तरीका भी पीड़ित के लिए घातक होसकता है। क्योंकि शरीर के एक ही हिस्से में विष का संग्रहण होजाता है और यह उस अंग के लिए अत्यंत घातक होसकता है। रक्त प्रवाह के सम्पूर्ण रुकने से वैसे भी उस अंग को हानि पहुँच सकती है।
वर्तमान ज्ञान के अनुसार यह अत्यंत प्रचलित प्राथमिक उपचार के दोनों तरीके ही पूर्णतया हानिकारक हो सकते है। तो फिर क्या किया जाए ?
विशेषज्ञ दो प्रकार की रणनीत से चलने की सलाह देते है —- बचाव और उचित इलाज।
बचाव –
- सबसे अधिक महत्वपूर्ण है सर्प दंश से बचना, सांप आपके घरो के आस पास अधिक नहीं पनपे इसकेलिए उनके साफ सफाई रखे, अक्सर चूहों आदि को खाने के लिए ही सांप आपके घर के नजदीक आते है। कबाड़ आदि रखे स्थानों को साफ सुथरा रखे।
- रात्रि में इधर उधर जानेके लिए प्रकाश की उचित व्यवस्ता रखे। रात्रि विचरण के लिए अच्छी टोर्च को अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाये।
- सांपो की प्रजातियों को पहचानना सीखे ताकि आप उनके व्यव्हार को समझ सके।
- सांपो के साथ उचित दुरी बनाये एवं सावधानी बरते, अनेको बार लापरवाही के कारण सांप पकड़ने वाले प्रशिक्षित व्यक्ति भी सर्पदंश के शिकार बन जाते है।
प्राथमिक चिकित्सा एवं इलाज :
- बांधना एवं काटना नहीं करे , जिसका जिक्र हम शुरू में कर चुके है। परन्तु सांप के काटे हुए स्थान पर एक साफ कपडा लपेटे , जिसे आप हलके दबाव के साथ बंध सकते है, परन्तु तेज ताकत के साथ कदापि नहीं।
- पीड़ित व्यक्ति को शांत रखे एवं उसका होंसला बढ़ाते रहे।
- व्यक्ति को बिना दौड़ाये / भगाये चिकित्शालय तक पहुंचाए, इसके लिए वाहन का इस्तेमाल करे। यदि वाहन उप्लंध नहीं हो तो दुपहिया वाहन का इस्तेमाल करे एवं दो जनो के बीच में पीड़ित को बैठा कर अस्पताल लेकर जाना चाहिए ।
- अस्पताल में यदि किसी को जानते है तो उनको पीड़ित के पहुंचने से पहले सूचित कर दे, ताकि वह बिना समय गवाए पहले ही संशाधनो की व्यवस्था कर सके।
- अधिक सांप पाये जाने वाले क्षेत्र में रहने वाले लोग आस पास के अस्पताल के बारे में जानकारी रखे क्या वाहन एवं सर्प दंश से सम्बंधित इलाज उपलब्ध है।
- एंटीवेनम का इस्तेमाल मात्र प्रशिक्षित डॉक्टर ही कर सकता अतः अपने पास इनका अनावस्यक संग्रहण नहीं करे एवं स्वयं इसका इस्तेमाल तो कदापि नहीं करे।
- सर्प दंश में जिस एंटीवेनम- पॉलीवालेन्ट स्नेक एंटीवेनम का भारत में इस्तेमाल किया जाता है वह भारत के चार प्रमुख विषैले सांपो के विष के लिए प्रभावी है परन्तु फिर भी सांप की प्रजाति अगर पहचान सकते है तो इलाज आसान होता है। अतः उसे पहचान ने का प्रयास करे एवं डॉक्टर को ठीक से वर्णित करे।
- कई बार डॉक्टर को भी सांप के काटे के इलाज का अनुभव नहीं होता है, अतः आस पास के सर्प विशेषज्ञ से मदद लेकर उन्हें अनुभवी डॉक्टर से राय मशविरा करवाया जा सकता है।
- अक्सर निजी अस्पताल सांप के काटे का इलाज करते है परन्तु जिले के मुख्य सरकारी अस्पताल में यह पूर्णतया मुफ्त है, चूँकि एंटीवेनम की दवा को लाइफ सेविंग ड्रग की श्रेणी में रखा गया है, अतः वह इनका पर्याप्त स्टॉक भी रखना उनके लिए अनिवार्य है । एंटीवेनम की दवा महंगी होती है अतः आम जनता सरकार की योजना का लाभ भी इन्ही सरकारी अस्पतालों में ही उठा सकती है।
इस प्रकार राजस्थान के विशाल भू भाग जहाँ अधिकांश जनता ग्रामीण इलाकों में रहती है, सर्प दंश से प्रभावित होसकती है। आवस्यकता है इसके बाद उचित इलाज लेने की। सांप हमारे पर्यवरण के महत्वपूर्ण घटक है इन्हे बचाना भी आवश्यक है। आप थोड़ी सावधानी से सर्प दंश से बच सकते है इनके शिकार आप नहीं आपका शत्रु चूहा है। असावधानी वश आपका इनसे प्रभावित होसकते है। अंधविश्वास से दूर रहे सही वैज्ञानिक जानकारी के आधार पर निर्णय लेकर अपनी और अपने मित्रो की जान बचाये एवं सांप की भी जान बचाये।