भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार रणथम्भौर का इतिहास 1500 वर्ष पुराना माना गया है।
क्या प्रारम्भ से इस स्थान का यही नाम रहा होगा?
यह मेरी इस विषय में एक मात्र जिज्ञासा यही नहीं थी, बल्कि दूसरी यह भी थी की इस शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?
किस काल में सबसे पहले इसे रणथम्भौर नाम से जाना गया होगा।
उत्तर सीधा नहीं है और शायद सटीक भी नहीं हो परन्तु फिर भी इतिहास के इस पन्ने के कुछ बिखरे टुकड़े में यहाँ संजो पाया हूँ। इस स्थान को मुख्य तौर पर 4 अलग-अलग नाम से जाना गया है:
रणस्तम्भपुर, रणथम्भौर रणतभँवर एवं रनंतपुर
इनको भी कई प्रकार से लिखा जाता है। अधिकांश पुस्तकों में वर्णन है की रणथम्भौर शब्द की व्युत्पत्ति दो शब्दों के मिलन से हुई है – रण एवं थम्भोर। रण उस स्थल को कहते है जहाँ निरंतर युद्ध होता है, इस नाम से आज भी मुख्य किले के पीछे एक पहाड़ी मैदान है जहाँ से अकबर की सेना ने युद्ध किया था और किले पर तोप के गोले बरसाए थे। एवं दूसरा थम्भोर यानी वह पहाड़ी है जहाँ आज भी मुख्य किला अवस्थित है। थम्भोर का अर्थ है सिर के सामने का हिस्सा जो माथा कहलाता है।
कहते है यह पहाड़ी माथे के रूप में सामने है। इस व्याख्या में कई विसंगतियाँ है जैसे रण की पहाड़ी युद्ध के कारण रण नाम से जाने जाने लगी परन्तु यहाँ से अकबर के पहले किसी ने शायद ही युद्ध किया हो, क्योंकि किसी के पास तोपखाना हुआ ही नहीं करता था। तोपों के बिना इस स्थान से युद्ध असंभव है। मानते है की खिलजी आदि की फ़ौज से मुख्य युद्ध रणथम्भौर किले के दिल्ली दरवाजे से हुआ होगा एवं कोई दूसरा स्थान नहीं हो सकता। यदि देखे तो रणथम्भौर शब्द का उपयोग तो अकबर से पहले होता रहा है। दूसरा कभी भी थम्भोर नाम से इस पहाड़ी को कोई स्थानीय लोग बुलाते ही नहीं है।
रणतभँवर शब्द किले में विराजे गणेश जी के लिए उपयोग लिया गया है क्योंकि यह शिव के पुत्र है और राजा के पुत्र को राजस्थान में भंवर कहा जाता है। रनंतपुर किसी कवि द्वारा इस्तेमाल किया गया है अतः इसका कोई अधिक आधार नहीं है।
अजमेर के जैत्र सिंह द्वारा 1215 AD में बनवायी गयी मंगलाना का शिलालेख
क्वालजी शिव मंदिर का शिलालेख 1288 ई.
असल में अभी तक मिले प्रमाण के अनुसार सबसे अधिक प्राचीन सबूत दो प्राचीन शिलालेखों में मिलते है। एक है मंगलाना का शिलालेख जो 1215 AD में अजमेर के जैत्र सिंह द्वारा बनवायी गयी एक बावड़ी में लगवाया गया था, जो आज अजमेर के एक संग्रहालय में मौजूद है। दूसरा इसी तरह का एक और शिलालेख जो 1288 AD में लगाया गया जो की क्वालजी नामक शिव मंदिर में लगा है जिसे उस समय के किसी प्रभावी मंत्री ने लगवाया था। इन दोनों शिलालेखों में मुख्य तय चौहान राजाओं की प्रस्तुति लिखी गयी है, और साथ ही एक शब्द लिखा है जिसकी हमें तलाश है वह है रणस्तम्भपुर और यही है रणथम्भौर का प्राचीनतम नाम।
रणस्तम्भपुर तीन शब्द से बना हुआ है – रण (War) + स्तम्भ (Pillar) + पुर (Place)
यानी ऐसा स्थान जो युद्ध के स्तम्भ पर टिका हो। समय के साथ यही नाम रणथम्भौर के रूप में चर्चित हुआ। अतः यह नाम अभी तक मिले सभी नामों से प्राचीन है। इसके आगे इसका कोई स्पष्टीकरण नहीं है।