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आदित्य ‘डिक्की’ सिंह- वह नाम जो पर्याय है- एक आउटडोर मैन, एक वाइल्ड लाईफर, एक ग्रेट फोटोग्राफर, एक अत्यंत कुशाग्र बुद्धि का धनी, एक मित्र  जिसका दिल और घर दोनों सबके लिए खुले रहे, टाइगर को अपना भगवान मानने वाला,  सभी जीवों के प्रति दया रखने वाला,  हंसमुख, और एक उत्कृष्ट इंसान जो जाती धर्म के बोझ से आज़ाद था।

आदित्य को यह सब उसके अनोखे परिवार से मिली तालीम और लम्बी विरासत का नतीजा है।  उनका जन्म दिनांक 24 मई 1966 इलाहाबाद में हुआ। आदित्य के पिता नरेश बहादुर सिंह भदौरिया एवं माता अरुणा सिंह आज हमारे बीच आशीर्वाद देने के लिए विद्यमान है । यह परिवार मूलतः मध्यप्रदेश के भिंड क्षेत्र से सम्बन्ध रखते थे,  जो बाद में उत्तरप्रदेश के कानपुर क्षेत्र में रहने लगे। आदित्य ने भी पुनः इस चम्बल क्षेत्र को चयन किया और रणथम्भोर को अपना घर बना लिया। हालांकि पिता के सैन्य सेवा में होने के कारण उनका बचपन देश के विभिन्न हिस्सों -दिल्ली, बेंगलुरु, प्रयागराज (इलाहाबाद), जयपुर एवं बीकानेर आदि में बीता।

Aditya 'Dicky' Singh

आदित्य के पिता के पिता यानी आदित्य के दादा मेजर मोहन सिंह, एक महान वॉर वेट्रन थे, उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में भाग लिया और नॉर्थ अफ्रीका में पांच देश में जर्मन एवं इटालियन फोर्सेज के खिलाफ युद्ध लड़े। इनके दादा उस ज़माने में अंग्रेजी जानने वाले सिपाही थे। दादा मेजर मोहन सिंह ने इंडियन बटालियन का हिस्सा बन कर जापानी सेना के विरुद्ध बर्मा में भी युद्ध किया। सूबेदार मोहन सिंह ने 1965 में नॉन कॉम्बैट के होते हुए, कॉम्बैट मेंबर बनाकर इंडो पाक वॉर में शामिल किये गए और मेजर बना कर लगाया गया। इस युद्ध में उन्होंने अखनूर सेक्टर एवं जम्मू एवं कश्मीर की लड़ाई में अदम्य  साहस के साथ भाग लिया, परन्तु एक भयंकर टैंक मुकाबले में वह देश के लिए 1965 में शहीद हो गए।  मेजर मोहन सिंह के सभी पुत्र एवं दामाद सेना में उच्च अफसर रहे है।    मेजर मोहन सिंह का नाम आज भी नेशनल वॉर मेमोरियल में दर्ज है। आदित्य उन्हें बड़े गर्व से याद करते थे।

आदित्य के पिता श्री नरेश बहादुर राजपूताना राइफल में ब्रिगेडियर पद पर रहे एवं रेजिमेंटल सेंटर के कमांडेंट के पद से सेवानिवृत्त हुए। आपने भी देश के लिए कई युद्धों में भाग लिया जैसे 1962, 1965 एवं 1971 और देश की अनोखी सेवा की, आपको विशिष्ट सेवा मेडल से विभूषित किया गया ।

आदित्य ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली के मॉडर्न स्कूल -बाराखंबा से प्राप्त की।  आदित्य जब पेपर देते थे तो उनके उत्तरों को कुंजी माना जाता था, एक बार तो उनके पेपर स्कूल के टॉयलेट में मिले क्योंकि उनके बदमाश दोस्तों उन्हें चुरा कर कॉपी करने ले गए थे। आज भी उनकी फोटो स्टाइल ही नहीं वरन उनके द्वारा ली गयी टाइगर की फोटो चुरा कर इस्तेमाल की जाती है। आप शुरुआती  दौर में 100 मीटर दौड़ के धावक हुआ करते थे। उन्हें कहा गया की आपके पांव की बनावट और लम्बाई को इस्तेमाल करो तो आप एक बहुत अच्छे धावक बन सकते हो। उन्होंने दिल्ली स्टेट को रेसिंग के लिए रिप्रेजेंट किया।


आपने बिएमएस  कॉलेज बैंगलोर से इंजीनियरिंग की जब डिक्की पास होने को थे और भाई विक्की ने भी वही कॉलेज ज्वाइन किया। आदित्य सिविल इंजीनियरिंग बनकर ब्रिज बनाने की विशेषज्ञता हासिल की। परन्तु उन्होंने आई ए एस अफसर बनने का निर्णय लिया और बिना अधिक समय गवाए वह दिल्ली काडर का आई ए एस  बन भी गए। परन्तु उन्हें जल्द ही लगने लगा की यह काम उनके दिल के करीब नहीं, उनका मानना था इस दिशा में वह अपना जीवन नहीं बिता सकते। और आई ए एस पद से अपना इस्तीफा दे दिया। इस सब के दौरान उनके जीवन में पूनम आई और उन्हें एक और परिवार मिल गया गया। संदीप और मोती लाल जी उनके ससुर हमारे साथ है।

आदित्य और पूनम ने 1998 में रणथम्भौर को अपना घर बनाने लिया और तत्पश्च्यात रणथम्भौर बाघ बन गया। सोशल मीडिया तब नहीं था, कम लोग ही बाघों के बारे में जानते थे, परन्तु आदित्य की उँगलियों पर बाघों की पीढ़ियां हुआ करती थी।  उनके लिखे ब्लॉग का इंतज़ार हुआ करता था। आदित्य वन विभाग का एक भरोसेमंद साथी था। न नाम की लालसा, न काम की शर्म, और लोगों का अनोखा जुड़ाव और नए आइडिया की भरमार। आदित्य के विश्व में हर जगह दोस्त बन गए।


रणथम्भोर बाघ एक होटल से अधिक एक स्कूल था जहाँ लोग नेचर फोटोग्राफी सिखते थे और बाघों की बात करते थे। आदित्य ने रणथम्भोर बाघ को एक जिवंत केंद्र बना कर उसे एक ऐसा हब बना दिया की यहाँ आने वाले लोग नए आईडिया, नई टेक्नोलॉजी, फोटोग्राफी के नए तरीके साझा करते थे। बाघों के ज्ञान का जो प्रसार यहाँ से साधारण लोगों में हुआ शायद अन्य स्थान से नहीं हो पाया।

आदित्य सिंह के इसी अन्दाज के कारण वह बिबिसी  के कॉलिन की रिसर्च टीम का हिस्सा बन कर सूर्योदय से सूर्यास्त तक पार्क जाने लगे। बाघों के  जीवन के छिपे हुए रहस्य जानने लगे। पिछले २० वर्षों में वाल्मीक थापर ने शायद ही कोई किताब उनकी फोटो के बिना पूरी की हो, बाघ भालू की लड़ाई , बाघ बाघ का संघर्ष , उनका कब्स का पालन आदि सभी जीवन को उन्होंने छायांकन बखूबी किया। बिबिसी  ने उनके चित्रों के साथ कई आर्टिकल लिखे।

प्रकृति और वन्य जीवन के फोटोग्राफी तक उनका जुड़ाव नहीं था वह किड्स फॉर टाइगर के सवाई माधोपुर चैप्टर के कोऑर्डिनेटर भी थे। वह एनजीओ  टाइगर वाच के साथ मिलकर अनेक कंजर्वेशन  कार्यों में एक मूक सलाहकार और सहयोगी के रूप में भूमिका निभाई।

बिबिसी  की फिल्म सफलता के बाद रणथम्भौर का कोई बिरला ही फिल्म प्रोजेक्ट उनके बिना सम्पन्न हुआ होगा।  दुनिया के नाम चिन फिल्म मेकर बाघों पर उनके साथ सलाह करके फिल्मिंग आदि का काम करने लगे जैसे Nat Geo, Animal Planet, डिस्कवरी, डिज्नी आदि।

वन और बाघों से जुड़े वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर बेपरवाह बात करते जो उचित था वह बोले, जो कटु था वह बोले, हरदम खरे बोले, बिना लाग लपेट और स्वार्थ के बोले।  वह बाघ की एक सच्ची और असली आवाज थे।

उन्होंने हर दम उस प्राणी की चिंता की भदलाव गांव में पूनम और आदित्य ने कई टुकड़े टुकड़े खेत खरीदें और उन्हें जंगल बनाया और आज वह एक अद्भुत जगह बन गया। जहाँ हजारों धोक के पेड़ लगे है और बाघ और सांभर उसका बखूबी इस्तेमाल कर रहे है।

2012 उनके जीवन में नायरा आई, पिता आदित्य अब नायरा के साथ फोटोग्राफी करते, सफारी जाते और सफर एक दिन  (6th September 2023) अचानक रुक गया।   परन्तु वह आज रणथम्भौर के हर जर्रे में समाये हमारे साथ है।

Dr. Dharmendra Khandal is working as a conservation biologist with Tiger Watch - an organisation based in Ranthambhore, for two decades. He spearheads all anti-poaching, community-based conservation and exploration interventions for the organisation.