Rajasthan’s First Modern Botanical Explorer

Rajasthan’s First Modern Botanical Explorer

Victor Jacquemont (1801-1832), a French botanist, geologist and explorer, reached the pinnacle of success in a very short period of time, yet was always looked upon with suspicion wherever he went, and passed away at just 31 years of age. However, he explored almost half of India during the four years he spent here, and the four days he spent in Rajasthan, give him the distinction of having been the first modern botanical explorer to have traversed the state. 

Almost 200 years ago, Victor Jacquemont, by all descriptions, an enthusiastic botanist, arrived in India from France at the age of 28. He was sent by the botanical gardens or Jardin des Plantes in Paris, to collect specimens of Indian fauna and flora. Jacquemont came from humble origins, and was hired by the botanical gardens for 240 pounds per annum for this mammoth undertaking.

During his voyage to India, he impressed Maharaja Ranjit Singh of the Sikh Empire with his scholarship, yet was regarded by the latter with suspicion. Ranjit Singh initially suspected him to be a spy dispatched by his enemies. Nevertheless, recognising his aptitude as both a botanist and geologist, the Maharaja’s durbar consulted him regarding a suitable tree to plant on the banks of the river Ravi. Those trees still line the banks of the Ravi today.

Victor Jacquemont

On May 5th, 1829, Jacquemont arrived at the port of Calcutta from France. The British East India Company was on the rise in India at the time, and immediately regarded this intrepid young French researcher with suspicion and allowed him to travel the country with great reluctance, after restricting him to Calcutta for a considerable period of time. Jacquemont, unsurprisingly, passed his time at the famous  Calcutta Botanical Garden, until he was finally granted permission by the British to leave the city several months later. His journey can be roughly divided into three parts-

  1. Journey from Calcutta to Delhi and the Himalayas
  2. Journey to Punjab and Kashmir
  3. Journey from Delhi to Bombay via Ajmer in Rajasthan

Jacquemont faced many hardships during his travels, yet he carried on collecting specimens and documenting his observations with diligence. The proof is in the pudding so to speak- he collected 4787 specimens of trees and plants, which were representative of 1185 different species.

As mentioned earlier, Jacquemont spent 4 days in Rajasthan while en route from Delhi to Bombay. Those were a very productive 4 days indeed, for he managed to traverse the cities of Alwar, Jaipur, Ajmer, and Chittoor in that amount of time( March 1st to March 4th 1832). It is of note that he considered Jaipur to be India’s most magnificent city, and Ajmer to be the most beautiful place he had ever visited. This is despite the fact that he had already traveled to Kashmir and the Himalayas!

From Ajmer, he travelled to Beawar (a city in Ajmer district) and took stock of the social customs of the local people there. He wrote that he was quite surprised that some individuals routinely sold their daughters in that society. Soon after, he camped near the fort of Chittoor. Jacquemont was then denied access to the city of Udaipur, an experience he described akin to ‘sour grapes’, for he could not visit a city whose name he had heard of before. He also collected many plant specimens during his short visit to Rajasthan.

Jacquemont eventually reached Bombay through Madhya Pradesh, but no one anticipated what happened next. Soon after his departure from Rajasthan, he injured himself after falling off a horse and also contracted cholera. Both of which contributed to his untimely death in Bombay in December 1832 at the age of 31. After collecting and working on thousands of trees and plants for 4 years, Jacquemont’s desire to write about them remained tragically unfulfilled. His fellow botanists worked on his extensive collection of specimens, and described many new species of plants, all of which bear his name. A brave and hardworking botanist with a very short lifespan thus cemented his name in the pages of the history of this country.

His personal records of his journey, published posthumously as Voyage dans L’Inde pendant les années 1828 – 1832, are housed in the Chicago Botanic Garden’s Lenhardt Library. This work is divided into 6 broad sections, of which 4 are text, and 2 are illustrations. His correspondence with family, friends and colleagues during this time is also stored in the same library. All of these have been translated from French to English.

As we already know, many trees and plants were posthumously named after him such as – Acacia jacquemontii , Betula jacquemontii, Corylus jacquemontii, Prunus jacquemontii, Arisaema jacquemontii.

Victor Jacquemont’s life might have been short, but he will be remembered for his courageous expeditions in the name of science, and having lived his life to the fullest. The reader too should take inspiration from his life story, and endeavour to make this world a better place

Authors:

Dr. Dharmendra Khandal (L) has worked as a conservation biologist with Tiger Watch – a non-profit organisation based in Ranthambhore, for the last 16 years. He spearheads all anti-poaching, community-based conservation and exploration interventions for the organisation.

Mr. Ishan Dhar (R) is a researcher of political science in a think tank. He has been associated with Tiger Watch’s conservation interventions in his capacity as a member of the board of directors.

 

हिंदी में पढ़िए
Rajasthan’s First Modern Botanical Explorer

राजस्थान का प्रथम आधुनिक वनस्पति अन्वेषण कर्ता

जीवन के छोटे काल खंड में सफलता के शिखर को छूनेवाला फ्रांस से आया आधुनिक वनस्पति अन्वेषण कर्ता “विक्टर जैक्वेमों” हर समय संदेह की नज़र से देखा गया और मात्र ३१ वर्ष की छोटी आयु में इस दुनिया से अलविदा कर गया। लेकिन भारत में बिताये मात्र चार वर्षों में ,लगभग आधे देश का भ्रमण करते हुए और राजस्थान में उनके द्वारा बिताये गए मात्र चार दिन उन्हें राज्य का प्रथम आधुनिक वनस्पति अन्वेषण कर्ता बनने का गौरव प्रदान कर गये।

आज से लगभग 200 वर्ष पूर्व, राजस्थान के प्रथम वनस्पति आधुनिक अन्वेषण कर्ता विक्टर जैक्वेमों एक अतिउत्साहित वनस्पति शास्त्री था, जो अपनी 28 वर्ष की छोटी उम्र में फ्रांस से भारत आया। इन्हें फ्रांस के एक प्रसिद्ध वनस्पति उद्यान ‘जार्डिन डेस प्लांट्स’ ने भारत में पेड़ पौधो के अध्ययन के लिए भेजा था। जैक्वेमों एक साधारण परिवार से थे एवं उन्हें उद्यान द्वारा हर वर्ष २४० पोंड की तनख्वाह पर रखा गया था।

भारत में उनकी यात्रा के दौरान पंजाब के प्रसिद्ध महाराजा श्री रंजीत सिंह उनकी विद्वता से अत्यंत प्रभावित थे, परन्तु साथ ही संदेह में भी थे कि, यह कोई शत्रुओं का जासूस तो नहीं। महाराज ने रावी नदी के किनारों पर उचित पेड़ लगाने की सलाह भी इसी वनस्पति विशेषज्ञ से ली, जो पेड़ आज भी रावी के किनारे पर मौजूद है।

विक्टर जैक्वेमों

5 मई 1829 में फ्रांस से वह कोलकत्ता के बंदरगाह पर पहुंचे। भारत में उस समय ब्रिटिश हुकूमत कायम हो चुकी थी और यह शोधकर्ता एक फ्रेंच होने के कारण हुकूमत के हर समय संदेह के घेरे में रहा और उन्हें भारत में यात्रा करने की इजाजत भी आसानी से नहीं मिली। खैर यह समय उन्होंने भारत की वनस्पति अध्ययन में कोलकत्ता के प्रसिद्ध बोटैनिकल गार्डन में निकाला एवं तत्पश्च्यात कई माह बाद वह भारत में वनस्पतियों की खोज के लिए निकल पड़े। उनकी खोज यात्राओं को तीन मुख्य भागो में बांटा गया है –

  1. कोलकत्ता से दिल्ली और हिमालय की यात्रा
  2. पंजाब और कश्मीर की यात्रा
  3. दिल्ली से अजमेर होते हुए बॉम्बे की यात्रा

इन यात्राओं में उन्होने अनेक प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ा एवं महीनो के लम्बे सफर के साथ वह गहराई से अपने अवलोकन को लिपिबद्ध करते रहे। उन्होंने इन यात्राओं के दौरान 4787 पेड़ पौधों के नमूने इकठे किये जिनमें 1185 अलग अलग प्रजातियों के नमूने थे।

दिल्ली से बॉम्बे की यात्रा के समय उन्होंने राजस्थान में 4 दिन बिताये थे। उन्होंने इन 4 दिनों (1-4 मार्च 1832) में राजस्थान के अलवर, जयपुर, अजमेर, चित्तौड़ शहरों को देखा। जयपुर को उन्होंने भारत के बेहद शानदार शहर का दर्जा दिया एवं अजमेर को उनके द्वारा देखे गये सबसे सुन्दर स्थान माना, जबकि वह उस समय तक कश्मीर और हिमालय यात्रा चुके थे।

अजमेर से वह ब्यावर की और गये एवं वहां के स्थानीय लोगों के सामाजिक व्यवस्था का जायजा लिया। वह आश्चर्यचकित थे कि, किस प्रकार कुछ समाज के लोग अपनी बेटियों को बेचते है और कुछ लोग उन्हें खरीदते हैं। इसके बाद वे चित्तौड़ के दुर्ग के पास अपना टेंट लगा के रहे। उन्होंने आगे लिखा की किस प्रकार उन्हें उदयपुर राज्य में प्रवेश की इजाजत नहीं मिली और उन्होंने लिखा की यह अंगूर खट्टे है जैसे अनुभव था, जिस शहर का नाम उन्होंने पहले से सुना था वहां जा नहीं पाये। राजस्थान भ्रमण के दौरान उन्होंने कई वनस्पतियो के नमूने एकत्रित किये।
खैर वो मध्य प्रदेश के रास्ते बॉम्बे पहुंचे और आगे वो हुआ जिसका अनुमान कोई नहीं लगा रहा था। राजस्थान से जाने के बाद वह घोड़े की पीठ से गिर गये एवं उन्हें हैजे की बीमारी भी होगयी और इन दोनों वजह से मात्र ३१ वर्ष की उम्र में बॉम्बे में विक्टर जैक्वेमों की दिसंबर १९३२ में मृत्यु होगयी। चार वर्षो में इकठे किये गये हजारो पेड़ पौधों के नमूनों पर काम कर उनके बारे में लिखने की उनकी तमन्ना अधूरी ही रह गयी। उनके साथी वनस्पति विशेषज्ञो ने उनके द्वारा एकत्रित किये गये नमूनों की जाँच की और पाया उनमें कई नए प्रजाति के पेड़ पौधे है, जिन्हे आज भी उनके नाम से जाना जाता है। एक साहसी और कर्मठ वनस्पति शास्त्री अपने जीवन के अल्प समय में इस देश के इतिहास के पन्नो में दर्ज होगया।

शिकागो के बोटैनिकल गार्डन की लेनहार्डट लाइब्रेरी में आज भी उनके द्वारा किये गए महान कार्य ;Voyage dans l’Inde pendant les années 1828 – 1832 जो उनके मरणोपरांत प्रकशित हुआ था को रखा गया है। इनके कार्य को ६ बड़े खंडो में बांटा गया है जिनमें चार मूलपाठ है एवं २ में रेखांकन है। इसके आलावा पारवारिक सदस्यों , मित्रो, सहकर्मियों को लिखे गए अनेक पत्र भी यहाँ सुरक्षित रखे है।
यह फ्रैंच के साथ इंग्लिश में भी अनुवादित किये गए है।
उनके नाम से कई पेड़ पौधों के नाम रखे गए जैसे एकेसिया जैक्वेमोंटी, बेतुला जैक्वेमोंटी, करीलुस जैक्वेमोंटी , प्रूनस जैक्वेमोंटी, अरिसीमा जैक्वेमोंटी आदि .
उनकी जीवन यात्रा भले ही छोटी रही (8 अगस्त 1801 – 7 दिसंबर 1832) परन्तु उनके द्वारा की गयी साहसी यात्राओं को जमाना सदैव याद रखेगा की उन्होंने अपना समय भरपूर जीया। आप भी उन्हें याद करे और इस दुनिया को सुन्दर बनाने के लिए कार्य करें।

लेखक:

Dr. Dharmendra Khandal (L) has worked as a conservation biologist with Tiger Watch – a non-profit organisation based in Ranthambhore, for the last 16 years. He spearheads all anti-poaching, community-based conservation and exploration interventions for the organisation.

Mr. Ishan Dhar (R) is a researcher of political science in a think tank. He has been associated with Tiger Watch’s conservation interventions in his capacity as a member of the board of directors.