एक भालू माँ और बाघिन में संघर्ष

एक भालू माँ और बाघिन में संघर्ष

बाघ को वन पारिस्थितिक तंत्र का शीर्ष शिकारी माना जाता है परन्तु कई बार अन्य जानवरों के साथ मुठभेड़ में बाघ को भी हार माननी पड़ती है। ऐसी ही एक घटना वर्ष 2011, अप्रैल माह में रणथम्भौर बाघ अभयारण्य में हुई। ज़ोन 6 में कालापानी एनीकट के पास चट्टानी पठार पर, एक बाघ और बाघिन का जोड़ा बैठा हुआ था कि, तभी एक भालू माँ अपनी पीठ पर दो बच्चे लिए बाघों की जोड़ी की ओर चल रही थी, और बाघिन आगे होकर उससे भिड़ने के लिए गई। जब तक भालू को एहसास होता कि आसपास बाघ है तब तक बाघिन उसके बिलकुल करीब पहुँच चुकी थी।

भालू माँ गंभीर संकट में फस चुकी थी, परन्तु उसके बच्चों ने खुद को माँ कि पीठ पर चिपका लिया और माँ ने तुरंत बाघिन पर हमला कर दिया।

और लड़ाई के लिए अपने दो पैरों पर खड़ी हो गई और तेज़-तेज़ आवाज़े लगी। भालू और बाघिन के बीच तेज़ चिल्लाहट में गरमा-गर्मी हुई, जिसे निसंदेह भालू माँ ने जीत लिया और बाघिन जल्दबाजी में पीछे हटने लगी।

तभी पास में खड़ा नर बाघ जो काफी देर से मुठभेड़ को देख रहा था, अपनी शक्ति दिखाने के लिए आगे बढ़ा, परन्तु भालू माँ ने उस पर भी अपना क्रोध दिखाया।

बाघ वहां से दूर चले गए और भालू माँ भी अपने बच्चों को वहां से लेकर चली गई।

यह पूरी घटना कुल 2 मिनट में हुई, जहाँ शुरुआत में लग रहा था कि भालू माँ गंभीर संकट में फस चुकी है और वहीँ कुछ सेकेंड्स में उसने पुरे संघर्ष को नियंत्रित कर लिया और बाघों को वहां से भगा कर अपनी और अपने बच्चों कि रक्षा करी। रणथम्भौर में इस प्रकार की घटना कई बार देखी गयी, परन्तु यह घटना शानदार तरीके से फोटोग्राफ कर दर्ज़ भी की गयी।

 

 

 

भालुओं द्वारा कचरे में भोजन की तलाश

भालुओं द्वारा कचरे में भोजन की तलाश

राजस्थान के हिल स्टेशन – माउंट आबू में भालू अक्सर कचरे के ढेरो के आसपास भोजन ढूंढते देखे जाते हैं परिणामस्वरूप उनके व्यवहार में बदलाव आ रहा है।

कुछ दिनों पहले मैंने माउंट आबू में एक विचलित करने वाला दृश्य देखा, जिसमें चार भालू कचरे के ढेर में गाय एवं भैंस के साथ भोजन ढूंढ रहे थे। खैर अचानक से आई 2-3 पर्यटकों की गाड़ी से वो भाग गए परन्तु एक भालू निर्भय होकर अपना भोजन ढूंढ़ता ही रहा। यह दृश्य अब यहाँ एक साधारण बात हैं।

गाय भैंस के मध्य कचरे से खाना तलाशता एक भालूI (फोटो: श्री धीरज माली)

राजस्थान का हिल स्टेशन – माउंट आबू, भालूओं  के लिए एक अनुकूल पर्यावास हैं, लेकिन कई वर्षों से प्लास्टिक और गन्दगी के अम्बार से यहाँ की वादियों का मानो दम घुट रहा है। जगह-जगह बिखरा हुआ कचरा, यहाँ के वन्यजीवों और पक्षियों के व्यवहार को तेजी से बदल रहा हैं। कचरे के ढेरों में आसानी से मिलने वाला खाना खाने के लिए, यह मानव आबादी की ओर चले आते हैं एवं प्रतिकूल भोजन का सेवन करते हैं। कहते हैं, माउंट आबू में कचरा निस्तारण प्रणाली का कोई सार्थक प्रबंध इसलिए नहीं है, क्योंकि यहाँ के जनप्रतिनिधियों ने इसे विकसित ही नहीं होने दिया। क्योंकि कचरे से यहाँ के प्रभावशाली लोगों के व्यक्तिगत हित जुड़े हुए हैं। यहाँ कचरा निस्तारण के लिए इनके द्वारा एक बहुत बड़े समूह को रखा गया हैं, जो मात्र साबुत शराब की बोतले और रीसायकल होने योग्य प्लास्टिक ही इकठ्ठा कर रहे है। प्लास्टिक और शराब की साबुत बोतलों से हो रही मोटी कमाई के फेर में जिम्मेदार लोग मौन धारण करके बैठे है अथवा मात्र इतने ही शामिल हैं के अपना मतलब सिद्ध कर सके।  इसका खामियाजा माउंट आबू की प्रतिष्ठा एवं वन्यजीव भुगत रहे है। लम्बे समय से यह सिलसिला जारी है लेकिन अब तक कोई पुख्ता प्रबंधन नजर नहीं आ रहे हैं।

पर्यटकों द्वारा रात में भालुओं के करीब तक जाने व् उनको खाना डालने से उनके व्यवहार में बदलाव आना तय है (फोटो: डॉ. दिलीप अरोड़ा)

वन विभाग की माने तो माउंट आबू वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी में दो सौ से भी अधिक भालू मौजूद हैं। इसके अलावा तेंदुए, सांभर, हनी बेजर सहित कई सारे दुर्लभ वन्यजीव भी यहाँ पर है लेकिन बढ़ते मनुष्यों के हस्तक्षेप ने वन्यजीवों के लिए खतरा पैदा कर दिया है। यहाँ पर भालुओं के मनुष्यों पर हमले भी बढ़ रहे है। देखना हैं कब तक विभाग, सरकार और यहाँ के स्थानीय लोग इन मुद्दों से मुँह मोड़ के रहते हैं।

 

# Cover Image by Dr. Dilip Arora