एलो ट्राईनर्विस: राजस्थान की एक नई एलो प्रजाति
“राजस्थान के बीकानेर जिले में पायी गई एक नई वनस्पति प्रजाति… “
केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (CAZRI), जोधपुर और बोटैनिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया के कुछ शोधकर्ताओं द्वारा राजस्थान के बीकानेर जिले से एलो ट्राईनर्विस (Aloe trinervis) नामक एक नई वनस्पति की प्रजाति की खोज की गई है। इस प्रजाति में फूलों के ब्रैट्स में तीन तंत्रिकाएं (nerve) मौजूद होने के कारण इस प्रजाति का नाम ट्राईनर्विस रखा गया हैं क्योंकि यह लक्षण इस प्रजाति के लिए विशेष और अद्वितीय हैं तथा इस प्रजाति में जून-अगस्त माह में फूल तथा सितम्बर-अक्टूबर माह में फल आते हैं।
वनस्पतिक जगत के परिवार Asphodelaceae के जीनस “Aloe” में लगभग 600 प्रजातियां शामिल हैं जो ओल्ड वर्ल्ड (अफ्रीका, एशिया और यूरोप) सहित, दक्षिणी अफ्रीका, इथियोपिया और इरिट्रिया में वितरित हैं। इस जीनस की प्रजातियां शुष्क परिस्थितियों में फलने-फूलने के लिए अनुकूलित होती हैं तथा इनकी मोटी गुद्देदार पत्तियों में पानी संचित करने के टिश्यू होने के साथ-साथ एक मोटी छल्ली (cuticle) होती है। हालांकि भारत में इन सभी प्रजातियों में से केवल एक ही प्रजाति “अलो वेरा (Aloe vera)” सबसे अधिक व्यापकरूप से वितरित है। शोधकर्ताओं; सी.एस. पुरोहित, आर.एन. कुल्लोली और सुरेश कुमार की कड़ी मेहनत द्वारा इस नई प्रजाति की रिपोर्ट के साथ ही अब भारत में इस जीनस की दो प्रजातियां हो गई हैं। डॉ चंदन सिंह पुरोहित बोटैनिकल सर्वे ऑफ इंडिया में वैज्ञानिक के रूप में कार्यरत हैं। यह घासों के विशेषज्ञ हैं जिन्होंने 100 से अधिक शोध पत्र, 2 पुस्तकें प्रकाशित की हैं। डॉ रविकिरन निंगप्पा कुल्लोली, पिछले 12 वर्षों से रेगिस्तान की जैव विविधता पर शोध कर रहे है। इन्होने प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय पत्रिकाओं में 30 शोध पत्र प्रकाशित किए हैं तथा वर्तमान में यह राजस्थान और गुजरात राज्यों के वन क्षेत्रों के आनुवंशिक संसाधनों के दस्तावेजीकरण और मानचित्रण पर कार्य कर रहे है। डॉ सुरेश कुमार, सेवानिवृत्त प्रधान वैज्ञानिक (आर्थिक वनस्पति विज्ञान) और केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (CAZRI) जोधपुर के विभागाध्यक्ष थे। इन्होने डेजर्ट इकोलॉजी पर विशेषज्ञता हासिल की है और अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय पत्रिकाओं 250 से अधिक शोधपत्र और 10 पुस्तके प्रकाशित की हैं। साथ ही इन्होने चट्टानी, चूना पत्थर और जिप्सम वाले परियावासो को पुनः स्थापित करने तकनीक विकसित की है।
आखिर एलो ट्राईनर्विस और एलो वेरा में अंतर क्या है: एलो ट्राईनर्विस में पत्तियों के सिरों पर हल्के घुमावदार छोटे कांटे होते हैं, 3-नर्व्ड ब्रैक्ट्स, शाखित पुष्पक्रम (inflorescence), हल्के पीले-हरे रंग के फूल मध्य से भूरे व् 31-34 मिमी तक लम्बे होते हैं तथा इनके पुंकेसर की लम्बाई 29–33 मिमी तक होती हैं। जबकि एलो वेरा में पत्तियों के सिरों पर त्रिकोणाकार छोटे कांटे होते हैं, 5-नर्व्ड ब्रैक्ट्स, अशाखित पुष्पक्रम (inflorescence), संतरी-पीले रंग के फूल 29-30 मिमी तक लम्बे होते हैं तथा इनके पुंकेसर की लम्बाई 24–26 मिमी तक होती हैं। वर्तमान में इस नई प्रजाति एलो ट्राईनर्विस को शिवबाड़ी-जोरबीर संरक्षित क्षेत्र, बीकानेर, राजस्थान से एकत्रित किया गया हैं।
दोनों प्रजातियों एलो वेरा और एलो ट्राईनर्विस को CAZRI, जोधपुर में डेजर्ट बॉटनिकल गार्डन में लगाया गया है, तथा इसके नमूने BSI, AZRC, जोधपुर में संगृहीत हैं। स्थानीय लोग इसकी पत्तियों को सब्जी और अचार बनाने के लिए इकट्ठा करते हैं। इसकी पत्तियों का उपयोग त्वचा उपचार के लिए औषधीय रूप के रूप में भी किया जाता है। और जानकारी के लिए सन्दर्भ में दिए शोधपत्र को देखें।
संदर्भ:
- Cover picture Kulloli et. al.
- Kumar S., Purohit C.S., and Kulloli R. N. 2020. Aloe trinervis sp. nov.: A new succulent species of family Asphodelaceae from Indian Desert. Journal of Asia-Pacific Biodiversity. 13:325-330.
शोधकर्ता:
Dr. Chandan Singh Purohit (1)(L&R): Dr. C.S. Purohit is working as Scientist at Botanical Survey of India. He is grass expert and published more than 100 research papers, 2 books on taxonomy, conservation biology, new taxa. He has also worked on vegetation of Shingba Rhododendron Sanctuary, Sikkim.
Dr. Kulloli Ravikiran Ningappa (2): He is working on desert biodiversity since last 12 years. He has published 30 research papers in reputed international and national journals. He has hands on GIS mapping, Species Distribution Modelling. Currently he is working on documentation and mapping of Forest Genetic Resources of Rajasthan and Gujarat states.
Dr. Suresh Kumar (3): He is retired Principal Scientist (Economic Botany) & Head of Division of Central Arid Zone Research Institute (CAZRI) Jodhpur. He has expertise on Desert Ecology and published more than 250 research papers in international and national journals and 10 books. He has developed technology to rehabilitate rocky habitats, limestone, gypsum and lignite mine spoils.