पंजाब रेवेन

पंजाब रेवेन

“रेवेन, कर्ण कर्कश ध्वनि वाला विस्मयकरक पक्षी है, जिसमे इतनी विवधता पायी जाती है कि इस पर एक ‘कागशास्त्र’ कि रचना भी कि गई”

राजस्थान में एक कौआ मिलता है जिसे “पंजाब रेवेन” के नाम से जाना जाता है तथा स्थानीय भाषा में इसे “डोड कौआ” भी कहा जाता है क्योंकि यह आकार में सामान्य कौए से लगभग डेढ़ गुना बड़ा होता है। इस कौए को प्रसिद्ध पक्षी विशेषज्ञ “ऐ ओ ह्यूम (A O Hume)” ने पंजाब, उत्तरी-पश्चिमी भारत और सिंध से ढूंढा तथा इसका विवरण भी दिया। इस रेवेन की सबसे रोचक बात यह है की इसे देखने पर ये सामान्य कौए जैसा ही लगता है, परन्तु यदि ध्यान से देखा जाये तो आभास होता है की ये कौआ एकदम से इतना काला और बड़ा क्यों लग रहा है। कुछ संस्कृतियों में रेवेन को बुरे समय का संकेत माना जाता है तो कुछ में इसे अच्छा भी समझा जाता है, परन्तु वास्तव में रेवेन एक उल्लेखनीय पक्षी हैं, क्योंकि यह फॉलकन जैसे शिकारी पक्षी के समान एक उत्कृष्ट हवाबाज है। यह प्रजनन काल में अपने हवाई कौशल का प्रदर्शन भी करता है। वहीँ दूसरी ओर यह मृत जानवरों को खाकर हमारे पर्यावरण की सफाई और अन्य पक्षियों की तरह फल खाकर बीज प्रकीर्णन में भी मदद करते हैं।

पंजाब रेवेन आकार में सामान्य कौए से लगभग डेढ़ गुना बड़ा तथा इसके पूरे शरीर का रंग अधिक काला होता है। (फोटो: डॉ. धर्मेंद्र खांडल)

वर्गिकी एवं व्युत्पत्ति-विषयक (Taxonomy & Etymology):

सामान्य रेवेन (Common Raven) की आठ उप- प्रजातियों में से एक,पंजाब रेवेन एक बड़े आकार का काला पेसेराइन पक्षी है। सामान्य रेवेन, पूरे उत्तरी गोलार्ध में बहुत ही व्यापक रूप से वितरित है तथा रंग-रूप के आधार पर इसकी कुल आठ उप-प्रजातियां पायी जाती है। हालांकि हाल ही में हुए कुछ शोध ने विभिन्न क्षेत्रों से आबादियों के बीच महत्वपूर्ण आनुवंशिक अंतर भी पाए है। सामान्य रेवेन, उन कई प्रजातियों में से एक है जिन्हे मूलरूप से “लिनिअस (Carolus Linnæus)” द्वारा अपने 18 वीं शताब्दी के काम, सिस्टेमा नेचुरे (Systema Naturae) में वर्णित किया गया था, और यह अभी भी अपने मूल नाम करवउस्कोरस से जाना जाता है। इसके जीनस का नाम Corvus “रेवेन” के लिए लैटिन शब्द से लिया गया है और इसकी प्रजाति का नाम corax ग्रीक भाषा के शब्द “κόραξ” का लैटिन रूप है जिसका अर्थ है “रेवेन” या “कौवा”।

पंजाब रेवेन, C. c. subcorax, पक्षी जगत के Corvidae कुल का सदस्य है। पाकिस्तान के सिंध जिले और उत्तर-पश्चिमी भारत के आसपास के क्षेत्रों तक सीमित आबादी को मुख्यरूप से पंजाब रेवेन के रूप में जाना जाता है। कभी-कभी इसे C. c. laurencei नाम से भी जाना जाता है, यह नाम 1873 में “Father of Indian Ornithology” ऐ ओ ह्यूम (A O Hume) द्वारा सिंध में पायी जाने वाली आबादी को दिया गया था। स्थानीय भाषाओ में इसे कई अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे राजस्थान में “डोड काक”, पंजाब में “डोडव काक” और ऊपरी सिंध में इसे “टाकणी” कहते है, टाकर का अर्थ एक ऊँची चट्टान होता हैं।

निरूपण (Description):

यह रेवेन की सभी अन्य उप-प्रजातियों से आकार में बड़ा होता है, परन्तु इसके गले के पंख (hackles) अपेक्षाकृत थोड़े छोटे होते हैं। इसका पूरा शरीर काले रंग का होता है, जिस पर एक गहरे नीले-बैगनी रंग की चमक प्रतीत होती है परन्तु इसकी गर्दन और छाती गहरे भूरे रंग की होती हैं। इसमें नर व् मादा रंग-रूप में एक से ही होते है परन्तु नर आकार में मादा से बड़ा होता है। 1.5 से 2 किलो वजन होने के कारण यह पक्षी जगत का सबसे भारी पेसेराइन पक्षी है और इसका वजन अधिक होने के बावजूद भी ये, उड़ान के समय फुर्तीले होते हैं। इसके बड़े आकार के अलावा, यह अपने रिश्तेदार “सामान्य कौवे” से कई वजहों से अलग होता हैं, जैसे की इसके शरीर का आकार 55-65 सेमी, पखों का विस्तार 115-150 सेमी तथा चोंच बड़ी, मोटी व काली होती है, गले के आसपास और चोंच के ऊपर झबरे पंख तथा पूंछ एक पत्ती के आकार की होती है। एक उड़ते हुए रेवेन को उसकी पूंछ के आकार, बड़े पंख और अधिक स्थिरता से उड़ने की शैली के कारण कौवे से अलग किया जाता है। वहीँ दूसरी ओर सामान्य कौए के शरीर का रंग ग्रे, आकार 40-45 सेमी, पखों का विस्तार 75-85 सेमी तथा चोंच थोड़ी पतली होती है।

अंग्रेजी प्रकृतिवादी “Eugene W. Oates” द्वारा बनाया गया तथा उनकी पुस्तक “The Fauna of British India” में प्रकाशित चित्र, जो पंजाब रेवेन व् अन्य रेवेन के गले के पंखों में अंदर दर्शाता है।

आकार व् रंग-रूप को देखते हुए, पंजाब रेवेन और सामान्य कौए में आसानी से अंतर कर उन्हें पहचाना जा सकता है। (फोटो: डॉ. धर्मेंद्र खांडल)

वितरण व आवास (Distribution & Habitat):

भारत में, पंजाब, बीकानेर, जोधपुर, जयपुर के उत्तरी भाग और सांभर झील तक पंजाब रेवेन का वितरण एक आम पक्षी के रूप में है तथा जमुना नदी के पूर्वी इलाको में कम देखने को मिलता है। दक्षिणी और पश्चिमी सिंध के कई हिस्सों की जलवायु व्पर्यावास पंजाब जैसी होने के बावजूद भी रेवेन सिर्फ प्रजनन के लिए ही आते हैं और एक स्थायी निवास बनाने में विफल रहते हैं जबकि निचले पंजाब में यह एक स्थायी निवासी है ।.K.Eates के अनुसार सिंध के ऊपरी इलाको में पाए जाने वाले रेवेन मुख्यतः प्रवासी होते है जो सितंबर और अक्टूबर माह में प्रजनन के लिए यहाँ आते है तथा मई में वापस चले जाते हैं। दक्षिण में इसे सांभर झील तक प्रजनन करते देखा गया है। भारत के अलावा यह बलूचिस्तान, दक्षिणी पर्शिया, मेसोपोटामिया, दक्षिणी एशिया और फिलिस्तीन में भी पाया जाता है। पंजाब रेवेन मुख्यरूप से वन प्रदेशों वाला पक्षी है परन्तु कभी-कभी इसे वनों से सटे मानव रिहाइश इलाकों के पास भी देखा जाता है।

भारत में पंजाब रेवेन का वितरण दर्शाता मानचित्र (Source: Birdlife.org and Grimmett 2014)

प्रजनन (Breeding):

रेवेन किशोर लगभग दो या तीन वर्ष की आयु के बाद अपने साथी जोड़े बना लेते है। युवा अवस्था में ये अक्सर झुण्ड में रहते है परन्तु एक बार जोड़ी बन जाये, तो ये पूरे जीवन साथ रहते व घोंसला बनाते हैं। एक साथी ढूंढने के लिए हवा में कलाबाजियां लगाना, बुद्धिमत्ता और भोजन प्रदान करने की क्षमता का प्रदर्शन करना प्रमुख व्यवहार हैं। एक जोड़ा आमतौर पर एक ही स्थान पर घोंसला बनाता है। इससे पहले कि वे घोंसले का निर्माण और प्रजनन शुरू करें प्रत्येक जोड़ी के पास अपने स्वयं का एक क्षेत्र होना चाहिए, और इस प्रकार यह एक क्षेत्र और उसके खाद्य संसाधनों का बचाव करते है भले ही उसके लिए आक्रामक ही क्यों न होना पड़े। इनके इलाके का क्षेत्रफल खाद्य संसाधनों के घनत्व के अनुसार भिन्न-भिन्न होता हैं। इनका घोंसला पेड़ों की छोटी टहनियों से बना एक गहरा कटोरा होता है, जिसका अंदरूनी हिस्सा पेड़ की छोटी जड़ों, छाल और हिरण के फर से पंक्तिबद्ध होता है। पक्षी विशेषज्ञ “ह्यूम” (A O Hume) अपनी पुस्तक “Nest & Eggs of Indian Birds” में बताते हैं की पंजाब रेवेन अपना घोंसला एक ऊँचे पेड़ पर बनाते हैं और हर दो घोंसलों के बीच लगभग सौ गज की दुरी तो होती ही है। यदि पक्षी घोंसले का निर्माण व मरम्मत जल्दी शुरू कर देते हैं, तो वे अक्सर बहुत धीमी गति से कार्य करते है। लेकिन अगर काम की शुरुआत देर से की जाती है तो लगभग एक हफ्ते में ही ये सारा काम पूरा कर लेते है। कुछ घोंसले उत्तराधिकार में कई वर्षों तक कब्जे में रहते हैं, और तब तक नहीं छोड़े जाते है जब तक वे पूरी तरह से नष्ट न हो जाये। कई बार ये अपना घोंसला ऊँची चट्टानों पर भी बनाते है, श्रीओस्मास्टन (Mr. Osmastan) कहते हैं कि रावल पिंडी के पास पंजाब रेवेन लगभग हमेशा एक चट्टान पर घोंसला बनाते थे। मादा दिसंबर से फरवरी माह के बीच में एक बार में 3 से 7 हल्के पीले नीले-हरे, भूरे धब्बे वाले अंडे देती है।

किशोरावस्था के बाद नर व् मादा पंजाब रेवेन प्रजनन के लिए जोड़ी बनाते हैं तथा प्रत्येक जोड़ी पूरे जीवनभर साथ रहती हैं। सामान्य कौए और पंजाब रेवेन में यह भी एक मुख्य अंतर है, क्योंकि जहाँ कौए अक्सर झुण्ड में देखे जाते हैं वहीँ पंजाब रेवेन हमेशा जोड़ी में दिखाई देते है। (फोटो: डॉ. धर्मेंद्र खांडल)

इसके आकार, सतर्कता और रक्षात्मक क्षमताओं के कारण, इसके कुछ प्राकृतिक शिकारी भी हैं। इसके अंडों के शिकारियों में उल्लू, मार्टिन्स और कभी-कभी ईगल शामिल हैं। रेवेन अपने बच्चों का बचाव करने में काफी जिम्मेदार होते हैं और आमतौर पर कथित शिकारियों पर हमलाकर उनको दूर करने में सफल होते हैं। ह्यूम बताते हैं की जब उनको पहली बार इस पक्षी का घोंसला मिला तो वह एक कीकर के पेड़ पर लगभग 20 फ़ीट की ऊंचाई पर था और उसमे पांच अंडे थे। उन अंडो को निकालने पर रेवेन ने बहुत ही आपत्ति जताई और पेड़ पर चढ़ने वाले आदमी के सिर पर हमला भी किया। हमारे द्वारा अंडे गायब कर देने के बाद दोनों पक्षी पेड़ पर बैठ गए और बड़े ही मनोरंजक तरीके से एक दूसरे की तरफ देखते हुए अपना सिर हिलाने लगे। फिर वो आसपास के हर पेड़ व् उनके खोखलों में झांक कर यह सुनिश्चित करने लगे की अंडे वास्तव में चले गए हैं।

आहार व्यवहार (Feeding habits):

पंजाब रेवेन, सर्वाहारी होने के कारण एक प्रजाति के रूप में ये हमेशा से ही सफल रहे है क्यूंकि ये पोषण के स्रोत खोजने में बेहद बहुमुखी और अवसरवादी है, तथा इनका आहार स्थान और मौसम के साथ व्यापक रूप से भिन्न हो सकता है। उदाहरण के लिए, कुछ स्थानों पर ये मुख्यरूप से मरे हुए जानवरों, कीड़ों और बीटल्स को खाते है। खेती-बाड़ी वाले इलाके के पास ये अनाज व फलों पर निर्भर रहते हैं। ये छोटे अकशेरूकीय, उभयचर, सरीसृप, छोटे पक्षियों और उनके अंडो का शिकार भी करते हैं। रेवेन जानवरों के मल, और मानव खाद्य अपशिष्ट के अवांछित भागों का भी भोजन की तरह उपभोग करते हैं। यदि इनके पास अधिक शेष भोजन हो तो ये खाद्य पदार्थों को संग्रहीत भी करते हैं।

बुद्धिमत्ता (Intelligence):

रेवेन को हमेशा से ही सभी पक्षियों से ज्यादा बुद्धिमान माना गया है। ये अन्य पक्षियों की आवाज की नक़ल कर सकते है। शिशु रेवेन का व्यवहार बहुत ही चंचल व् अलग-अलग चीजों से खेलने वाला होता है, जैसे ये हवा में तेज-तेज उड़कर एक-दूसरे से आगे निकलने की कोशिश तो कभी कलाबाजियां खाते है और कभी पेड़ की छोटी डंडिया तोड़ कर भी खेलते है। इनमे आगे की योजना बनाने, बुनियादी साधनों को समझने और उन्हें अपनी पसंद का कुछ प्राप्त करने के लिए नियोजित करने की क्षमता भी रखते हैं। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि वे ग्रह के सबसे चतुर पक्षी हैं; तो वहीँ दूसरों का तर्क है कि इनकी दिमागी क्षमता ऐप (Ape) से भी ज्यादा है।

पुराणशास्र (Mythology):

रेवेन हजारों वर्षों से मनुष्यों के साथ रहे हैं और कुछ क्षेत्रों में इतने अधिक हैं कि लोगों ने उन्हें कीटों के रूप में माना है। सदियों से, यह पौराणिक कथाओं, लोक कथाओं, कला और साहित्य का विषय रहा है। दुनियाभर के कई समुदायों में रेवेन को लेकर कहानियां हैं, लेकिन दुर्भाग्य से इनमे से कई नकारात्मक ही है। हिन्दू पौराणिक कथाओं में, रेवेन लोकप्रिय लेकिन अशुभ देवता शनि का वाहन है। कई समुदायों में रेवेन व् कौए को जीवन और मृत्यु के बीच ‘मध्यस्थ जानवर’ माना जाता हैं। जहाँ कुछ समुदायों में इन्हे अशुभ माना गया है वहीँ कुछ देखो में इसे जीत का प्रतिक मानते हुए इसकी मोहर सैनिको की पोशाक पर बनी रहती थी। पूर्वी एशिया में इनको किस्मत से जोड़ा जाता है तो अपने यहाँ मुंडेर पर बैठकर काँव-काँव करने वाले कौवे को संदेश-वाहक भी माना जाता है।

परन्तु इन सभी पौराणिक कथाओ से अलग हट कर हम रेवेन को देखे तो ये भी अन्य पक्षियों की तरह हमारे पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण है जो मृत जानवरों को खाकर पर्यावरण को साफ़ सुथरा रखते है।

सन्दर्भ:
  • Baker, E.C.S. 1922. The fauna of British India, including Ceylon and Burma. Birds- Vol. 1. 2nd London
  • Cover Image Picture Courtesy Dr. Dharmendra Khandal.
  • Gould, J. 1873. The Birds of Great Britain. Vol. 3. London.
  • Grimmett, R., Inskipp, C. and Inskipp, T. 2014. Birds of Indian Subcontinent. Digital edition.
  • https://round.glass/sustain/wild-vault/ravens-intelligence/
  • Hume, A.O. 1889. The Nests and Eggs of Indian Birds. Vol. 1. 2nd London.
  • Oates, E.W. 1889. The fauna of British India, including Ceylon and Burma. Birds- Vol. 1. London.