जाने वो कौनसे कारण है की लार्क की एक प्रजाति ऐशी-क्राउंड स्पैरो-लार्क जहाँ मिलना बंद होती है वहां दूसरी ब्लैक-क्राउंड स्पैरो-लार्क शुरू होती है। यह पारिस्थितिक कारण जानना और इनके पर्यावास में आये बदलाव का अध्ययन करना अत्यंत रोचक होगा

लार्क, पेसेराइन पक्षियों का वह समूह है जो लगभग सभी देशों में पाया जाता है। भारत में भी लार्क की कई प्रजातियां पायी जाती हैं जिनमे से सबसे व्यापक लगभग पूरे भारत में पायी जाने वाली प्रजाति है ऐशी-क्राउंड स्पैरो लार्क। यह प्रजाति 1000 मीटर की ऊंचाई से नीचे के क्षेत्रों तक ही सीमित है और यह हिमालय के दक्षिण से श्रीलंका तक और पश्चिम में सिंधु नदी प्रणाली तक और पूर्व में असम तक पाई जाती है। जहाँ यह छोटी झाड़ियों, बंजर भूमि, नदियों के किनारे रेत में पायी जाती है, तथा यह हमेशा नर-मादा की जोड़ी में देखने को मिलती है। परन्तु यह प्रजाति राजस्थान के थार रेगिस्तान में नहीं पायी जाती है, और राजस्थान के इसी भाग में लार्क की एक अन्य प्रजाति मिलती है जिसे कहते है ब्लैक-क्राउंड स्पैरो लार्क जो अक्सर थार-रेगिस्तान में जमीन पर बैठे हुए दिखाई देते हैं। यह दो प्रजातियां आंशिक रूप से राजस्थान के कुछ इलाकों में परस्पर पायी जाती हैं, हालांकि ये एक साथ कभी भी नहीं देखी जाती।

ब्लैक-क्राउंड स्पैरो लार्क में वयस्क नरों में मुख्यरूप से एक पाइड हेड पैटर्न होता है जिसमें काले सिर पर सफ़ेद माथा तथा गालों पर सफ़ेद पैच होता है। (फोटो: श्री. नीरव भट्ट)

ऐशी-क्राउंड स्पैरो लार्क का माथा ज्यादा भूरा होता है तथा आँखों के पास काली पट्टी थोड़ी पतली होती है जो मुख्यतः भौहे जैसी लगती है। (फोटो: श्री. नीरव भट्ट)

वर्गिकी एवं व्युत्पत्ति-विषयक (Taxonomy & Etymology):

ब्लैक क्राउंड स्पैरो लार्क (Eremopterix nigriceps) एक मध्यम आकार का पक्षी है जो पक्षी जगत के Alaudidae परिवार का सदस्य है। इसे कई अन्य नामों से भी जाना जाता है, जैसे की ब्लैक क्राउंड फिंच लार्क, व्हाइट-क्रस्टेड फिंच-लार्क, व्हाइट-क्रस्टेड स्पैरो-लार्क, और व्हाइट-फ्रंटेड स्पैरो-लार्क। वर्ष 1839 में अंग्रेजी पक्षी विशेषज्ञ “John Gould” ने इसे द्विपद नामकरण पद्धति के अनुसार Eremopterix nigriceps नाम दिया था। Gould, एक बहुत ही नामी पक्षी चित्रकार भी थे, उन्होंने पक्षियों पर कई मोनोग्राफ प्रकाशित किए, जो प्लेटों द्वारा चित्रित किए गए थे।

बहुत ही व्यापकरूप से वितरित होने की कारण अलग-अलग भौगिलिक स्थितियों में इसके रंग-रूप में थोड़े-बहुत अंतर मिलते हैं और इन्ही अंतरों के आधार पर कुछ वैज्ञानिको ने समय-समय पर इसकी कुछ उप-प्रजातियां घोषित की हैं। इनमे से ईस्टर्न ब्लैक क्राउंड स्पैरो लार्क (E. n. melanauchen), भारत में पायी जाने वाली उप-प्रजाति है, जिसे एक जर्मन पक्षी विशेषज्ञ Jean Louis Cabanis ने वर्ष 1851 में रिपोर्ट किया तथा यह पूर्वी सूडान से सोमालिया, अरब, दक्षिणी इराक, ईरान, पाकिस्तान और भारत तक पायी जाती है।

निरूपण (Description):

ब्लैक-क्राउंड स्पैरो लार्क में नर और मादा रंग-रूप में एक दूसरे से बिलकुल भिन्न होते है जहाँ वयस्क नरों में मुख्यरूप से एक पाइड हेड पैटर्न होता है जिसमें काले सिर पर सफ़ेद माथा तथा गालों पर सफ़ेद पैच होता है। इसका पृष्ठ भाग ग्रे-भूरे तथा अधर भाग व् अंडरविंग्स काले रंग के होते हैं, जो छाती की किनारों पर एक सफेद पैच के साथ बिलकुल विपरीत होते हैं। इसकी काली पूँछ के सिरे भूरे रंग के होते है तथा पूँछ के बीच वाले पंख ग्रे रंग के होते हैं। वहीँ दूसरी और मादा में पृष्ठ भाग पीले-भूरे मटमैले रंग के होते हैं सिर पर हल्की धारियां (streaking), आँख के पास व् गर्दन के बगल में सफ़ेद पैच होता हैं। मादा के पृष्ठ भाग हल्के-पीले भूरे रंग के होते हैं और सिर पर हल्की लकीरे (streakings) होती हैं। इनकी आंख के चारों ओर और गर्दन के पास एक सफ़ेद पैच होता है तथा इसके अधर भाग सफ़ेद व् छाती के पास एक हल्के भूरे रंग की पट्टी होती है। इसके किशोर कुछ हद्द तक मादा जैसे दीखते हैं परन्तु किशोरों के सिर के पंखों के सिरे हल्के-भूरे रंग के होते हैं। नर की आवाज काफी परिवर्तनशील होती है, जिसमें आम तौर पर सरल, मीठे नोटों की एक छोटी श्रृंखला होती है, जो या तो उड़ान के दौरान या एक झाड़ी में या एक चट्टान पर बैठ कर निकाली जाती है।

कई बार इस पक्षी को लगभग इसके जैसे दिखने वाला ऐशी-क्राउंड स्पैरो लार्क समझ लिया जाता है, जो भारत और पाकिस्तान के शुष्क क्षेत्रों में इस प्रजाति की वितरण सीमा के साथ आंशिक रूप से परस्पर पायी जाती है। परन्तु ऐशी-क्राउंड स्पैरो लार्क का माथा ज्यादा भूरा होता है तथा आँखों के पास काली पट्टी थोड़ी पतली होती है जो मुख्यतः भौहे जैसी लगती है। मादा भूरे रंग की होती है और घरेलू गौरैया के समान होती है।

ब्लैक-क्राउंड स्पैरो लार्क, मादा के पृष्ठ भाग हल्के-पीले भूरे रंग के होते हैं तथा आंख के चारों ओर और गर्दन के पास एक सफ़ेद पैच होता है। (फोटो: डॉ. धर्मेंद्र खांडल)

ऐशी-क्राउंड स्पैरो लार्क, मादा भूरे-भूरे रंग की होती है और गौरैया के समान प्रतीत होती है। (फोटो: डॉ. धर्मेंद्र खांडल)

वितरण व आवास (Distribution & Habitat):

ब्लैक-क्राउंड स्पैरो लार्क, उत्तरी-पूर्वी अफ्रीका में, उत्तरी-अफ्रीका के साहेल से अरब प्रायद्वीप, पकिस्तान और भारत में वितरित हैं। भारत में यह थार-रेगिस्तान में पायी जाती है। यह बिखरी हुई छोटी घासों, झाड़ियों व् अन्य वनस्पतियों वाले शुष्क व् अर्ध-शुष्क मैदानों में पायी जाती है, तथा कई बार इसे नमक की खेती वाले इलाकों में भी देखा गया है।

ब्लैक-क्राउंड स्पैरो लार्क का वितरण क्षेत्र (Source: Grimett et al 2014 and Birdlife.org)

व्यवहार एवं परिस्थितिकी (Behaviour & Ecology):

शुष्क प्रदेश में पाए जाने वाला यह पक्षी अपने पर्यावास के अनुसार अपने जल संतुलन को बहुत ही अच्छे से संचालित करता है, जैसे की दोपहर की गर्मी में छाया में रहकर पानी के नुकसान को कम करते हैं तथा कई बार बड़ी छिपकलियों के बिलों के अंदर आश्रय लेते भी इसको देखा गया है। यह अपने शरीर के तापमान को संचालित करने के लिए अपनी टांगों को निचे लटका कर उड़ान भरते है ताकि इनके अधर भाग पर सीधे हवा लगे तथा कई बार यह हवा के सामने वाले स्थान पर भी बैठ जाते हैं। प्रजनन काल के मौसम के अलावा, बाकी सरे समय में यह 50 पक्षियों तक के झुंड बना सकते हैं जो एक साथ रहते हैं परन्तु कई हजार के बड़े झुंड भी रिकॉर्ड किए गए हैं।

प्रजनन (Breeding):

ब्लैक-क्राउंड स्पैरो लार्क, के प्रजनन काल में नर एक बहुत ही ख़ास हवाई उड़ान का प्रदर्शन करता है, जिसमे नर गोल-गोल चक्कर लगते हुए साथ ही आवाज करते हुए तेजी से ऊपर जाता है और फिर छोटी पत्नियों वाली उड़ान की एक श्रृंखला धीरे-धीरे निचे गिरता है। कभी-कभी नर और मादा दोनों साथ में उड़ान का प्रदर्शन करते है जिसमें नर धीरे घूमते हुए मादा का पीछा करता है। वे आमतौर पर गर्मियों के महीनों के दौरान प्रजनन करते हैं, और अक्सर बारिश से इनका प्रजनन शुरू होता है तथा लगभग जब भी परिस्थितियां अनुकूल होती हैं, इनका प्रजनन शुरू होता हैं। इनके घोंसले आकार में छोटे, कम गहरे और पौधे व् अन्य सामग्री के साथ पंक्तिबद्ध होता है, तथा उसके मुँह की किनार पर छोटे पत्थर व् मिटटी के छोटे ढेले रखे होते हैं। घोंसला आमतौर पर एक झाड़ी या घास के नीचे स्थित होता है ताकि उसे कुछ छाया प्रदान की जा सके। नर व् मादा दोनों लगभग 11 से 12 दिनों के लिए, 2 से 3 अंडे के क्लच को सेते हैं।

आहार व्यवहार (Feeding habits):

ब्लैक-क्राउंड स्पैरो लार्क, एक बीज कहानी वाला पक्षी है, लेकिन यह कीटों और अन्य अकशेरुकी जीवों को भी खा लेता है। घोंसले में रहने वाले छोटे किशोरों को मुख्यरूप से कीड़े ही खिलाये जाते है। राजस्थान जैसे गर्म व् शुष्क वातावरण में यह पक्षी सुबह और शाम के समय में ही भोजन का शिकार करते हैं, जहाँ आमतौर पर इन्हे जमीन पर शिकार मिल जाते हैं तथा कई बार उड़ने वाले कीड़ों को यह हवा में उड़ कर भी पकड़ लेते हैं।

बस तो फिर थार में जाने से पहले अपनी दूरबीनों को तैयार कर लीजिये और इस छोटे फुर्तीले पक्षी को देखने के लिए सतर्क रहिये…

सन्दर्भ:
  • Cover Image Picture Courtesy Dr. Dharmendra Khandal.
  • Gould, J. 1839. Part 3 Birds. In: The Zoology of the voyage of H.M.S. Beagle, under the command of Captain Fitzroy, R.N., during the years 1832-1836. Edited and superintended by Charles Darwin. Smith, Elder & Co. London. 1841. 156 pp., 50 tt.
  • Grimmett, R., Inskipp, C. and Inskipp, T. 2014. Birds of Indian Subcontinent.
  • http://datazone.birdlife.org/species/factsheet/ashy-crowned-sparrow-lark-eremopterix-griseus