वन्य जीवों के रक्षक :  रणथम्भौर के रेस्क्यूमैन

वन्य जीवों के रक्षक :  रणथम्भौर के रेस्क्यूमैन

“वन्य जीव संरक्षण में रेस्क्यू करने वालों का हमेशा से ही एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है जो अपनी जानपर खेल कर मुश्किल में फसे वन्यजीवों को सुरक्षित निकालकर उनकी स्थानीय लोगों की रक्षा करते हैं  | ऐसे ही उम्दा कार्य कर रहे हैं रणथम्भौर के रेस्क्यू मैन ! आइये जानते हैं इनके बारे में…”

14 नवम्बर 2016 की उस सुबह रणथम्भौर के पास सटे एक गाँव “खवा खण्डोज”  में सभी गाँव के लोगों में हड़बड़ी सी मच गई क्यों कि उन्होंने एक कुए में एक बाघिन को गिरे हुए देख था और वह जीवित थी। गाँव के लोगों ने तुरंत वन विभाग की रेस्क्यू टीम को बुलाया । टीम को सुचना मिलते ही वे पूरे दस्ते के साथ उस जगह पर पहुंचे लेकिन गांव वालो ने चारों ओर से उस कुए को घेर रखा था । उनके लिए वो सारी परिस्थिति बाघ को बिना सफारी के देख पाने का एक मौका थी। जैसे ही टीम घटना स्थल पर पहुंची तब सबसे बड़ी चुनौती उस भीड़ को दूर करना था क्योंकि उस समय वहां ग्रामीणों के अलावा रणथम्भौर के ट्यूरिज्म से जुड़े हुए लोग , मीडिया के लोग और उन्ही के वाहनों के लम्बी कतारे भी लगी हुई थी । रेस्क्यू टीम व पुलिस प्रशासन ने समझा बुझाकर भीड़ को दूर किया ।उस कुए के अंदर लग भग दो फुट पानी था जो कि , एक संकेत था की यह रेस्क्यू आसान नहीं होने वाला है। क्यों किट्रेंकुलाइज के बाद टाइगर के फेफड़ों में पानी जाने का भी डर था। मीडिया के कई लोग वहां मौजूद थे और पूरी टीम के लोग के मन में एक घबरा हट भी थी कि , कहीं रेस्क्यू सफल नही हुआ तो आगे क्या होगा ये ईश्वर ही जाने। परन्तु साहस रखते हुए पूरी टीम ने योजना बनाई और सबसे पहले टीम के एक सदस्य को बड़े आकार के पिंजरे में बैठाकर रस्सी की मदद से पिंजरे को नीचे भेजा गया।नीचे जाकर उसने बाघिन को ट्रैंक्युलाइज किया । बाघिन के बेहोश होने के बाद टीम के दो सदस्यों को खाटके सहारे कुए में उतारा गया। उन्होंने बाघिन को नजदीक से जाकर देखा तो वह बेहोश थी और उन दोनो ने उसे उठाकर स्ट्रेचर पर रखा और सुरक्षित ऊपर ले आये ।वह बाघिन आज बिलकुल सुरक्षित है।

हज़ारों लोगों की भीड़ और बाघ जैसे बड़े व खतरनाक शिकारी को सफलता पूर्वक रेस्क्यू करने वाली उस टीम के जाबाज़ सदस्य हैं राजवीर सिंह ,  राजीव गर्ग , अतुल गुर्जर , जगदीश प्रसाद जाट और जसकरण मीणा। यह टीम हर वर्ष सैकड़ों वन्य जीवों को रेस्क्यू कर उनकी जान बचाती है। आइये इस आलेख में ऐसा साहसी कार्य करने वाले जांबाज़ों के बारे में जानते हैं |

श्री राजवीर सिंह बाए अवम श्री जश्करण मीना दाये जान पर खेलकर कुए से बाघ को निकालते हुए , तत्पश्चात उसे सुरक्षित जंगल में छोड़ दिया गया |

श्री राजवीर सिंह (वनपाल) :-

वन्य जीवों से प्यार – दुलार ,  उन का पालन पोषण करना , उन्हें कैसे बचाया जाए आदि कार्यों में बचपन से ही रुचि रखने वाले राजवीर सिंह वर्तमान में न केवल रणथम्भौर बल्कि सवाई माधोपुर के आस पास के जिलों तक भी वन्य जीव रेस्क्यू के लिए जाते रहते हैं। राजवीर सिंह का जन्म सवाई माधोपुर जिले की बोंली तहसील के दतुली गांव में सन   1968  में एक साधारण से किसान परिवार में हुआ। इनके पिताजी भी वन विभाग में फॉरेस्ट गार्ड के पद पर कार्यरत थे लेकिन कम आयु में ही उन का देहांत हो गया था तथा राजवी रतब छोटे ही थे। इनकी प्राथमिक व उच्चप्राथमिक शिक्षा गांव में ही हुई और   1988  में उच्च माध्यमिक शिक्षा इन्हों ने जयपुर से प्राप्त की व 23  जनवरी   1992  को इन्होंने अनुकंपा नियुक्ति के तहत जैसलमेर स्थित इंदिरा गांधी नहर परियोजना नर्सरी में फॉरेस्टगार्ड ( वन रक्षक ) के पद पर ज्वाइन किया । लेकिन  1995  में इन का पदस्थापन रणथंभौर बाघ अभ्यारण में हो गया और तब से लेकर आज तक ये वन्य जीव रेस्क्यू टीम रणथम्भौर में ही कार्यरत हैं।

पिछले 26 वर्षों से रणथम्भौर में कार्यरत रहते हुए इन्होने बहुत से महत्वपूर्ण कार्य किये हैं तथा कई कठिन रेस्क्यू को सफलतापूर्वक अंजाम देते हुए सैकड़ों वन्य जीवों के प्राण बचाये हैं। राजवीर बताते हैं कि,  वैसे तो हर रेस्क्यू ऑपरेशन अपने आप में कठिन व चुनौतियों से भरा होता हैं परन्तु कुछऐ से हैं जो आज भी उनके ज़हन में ज्यों के त्योंहैं।

वर्ष  2011  में ,  रणथंभौर बाघ अभयारण्य से सटे हुए गांव भूरी पहाड़ी में एक रात  T7  नामक बाघ ने गांव के अंदर घुसकर एक भैस के बच्चे का शिकार किया और रात भर वहीं बैठा रहा। अगली सुबह जैसे ही गांव वालों को पता चला तो सारे गांववाले इकट्ठे होकर चारों ओर से उसे भगाने का प्रयास करने लगे और बाघ खेतों में चला गया ।तभी गाँव वालों ने वन विभाग को सूचित कर मदद मांगी ।सुचना मिलते ही वन विभाग की पूरी रेस्क्यूटी मतत्कालीन उप वन संरक्षक दौलत सिंह के साथ घटना स्थल पर पहुंची लेकिन वर्षा होने के कारण विभाग की गाड़ी अंदर तक नहीं जा सकती थी। और गाँव वाले चारों ओर से शोर मचा रहे थे तथा वन विभाग रेस्क्यू टीम को मारने पर उतारू होरहे थे। परिस्थिति को देखते हुए टीम को मजबूर होकर पैदल ही बाघ को ट्रेंकुलाइज करने के लिए आगे बढ़ना पड़ा और वहां जा कर टीम एक छोटे टीले पर खड़ी हो गई ।जैसे ही गांव वालो ने फिर से शोर –शराबा मचाना शुरू किया तो बाघ झाड़ियों में छिपने के लिए रेस्क्यू टीम की दिशा में आगे बढ़ा लेकिन टीम को बिलकुल भी अंदेशा नहीं था। हालाँकि सारे गांव वाले वस्टाफ के अन्य लोग पूरा नज़ारा साफ़ देख रहे थे । इससे पहले कोई टीम को सूचित करता दौलत सिंह को बाघ ठीक उनके सामने दिखाई दिया। बाघ को सामने देखते ही टीम ने उससे बचने की पूरी कोशिश की परन्तु वह घबराया हुआ था और बाघने पालक झपकते ही दौलत सिंह पर हमलाकर उन्हें नीचे गिरा दिया ।अपने सामने बाघ को देखते हुए भी राजवीर ने हिम्मत नही हारी और डंडे के बल से डरा धमकाकर दौलत सिंह को बाघ के कब्जे से छुड़ा लिया और उन्हें तुरंत चिकित्सीय सुविधा के लिए जयपुर ले जाया गया। तथा उस बाघ को सरिस्का भेज दिया गया ।राजवीर बताते हैं कि , यह उनके जीवन का सबसे कठिन रेस्क्यू ऑपरेशन था भले ही यह एक दुखद घटना में परिवर्तित हो गया लेकिन इसमें बाघ का कोई दोष नहीं था वह बस भीड़ से बचने कि कोशिश में था और यह हादसा हो गया । इसी सिलसिले में राजवीर को एनडीटीवी के माध्यम से अमिता भबच्चन द्वारा और उस वक्त के मुख्य मंत्रीअशोक गहलोत आदि के माध्यम से कई अवार्ड भी मिले व सम्मान भी मिला जिन्हें सारे राजस्थान वासियों ने देखा व उनका साहस बढ़ाया ।

राजवीर अब तक एक हजार से ऊपर वन्य जीवों का रेस्क्यू कर चुके हैं जिनमे  35  से अधिक रेस्क्यू बाघ के भी किए हैं ।स्टाफ के अधिकारियों का मार्गदर्शन व साथियो के मिल रहे सहयोग से ये रोज किसीन किसी बेजुबान वन्य जीव की जिंदगी को नया जीवन देने में कामयाब होर हे हैं।

राजवीर बताते हैं कि ,एक बार छान गांव से सूचना मिली कि , गांव में अंदर खेतों की तरफ बाघ घुस गया है । वे पूरे दस्ते के साथ वहां पहुचे तो गांव वालों ने कहा कि , “साहब गाड़ी को आगे तक ले जाओ आगे कोई समस्यानही है” । उनके कह ने पर टीम गाड़ी सहित आगे चली तो गई पर उन्हें पता नहीं था कि , आगे कोनसी मुसीबत आने वाली थी। टीम वहां पर पहुंची और बाघ   T28  को ट्रेंकुलाइज किया और उसे पिंजरे में डाल गाड़ी में रख लिया । लेकिन जैसे ही गाड़ी आगे बढ़ाई गई तो सारे गांव के लोगों ने इकट्ठे होकर विभाग की गाड़ी का घेरावकर लिया और बोलेकि, “गाड़ी नही निकालने देंगे , तुम लोगों ने हमारी फसले नष्ट कर दी” । इसके अलावा वहां कुछ लो गऐ से भी थे जो केवल उत्पात मचाने के मकसद से वहां इकट्ठे हुए थे और उन्होंने चारों ओर से पत्थर बाजी शुरू कर दी । टीम के लोगों को चोटें भी आई लेकिन उन्होंने जैसे – तैसे करके गाड़ी में छिपकर जान बचाई । साथ ही उस समयमौ के पर ही विभाग ने   60000  रुपये उनको फसल के नुक्सान के ऐ वजमें मुआवजे के रूप में सौंपी ।हालांकि नुकसान कुछ नही हुआ मिर्ची लोग तोड़ चुके थे लेकिन हंगामा खड़ाकर के पैसे लेना ही उनका मकसद था। परन्तु इस सारे उत्पात में बहुत समय व्यर्थ हो चूका था और बेहोश बाघ को नही रिवाइवल मिल स्का और नही पानी ।मार्च का महीना था और दिन का एक बज चुका था गर्मी बहुत तेज थी। जिसके चलते बाघ मर चुका था । टीम के लोग बताते हैं कि , अगर गाँव वाले पत्थर बाजी और हंगामा नहीं करते तो उस बाघ को आसानी से जीवित बचाया जा सकता था।

इसी प्रकार की एक अन्य घटना   17   जुलाई   2012   को भी घटी थी जब खण्डार के मेई कला गांव में बाघ  T20  ने गांव के अंदर घुसकर एक बैल का शिकार किया था। लेकिन गांव में ऐसी घटनाएं होने के समय ग्रामीणों की कुछ पूर्व नियोजित ज्वलंत मांगे भी जिंदा हो जाती है जैसे कि,  पशुओ की चराई ,जंगलो में ईंधन के लिए लकड़ी कटाई , वन्यजीवों से मानव वपशुओं की सुरक्षा आदि । इन मांगों को लेकर ऐसे मौकों पर यह ग्रामीण लोग विभाग के कर्मचारियों से बदला लेने की धारणा रखते हुए उनके कार्यों में अड़ चने पैदा करते हैं। इस घटना की सुचना जैसे ही विभाग को मिलीतो उससे पहले ही पुलिस प्रशासन वहां पर पहुंच चुका था गांव वालों ने पुलिस प्रशासन के साथ बदसलूकी की व उनको पकड़कर गाँव के स्कूल में बंदकर दिया। ऐसे माहौल को देखकर रेस्क्यू टीम घटनास्थल से  5  किलोमीटर की दूरी पर ही रुक गई और बाद में वहाँ के स्थानीय जनप्रतिनिधि व आस पास के ग्रामीणों की समझाइशके बाद जब मामला शांत हुआ तो टीम घटनास्थल के लिए रवाना हुई । गाँव वालों का आक्रोश देखकर ये अनुमान था कि , गाँव वाले मुश्किल जरूर खड़ी करेंगे इसीलिए रेस्क्यू टीम के सभी सदस्यों ने खुद को वन विभाग का न बताकर अपना हुलिया बदल लियात था इस से भीड़ शांत होकर वहां से हट गई। गांव के पास स्थित नाले के पीछे बाघ बैठा था टीम ने गाड़ी को सीधा नाले के पास लगाया और जैसे ही बाघ दिखा तुरंत उसे ट्रेंकुलाइज किया गया तथा बाघ व टीम सभी सुरक्षित निकलकर वापस आ पाए।

डॉ राजीव गर्ग बाए रंथाम्भोरे में बाघिन का उपचार करते हुए . डॉ गर्ग ने सेकेड़ो बाघ अवम बघेरों को बचाने में मुख्य भूमिका निभाई है |

 

डॉ . राजीव गर्ग :-

पेशे से एक पशु चिकित्सक होने के नाते डॉ. राजीव गर्ग की रेस्क्यू टीम में भूमि का बहुत अहम रहती है। राजीव गर्ग,  सवाई माधोपुर के रहने वाले हैं और वर्तमान में वरिष्ठ पशुचिकित्सा अधिकारी सवाईमाधोपुर के पद  पर तैनात हैं। वर्ष   1995 में ये राजकीय सेवा में शामिल हुए औऱ अब तक लगातार हजारो पशु वन्य जीवोंका चिकित्सीय उपचार कर चुके हैं। डॉ. राजीव का कहना हैं रणथम्भौर नेशनल पार्क देश व दुनियाभर में प्रसिद्ध है यहां आए दिन बाघ जंगल से बाहर की तरफ निकल जाते हैं ऐसे में उनको रेस्क्यू के लिए सुव्यवस्थित रेस्क्यू यूनिट , पर्याप्त संसाधन ,अच्छे चिकित्सक व सुगम इलाज बेहद जरूरी हैं और इसमे भी विशेषकर जब ऑपरेशन की जरूरत होती है तो एक चिकित्सक की बहुत बड़ी भूमिका रहती है।

डॉ. राजीव एक  घटना को याद करते हुए बताते हैं कि , एक बार कुतलपुरा जाटान के पास एक बाघने एक वनकर्मी  के सीने पर दोनों पैर  रखते हुए उसे लहूलुहान कर दिया था  और ग्रामीण लोगों ने आसपास भीड़ लगा रखी थी।रेस्क्यू टीम ने घायल वनकर्मी को बचा तो लिया परन्तु बाघ लगातार आबादी क्षेत्र में घूमता रहा। बाद  में  क्षेत्रीय  निदेशक के आदेश पर  रेस्क्यू टीम का गठन किया जिसमें चिकित्सक के रूप में डॉ राजीव थे और रेस्क्यू टीम ने वहां पहुंच कर उस जगह को तलाशा जहां पर बाघ का लगातार मूवमेंट था।बाघ के पगचिन्हों के आधार पर बाघ को ढूंढ लिया गया और उस जगह को चारों ओर से देखा क्योंकि रेस्क्यू करने से पहले एक समुचित व सुगम स्थान की आवश्यकता होती है जो कि , वहाँ पर्याप्त था।तभी टीम ने बाघ को डाट किया और वह थोड़ा आगे निकल गया।कुछ दूर जाकर बाघ एक झाडी के निचे जाकर बैठ गया व होश हो गया।टीम ने तुरंत उसे रेस्क्यू किया बाद में इसको वहां पर चिकित्सीय सुविधाएं उपलब्ध कराते हुए गाड़ी में बिठाकर फलौदी क्षेत्र में ले जाकर छोड़ा था उस समय वह क्षेत्र टाइगर के पर्यावास के लिए नया था।

ऐसे ही एक बाघ करौली क्षेत्र में लगातार ऐसी घटनाओं को अंजाम दे रहा था जिससे जनहानि भी हुई और ग्रामीण लोगों में दहशत भी बन गई।जिसका रेस्क्यू करना जरूरी हो गया था जैसे ही रेस्क्यूटीम को आदेश मिला तो टीम करौली पहुच गई।परन्तु वहां पर एक समस्या थी कि टाइगर के दिन में दिखने की  आशा बहुत कम थी तथा वहां काफी सारा  क्षेत्र माइंस का है।टीम सुबह जल्द ही उस क्षेत्र पर पहुंची जहां पर उसका लगातार मूवमेंट था वहां मुख्य सड़क के पास स्थित एक गोशाला को टीम ने अपना कैंप बनाया और वही से चारो तरफ उसे खोजना शुरू किया तो देखा कि बाघ ने एक सांड का शिकार किया गया था।लेकिन टाइगर वहाँ से आगे था उस जगह पर पहुँच पाना सम्भव नही था लेकिन जैसे ही शाम होगी तो यह निश्चित था कि टाइगर उस सांड के पास जरूर आएगा और टीम लगातार निगरानी करती रही।शाम के 5 बज चुके थे टीम पूर्ण रूप से अलर्ट थी और आस पास का स्थान रेस्क्यू के लिए भी सुगम था।बाघ के वहां आते ही तुरंत उसे ट्रेंकुलाइज के लिए डाट किया और डाट लगने के बाद वह उल्टियां करने लगा फिर हमने बर्फ की सिल्लियों के  साथ उपचार कर उसे पिंजरे की वेन में बंद किया और उसे रणथम्भौर स्थित भीड़ एनक्लोजर में लाकर बन्द किया गया उसके ट्रंकुलाइज से पशुपालकों व किसानों ने उसकी दहशत से राहत की सांस लेकिन पर्यटन से जुड़े हुए लोग,प्रकृति व वन्यप्रेमीबन्धुओ में मायूसी छा गई।

ऐसे ही टाइगर-24  के बारे में इनका कहना हैं कि  छ लगातार जनहानि की घटनाओं को देखते व विशेषज्ञों की सलाह को मध्यनजर रखते हुए राज्य सरकार द्वारा टी-24  को सज्जनगढ़ उदयपुर में शिप्ट करने का फैसला हुआ मई 2015  में इसे रणथम्भौर से उदयपुर स्थित बायोलॉजिकल पार्क,सज्जनगढ़ में शिफ्ट किया गया और यह पहला ही मामला था जब किसी टाइगर को रेस्क्यू करके सड़क मार्ग के द्वारा दूसरे पार्क में शिप्ट किया गया  नही तो आज तक हवाई जहाज के द्वारा ही टाइगर को एक से दूसरे पार्क में ले जाया गया हैं।

टी-24  को रेस्क्यू के लिए यहां के क्षेत्रीय निदेशक के नेतृत्व में एक टीम  का गठन हुआ जिसमे मैं एक चिकित्सक के रूप में शामिल था हमने उस टाइगर को वॉच करना शुरू किया लेकिन वह हम नही मिल पा रहा था उसको ढूंढते-ढूंढते तीन दिन बाद वह जॉन no.3 में टी-39 (मादा) के साथ एक तलाब के पास विचरण करता हुआ मिला काफी समय तक दोनों एक साथ विचरण करते रहे तो रेस्क्यू करने में समस्या थी हमने इंतजार किया बाद में टी-39 जैसे वहां से अन्यत्र चली गई तो हमने उस रास्ते पर वेट लगाया जो रास्ता पानी की तरफ नही जाता हैं तथा पानी वाले रास्ते पर हमने हमारी सारी गाड़ियां लगा दी ताकि गलती से भी टाइगर पानी की तरफ क्रॉस न कर सके हमने मौका पाते ही उसे डाट किया तो वह सामने एक पहाड़ी थी उस पर चढ़ गया वहाँ जाकर वो बेहोश हुआ तो उसे बड़ी मुश्किल नीचे लाया गया सुबह के 10 बज रहे थे बहुत तेज गर्मी थी हमने वेन के पास में नीचे जामुन की पत्ती बिछाई व बर्फ द्वारा स्प्रे के लिए तैयार किया गया बाद में हमने टाइगर को चिकित्सीय इलाज किया और वेन में सवार किया पूरे रास्ते मे बर्फ की स्प्रे करते रहे यानी कि उस केज को हमने एक वातानुकूलित केज बना दिया टाइगर काफी आराम से बैठकर गया था तथा उस भयंकर गर्मी में हमने टी-24 को 12 घण्टे की यात्रा के बावजूद पूर्ण रूप से सुरक्षित सज्जन गढ़ ले जाकर छोड़ा यह काफी लंबा रेस्क्यू था और मेरे लिए भी यह काफी महत्वपूर्ण टाइगर रेस्क्यू था।

इनका कहना कि अब तक 50 से अधिक टाईगर रेस्क्यू ऑपरेशन मेरे द्वारा किए जा चुके हैं और जहाँ तक वन्यजीवों के लिए जो कुछ मैंने किया हैं वो मैंने खुद से ही प्रेरणा लेकर यही से सीखा हैं मैंने इसके लिए कोई अलग से ट्रेनिंग नही ली हैं और नही वाइल्डलाइफ से सम्बंधित कोई अध्ययन किया हैं जो भी किया हैं मेरे ही अनुभव कोसाझा करते हुए किया हैं व सीखा हैं जामडोली जयपुर में वाइल्डलाइफ से सम्बंधित एकट्रेनिंग इंस्टिट्यूट हैं वहां पर वाइल्डलाइफ का भी कोर्स होता हैं उसमे मेने लेक्चर दिया हैं वहां पर ट्रेनिंग ले रहे लोगो के साथ मेरे अनुभव को साझा किया हैं उससे पहले भी मैं इसी इंस्टिट्यूट में वाइल्डलाइफ से सम्बंधित ट्रेनिंग दे चुका हूं साथ ही कुछ समय पहले करौली में भी मुझे उप वनसंरक्षक ने वहां के स्टाफ को ट्रेनिंग देने के लिए आमंत्रित किया था मैंने एक दिन का प्रशिक्षण व मेरा अनुभव उनके साथ भी साझा किया था।

रंथाम्भोरे के नए रेस्क्यू मेन श्री अतुल गुर्जर ( मध्य ) रेस्क्यू की विधा में अब्निपूर्ण हो गए है |

 

श्री अतुल गुर्जर :- 

30 जुलाई 1991 को सवाईमाधोपुर जिले की गंगापुरसिटी तहसील के रेंडायल “गुर्जर”  गांव में भारतीय सेना के रिटायर्ड हवलदार सियाराम गुर्जर के घर जन्मे अतुल गुर्जर आज रणथम्भौर अभयारण्य में वनरक्षक के पद पर कार्यरत हैं।वर्तमान में ये वनपाल के अतिरिक्त प्रभार के साथ आमली नाके पर तैनात हैं।इन के परिवार में दो बच्चे भी हैं जो अभी छोटे हैं वे पढाई कर रहे हैं इनकी पत्नी ग्रहणी होने के साथ-साथ बच्चो की देखरेख में लगी रहती हैं।इनका परिवार अधिकांशतः भारतीय सेना से जुड़ा हुआ है लेकिन ये शिक्षक बनना चाहते थे जिसके लिए इन्होने बी.एड. भी की।शिक्षक कम्पीटीशन के दौरान ही जून 2016 की वनरक्षक भर्ती परीक्षा में इनका चयन रणथम्भौर अभयारण्य स्थित जोगीमहल नाके पर वनरक्षक (फॉरेस्टगार्ड) के पद पर हो गया।बाद में प्रकृति व वन्यजीवों से बढ़ते लगाव को ध्यान में रखते हुए ये अपनी स्वेच्छा से रेस्क्यू टीम में चले गए और अगस्त  2017 से 2020 तक रेस्क्यू टीम के सदस्य रहे।

अतुल बताते हैं कि, रेस्क्यू टीम में आने के बाद इन्होने विभिन्न वन्यजीवों के रेस्क्यू में भाग लिया।

अप्रैल    2019  में इन्होने नर बाघ  T-91  को रामगढ़ विषधारी अभयारण्य बूंदी से रेस्क्यू कर के मुकुन्दरा हिल्स टाइगर रिज़र्व में शिप्ट करने के ऑपरेशन में भाग लिया था। नर बाघ  T-91  पहले रणथम्भौर अभयारण्य में विचरण कर रहा था लेकिन घूमता हुआ वह रामगढ़ विषधारी तक पहुंच गया। बाद में सभी अधिकारीयों ने विचार विमर्श से इस बाघ को मुकुन्दरा हिल्स भेजने का निर्णय लिया क्यों कि मुकुन्दरा हिल्स को भी टाइगर रिज़र्व की तरह विकसित करना था।

सीसीएफ के आदेश के बाद रेस्क्यू टीम रामगढ़ विषधारी बूंदी के लिए रवाना हुई और वहां पहुँचकर वहां के सम्बन्धित डीएफओ से इस रेस्क्यू के बारे में चर्चा की।इस रेस्क्यू में सीसीएफ रणथम्भौर वाई के साहू,टाइगर वॉच रणथम्भौर से कन्जर्वेशन बायलॉजिस्ट धर्मेंद्र खाण्डल,वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ.  राजीव गर्ग ,डॉ. अरविंद कोटा और जयपुर की रेस्क्यू टीमें भी शामिल थी।

जैसे ही टीम रेस्क्यू करने के लिए उस स्थान पर पहुंची तो वहां की स्थिति थोड़ी विपरीत थी।वह बाघ रणथम्भौर से निकल कर गया था लेकिन रामगढ में आकर मानवीय व्यवहार व वाहनों की आवाज को सुनकर झाड़ियों में छिपने की कोशिश करता था यानी वह अकेला बाघ एक तरह से डर-डरकर रहता था।टीम ने बाघ की निगरानी व उसे एक जगह पर बुलाने के लिए कैमरा ट्रेप के साथ बेट (एकशिकार – बछड़ा) भी बाँधा व बाघ को ढूंढना शुरू किया।बाघ कहीं दिखाई नहीं दिया फिर दो दिन बाद सुबह के 5-6 बजे बाघ बेट के पास आया तो कैमरा फ्लैश मारने लगा जैसे ही टीम ने कैमरा का फ्लैश देखा तो उन्होंने वहां जाकर उसको ट्रेंकुलाइज किया।बाघ वहां से हटकर थोड़ा दूर जाकर नाले में जाकर बैठ गया और पूरी टीम ने सर्च करना शुरू किया तो बाघ नाले के पास ही मिला तब तक वह बेहोश हो चुका था।बाघ को तुरंत गाड़ी में बिठा कर मुकुन्दरा शिप्ट किया गया और पूरी टीम के लिए ख़ुशी का मौका था क्योंकि मुकुन्दरामें  पहला बाघ ले जाने का सौभाग्य उन्हें प्राप्त हुआ।

अतुल बताते हैं कि, यह कार्य हमारी टीम के लिए एक चुनौती पूर्ण कार्य था क्योंकि रणथम्भौर हमारे लिए होम ग्राउंड की तरह हैं तो दूसरी जगह जाकर बाघ को रेस्क्यू करना हम समझते हैं कि कार्य चुनौती भरा हैं आखिर कार हम सफल हुए।

आगे अतुल बताते हैं कि , एक बार सूचना मिली कि रणथम्भौर सेंचुरी से सटे गांव छान में बाघ T23 घुस गया है और उसका रेस्क्यू करना है।रेस्क्यू टीम तैयार हुई और पूर्ण दस्ते के साथ छान गांव पहुंची।रात का समय था और छान एक बड़ी आबादी का गांव था और ऐसी जगह से बाघ को रेस्क्यू करने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं। तो टीम ने देखाकि, गांव के अंतिम छोर की तरफ एक मकान के पीछे नाले के ऊपर बीच रोड़ पर बाघ गाय के शिकार को खा रहा था।उसके पास गांव के लोगो का भी मूवमेंट था तथा बाघ बार-बार डिस्टर्ब भी हो रहा था इसलिए उसे ट्रेंकुलाइज करना जरूरी था।टीम ने बाघ को ट्रेंकुलाइज किया और जैसे ही वह बेहोश हुआ तो उसे गाड़ी में बिठा लिया तब तक रात के 1 बज चुके थे।आस पास लोगो का हुजूम लग गया था और टीम गांव के अंतिम छोर पर थी तथा बीच गांव में होकर गाड़ी को निकालना काफी कठिन था।तभी टीम ने बोदल नाके से एक और गाड़ी बुलवाली और लोगो को समझाते हुए वहां मौजूद भीड़ को तीतर बितर किया व बाघ को सुरक्षित लेकर आ गए और इंडाला डांग मेंले जाकर उसे छोड़ दिया।

अतुल बताते हैं कि घनी आबादी और भीड़ भाड़  वाले क्षेत्र में वन्यजीवों को रेस्क्यू करने में काफी कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है कभी कभार स्थानीय लोगों और विभाग के बीच आपसी संघर्ष भी हो जाता है। ऐसी ही एक घटना रणथम्भौर अभयारण्य से सटे एक गांव कुंडेरा की है। जनवरी 2019 की एक सुबह विभाग को सूचना मिली कि, एक बाघ ने एक महिला को मार दिया हैं।उस समय सारे गाँव के लोगों में आक्रोश भरा हुआ था और हर तरफ हंगामा मचा हुआ था ।ऐसी स्थिति में वनविभाग टीम का वहां जाना बहुत ही जोखिम भरा कार्य था। फिर भी टीम को हिम्मत व सूझबूझ से कार्य करना जरूरी था।टीम साहस जुटाकर घटनास्थल पर पहुंची तो चारों तरफ लोगों की भीड़ लगी हुई थी।बाघ उस महिला को मारकर पास स्थित सरसों के खेतों में चला गया था।जब वहां जाकर बाघ के पगमार्क मिलेतो कुछ दुरी पर एक नाले के पास बाघ ने नीलगाय का शिकार कर रखा था।रात का समय था तो उस दिन टीम सिर्फ कैमरा लगाकर वापस लौट आई।फिर घटना के तीन दिन बाद रेस्क्यूटीम व पुलिस प्रशासन की टीम वापस उसी जगह पर पहुंची जहाँ बाघ ने नीलगाय का शिकार किया था।क्योंकि लोगो की भीड़ बढ़ गई थी तो प्रशासन का सहयोग जरूरी था।महिला की मौत की वजह से बाघ के प्रति लोगो मे काफी रोष था इसलिए टाइगर को रेस्क्यू करना बेहद जरूरी था।यानि कि, रेस्क्यूटीम के सामने एक बड़ी चुनौती थी ।बाघ उस नीलगाय के शिकार को घसीटकर पास में सरसों के खेत मे ले गया था तो टीम ने उसे घसीट के निशान को देखते हुए उसका पीछा किया परन्तु सरसो की फसल में यदि बाघ बैठा हो तो उसे देख पाना मुश्किल था इसीलिए टी\म ने ड्रोन कैमरा इस्तेमाल किया जिससे पता चला कि, टाइगर थोड़ा आगे किल के पास ही बैठा हैं।लेकिन गाड़ी को देखकर टाइगर आगे आगे जंगल की ओर चल पड़ा तो उस वक्त डीएफओ ने होशियारी दिखाते पास में वनविभाग के थर्मल कैमरे के ओपरेटर को कॉल लगाकर टाइगर की लोकेशन स्पष्ट करने को कहा तो वहां से ओपरेटरने बताया कि, “टाइगर आपके बांयी ओर कुछ ही मीटर की दूरी पर आगे की ओर जा रहा हैं”। फिर बाघ खेत की मेड पर चलता हुआ आगे की तरफ बढ़ रहा है थोड़ा पास जाकर उसे ट्रेंकुलाइज किया गया और थोड़ी देर बाद बाघ बेहोश हो गया।शाम का समय हो गया था लोगो मे बाघ को देखने की जदोजहद थी लेकिन पूरी टीम ने ततपरता दिखाते हुए बाघ को गाड़ी में शिप्ट कि या व वहां से रवाना हो गए।बाद में उसे अंदर जंगल में ले जाकर छोड़ दिया।

अतुल रेस्क्यू टीम से आने के बाद फील्ड में भी रेस्क्यू करते रहते हैं। अतुल बताते हैं कि, “मैं आज भी हमारी रेस्क्यू टीम के इंचार्ज वनपाल राजवीर सिंह को अपना आदर्श मानताहूं उनके साथ में मैंने 400  से अधिक वन्यजीवों के जीवन को बचाया हैं।उच्चाधिकारियों का मार्गदर्शन तो मुझे मिला ही हैं लेकिन वनपाल राजवीरसिंह से मुझे काफी कुछ सीखने को मिला।मेरे रेस्क्यू कार्यकाल में विभाग के लिए मैंने जितने भी अच्छे कार्य किए हैं मैं उनका श्रेय वनपाल राजवीर सिंह को देता हूं”।

श्री जगदीश प्रशाद जाट ने अनेको बार रेस्क्यू के कार्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. श्री जाट हिम्मत में जज्बे से हर समय मुश्किल रेस्क्यू के दोरान आगे रहते है |

श्री जगदीश प्रसाद जाट :-

वर्तमान में रणथम्भौर बाघ अभयारण्य में फ़्लाइंग टीम में कार्यरत जगदीश प्रसाद जाट वनरक्षक न होकर राजस्थान होम गार्ड सेवा के माध्यम से वन विभाग में ड्राईवर के पद पर कार्यरत हैं।  7  दिसम्बर  1980  को इन का जन्म सवाई माधोपुर नगर से सटे हुए कस्बा ठीगला में हुआ था । इनका शिक्षा से इतना लगा वन ही रहा साथ ही परिवार भी किसान वर्ग से था तो आठवी पास करने के बाद परिवार के साथ खेती –बाड़ी केकार्यमेजुटगएऔरबादमेंसन 2005 मे राज्य होम गार्ड सेवा में इनका सिपाही के पद पर चयन हुआ । इनकी प्रथम पोस्टिंग भी इन्हें वन विभाग के अधीन कुशाली पूराना के पर मिली उसके बाद से लेकर आज तक ये वन विभाग मे ही कार्य रत हैं।

वन विभाग मे आने के बाद इन्होंने अपने स्टाफ के साथीयो से प्रकृति ववन्य जीवो के महत्व के बारे में काफी कुछ सीखा बाद में इनकी कार्य करने की रुचि बढ़ती चली गई और सन   2012  में ये स्वेच्छा से वन्य जीव रेस्क्यू टीम आ गए । वहां साथी ववरिष्ठ सदस्यों के मार्ग दर्शन में रहकर  “वन्य जीवों को कैसे बचाए ” इस बारे में इन्होंने काफी कुछ सीखा बाद में ये रेस्क्यू टीम के साथ – साथ बाघ परियोजना परिक्षेत्र , नगर परिषद व जिले के आस पास के कई शहर व कस्बो में जाने लगे जिससे इनको काफी अनुभव हो गया। जगदीश प्रसाद बताते हैं रेस्क्यू टीम में आने से पहले भी इन्हें टाइगर रेस्क्यू के लिए जाने का मौका मिला है । सन  2009  में    NTCA  द्वारा एक गाइडलाइन जारी हुई जिसमें रणथंभौर बाघ परियोजना से सरिस्का के लिए टाइगर शिफ्ट करने का प्रस्ताव था। उसमें   T-44  को सरिस्का में शिप्ट करने की मंजूरी मिली थी उस कार्य के लिए डीएफओ द्वारा एक टीम गठित की गई जिसमें जगदीश उस टीम के ड्राइवर थे ।  T-44  ( मादा )  खंडार के पास स्थित वन क्षेत्र में दूध बावड़ी के आस पास में रहती थी । रेस्क्यू टीम ने बाघिन को ढूंढा उसे ट्रेंकुलाइज करने की योजना बनाई । मौका मिलते ही बाघिन को ट्रेंकुलाइज कर दिया गया और वह थोड़ी दूर जाकर एक पेड़ के पास बैठ गई और   20  मिनट बाद में वह जैसे ही बेहोश हुई तो टीम ने उसके मुँह पर कपड़ा रखा और स्ट्रेचर पर डाल दिया । बाघिन कोरेडियो कॉलर लगाया गया और रिवाइवल देकर केंटर में रखे पिजरे में शिप्ट कर दिया । बाद में उसे हेलीकॉप्टर से सरिस्का ले जाया गया और वहां जाकर उसे एनक्लोजर में छोड़ दिया गया । जगदीश सरिस्का तक इस पूरे रेस्क्यूमें साथ में थे बाद सरिस्का में टाइगर छोड़ने के बाद वहां के विभाग , आस पास के पर्यावरण व वन्य प्रेमियो में खुशी की लहर छा गई तथा और बाघों को सरिस्का भेजने का प्रयास किया जा रहा था ।

इसी क्रम एक नर बाघ   T-12  अक्सर रणथम्भौर के बाहरी इलाके में घूमता रहता था तथा उसे सरिस्का भेजने कि योजना बनाई गई । रेस्क्यू टीम डीएफओ के निर्देशन में सुबह   8  बजे अणतपुरा के पास चिरौली वन्य क्षेत्र में पहुंच गई जहाँ पर कभी – कभार   T-12  का मूवमेंट रहता था । वहा इस टाइगर को लगातार खोज जारी थी और कुछ समय बाद बाघ मिल गया । वह सामने ही दिख रहा था लेकिन जैसे ही टीम पास जाने की कोशिश करती तो टाइगर वहां से भाग जाता ।

इस मशक्कत में दिन के   11  बज चुके थे तभी डीएफओ का मैसेज आया कि , “पूरी टीम वहां से रवाना होकर कुंडाल वन क्षेत्र पहुँचे ” और आदेश की पालना करते हुए पूरी टीम तुरन्त कुंडाल वन्य क्षेत्र पहुंच गई तब तक दोपहर के   12  बज चुके थे । वहां जाकर देखा तो   T25  एक नाले की बगल में एक बैल के किल पर बैठा था । टीम ने तुरंत बाघ को ट्रेंकुलाइज करने की योजना बनाई और वहां पर नाले का आस पास का हिस्सा था वह एक समतल सपाट क्षेत्र था तो मौका देखकर उसे डाट दी तो बाघ कुछ दूर जाकर एक झाडी के पास लेट गया व बेहोश हो गया । बाघ को तुरंत रेडियो कालर लगा या गया और रिवाइवल देकर उसे स्ट्रेचर द्वारा पिंजरे में शिप्ट किया गया बाद में उसे सड़क मार्ग से सरिस्का ले कर गए थे । परन्तु यह रेस्क्यू जितना सरल लग रहा है वास्तव में उतना सरल था नहीं । उस समय गर्मियों के दिन थे और रात के  8  बज चुके थे । टीम में ताप मान ठंडा रखने के लिए पिंजरे के ऊपर बर्फ की सिल्लियां लगाई थी । जगदीश पिंजरे वाली गाड़ी से आगे वाली गाड़ी चला रहे थे जिसमें   100 – 100  लिटर पानी की चार टंकी थी और एक   200  लीटर पानी की टंकी पिंजरे वाली गाड़ी में भी थी । जिसमें एक व्यक्ति लगातार पिंजरे पर पानी डालता रहा यानी कि ,  सरिस्का पहुचने तक   1000  लीटर पानी खर्च कर दिया ताकि बाघ को गर्मी से बचाया जा सके । बाद में सरिस्का के अंदर उसे एनक्लोजर में जाकर छोड़ दिया गया ।

जगदीश बताते हैं कि ,  कई बार रेस्क्यू इतना मुश्किल होता है कि , टीम के लोगों की जान पर ही बन आती है । ऐसी ही एक घटना वे बताते हैं जब वे रेस्क्यू टीम के साथ जंगल के अंदर ही थे । शाम के चार बज रहे थे और विभाग को सुचना मिली कि , “आपतत्काल ऑफिस पहुँचे “। ऑफिस में भी कुछ बताया नहीं गया पर पूरी टीम बरवाड़ा रोड़ की तरफ निकल पड़ी । रेस्क्यू टीम के इंचार्ज राजवीर सिंह भी साथ ही थे । आगे जाकर पाड़ली गांव की तरफ घूमे तो वहां गांव के लोगो ने शोर मचा रखा था । टीम ने जाकर वहां देखा कि , प्रशासन की गाड़ी वहां मौजूद थी उस जगह सैंकड़ों लोगो का भीड़ थी और लोगो मे काफी आक्रोश भी था । तो बाद में राजवीर सिंह ने टीम को बताया कि , “यहां एक पैंथर हैं और उसका रेस्क्यू कर के जंगल मे छोड़ना हैं “। पैंथर और टीम के बीच एक   10  फिट गहरा नाला था जिसकी चौड़ाई लगभग   15  फिट थी और उसमें  5 फिट तक पानी भी था । राजवीर सिंह और एक साथी आगे जा चुके थे और जगदीश भी नाला पार करके उनके पीछे चले गए । इन्होने पैंथर को ट्रेंकुलाइज करने की योजना बनाई । पैंथर बेंगन की क्यारी में बैठा हुआ था और जब उसे ट्रेंकुलाइज करने की कोशिश की तो वह सीधा जगदीश की तरफ़ दौड़ता आया लेकिन उन्होंने लकड़ी के जेडे की मदद से उसे नीचे गिरा दिया । पैंथर गुस्से में था उसने सीधा राजवीर सिंह की तरफ हमला किया । जगदीश ने राजवीर को बचाने के लिए उसकी ओर झपट्टा मारा तो पैंथर जगदीश की ओर हो लिया और उसने इनकी बांयी आंख के ऊपर पंजे से अटेक किया । जैसे तैसे करके इन्होने पैंथर को नीचे फेंक दिया लेकिन पैंथर ने दुबारा झपट्टा मारते हुए जगदीश का सिर पकड़कर नीचे पटक दिया जिससे उनका सिर फट गया । जगदीश की आँख और सिर से खून बहने लगा । वहीँ दूसरी और पैंथर ने फिर एक गांव के युवक की ओर झपटा जिसे टीम के लोगों ने बचा लिया । गांव के लोग गुस्से में आग –बबूला हो उठे और पैंथर खेतो की ओर भाग गया और वह भीड़ पैंथर के पीछे लग गई । उस भीड़ के हाथों में लाठी ,  कुल्हाड़ी वदांतली जैसी चीजे थी । जगदीश वहां पड़े – पड़े चिल्लाते रहे कि  “पैंथर को मत मारो पैंथर को मत मारो ”  पर वो भीड़ उसके पीछे भागती रही । पैंथर काफी आगे भाग गया था बाद में जगदीश को वहां से उठाकर जिप्सी से अस्पताल लाया गया जहां पर उनका लम्बा इलाज चला था ।

श्री जसकरण मीणा :-

वर्तमान में रेस्क्यू टीम रणथम्भौर में कार्यरत जसकरण मीणा का जन्म 1 मई 1968 को रणथम्भौर के नज़दीकी गांव सूरवाल में हुआ था । चार भाई-बहनों में सबसे बड़े जसकरण ने 10 वी की पढ़ाई गांव सूरवाल से ,उच्चमाध्यमिक शहर सवाईमाधोपुर व 1991-92  के सत्र में स्नातक की पढ़ाई सरकारी कॉलेज सवाईमाधोपुर से की हैं और  1987  में इनकी शादी हो गई थी । वर्तमान में इनके परिवार में एक बच्चा व एक बच्ची हैं जो पढाई कर रहे हैं । जसकरण वर्ष  1996  में राजस्थान होमगार्ड सिपाही के रूप में भर्ती हुए थे इस दौरान ये सवाईमाधोपुर स्थित मानटाउन पुलिस थाना,भारतीय खाध निगम कार्यालय, बाघ नियंत्रण कक्ष कलेक्ट्रेट व आकाशवाणी सवाईमाधोपुर में सिपाही पद पर सेवाएं दे चुके हैं। इसके पश्चात वर्ष  2011  में जसकरण राज्य होमगार्ड सेवा के ही माध्यम से रणथम्भौर बाघ अभ्यारण में पदस्थापन के तौर आए और तब से लेकर आज यहीं पर कार्यरत हैं। विशेषकर ये रेस्क्यू टीम में हैं जो कि , रणथम्भौर ही नही बल्कि इसके आसपास के ग्रामीण व शहरी क्षेत्र तथा सवाई माधोपुर के पडौसी जिलों तक भी वन्यजीव रेस्क्यू के लिए अपनी टीम के साथ जाते रहते हैं।

रेस्क्यू के दौरान ऐसे ही यह घटना के बारे में जसकरण बताते हैं कि , वहरदा चौकी क्षेत्र में एक भालू काफी समय से बीमार था व उसको ट्रेंकुलाइज के लिए प्रयास भी किए लेकिन हो नहीं सका।उपवन संरक्षक के आदेश पर बाद जसकरण और उनके साथी वहरदा क्षेत्र में पहुँचे , तो वहां पास में एक छोटी पहाड़ी पर भालू बैठा नजर आया। वहाँ पर ट्रैकिंग करने वाले फारेस्ट गार्ड ने भी सुचना दी कि वह तीन दिन से एक ही जगह बैठा था तथा उसमे चलने की क्षमता नही थी। उसकी कमज़ोर हालत को देखते हुए टीम ने भालू को ट्रेंकुलाइज कर ने की बजाय वैसे ही पकड़ ने की योजना बनाई ।

पूरी टीम भालू की ओर बढ़ी व सबसे आगे जसकरण थे । जब भालू और जसकरण के बीच सिर्फ पांच मीटर का फ़ासला तथा एक दम से भालू टीम की तरफ दौड़ा और सभी तेजी से भाग छुटे।जो साथी जसकरण से पीछे थे वे बहुत आगे निकल चुके थे और जसकरण पीछे रह गए।उनके पास लकड़ी का जेड़ा था लेकिन उन्होंने सोचा अगर इसके जेडे की पड़ी नहीं तो भालू उनको घायल कर देगा ।सभी भागते रहे लेकिन जैसे ही एक नाला आया तो आगे वाले दूसरी तरफ चले गए और जसकरण उनसे बिछुड़ गए।परिस्थिति कुछ ऐसी बन गई थी मानो भालू को जसकरण के अलावा और कोई नज़र नहीं आ रहा था और वो उनके पीछे पड गया तथा पकड़ भी लिया । भालू ने उनको ज़ख्मी कर दिया जिस में उनका एक पैर फैक्चर हो गया । बाद में उनके साथियों में से एक सदस्य ने बहादुरी दिखाते हुए जेडे की मदद से भालू परवार किया । टीम का कोई भी सदस्य कभी भी किसी जीव को नुक्सान पहुंचना नहीं चाहता था परन्तु उस समय जसकरण की जान बचाने के लिए यह कठोर कदम उठाना ही पड़ा । चोट लगते ही भालू जसकरण को छोड़कर  5-7  मीटर की दूरी पर जा बैठा बाद में सभी स्टाफ के साथी आ गए जो साथ मे गए थे उन्होंने जसकरण को उठाया व जिप्सी में बिठाकर अस्पताल ले गए । ऐसी ही एक घटना दर्रा वन्य जीव अभयारण्य कोटा की है जहां पर एक पैंथर वायर के फंदे में फंस गया था । सुचना मिलते ही पूरी टीम रेस्क्यू के लिए गई ।

इस रेस्क्यू में जस करण व राजवीर दोनों ही थे ।जब टीम वहां पहुंची तबतक भी वह पैंथर फंदे में फंसा हुआ ही था । राजवीर ने तुरंत बिना समय गवाय पैंथर को ट्रेंकुलाइज करने के लिए इंजेक्शन लगाया परन्तु जैसा सोचाथा वह नहीं हुआ। ट्रेंकुलाइज करने पर भी पैंथर परकुछ असर नहीं हुआ । पैंथर गुस्से में तो पहले से ही था और वह वायर को तोड़ते हुए सीधा टीम की तरफ दौड़ा और राजवीर के ऊपर से कूदकर पास के एक सरसों के खेत में जाकर बैठ गया।

बाद में टीम गाड़ी में सवार हुई और गाड़ी को सीधी सरसो के खेत मे अंदर ले गए तो जाकर देखा तो वह तब तक बेहोश हो चुका था। उसे गाड़ी में डालकर कोटा जुमेंलाकर छोड़ दिया तब जाकर यह रेस्क्यू सफल हो पाया।

इसी     प्रकार के कई रेस्क्यू ये टीम करती है तथा वन्य जीवों के प्राण बचाती है। टीम के चारों सदस्य एक दूसरे के साथ सामंजस्य बनाकर कार्य करते हैं व एक-दूसरे से रोज़ कुछ नया सीखते हैं। जैसे जसकरण और जगदीश कहते हैं कि , “रेस्क्यू टीम के इंचार्ज राजवीर सिंह से हमने रेस्क्यू के विभिन्न पहलु सीखे हैं “। तो दूसरी ओर ये सभी अपने बच्चों को वनविभाग में कार्य करते हुए देखना चाहते है। इन सभी का यह मानना है वनविभाग में भर्ती होने वाले सभी कर्मियों को वन्यजीवों के रेस्क्यू कि ट्रेनिंग मिलनी चाइये ताकि वे अपने स्तरपर छोटे-मोटे रेस्क्यू आराम से कर पाए।

हम इन सभी को इनके कार्यों के लिए शुभकामनाये देते हैं तथा आशा करते हैं कि अन्य लोगों को इनकी कहानी से काफी कुछ सिखने को मिलेगा।

Cover Photo credit: Dr. Dharmendra Khandal