इंडियन रॉउंडलीफ बैट (हिप्पोसिडेरोस लंकादिवा) भारतीय उप-महाद्वीप में मिलने वाली एक बड़े आकार की एक कीटभक्षी चमगादड़ है, जो पहली बार राजस्थान में मिली है। यह राजस्थान के करौली जिले के कसेड नामक गुफा में देखी गयी है। यह चमगादड़ डॉ धर्मेंद्र खांडल, डॉ दाऊ लाल बोहरा एवं डॉ श्यामकांत तलमले द्वारा थ्रेटएन्ड टेक्सा नामक जर्नल के जनवरी 2023 अंक में दर्ज करवाई गयी है। इस की खोज के लिए टाइगर वाच संस्था ने कई प्रकार से सहयोग उपलब्ध करवाया है।


हालांकि त्रुटिवश, यह चमगादड़ 1997 में बैटस एंड हैरिसन द्वारा लिखी गयी “बैटस ऑफ़ द इंडियन सबकॉन्टिनेंट” नामक एक पुस्तक में राजस्थान राज्य में शामिल होना माना गया था। इस पुस्तक में वासन (1979) के एक शोधपत्र को गलत तरह से उद्धृत किया गया, और यह उल्लेख किया गया की यह चमगादड़ प्रजाति भीम भड़क, जोधपुर नामक स्थान पर मिलती है। हालाँकि वासन ने अपने शोध पत्र में किसी अन्य चमगादड़ प्रजाति का उल्लेख किया था, जो हिप्पोसिडेरोस जीनस से ही सम्बन्ध रखती है। यह त्रुटि लगभग 25 वर्ष पश्च्यात इस शोधपत्र के द्वारा सुधारी गयी है एवं साथ ही इस प्रजाति की चमगादड़ को राजस्थान में पहली बार देखा भी गया है। राजस्थान में पुराने किले, हवेलियों और प्राकर्तिक गुफाओं में अनेक प्रकार की कीटभक्षी चमगादड़ प्रजातियां मिलती है, जिन प्रजातियों की संख्या 25 से अधिक होगी। राजस्थान में अभी भी इस स्तनधारी समूह पर शोध कर नयी प्रजातियां खोजी जा सकती है। कीटभक्षी चमगादड़ हमारे पर्यावरण के अभिन्न अंग है, जो कीट पतंगों को प्राकर्तिक रूप से नियंत्रण करती है। चमगादड़ को बचाना हमारे कृषि तंत्र को पुख्ता करना भी है।

सर्वप्रथम इस चमगादड़ को श्री लंका में खोजा गया था और की खोज करने वाले वैज्ञानिक ने इसे – लंकादिवा नाम दिया था, जिसका अर्थ है श्री लंका की सुंदरी। यह चमगादड़ खास तरह के नमी वाले वातावरण में रहना पसंद करती है। कसेड गुफा, करौली एक 150 गहरी गुफा है जिसमें पानी भी उपलब्ध है। हालाँकि बाहरी हिस्सा छोड़ा है और एक मंदिर की तरह उपयोग लिया जाता है, हालाँकि इस चमगादड़ प्रजाति की संख्या में यहाँ भारी गिरावट दर्ज की गयी है परन्तु फिर भी यह एक सुरक्षित स्थान माना जासकता है। सरकार को कोशिश करनी चाहिए की यह स्थान अपना मूल स्वरुप नष्ट नहीं करें। यद्यपि यह गुफा किसी प्रतिबंधित क्षेत्र में नहीं आती है परन्तु राज्य का बायोडायवर्सिटी बोर्ड इस के संरक्षण के कार्य में अग्रणी भूमिका निभा सकता है।

यदि राजस्थान में चमगादड़ के वितरण के स्वरुप को देखें तो मुख्य रूप से दो प्रमुख मार्ग से प्रवेश करती है। एक दक्षिण भारत से दूसरी ओर एक ईरान पाकिस्तान के रास्ते।
यह प्रजाति श्रीलंका से होती हुई मध्य भारत तक पहुंची। जहा विंध्याचल व अरावली के संगम व चंबल के तलहटी में इसकी उपस्थिति दर्ज की गई। अतिदुर्लभ प्रजाति का आवास खेतों में उपयोग हो रहें कीटनाशकों के कारण इनके प्रजनन को बाधित कर रहे हैं। साथ ही प्राकृतिक आवास भी समाप्त किए जा रहे है।

Dr. Dharmendra Khandal is working as a conservation biologist with Tiger Watch - an organisation based in Ranthambhore, for two decades. He spearheads all anti-poaching, community-based conservation and exploration interventions for the organisation.