राजस्थान के अंतिम जंगली चीता की कहानी

राजस्थान के अंतिम जंगली चीता की कहानी

कई विवादों और शंकाओं के बीच भारत देश में अब चीता को पुनः स्थापित किया जाने वाला हैं। राजस्थान राज्य के कुछ क्षेत्र भी इसके लिए उपयुक्त माने गए हैं। परन्तु क्या आप जानते हैं की राजस्थान में अंतिम चीता कहाँ और कब पाया जाता था ?

इसे जानने के लिए हमें भारत के एक महान प्रकृतिवादी इतिहासकार श्री दिव्यभानु सिंह के एक लंबे शोध पत्र को सूक्ष्मता से देखना होगा जो उन्होंने एक युवा शोधार्थी रजा काज़मी के साथ बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के जर्नल -JBNHS 2019 में प्रकाशित किया हैं।

A fresco painting in Bundi .

इस शोध पत्र में ईस्वी सं 1772 से भारत और पाकिस्तान से चीता के 199 रिकॉर्ड समाहित किये हैं।  यानी पिछले लगभग 250 वर्षो में  चीता से संबंधित अधिकांश उद्धरण इस शोध पत्र में शामिल हैं। इन माहिर शोधकर्ताओं के अन्वेषण से शायद ही कोई चीता के रिकॉर्ड अछूते रहे होंगे।

यदि राजस्थान की बात करें तो इस शोध पत्र के अनुसार चीता के मात्र 12 रिकॉर्ड (टेबल 1) ही प्राप्त हुए है।  इन रिकॉर्ड की समीक्षा करे तो देखेंगे की  इन में 6 रिकॉर्ड गैर विशिष्ट प्रकार के हैं, यानी ऐसे रिकॉर्ड जो दर्शाते हैं कि भारत के कई राज्यों में चीता की उपस्थिति दर्ज की गयी हैं, जिनमें राजस्थान भी शामिल हैं, परन्तु ऐसे रिकॉर्ड  एक  स्थान विशेष को इंगित नहीं करते हैं जहाँ चीता देखा गया । यह रिकॉर्ड मात्र साहित्यिक विवेचना के क्रम में समाहित हुए है। जैसे की उदाहरण के लिए हम एक रिकॉर्ड लेते हैं –  स्टेरनदेल, (Sterndale,1884) ने लिखा की चीता ” Central or Southern India, and in the North-West from Kandeish, through Scinde and Rajpootana to the Punjab,…… In India the places where it most common are Jeypur in Upper India, and Hyderabad in Southern India ”  में पाया जाता है। इस रिकॉर्ड से यह सत्यापित नहीं होता की स्टेरनदेल ने किस तारीख को अथवा किस स्थान पर चीता देखा हैं।

बाकी बचे 6 रिकॉर्ड इन मे से 4 रिकॉर्ड पालतू चीता के दर्शाये गए हैं, जो भरतपुर, अलवर और जयपुर से प्राप्त हुए हैं। इन पालतू चीता के सन्दर्भ में प्रामाणिक तथ्य उपलब्ध नहीं हैं कि वह कहाँ से लाये गए है। राजस्थान के दो पूर्व वन्य जीव प्रतिपलाकों श्री विष्णु दत्त शर्मा एवं श्री कैलाश सांखला (1984) के अनुसार जयपुर में उपलब्ध सारे पालतू चीता अफ्रीका या काबुल, अफगानिस्तान से आते रहे हैं एवं श्री दिव्यभानुसिंह के अनुसार यह ग्वालियर (उन्हें अफ्रीका से आते थे, ऐसा प्रमाण नहीं मिला) से आते थे। अतः इन्हें किसी भी तरह राजस्थान का नहीं माना जा सकता हैं।

खैर अब बचे मात्र 2 प्रमाण जो राजस्थान के जंगली चीता होने के करीब हैं –

एक हैं प्रसाद गांव से जो दक्षिण उदयपुर में स्थित हैं। रिकॉर्ड धारक के अनुसार एक चीता रात में कैंप के करीब कुत्ते ढूंढ़ते हुए घूम रहा था। इस प्रमाण में दो संदेह पैदा होते हैं की क्या दक्षिण राजस्थान के घने जंगल चीता के लिए मुनासिब थे ? दूसरा की क्या चीता वाकई कुत्तों का शिकार करता रहा होगा? कहीं वह एक बघेरा/ तेंदुआ तो नहीं था जिसे चीता नाम से दर्ज  कर लिया गया होगा ? क्योंकि दक्षिण राजस्थान में आज भी तेंदुआ को चितरा नाम से जाना जाता हैं।

दूसरा प्रमाण कुआं खेड़ा गांव से हैं जो कोटा जिले के रावतभाटा क्षेत्र का एक गांव हैं जो मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित हैं।  यह निःसंदेह एक चीता के बारे में ही हैं, जिसे दुर्भाग्य से एक बाघ ने मौत के घाट उतार दिया था।  इस रिकॉर्ड के संकलनकर्ता विलियम राइस एक अत्यंत माहिर शिकारी थे।

विलियम राइस 25 वी बॉम्बे रेजिमेंट में लेफ्टिनेंट पद पर थे और उन्होंने अपने शिकार के संस्मरण में लिखा है कि, किस प्रकार से उन्होंने पांच वर्षो के समय में 156 बड़े शिकार किये जिनमें 68 बाघ मारे एवं 30 को घायल करते हुए कुल 98 बाघों का शिकार किया, मात्र 4 बघेरे मारे एवं 3 घायल करते हुए कुल 7 बघेरे एवं 25 भालू मारे एवं 26 घायल किये और इस तरह कुल 51 भालुओं का शिकार किया। उन्हें लगता था कि, लोग उनके इस साहसिक कारनामे पर कोई विश्वास नहीं करेगा, इसलिए उन्होंने सात चश्मदीद अफसरों के नाम इस तथ्य के साथ में उल्लेखित किये हैं। यह अधिकांश वन्य प्राणी उन्होंने कोटा के वर्तमान में गांधी सागर, जवाहर सागर, राणा प्रताप सागर, बिजोलिया, मांडलगढ़, भेसरोडगढ़ आदि क्षेत्र से मारे थे।

A tamed cheetah in Alwar c. 1890

इस चीता के प्रमाण को संदेह से नहीं देखा जा सकता कि उन्हें इस प्राणी के बारे में पता नहीं था। यद्यपि, उन्हें स्वयं को भी संदेह हुआ की इस घने वन एवं पहाड़ी प्रदेश में यह प्राणी किस प्रकार आ गया जबकि यह मैदानी हिस्सों  का प्राणी हैं।

हालांकि इस अंतिम प्रमाण पर भी संदेह किया जाता हैं की यह कोई पालतू चीता था जो भटक कर पहाड़ी क्षेत्र में आ गया हो ? क्योंकि कोटा एवं बूंदी राज्य के भित्ति चित्रों में पालतू चीता रखने के प्रमाण मिलते हैं। कई बार शिकार के दौरान चीता भटक कर खो जाते थे, एवं कभी मिल जाते थे कभी नहीं मिलते थे।  शायद यह चीता भी इसी प्रकार का रहा हो।

इस तरह पूरे 250 वर्षो में यही प्रमाण जंगली चीता के सन्दर्भ में प्राप्त हुए हैं जो ईस्वी सन् 1852 में मिला था, यानी लगभग 170 वर्षों पहले हमारे राज्य में कोई चीता ऐसे जंगल में मिला था, जहाँ इस रिकॉर्ड धारक विलियम राइस के अनुसार वह नहीं हो सकता हैं।

 

S.no. yearPlace Remarks Reference
1C. 1840Bharatpur, RajasthanCoursing with CheetahOrlich, 1842
2C.1852Kooakhera (Kuvakhera), RajasthanOne dead cheetah killed by a tigerRice, 1857
3c. 1860Jaipur, RajasthanPhotograph of two cheetah with keepersFabb, 1986
428 December 1865Pursad village, RajasthanAuthor sees a cheetah prowling near the camp in search of dogsRousselet and Buckie 1882
5c. 1880Sind, Rajputana, Punjab, Central, southern, and N.W. India.Cheetah ReportedMurray, 1884
6c. 1884Central, Southern India, north-west from Khandesh through Sind and Rajputana to the Punjab, commonest in Jaipur and Hyderabad (in the Deccan)Cheetahs reportedSterndale, 1884
71889Jaipur, RajasthanCoursing with CheetahsO’shea, 1890
81892-93Alwar, RajasthanTame Cheetahs seenGardner, 1895
91892Punjab, Rajputana Central India up to BengalCheetahs reportedSanyal, 1892
10c.1907Central India, Rajputana, PunjabCheetahs reportedLydekker, 1907
11c.1920Northern India, Punjab, Rajputana, Central India, Central Provinces, almost upto BengalCheetahs reportedBurke, 1920
12c.1932Rajputana, Central India, Central Provinces, PunjabCheetahs reportedAlexander & Martin-Leake, 1932

References :-

Divyabhanusinh & R. Kazmi, ‘Asiatic Cheetah Acinonyx jubatus venaticus in India: A Chronology of Extinction and Related Report’, J. Bombay Nat. Hist. Soc 116, 2019. doi: 10.17087/jbnhs/2019/v116/141806

V. Sharma & K. Sankhala, ‘Vanishing Cats of Rajasthan’, in P. Jackson (ed.), The Plight of the Cats. Proceedings from the Cat Specialist Group meeting in Kanha National Park. IUCN Cat Specialist Group, Bougy-Villars, Switzerland, 1984, pp. 117-135.

W. Rice, Tiger-Shooting in India: Being an Account of Hunting Experiences on Foot in Rajpootana During the Hot Season, from 1850 to 1854. Smith, Elder & Co., London, 1857.

Divyabhanusinh, The End of a Trail: The Cheetah in India (2nd edn.) Oxford University Press, New Delhi, 2002.

Authors:

Dr. Dharmendra Khandal (L) has worked as a conservation biologist with Tiger Watch – a non-profit organisation based in Ranthambhore, for the last 16 years. He spearheads all anti-poaching, community-based conservation and exploration interventions for the organisation.

Mr. Ishan Dhar (R) is a researcher of political science in a think tank. He has been associated with Tiger Watch’s conservation interventions in his capacity as a member of the board of directors.

 

Cover photo caption & credit: Human-wildlife conflict is as old as mankind itself. A revealing cave painting from Bundi. (Photo: Dr. Dharmendra Khandal)