हम सब मानते है की, शारीरिक दुर्बलता शिकारी जीवों के लिये उनकी जान की दुश्मन होती है। खासकर एक बडी बिल्ली यदि शारीरिक रूप से विकलांग हो जाए तो उसका जीवित रहना आखिर कब तक संभव होगा?

यदि तेंदुए और बाघ शावक अपनी छोटी उम्र में कमजोर अथवा दिव्यांग हो तो माँ उनको बेहाल ही छोड देती है, जिसके बाद ऐसे शावकों की मौत हो जाती है अथवा कभी कभी तो माँ खुद उनको मार के खा जाती है।  अधिकतर वन्यजीव विशेषज्ञ एक वाक्य  ‘‘सर्वाईवल ओफ फिटेस्ट‘‘ में सारी कहानी को ख़तम कर देते है।

यह वाक्य एक बघेरे के शावक का है जिसने सर्वाईवल ओफ फिटेस्ट वाली अवधारणा को गलत साबित कर दिया साथ ही एक मां को प्रकृति के तय  नियमों से लडते देखा।

आप बखूबी वाकिफ होंगे राजस्थान में स्थित जवाई लेपर्ड कन्जर्वेशन रिजर्व के बारे में, वहां एक लोकप्रिय मादा तेन्दुआ ‘‘नीलम‘‘ रहती है। वर्ष 2019 में नीलम ने तीन शावकों को जन्म दिया था। जिसमें से एक की मौत हो गई थी और अब अपने दो बचे हुए शावकों की परवरिश में नीलम जुट गई। पहली बार इस परिवार को तब देखा गया जब शावकों की उम्र करीब 2 माह थी। जिनमें से एक नर व एक मादा शावक थे। मादा शावक के अगले पंजे में कुछ कमजोरी रहने से वह सही ढंग से न तो चल पाती थी और न ही दौड पाती थी।

2 माह की उम्र में दिव्यांग शावक (फोटो: श्री धीरज माली)

5 माह की उम्र में दिव्यांग शावक (फोटो: श्री धीरज माली)

झाड़ियों के बीच छुप कर बैठी दिव्यांग (फोटो: श्री धीरज माली)

इस दिव्यांग शावक को देखते ही कईं सवाल उमडने लगते थे ।  नर शावक अक्सर उछलकूद करता और खेलता हुआ दिखता रहता था लेकिन लंगडी नर शावक की तरह न तो ज्यादा उछल कूद करती थी और न ही उसकी तरह दौडती थी। उसके आगे वाले एक पैर की दुर्बलता उसे चाहकर भी ऐसा कर पाने की हिम्मत नहीं देती थी। इस कमजोर मादा  शावक ने अपनी जिजीविषा को बलवती रखा और अपनी बहादुर मां की परवरिश में धीरे धीरे अपनी युवावस्था की ओर बढने लगी ।

उसने समय के साथ छद्मावरण की कला में महारत हासिल कर ली और घात लगाकर शिकार करने की खूबी में पारंगत हो गई। एक वर्ष और कुछ महिनों की उम्र की होने तक इस दिव्यांग शावक को लगातार देखा गया। जिस छोटी उम्र में अपनी मां के शिकार पर निर्भर थी आज वही एक युवा तेंदुआ बन गई थी। अब वह अपनी मां नीलम से जुदा हो चुकी थी और एक नया इलाका हासिल कर लिया था। काफी खूबसूरत आंखों वाली इस मादा ने अपनी कमजोरी पर मनो विजय हासिल काली हो और प्रकृति के तमाम नियमों को चुनौती दे दी थी। अंतिम बार वह फरवरी 2020 में देखी गयी थी, और अब वह पहले से ज्यादा मजबूत दिख रही थी और आत्मविश्वास के साथ चट्टान पर लंगडाते हुए चलकर अपने वर्चस्व को स्थापित कर रही थी ।

माँ से अलग होने के पश्चात अकेले रहने का अभ्यास करती दिव्यांग शावक (फोटो: श्री धीरज माली)

अपनी पूर्ण युवावस्था में गुफा के बाहर बैठी दिव्यांग (फोटो: श्री धीरज माली)

पूर्ण व्यस्क अवस्था में दूर पहाड़ की चोटी पर बैठी दिव्यांग (फोटो: श्री धीरज माली)