रणथम्भौर से गायब हुए बाघों का रहस्य

रणथम्भौर से गायब हुए बाघों का रहस्य

राजस्थान के मुख्य वन्यजीव संरक्षक ने रणथम्भौर से 25 बाघों के लापता होने की जांच के लिए एक जांच समिति का गठन किया है। प्रारंभिक निष्कर्षों के अनुसार, ये बाघ दो चरणों में गायब हुए: 2024 से पहले 11 बाघों का पता नहीं चला था, और पिछले 12 महीनों में 14 बाघ गायब हो गए। जांच शुरू होने के बाद, अधिकारियों ने रिपोर्ट किया कि इनमें से 10 बाघों को खोज लिया गया है जबकि 15 अभी भी लापता हैं।

तो, बाकी 15 बाघों का क्या हुआ?

टाइगर वॉच के विस्तृत डेटाबेस पर आधारित यह लेख इन लापता बाघों के प्रोफाइल और अंतिम ज्ञात रिकॉर्ड का विश्लेषण करता है, ताकि उनके गायब होने के संभावित कारणों को उजागर किया जा सके।

बाघों की जानकारी और गायब होने के संभावित कारण

बाघ IDलिंगअंतिम रिपोर्टेडजन्म वर्षउम्र (गायब होने के समय)गायब होने का संभावित कारण
T3नर03-08-2022200418-19 वर्षवृद्धावस्था के कारण मरा हो सकता है
T13मादा17-05-2023200519-20 वर्षवृद्धावस्था के कारण मरा हो सकता है
T38नर04-12-2022200814-15 वर्षवृद्धावस्था के कारण मरा हो सकता है
T41मादा15-06-2024200717-18 वर्षवृद्धावस्था के कारण मरा हो सकता है
T48मादा12-09-2022200715-16 वर्षवृद्धावस्था के कारण मरा हो सकता है
T54मादाअक्टूबर-22201113-14 वर्षउम्र के कारण प्रमुख बाघ द्वारा बाहर किया गया
T63मादाजुलाई-23201113-14 वर्षउम्र और प्रतिस्पर्धा के कारण मरा हो सकता है
T74नर14-06-2023201212-13 वर्षप्रमुख बाघ T121 और T112 द्वारा बाहर किया गया
T79मादा16-06-2023201311-12 वर्षसंदिग्ध मृत्यु; पार्क के बाहर रहती थी
T99मादा26-07-202420169 वर्षगर्भावस्था में जटिलताएं, फरवरी 2024 में गर्भपात
T128नर05-07-202320204 वर्षक्षेत्रीय संघर्ष / मानव संघर्ष के कारण मरा हो सकता है
T131नर30-11-202220194 वर्षक्षेत्रीय संघर्ष / मानव संघर्ष के कारण मरा हो सकता है
T138मादा20-06-202220203 वर्षक्षेत्रीय संघर्ष / मानव संघर्ष के कारण मरा हो सकता है
T139नर17-07-202420214 वर्षक्षेत्रीय संघर्ष / मानव संघर्ष के कारण मरा हो सकता है
T2401नर04-05-202420223 वर्षक्षेत्रीय संघर्ष / मानव संघर्ष के कारण मरा हो सकता है

निरीक्षण और तार्किक अनुमान

यह 15 बाघ अब तक गायब हैं, और उनके गायब होने के संभावित कारण निम्नलिखित हो सकते हैं:

  • वृद्ध बाघ: इन बाघों में से पांच—T3, T13, T38, T41, और T48—15 साल से ऊपर के हैं, जिनकी उम्र 19-20 साल तक पहुंच चुकी है।
  • दूसरे दो, T54 और T63, 13-14 साल के हैं और संभवतः अपने प्राकृतिक रूप से जीवन के अंतिम दौर के करीब हैं।
  • मादा बाघ T99 को फरवरी 2024 में गर्भावस्था में जटिलताएं आई थीं, जिससे उनका गर्भपात हो गया था। उन्हें व्यापक चिकित्सा देखभाल दी गई थी और वे जीवित रही थीं। हाल ही में रिपोर्ट आई थी कि वे फिर से गर्भवती हो सकती हैं, हालांकि यह पुष्टि नहीं हो पाई है। संभव है कि इसी प्रकार की जटिलताएं फिर से उत्पन्न हुई हों, जिसके कारण उनका वर्तमान स्थिति समझी जा सकती है।

फोटो: बाघिन T99 के गर्भपात के दौरान लिया गया चित्र

  • बाघ T74, जो 12 साल से अधिक उम्र की है, को डोमिनेंट बाघ T121 और T112 द्वारा उनके क्षेत्र से बाहर किया जा सकता है।
  • बाघिन T79 अजीब परिस्थितियों में गायब हो गई, जिसके बाद वन विभाग ने उसकी खोज शुरू की और उसकी दो शावकों को पाया। वह रणथम्भौर के बाहर कंडुली  नदी क्षेत्र में रहती थी, और ऐसी चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में उसका अब तक जीवित रहना आश्चर्यजनक था।
  • सबसे महत्वपूर्ण नुकसान पांच युवा नर बाघों का है, जो रणथम्भौर के प्रमुख बाघों के मध्य प्रतिस्पर्धा का शिकार हो गए। वन्य जीवन में, नर बाघों को क्षेत्रीय संघर्षों का सामना करना पड़ता है, जो अक्सर घातक मुठभेड़ों की ओर ले जाता है, जिनमें केवल सबसे मजबूत जीवित रहते हैं। वन विभाग के विस्तृत विश्लेषण के अनुसार, युवा नर  बाघों जैसे T128, T131, T139, और T2401 को अक्सर अप्रयुक्त क्षेत्रों की तलाश करते हुए देखा गया था।प्रमुख बाघों के साथ क्षेत्रीय संघर्ष उनकी गायब होने का एक संभावित कारण हो सकता है।
  • बाघिन (T138) का गायब होना चिंता का विषय है, तथा 15 लापता बाघों में से इस अल्प-वयस्क बाघिन की अनुपस्थिति विशेष रूप से चिंताजनक है।
  • प्राकृतिक प्रतिस्पर्धा के अतिरिक्त, मानव से संबंधित संघर्ष को भी ध्यान में रखना चाहिए। ये युवा बाघ स्थानीय समुदायों के साथ संघर्षों का शिकार भी हो सकते हैं, जैसे कि जहर देना या अन्य मानव जनित खतरों का सामना करना। क्षेत्र में पहले के घटनाएं, जैसे कि T114 और उसकी शावक, और T57 की जहर से मौत, मानव-बाघ संघर्ष के जोखिम को स्पष्ट रूप से दर्शाती हैं।

सारांश

रणथम्भोर से बाघों के गायब होने के कारणों में बढ़ती आयु, स्वास्थ्य समस्याएं, क्षेत्रीय संघर्ष और अन्य मानवजनित कारण शामिल हो सकते  हैं। उम्रदराज बाघ, जैसे T3, T13, T38, T41, और T48, अपनी उम्र के कारण स्वाभाविक रूप से मरे हो सकते हैं। बाघ सामान्यतः 15 साल तक जीवित रहते हैं, और उसके बाद उनका जीवित रहना मुश्किल हो जाता है। 15 साल की उम्र के बाद, उन्हें स्वास्थ्य और क्षेत्रीय संघर्षों का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके जीवित रहने की संभावना घट जाती है।

T54, T63, T74, और T79 जैसे बाघ, जो अपनी उम्र के कारण कमजोर हो चुके थे, शायद युवा और प्रमुख बाघों से अपने क्षेत्रों की रक्षा करने में असमर्थ भी। इस कारण उनके जीवन का संकट में पड़ना स्वाभाविक है, खासकर जब वे पार्क के बाहरी इलाकों में रह रहे होते हैं, जैसे कि T54 जो तालरा रेंज के बाहरी इलाके में रहता था।

जब परिपक्व बाघिन T63, जिसने पहले तीन बार शावकों को जन्म दिया था और खंडार घाटी में पार्क के केंद्र में रहती थी, को औदी खो क्षेत्र में वन अधिकारी द्वारा लगभग मृत घोषित कर दिया गया था, तो अधिकारियों ने उसे शिकार भी उपलब्ध कराया था, यहाँ तक कि एक समय कहा गया कि वह जीवित नहीं बचेगी। अउ समय यह बाघिन अत्यंत दुर्बल अवस्था में मिली थी।

सबसे महत्वपूर्ण नुकसान युवा चार नर एवं एक मादा बाघ (T128, T131, T139, T2401 और T138) का है, जिनका सामना डोमिनेंट बाघों से क्षेत्रीय संघर्षों में हुआ। ये युवा बाघ अक्सर नए क्षेत्रों की तलाश में रहते है, और ऐसे संघर्षों के कारण उनकी मौत हो सकती है।

हालांकि, मानव जनित कारणों पर भी विचार करना जरूरी है। इन युवा बाघों ने स्थानीय समुदायों से भी खतरों का सामना किया हो सकता है, जैसे कि जहर देना या अन्य मानव जनित खतरों से मुठभेड़।

अंततः, बाघिन T99, जो गर्भावस्था की जटिलताओं से जूझ रही थी, शायद इन समस्याओं के कारण गायब हो गईं।

यह समीक्षा यह रेखांकित करती है कि रणथम्भौर में बाघों की स्थिति को लेकर लगातार निगरानी और सक्रिय उपायों की आवश्यकता है, ताकि हम इन खतरों को समझ सकें और अधिक प्रभावी रणनीतियाँ तैयार कर सकें, जिससे इस सुंदर प्रजाति का दीर्घकालिक संरक्षण सुनिश्चित हो सके।

बाघों पर सदियों से चले आ रहे कुछ संकट

बाघों पर सदियों से चले आ रहे कुछ संकट

अंग्रेजो ने अपने राज में किस कदर बेहूदगी से इस देश में शिकार किये है, इसका एक उदाहरण विलियम राइस के अनुभवों से समझा जा सकता है। विलियम राइस २५ वी बॉम्बे रेजिमेंट में लेफ्टिनेंट पद पर थे और उन्होंने अपने शिकार के संस्मरण में लिखा है कि, किस प्रकार से उन्होंने पांच वर्षो के समय में 156 बड़े शिकार किये जिनमें 68 बाघ मारे एवं 30 को घायल करते हुए कुल 98 बाघों का शिकतर किया, मात्र 4 बघेरे मारे एवं 3 घायल करते हुए कुल 7 बघेरे एवं 25 भालू मारे एवं 26 घायल किये और इस तरह कुल 51 भालुओं का शिकार किया।

उन्हें लगता था कि, लोग उनके इस साहसिक कार्य को सही नहीं मानेगे इसलिए उन्होंने सात चश्मदीद अफसरों के नाम इस तथ्य के साथ में उल्लेखित करें हैं। यह अधिकांश प्राणी उन्होंने कोटा के वर्तमान में गाँधी सागर, जवाहर सागर, राणा प्रताप सागर, बिजोलिया, मांडलगढ़, भेरोडगढ़ आदि क्षेत्र से मारे थे। यदि आप वन्यजीव प्रेमी हो उनके लिखे हुए हर एक पृष्ठ को पढ़ने के बाद उन्हें कोसना नहीं भूलेंगे। भावनाओ की नदी में बहते हुए यदि इतिहास पढ़ते है तो उस ज़माने की असली तस्वीर धूमिल हो जाति है अतः विलियम राइस द्वारा लिखे उदाहरण हमें आज के परिपेक्ष्य में बाघ संरक्षण की आज तस्वीर के हिस्से लगते है।

टाइगर शूटिंग इन इंडिया से ‘जाट पैंथर हमला करते हुए’: सर विलियम राइस द्वारा 1850 से 1854 तक गर्मियों के दौरान राजपूताना में पैदल किये गए शिकार के अनुभवों का लेखा-जोखा जिसमें पैंथर का अर्थ है तेंदुआ

एक उन्होंने लिखा कि जब उन्हें पांच दिन भैंसरोडगढ़ के सामने चम्बल के उस पार स्थित अम्भा गांव के जंगल में कोई बड़ा प्राणी शिकार के लिए नहीं मिला तो उन्होंने जानकारी हासिल की क्या कारण है तो उन्हें लोगों ने बताया की कुछ समय पूर्व पशुपालको ने २-3 बाघों को आर्सेनिक ज़हर देकर मार दिया है। लगभग वर्ष 1850 -54 के मध्य भी ज़हर देकर मारना कितना आम रहा होगा।

टाइगर शूटिंग इन इंडिया से ‘एक घायल बाघ का पीछा करती हुई लोगों की भीड़’: सर विलियम राइस द्वारा 1850 से 1854 तक गर्मियों के दौरान राजपूताना में पैदल शिकार के अनुभवों का लेखा-जोखा।

वर्तमान में बाघों से बदला लेने के लिए उन्हें ज़हर देकर मारने की घटनाये किस कदर आम है इसका अंदाज लगाना आसान नहीं है। रणथंभौर में पिछले दस वर्षो में कम से कम 5 बाघ मृत मिले है जिनको मारने के लिए ज़हर दिया गया था। यह पांच बाघ वह थे, जिन्हें ज़हर देना फॉरेंसिक विभाग ने प्रमाणित किया था। ना जाने कितने ही ऐसे मामले सामने नहीं आये हैं। टाइगर वाच की इन तथ्यात्मक रिपोर्टों – https://tigerwatch.net/status-of-tigers-in-ranthambhore-tiger-reserve/ के अनुसार पिछले १० -११ वर्षों के रणथमभोर के बाघों के गायब होने के आंकड़ों का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि, प्रति वर्ष 3 बाघ गायब होते रहे हैं। पिछले वर्ष 2019 -20 में तो यह संख्या 12 पहुँच गयी है- https://tigerwatch.net/the-missing-tigers-of-ranthambhore-2020-2021/। इन गायब बाघों के बारे में तय तौर पर नहीं कहा जा सकता कि कितने बाघ इंसानी दखलंदाजी की वजह से ही गायब हुए है।

टाइगर शूटिंग इन इंडिया से ‘दयपुरा में भगदड़’: सर विलियम राइस द्वारा 1850 से 1854 तक गर्मियों के दौरान राजपूताना में पैदल शिकार के अनुभवों का लेखा-जोखा।

विलियम राइस ने लिखा है कि, बाघ जब भी गाय का शिकार करता था तो पशुपलक उससे बदला लेने के लिए उसका ध्यान रखते और बाघ के इधर उधर होने पर वह उसक गाय के पिछले पुट्ठे को चाकू से लम्बवत काटते एवं आर्सेनिक से भर देते थे। साथ ही राइस लिखते है कि, एक लाल रंग की बेरी का चूर्ण भी इसी तरह से विष का कार्य करता था। सायद यह बेरी कुचला हो सकती है क्योंकि यह आम विष था जो भारत के आम लोगों द्वारा इस्तेमाल किये जाते थे आज की तरह उस समय रासायनिक विष मौजूद ही नहीं थे। इन दोनों विष में किसी भी प्रकार की गंध नहीं होती है एवं बाघ बड़े बड़े मांस के लोथड़े निगलते हुए खाता है और मारा जाता है। आज कल पशुपालक इंजेक्शन में कीटनाशक भरकर पशुओं को जहरीला बनाते है।
लक्ष्मीपूरा के रामसिंह मोगिया ने स्वयं कहा की आज कल किस प्रकार जानवरो का विनाश किया जा रहा है और यह बढ़ रहा है। इस तरह जानवरो को मरते देख अक्सर शिकारी चाहे वो विलियम राइस हो या मोगिया समाज के लोग वो सभी भी दुखी हो जाते है।

सन्दर्भ:

  • Tiger Shooting in India : Being an account of Hunting Experiences on Foot in Rajpootana, During the Hot seasons from 1850 to 1854
लेखक:

Dr. Dharmendra Khandal (L) has worked as a conservation biologist with Tiger Watch – a non-profit organisation based in Ranthambhore, for the last 16 years. He spearheads all anti-poaching, community-based conservation and exploration interventions for the organisation.

Mr. Ishan Dhar (R) is a researcher of political science in a think tank. He has been associated with Tiger Watch’s conservation interventions in his capacity as a member of the board of directors.