बाघ शावकों में खेल-खेल की लड़ाई

बाघ शावकों में खेल-खेल की लड़ाई

रणथम्भौर जैसे गर्म व शुष्क जंगल में बारिश हो जाने से मौसम बड़ा ही खुशनुमा हो जाता। जहाँ एक ओर धोक के सभी पेड़ों पर नई पत्तियां आने लगती हैं तो दूसरी ओर वन्यजीवों का भी खेलने-कूदने और मस्ती करने का समय आ जाता। ऐसे में अक्सर बाघ के शावक एक-दूसरे के साथ खेलते हुए नज़र आते हैं। जिसमें वे एक दुसरे के पीछे भागते हैं, एक दुसरे के ऊपर लोटपोट करते है और जो पेड़ ज़मीन पर झुके होते है उन पर चड़ते है। कई बार उनको देख कर ऐसा लगता है जैसे वे वास्तव में ही लड़ाई के रहे हो। ऐसा ही एक दृश्य इस कथा चित्र में दर्शाया गया।

रणथम्भौर में एक रात बहुत तेज बारिश हुई और अगली ही सुबह राजबाग तालाब के पास वेटिवेरिया घास के एक बड़े पैच में बाघ के तीन शावक छुपे हुए थे। थोड़ी ही देर बाद दो शावक एरोहेड और पॅकमैन अचानक से लंबी घास के बीच से एक दूसरे के ऊपर चार्ज करते हुए बाहर आए और एक दूसरे के साथ खेलने लगे।

तालाब के किनारे की घास पूरी तरह से पानी से भीगी हुई थी और शावकों की हर छलांग के साथ सब तरफ पानी के छींटे उड़ रहे थे।

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अगले दस मिनट तक दोनों शावक फुर्ती से एक दूसरे के साथ खेलते हुए लड़ते रहे। कभी वे एक दूसरे के ऊपर अपने हलके हाथ से वार करते तो कभी ऊंची छलांग लगा कर एक-दूसरे पर झपट्टा मारते। परन्तु हर तरफ पानी की बुँदे उड़ रही थी और ऐसा लग रहा था मानों उनपर कोई फव्वारा चल रहा हो।

कुछ देर बाद मुछे तीसरे शावक ने भी इस खेल में भाग लिया परन्तु बहुत कम समय के लिए और अधिक्तर खेल एरोहेड और पॅकमैन के बीच ही चला।
लगभग दस मिनट के बाद वे तीनों वापस लंबी घास में चले गए।
बाघ के शावक अक्सर यूँ लड़ाई कर खेलते हैं ताकि, उनकी चुस्ती-फुर्ती बनी रहे, और वे खुद को एक शिकारी की तरह जीवन के संघर्षों में निपुण बना सके।

बाघों में जलश्रोतों के लिए लड़ाई

बाघों में जलश्रोतों के लिए लड़ाई

रणथम्भौर दुनिया का सबसे सूखा और गर्म जंगल है ऐसे में गर्मियों के मौसम में यहाँ के कुछ स्थायी जलश्रोतों के अलावा अधिकाँश जलश्रोत सूख जाते हैं। सरल भाषा में कहा जाए तो, पानी यहाँ पर एक Limiting Factor है। Limiting Factor, एक ऐसा कारक होता है जो किसी भी क्षेत्र में आबादी को निर्धारित करता है एवं उसके विकास को धीमा या रोकता है। खाना, पानी और आवास जंगल के कुछ Limiting Factor हैं जो वन्यजीवों की आबादी को निर्धारित करते हैं।

ऐसे में बाघ को हमेशा ऐसा इलाका चाहिए होता है जिसमें भरपूर मात्रा में शिकार और पानी हो तथा कई बार बाघों में जलश्रोत वाले इलाकों के लिए संघर्ष भी देखा जाता है। इस कथा चित्र में ऐसे ही एक संघर्ष को दर्शाया गया है।

रणथम्भौर में दो बाघिनों (घोस्ट (T60) और नूर) के क्षेत्र की सीमाएं एक-दूसरे से मिलती थी और उस क्षेत्र के किनारे पर ही कुछ जलश्रोत थे जिन्हें वो आपस में बांटा करती थी। दोनों बाघिन तीन-तीन शावकों की माँ थी और पानी की आवश्यकता के चलते वो आपस में सामंजस्य बनाये रखती थी। लेकिन जैसे ही गर्मिया तेज होने लगी नूर के इलाके में पानी सूखने लगा जबकि घोस्ट के हिस्से में बहुत पानी था।

गर्मियों की एक दोपहर, जब नूर अपने शावकों के साथ क्षेत्र की सीमा पर आराम कर रही थी, उसने घोस्ट को आते देखा और तुरंत उसे लड़ाई की चुनौती दी। दोनों बाघिन एक-दूसरे की ओर बढ़ी और तेज़ धार वाले पंजों और बहुत तेज आक्रामक आवाज़ के साथ लड़ाई शुरू हो गई।

दोनों बाघिन पूरी ताकत से लड़ रही थी और नूर लड़ाई जीत रही थी परन्तु फिर अचानक वह चट्टान पर गिर गयी।

नूर के गिरते ही घोस्ट ने तुरंत पीछे हटने का मौका देखा और वहां से जाने लगी।

जैसे ही नूर उठी, उसने घोस्ट का पीछा किया लेकिन वो लड़ाई को समाप्त कर नूर को विजयी छोड़ते हुए वहां चली गयी और नूर ने गर्व से तेज़ आवाज में दहाड़ कर अपनी जीत प्रसारित की।
इस घटना के बाद नूर उस क्षेत्र के सभी जलकुंडों की नयी मालिक बन गई और घोस्ट वापस नहीं आयी।

बुलफ्रॉग का जीवन और मृत्यु का संघर्ष

बुलफ्रॉग का जीवन और मृत्यु का संघर्ष

यह चित्र कथा है “धामन (Rat Snake Ptyas mucosa)” और “बुलफ्रॉग (Rana tigerina)” के एक दुर्लभ जीवन-और-मृत्यु संघर्ष की।

एक धामन सांप ने एक बुलफ्रॉग को पकड़ लिया था परन्तु जैसे ही सांप ने मेंढक को निगलने की कोशिश की, मेंढक ने अपने शरीर को फुला लिया ताकि खुद को सांप के मुँह में जाने से रोक सके।

धामन सांप के दांत तेज तो होते हैं परन्तु इतने लम्बे नहीं जो एक बड़े बुलफ्रॉग के शरीर से आरपार हो पाए। अतः सांप उसे निगलने की कोशिश में लगा रहा। लगभग 10 मिनट तक यह संघर्ष चला और मेंढक के शरीर से कुछ जगहों से खून निकलने लगा।

लग रहा था की अब मेंढक जीवित नहीं बचने वाला है, तभी अचानक मेंढक, सांप की पकड़ से छूट कर पानी में गायब हो गया।

अक्सर मेंढक साँपों की पकड़ से बचने के लिए अपने आगे के पैरों की मदद से बाहर की तरफ धक्का लगाते हैं और बच निकलते हैं। धामन जैसे बड़े आकार के आक्रामक शिकारी की पकड़ से बच निकलना काफी हैरान करने वाला था। निःसंदेह, मेंढक की जीवित रहने की इच्छा धामन की भूख से मजबूत रही होगी।

एक भालू माँ और बाघिन में संघर्ष

एक भालू माँ और बाघिन में संघर्ष

बाघ को वन पारिस्थितिक तंत्र का शीर्ष शिकारी माना जाता है परन्तु कई बार अन्य जानवरों के साथ मुठभेड़ में बाघ को भी हार माननी पड़ती है। ऐसी ही एक घटना वर्ष 2011, अप्रैल माह में रणथम्भौर बाघ अभयारण्य में हुई। ज़ोन 6 में कालापानी एनीकट के पास चट्टानी पठार पर, एक बाघ और बाघिन का जोड़ा बैठा हुआ था कि, तभी एक भालू माँ अपनी पीठ पर दो बच्चे लिए बाघों की जोड़ी की ओर चल रही थी, और बाघिन आगे होकर उससे भिड़ने के लिए गई। जब तक भालू को एहसास होता कि आसपास बाघ है तब तक बाघिन उसके बिलकुल करीब पहुँच चुकी थी।

भालू माँ गंभीर संकट में फस चुकी थी, परन्तु उसके बच्चों ने खुद को माँ कि पीठ पर चिपका लिया और माँ ने तुरंत बाघिन पर हमला कर दिया।

और लड़ाई के लिए अपने दो पैरों पर खड़ी हो गई और तेज़-तेज़ आवाज़े लगी। भालू और बाघिन के बीच तेज़ चिल्लाहट में गरमा-गर्मी हुई, जिसे निसंदेह भालू माँ ने जीत लिया और बाघिन जल्दबाजी में पीछे हटने लगी।

तभी पास में खड़ा नर बाघ जो काफी देर से मुठभेड़ को देख रहा था, अपनी शक्ति दिखाने के लिए आगे बढ़ा, परन्तु भालू माँ ने उस पर भी अपना क्रोध दिखाया।

बाघ वहां से दूर चले गए और भालू माँ भी अपने बच्चों को वहां से लेकर चली गई।

यह पूरी घटना कुल 2 मिनट में हुई, जहाँ शुरुआत में लग रहा था कि भालू माँ गंभीर संकट में फस चुकी है और वहीँ कुछ सेकेंड्स में उसने पुरे संघर्ष को नियंत्रित कर लिया और बाघों को वहां से भगा कर अपनी और अपने बच्चों कि रक्षा करी। रणथम्भौर में इस प्रकार की घटना कई बार देखी गयी, परन्तु यह घटना शानदार तरीके से फोटोग्राफ कर दर्ज़ भी की गयी।