स्वरूपाराम, एक ऐसा वन रक्षक जिसने न सिर्फ जंगल की आग बुझाकर वन्यजीवों की जान बचाई है बल्कि अपनी जान पर खेल कर अपने साथियों की भी रक्षा करी

रेतीले धोरों की धरती बाड़मेर के एक छोटे से गांव खोखसर में जन्मे “स्वरूपाराम गोदारा” आज वनरक्षक (फॉरेस्ट गार्ड) के रूप में वन-विभाग में भर्ती होकर वन पर्यावरण व जीव जंतुओं के प्रति समर्पित भाव से कार्य कर रहे हैं। खोखसर, वह गांव है जहाँ से जाबाज़ प्रतिभावान “श्री खेताराम सियाग” आते हैं जिन्होंने रियो ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। ये ऐसा क्षेत्र है जहाँ से स्वरूपराम गोदारा एकमात्र व्यक्ति हैं जो वन विभाग में कार्य कर रहे हैं और वर्तमान में ये अपने गांव ही नही बल्कि उस क्षेत्र के सभी युवा व आमजन के लिए एक प्रेरणा का केंद्र बने हुए हैं। आज उसी का परिणाम हैं कि उस क्षेत्र के सेंकडो युवा वनरक्षक भर्ती प्रतियोगी परीक्षा के लिए तैयारी भी कर रहे हैं।

स्वरूपाराम गोदारा का जन्म 8 जुलाई 1993 को बाड़मेर जिले की गिड़ा तहसील के खोखसर गांव में एक किसान परिवार में हुआ। खोखसर गांव जैसलमेर, बाड़मेर व जोधपुर की सीमा पर बसा हुआ एकमात्र गांव है जो इन तीनों जिलों का केंद्र बिंदु है। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में व उच्च शिक्षा हीरा की ढाणी बाड़मेर में हुई। इनकी विशेषतया कबड्डी में काफी रुचि थी और विद्यालय से ये कई बार जिला स्तर पर कबड्डी खेल चुके हैं। पढाई के दौरान ही इनकी “टीपू देवी” से शादी हो गई थी और आज इनके दो जुड़वा बच्चे भी हैं। बच्चों के बारे में इनके मन में एक सपना हैं कि ये पढ़ लिख कर वन्यजीव संरक्षण के महत्व को समझे और इसी क्षेत्र में आगे बढ़े। स्वरूपाराम की पत्नी टीपू देवी  एक ग्रहणी महिला हैं तथा वह अपने घर परिवार को संभालने हेतु गांव में ही रहती हैं। टीपू बाई अशिक्षित जरूर हैं लेकिन वे अपने परिवार के सभी लोगों व बच्चों को स्वरूपाराम के कार्यक्षेत्र को एक कहानी के रूप में सुनाती रहती हैं।

राजस्थान वन विभाग द्वारा निकाली गई वनरक्षक भर्ती परीक्षा 2015 में इनका चयन हुआ और 13 अप्रैल 2016 को इन्होंने पहली बार माउंट आबू वन्यजीव अभयारण्य में ज्वाइन किया। यहां जॉइन करने के तीन महीने बाद ही इनका चयन सीमा सुरक्षा बल में हो गया था लेकिन प्रकृति व वन्यजीवों के मोह ने इनको वहां से जाने की इजाजत नही दी। ये वनविभाग के साथियों के साथ घुल मिल गए थे और इनमें वन्य क्षेत्र में कार्य करने की रुचि भी बढ़ गयी थी। अभी पांच माह पूर्व ही इनका स्थानांतरण वन मण्डल उपवन संरक्षक बाड़मेर के अधीन हो गया है।

वन में गश्त करते हुए

माउंट आबू अभयारण्य में काम करने के दौरान इन्होने बहुत ही सराहनीय कार्य किये है जिसमें सबसे मुख्य है “उपवन संरक्षक” की जान बचाना। यह बात है कोरोनाकाल की जब नगरपालिका द्वारा वन्य क्षेत्र में साफ-सफाई के लिए अभियान चलाया गया था। इस अभियान के लिए मजदूर भी नगरपालिका की तरफ से ही थे तथा उनकी देखभाल व निगरानी का जिम्मा वन- विभाग कर्मियों का था। स्वच्छता अभियान चल ही रहा था कि, एक दिन स्वरूपाराम सहित उपवन संरक्षक महोदय (श्री बालाजी करी) और एक नेचर गाइड वन में ट्रेकिंग के लिए निकले। ये साथ-साथ आसपास के कचरे का संग्रहण करते हुए आगे बढ़ रहे थे और वन में स्थित अगलेश्वर महादेव मन्दिर पर पहुंच गए। इस मंदिर पर साधु के भेष में एक बाबा रहते थे तो वह साधु बाबा इनसे पूछने लगे कि आप आगे कहां जा रहें हैं ? इन्होने उत्तर दिया कि हम वन विभाग वाले हैं और गश्त के लिए आए हैं। जैसे ही ये नीचे की ओर गए तो वहाँ पर 4-5 साधु और बैठे थे जो अनैतिक गतिविधियां कर रहे थे। तभी पीछे से जो बाबा पहले मिले थे वो भी वहीं आ गए। उपवन संरक्षक साहब ने उनको रोका कि “यह प्रतिबंधित क्षेत्र है और यहाँ नगरपालिका द्वारा साफ सफाई का अभियान चला रहा है और आप इस तरह से यहाँ गंदगी फैला रहे हो, यह उचित नहीं है”। यह बात सुनते ही साधू लोग लड़ाई पर उतारू हो गए और उन्होंने लाठी-डंडे उठा लिए और हमला कर दिया। मुठभेड़ के दौरान स्वरूपाराम के सिर में चोट भी आई लेकिन उन्होंने कोशिश कर के हमलावरों से लाठी छीन ली। परन्तु उनके पास एक कुल्हाड़ी और थी जैसे ही वो कुल्हाड़ी लेकर उपवन संरक्षक की तरफ दौड़े, तो स्वरूपाराम बीच में आ गए और कहा कि “मुझे मार लो पर मेरे बॉस (उप वनसंरक्षक) को कुछ नही होना चाहिए”। यह बात सुन कर भी वह साधु नहीं रुका और जैसे ही वह स्वरूपाराम को मारने के लिए आगे बढ़ा तो स्वरूपाराम ने कुल्हाड़ी को पकड़ लिया और हिम्मत दिखाते हुए उपवन संरक्षक साहब व नेचर गाइड को ऊपर भेजा। जब तक वे ऊपर नही पहुँचे तब तक स्वरूपाराम ने कुल्हाड़ी को रोके रखा। उप वनसंरक्षक के वहां से सुरक्षित निकलते ही स्वरूपाराम भी फुर्ती से वहाँ से निकल लिए।

लगभग सभी संरक्षित वन क्षेत्रों में धार्मिक स्थल स्थित हैं जो की लगातार वन कर्मियों के लिए मुश्किल बने हुए हैं क्योंकि यहाँ पर साधू के रूप में लोग रहने लग जाते हैं जो अनैतिक गतिविधियों को अंजाम देते हैं और इन स्थानों पर आने वाले दर्शनार्थियों की वजह से जंगल में कचरा भी फैलता है।

वरिष्ठ अधिकारियों के साथ गश्त पर स्वरूपाराम

स्वरूपाराम बताते हैं कि माउंट आबू वन्यजीव क्षेत्र में आग लगने की गंभीर समस्या है, गर्मियों के मौसम में अक्सर वहां आग लगती रहती है जिससे न सिर्फ पेड़ों बल्कि वन में रहने वाले जीवों को बहुत नुक्सान पहुँचता है। स्वरूपाराम के अनुसार यहाँ आग लगने के कुछ मुख्य कारण हैं; आबू पर्वत के चारों ओर व ऊपर के भाग में बहु संख्या में आदिवासी गरासिया जनजाति निवास करती है। यह लोग जंगलों में ही रह कर अपना जीवन यापन करते हैं। पौराणिक मान्यताओं और परंपराओं के अनुसार जब इनके घर, परिवार व समाज में कोई उत्सव या उत्साह का माहौल होता है तो यह लोग जंगल में आग लगाते हैं जिसको “मगरा जलाना” कहते हैं। इस खुशी के माहौल में यह लोग वनों में रहते हुए भी इस प्रकृति के महत्व को नहीं समझ पाते हैं। ऐसी घटनाओं से जीव-जंतुओं व पेड़ पौधों का नुकसान होता हैं और यह वन विभाग के लिए एक गंभीर चिंता का विषय हैं। आदिवासियों के अलावा यहां बांस के थूरों की बहुतायता है और गर्मी में बांस में घर्षण के कारण भी यहाँ आग लग जाती हैं।

एक बार इसी आदिवासी समुदाय की लापरवाही के कारण वन में आग लगा दी गयी और आग इतनी जबरदस्त थी कि, वह धीरे-धीरे करीब 500 हेक्टेयर वन्य क्षेत्र में फैल गई। पिछले तीस वर्षों में ऐसी भयावह आग कभी नहीं देखी थी और इस आग को लेकर स्थानीय लोग भी डरे हुए थे।

उस समय स्थिति ऐसी बन गई कि आग बुझाने के लिए वन विभाग को हेलीकॉप्टर उपयोग में लेना पड़ा, परन्तु वह प्रयास कारगर साबित नहीं हो पाया।  क्योंकि हेलीकॉप्टर पानी भर कर जब तक ऊपर पहुंचता था तब तक 15 मिनट का समय लग जाता था और आग काफी तेजी के साथ आगे बढ़ रही थी। उस भयानक स्थिति को देखते हुए वायुसेना के जवान भी सहायता के लिए बुलाए गए और उपवन संरक्षक ने लोहे के पंजे मंगवाए और जिसकी सहायता से सभी कर्मियों ने झाड़ियों व वृक्षों को आग से दूर करना शुरू किया, लम्बी झाड़ियों को कुल्हाड़ी से काटकर आग से दूर किया और लगातार 17 दिन के प्रयास के बाद आग पर काबू हो पाया।

इसके बाद स्वरूपाराम ने जंगल में आग बुझाने के लिए कई तरीके सुझाये और नए रास्तों का पता लगाया जिनका आग के समय में इस्तेमाल किया जा सकता है।

जंगल में लगी आग को बुझाते हुए स्वरूपाराम

स्वरूपाराम बताते हैं कि विभाग में वन्य प्रबंधन सबसे बड़ी चुनौती है जैसे आग की घटनाएं, शिकारियों की घटनाएं व जंगल में बाहर से घूमने का बहाना लेकर कुछ असामाजिक तत्वों के जमावड़ा आदि प्रमुख़ हैं। इनकी निगरानी के लिए उच्च अधिकारियों के मार्गदर्शन व ग्रामीणों के सहयोग से समाधान निकालना पड़ता है। स्थानीय ग्रामीण लोगों के सहयोग से ही घने जंगल, दुर्गम पहाड़ी, रास्ता खोजना व अवैध गतिविधियों के बारे में जानकारी मिलती रहती हैं।

माउंट आबू एक घना जंगल है और यहां भालुओं की आबादी भी अच्छी है और उनके लिए प्रयाप्त भोजन भी है। वन्यजीव गणना के मुताबिक माउंट आबू के संरक्षित क्षेत्र के जंगलों में लगभग 300 से अधिक भालू हैं। यहां अक्सर सड़क के किनारे भालू को घूमते हुए देखा जा सकता है और कभी कभार भालू आबादी क्षेत्र में भी घुस जाते हैं। एक बार भालू जंगल से बाहर निकल कर गाँव गुफानुमा के आबादी क्षेत्र में आ गया और एक घर में अंदर घुस गया। आसपास के लोगों के द्वारा विभाग के पास सूचना पहुंची और स्वरूपाराम एवं टीम ने मौके पर पहुँचकर उसे देखा तो वह न तो आगे जा पा रहा है और न ही पीछे आ पा रहा था। तभी स्वरूपाराम ने सूझबूझ से काम लेते हुए पिंजरा मंगवाया और उसे सही सलामत रेस्क्यू करके जंगल मे ले जाकर छोड़ दिया।

वन क्षेत्र में कार्य करने के दौरान कई बार अवैध शिकार की घटनाएं सामने आती हैं और इस प्रकार की घटनाओ में स्वरूपाराम ने बड़ी ही हिम्मत और सतर्कता से कार्य करते हुए शिकारियों को भी पकड़ा है। एक बार ड्यूटी के दौरान आबू क्षेत्र के ज्ञान सरोवर के पास स्वरूपाराम गश्त कर रहे थे, तभी उन्होंने देखा कि एक शिकारी ने भालू को पकड़ने के लिए तार का फंदा लगा रखा था और उसी जगह के आसपास भालू के बाल, अंग व नाखून बिखरे हुए थे। स्वरूपाराम व उनके साथियों ने शिकारी को खोजना शुरू कर दिया। काफी कोशिशों के बाद आसपास के ग्रामीण लोगों द्वारा मालूम हुआ की यह शिकारी और कोई नहीं बल्कि सोमाराम था जो योगी समाज का व्यक्ति था और लगातार शिकार की घटनाओं में शामिल रहता था तथा कभी पकड़ा नहीं जाता था। सारी सुचना मिलते ही स्वरूपाराम व उनकी टीम ने शिकारी को गिरफ्तार करने के लिए एक गुप्त योजना बनाई। योजना के मुताबिक स्वरूपाराम भेस बदलकर शिकारी के घर एक ग्राहक बनकर गए। शिकारी के घर पर एक महिला मौजूद थी जिससे स्वरूपाराम भालू के कुछ अंगों की जरूरत व उनको खरीदने की इच्छा के बारे में बताया। उस महिला ने कहा कि “अभी घर पर कोई नहीं है मेरा बेटा अभी बाहर है उसको आने दो मैं आपको दे दूंगी”। स्वरूपाराम ने मोबाइल नंबर ले लिए  और उसको कॉल करके ग्राहक की तरह बात करी। सामने ग्राहक देख शिकारी भी पैसों के प्रलोभन में आ गया और सौदा पक्का कर दिया। फिर सौदा होने की जगह पर विभाग की पूरी टीम ने छापा मारा और शिकारी सोमाराम और उसके बेटे को पकड़ लिया। गिरफ्तार होने के बाद उसने कई राज भी खोलें और उसके बाद ऐसा सबक लिया कि उसने शिकार करने का धंधा ही छोड़ दिया।

स्वरूपा राम बताते हैं कि माउंट आबू अभ्यारण्य का पूरा क्षेत्र पिकनिक स्पॉट के लिए प्रसिद्ध है देश-विदेश के सैलानी यहाँ पर आते-जाते रहते हैं। सैलानियों को लेकर भी वन प्रबंधन काफ़ी चिंतित रहता हैं क्योंकि कुछ ऐसी किस्म के लोग भी यहाँ आते हैं जिनको वन संपदा व वन्यजीवों के महत्व से  कोई मतलब नहीं होता बल्कि ये लोग सिर्फ मौज मस्ती के लिए घूमने यहाँ आते हैं। वन्य क्षेत्र में कचरा फैलाना, शराब पीना ऐसी अनैतिक गतिविधियों से परेशान होकर स्वरूपाराम उनको समझाते भी है परन्तु लोगों के बर्ताव में कोई फर्क नहीं आया। और जब

ऐसी गतिविधियां बढ़ने लगी तो विभाग वालों ने कैमरा लगाना शुरू कर दिया जिसके बाद कोई भी वन में अवैध रूप से आता था तो उन्हें पकड़ कर कार्रवाई करी जाने लगी।

 

स्वरूपराम समझते हैं कि आज जिस तरह से अवांछित मानवीय गतिविधियों के कारण पर्यावरण ख़राब हो रहा है उसके लिए जंगलों को सख्ती से बचाने और बनाए रखने की बहुत बड़ी जरूरत है। केवल ऐसा करने से हम सभी जीवों के भविष्य को बचा सकते हैं। दुनियाभर के वैज्ञानिक, पर्यावरण विशेषज्ञ, आदि वन संरक्षण की आवश्यकता पर ज़ोर दे रहे हैं। सरकारों ने जंगली प्रजातियों की रक्षा के लिए अभयारण्य बनाए हैं। वन संरक्षण जैसे महत्वपूर्ण काम संभवतः ‘वृक्षारोपण’ सप्ताह देखकर किया नहीं जा सकता। इसके लिए वास्तव में महत्वपूर्ण योजनाओं की तर्ज पर काम करने की आवश्यकता है। यह भी एक या दो सप्ताह या महीनों के लिए नहीं बल्कि सालों के लिए तभी तो पृथ्वी का जीवन उसके पर्यावरण और हरियाली की सुरक्षा संभव हो सकती है।

प्रस्तावित कर्ता: श्री बालाजी करी (उप-वन संरक्षक उदयपुर (उत्तर), डॉ सतीश कुमार शर्मा (सेवा निवृत सहायक वन संरक्षक उदयपुर)

लेखक: 

Shivprakash Gurjar (L) is a Post Graduate in Sociology, he has an interest in wildlife conservation and use to write about various conservation issues.

Meenu Dhakad (R) has worked with Tiger Watch as a conservation biologist after completing her Master’s degree in the conservation of biodiversity. She is passionately involved with conservation education, research, and community in the Ranthambhore to conserve wildlife. She has been part of various research projects of Rajasthan Forest Department.