गिद्धों का नया सुरक्षित आश्रय स्थल : ठेकरा गौशाला, करौली

गिद्धों का नया सुरक्षित आश्रय स्थल : ठेकरा गौशाला, करौली

प्राचीन काल से गाय का हिन्दू संस्कृति में अपना एक विशेष स्थान है परन्तु आज के समय इनकी बात करना आधुनिकता के खिलाफ और प्राचीन मानसिकता का द्योतकमान लिया जाता है। यदि आप पारिस्थितिक तंत्र की हलकी सी भी समझ रखते है तो ठेकरा गौशाला धाम नामक करौली की यह गौशाला आपके लिए एक नए विचार का संचार करेगी। मैंने पाया की किस तरह एक खनन से बर्बाद भू क्षेत्र जिसमें बिना वृक्षारोपण के और अतिरिक्त प्रयासों के किस प्रकार उसे पुनर्स्थापित किया जा सका है।

१ गिद्ध के साथ पूरे दिन चलने वाला सियार के साथ संघर्ष इस स्थान को विशेष बनाते हैं।

यह प्राचीन गौशाला का चरागाह क्षेत्र जो 1790 बीघा का है, एक ज़माने में अतिक्रमण से घटता गया एवं अवैध खनन से बर्बाद पारिस्थितिक तंत्र उजड़े बयार के सामान था।  गौशाला के नाम पर अव्यवस्था का आलम था। खैर समय पलटा और एक सज्जन श्री मुन्ना सिंह ने इसमें अनेक समाज के लोगों की मदद से अतिक्रमण हटाया  और खनन पर रोक लगायी।  गौशाला में २००० गायों को शरण दी गयी एवं इन्ही सज्जन के अथक प्रयासों से पर्याप्त चारे पानी की समुचित व्यवस्था  की गयी। जिस प्रकार केंचुए द्वारा खाद बनाकर इकोसिस्टम को पोषित किया जाता है लगभग उसी प्रकार इस विशाल भू भाग में यह २ हजार गाये रात दिन इस खनन प्रभावित क्षेत्र को पोषक तत्वों से उर्वरक बनाती रही।

२ प्रवासी यूरेशियन ग्रिफ्फॉन आपस में विभिन्न तरह की क्रियाएं करते रहते हैं।

यह क्षेत्र आज एक सुरक्षित इकोसिस्टम बन चुका है। यह क्षेत्र मुझे तब देखने का मौका मिला जब रणथम्भौर से एक नरभक्षी बाघ T104 मानव बस्ती की और निकल पड़ा जो इस गौशाला में एक सप्ताह रुक गया जहाँ से वन विभाग ने इसे टाइगर वाच की टीम की मदद से उसे सुरक्षित जगह पहुँचाया। टाइगर वॉच की टीम इस क्षेत्र में बाघ की मॉनिटरिंग करती थी। 
खैर समय के साथ इसके पारिस्थितिक तंत्र में सुधार हुआ और आज यह ३५ से अधिक स्थानिक गिद्धों की प्रजाति के लिए आवास बन चुका है एवं २०० से अधिक विदेशी गिद्ध इस साल दिखाई दिए है। इन गिद्धों का सियारों के साथ आपस में व्यवहार देखने लायक होता है। यह एक तरह का छोटा  जोड़बीड़ है जहाँ गौशाला की मृत गायें यहाँ रहने वाले गिद्धों और सियारों के लिए आसान भोजन मिल जाता है।

३ सभी गिद्ध सियारों से मजबूती से टक्कर लेते हैं।

४ शरद ऋतु में सुबह और शाम की धुप इनके लिए अत्यंत आवश्यक हैं। शायद वह अंदरूनी पंखो पर सीधी पड़ती हैं।


५ अक्सर १०-१५ सियारों के समूह में भी अकेला गिद्ध डटा रहता है, और सियार उन्हें अपना शिकार बनाने का प्रयास नहीं करते, परन्तु भोजन के लिए संघर्ष करते अवश्य नजर आते हैं।

वन विभाग चाहे तो इसे गिद्धों के लिए इस स्थान को गिद्धों के लिए संरक्षित क्षेत्र घोषित करवा सकती हैं, जिस से यह संकटग्रस्त समूह को एक और स्थान मिल सके।  इसके लिए गौशाला और आस पास के क्षेत्रों में इस्तेमाल होने वाली पशु दवाओं पर गहन ध्यान देना होगा लोगों के सहयोग से इस मुहीम को और आगे बढ़ाना होगा।

६ अक्सर खाने की कमी संघर्ष को बढ़ा देती हैं।

७ अत्यंत क्रोधित सियार से भी गिद्ध घबराते नहीं हैं।

आप इस जगह को गौशाला प्रबंधको की सहमति के साथ स्वयं देख सकते हो जो करौली से ३० किलोमीटर दूर धौलपुर मार्ग पर हैं। गौशाला प्रबंधक गिद्धों के प्रति अत्यंत संवेदनशील हैं अतः आप उनके द्वारा तय मानको का अवश्य ध्यान रखे।

८ श्री मुन्ना सिंह जी जिन्होंने इस नए आश्रय स्थल को विकसित किया है

 

गिद्ध और गीदड़
सुनी गायें मरे जहाँ भी सड़े वहां ही,
क्यों न इन्हें खाये भूखे गिद्ध,
क्यों न इन्हें डाले एक जगह जहाँ हो छोटा बाड़ा शहर के किनारे ,
शायद गिद्ध और गीदड़ यही पुकारे