राजस्थान का राज्य पुष्प रोहिड़ा एवं उसकी अद्भुत परागण प्रक्रिया

राजस्थान का राज्य पुष्प रोहिड़ा एवं उसकी अद्भुत परागण प्रक्रिया

कभी फूलों के चटकीले रंग तो कभी उनकी मधुर सुगंध मधुमक्खियों, भँवरों, तितलियों और पक्षियों को अपनी ओर आकर्षित करती है जो फूलों का मकरंद पीते है,और परागण की महत्वपूर्ण प्रक्रिया में सहायता करते हैं। परागण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें पुष्प के नर भाग-पुंकेसर से परागकण, किसी माध्यम (हवा, पानी , पक्षी, कीट आदि ) से फूल के मादा भाग स्त्रीकेसर तक पहुँचते हैं और अंडाशय में बीजो को निषेचित करता है।

राजस्थान के मरुस्थल में जब रोहिड़े के पेड़ पीले, नारंगी और लाल रंग के फूलों से भर जाते हैं तो इस दौरान इन फूलों पर मंडरा रहे रेड-वेंटेड बुलबुल (Pycnonotus cafer) और पर्पल सनबर्ड (Cinnyris asiaticus) के बीच एक दिलचस्प व्यवहार देखने को मिलता है, यह व्यवहार परागण की प्रक्रिया के कई दिलचस्प पहलुओं पर प्रकाश डालता है।

रोहिड़ा का वृक्ष ( फोटो डॉ. धर्मेंद्र खांडल )

मुख्यतया राजस्थान में पाए जाने वाला वृक्ष “रोहिड़ा”(Tecomella undulata) जिसे राज्य पुष्प का दर्जा भी हासिल है, विशेष रूप से राजस्थान के मरू क्षेत्रों में पाया जाता है। यह बिग्नोनियासी (Bignoniaceae) परिवार का एक पतझड़ी पेड़ है, जिस पर वसंत ऋतु में पलाश के पेड़ के समान, एक साथ बड़े पैमाने पर फूल खिलते हैं। रोहिड़ा, राजस्थान के लिए पारिस्थितिक और आर्थिक महत्व का पेड़ है, विशेष रूप से रेगिस्तानी क्षेत्रों में जहां यह रेत के टीलों पर पनपता है। यह अत्यधिक निम्न तापमान (लगभग -2°C) और उच्च तापमान (लगभग 50°C) दोनों को सहन कर सकता है, और शायद यही कारण है कि इसे ‘डेजर्ट टीक’ या ‘मारवाड़ टीक’ भी कहा जाता है। यह अपनी मजबूत और टिकाऊ लकड़ी की गुणवत्ता के लिए जाना जाता है । मानव द्वारा उच्च मांग और धीमी गति से बढ़ने के कारण आज यह पेड़ IUCN रेड सूची में शामिल किया जा चुका है और वर्तमान में रोहिड़ा विलुप्त होने की ओर है तथा इसका भविष्य आज अनिश्चित बना हुआ है।

इसके फूल एक तुरही के आकार के होते हैं- जिससे पक्षी दो प्रकार से मकरंद निकालते है- या तो फूलों के भीतर अपना सिर डालकर या फिर परागण में सहायता किये बिना सीधा फूलों के आधार पर अपनी चोंच द्वारा छिद्र बनाकर। इस व्यवहार को ‘मकरंद चोरी’ भी कहा जाता है – यह एक ऐसी विधि है जिसके द्वारा जानवर फूलों के पराग के संपर्क में आए बिना मकरंद निकालते हैं।


पक्षियों द्वारा गिराए गए फूलों को खाते हुए चीतल हिरन (फोटो डॉ. धर्मेंद्र खांडल )

बुलबुल अपना सिर फूल के अंदर डाल कर मकरंद पीती है जबकि सनबर्ड फूल के आधार पर एक छोटा छिद्र करके मकरंद की चोरी करती है I बुलबुल द्वारा मकरंद पीते समय परागकण उसके सिर पर चिपक जाते हैं, परन्तु सनबर्ड परागण में सहायता किये बिना मकरंद निकालती है। यही प्रक्रिया मकरंद की चोरी (Nectar robbing) कहलाती है I इस प्रक्रिया के दौरान बुलबुल के सिर पर परागकण चिपक जाते हैं ,और उसका काला सिर पराग कणों से पीले रंग में रंग जाता है।
सनबर्ड के मकरंद चोरी करने का कारण है की वह आसानी से फूल के आधार पर संग्रहित मकरंद तक नहीं पहंचती है, क्योंकि फूल का आकार सनबर्ड की तुलना में बड़ा होता है कभी कभार यदि वह अपना सिर फूलों में डालती भी है तो परागकण से भरे परागकोश उसे छू नहीं पाते हैं I जिस कारण वह परागण की प्रक्रिया में भागीदारी नहीं निभाती है।

एक सफल परागण के लिए, फूल के आकार व संरचना और पक्षी की चोंच व सिर के आकार के बीच एक प्रकार की समरूपता होनी बहुत जरूरी है। अर्थात बुलबुल अपने बड़े सिर और छोटी चोंच के कारण रोहिड़ा के फूलों के साथ समरूप है क्योंकि छोटी चोंच के कारण उनको अपने सिर को पूरी तरह से फूल के भीतर ले जाना पड़ता है और ऐसा करते समय, उनके सिर परागकोष के सीधे संपर्क में आते है। वहीं दूसरी ओर सनबर्ड्स अपने छोटे सिर और लम्बी चोंच के कारण फूलों के परागकोष के संपर्क में आये बिना मकरंद निकाल ले जाती है।


रोहिड़े के फूल (फोटो डॉ. धर्मेंद्र खांडल)


इस प्रक्रिया में सनबर्ड तो मानो पूरी तरह से एक परजीव के रूप में स्थापित हो गयी परन्तु गहराई से देखें तो भले ही सनबर्ड फूलों से मकरंद की चोरी करती है परन्तु फिर भी अप्रत्यक्ष रूप से परागण में सहायता भी करती है। क्योंकि मकरंद चोरी के दौरान सनबर्ड ज्यादा से ज्यादा फूलों पर जाती है, जिससे वह बुलबुल के लिए मकरंद संघर्ष को बढाकर, उसे आसपास के कई फूलों और पेड़ों पर जाने के लिए मजबूर करती है। सनबर्ड और बुलबुल के बीच का यह संघर्ष, अप्रत्यक्ष रूप से रोहिड़े के पेड़ों को परपरागण (cross pollination) में मदद करता है।

वास्तव में सनबर्ड और बुलबुल दोनों ही परागण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन इस मामले में बुलबुल को “सच्चा परागणक” (true pollinators) और सनबर्ड्स को “प्रेरक” कहा जा सकता है। इसी प्रकार की टिप्पणियों को एक शोध पत्र में भी दिया गया है, जिसका शीर्षक है, “नेक्टर रॉबिंग पॉजिटिव इन्फ्लुएंस द रिप्रोडक्टिव सक्सेस ऑफ टेकोमेला अंडुलाटा” जहां पर्पल सनबर्ड रोहिड़ा में परपरागण को सकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं।


फोटो डॉ. धर्मेंद्र खांडल

सनबर्ड की भांति बुलबुल भी फूलों के आधार पर छिद्र बनाती है एवं पेड़ो से गिरे फूलों पर अक्सर दो अलग-अलग प्रकार के चिह्न देखने को मिलते हैं । जैसे कुछ फूलों के आधार पर छोटे-छोटे छिद्र, तो कुछ में बड़े अंडाकार छिद्र। पक्षियों के आकार को देख कर यह स्पष्ट समझ आता है कि छोटे छिद्र सनबर्ड द्वारा तथा बड़े छिद्र बुलबुल द्वारा किये जाते हैं। इसके अलावा, यह भी देखा जाता है की बुलबुल के संपर्क में आने से कई बार कोमल फूल टूट कर गिर भी जाते है। हो सकता है की बुलबुल का उद्देश्य फूलों से मकरंद निकालना नहीं बल्कि सिर्फ उन्हें तोडना है। यदि पेड़ों से नीचे गिरे हुए फूलों को देखा जाये तो यह पाया जाता है की, अधिकांश फूल प्राकृतिक रूप से मुरझा कर नहीं बल्कि पक्षियों (विशेषरूप से बुलबुल) द्वारा तोड़े हुए हैं , अथवा उनकी लापरवाही से टूटे हुए हैं। दिनेश भट्ट और अनिल कुमार (Fortkail 17, 2001) द्वारा भारत में रेड-वेंटेड बुलबुल के खाने की पारिस्थितिकी पर किये गए अध्ययन के अनुसार यह बुलबुल द्वारा फूलों की पंखुड़ियों को खाने के प्रयासों के संकेत हो सकते हैं। वहीं दूसरी ओर पेड़ों से गिरे हुए इन फूलों को चिंकारा (Gazella bennettii) एवं नीलगाय (Boselaphus tragocamelus) आदि खाते हैं तथा यह रेड-वेंटेड बुलबुल और एंटीलोप के बीच सहभोजिता (commensalism) की प्रक्रिया को दर्शाता है।


फोटो डॉ. धर्मेंद्र खांडल

तो इस बार जब फरवरी- मार्च माह में जब रोहिड़ा पर फूल आये तो प्रयास करना की आप विभिन्न पक्षियों के साथ रोहिड़ा के मध्य होने वाले इस व्यवहार को देख सकें।