वर्तमान में संरक्षित क्षेत्रों (अभयारण्य / राष्ट्रीय उद्यान) को बाघ अभ्यारण्य में परिवर्तित करने की लगातार मांग हो रही है। वह क्षेत्र भले ही बाघों के लिए उपयुक्त हो या नहीं , लेकिन गैर-सरकारी संगठन, स्थानीय पर्यावरण कार्यकर्ता और राजनेता अपने आसपास के पार्क को टाइगर रिज़र्व घोषित करवाने को  एक बड़ी उपलब्धि के रूप में लेते हैं। परन्तु सिर्फ कागज़ों में संरक्षण के स्तर को बदलना आसान हैं, लेकिन इतना मात्र पर्याप्त नहीं है, बल्कि किसी भी क्षेत्र में बाघों को बनाए रखना, उनके लिए अनुकूल हैबिटैट बनाना, वह भी इस भीड़ भरे देश में एक बड़ी ज़िम्मेदारी है और यह आसान भी नहीं हैं।

वर्तमान में राजस्थान में रणथंभौर ही एक अकेला स्वस्थ बाघ रिज़र्व है जहाँ अच्छी मात्रा में बाघ रहते हैं। अक्सर राजस्थान के अन्य हिस्सों से  बाघों की मांग रणथंभौर से जुड़े लोगो को चिंतित कर देती हैं। रणथंभौर ‘समर्थकों’ के मध्य यह विचार बन रहा हैं की सरिस्का एवं मुकन्दरा  आदि जैसे अन्य संरक्षित क्षेत्र बाघों के लिए असुरक्षित हैं। यह लोग मानते हैं की रणथंभौर के अलावा, राज्य के अन्य सभी क्षेत्र बाघों के लिए नरक के सामान हैं।

दूसरी ओर, उन क्षेत्रों से जुड़े लोग मानते हैं कि रणथंभौर में पर्यटन लॉबीस्ट, बाघों को राज्य के अन्य क्षेत्रों में भेजने का विरोध करते हैं, ताकि बाघ पर्यटन पर अपना एकाधिकार बनाए रख सकें।

मुझे लगता है कि दोनों तरफ के लोग कहीं बाघ संरक्षण के मूल आधार से विचलित हो रहे हैं। मेरी राय में, हमें राजस्थान में बाघों के लिए हर संभव और अधिक से अधिक उपयुक्त क्षेत्र विकसित करने चाहिए। यह रणथंभौर के बाघों की दीर्घकालिक सुरक्षा के लिए आवश्यक है। इस महामारी के युग में यह कल्पना करना मुश्किल नहीं है एक अकेली आबादी किसी भी अनजान बीमारी की चपेट में आ सकती है और कुछ ही दिनों में यह पूर्ण तय समाप्त भी हो सकती हैं। आजकल कई सारे बैंक खाते रखना, होने संभावित वाली लूट के खिलाफ एक सुरक्षित रणनीति है, एक कालातीत मुहावरा आपने अवश्य सुना होंगे की अपने सभी अंडे एक टोकरी में नहीं डालने चाहिए, इस संदर्भ में यह पूरी तरह से उपयुक्त है।

इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं, जब किसी एक प्राणी की बड़ी आबादी मात्र कुछ ही हफ्तों में ही विलुप्त हो गयी। किसी ने बहुत ही सावधानीपूर्वक इस तरह के विलोपन की जानकारी एकत्रित की है, जिसे आप यहां देख सकते हैं-

यह पूरी तरह गलत नहीं हैं की MHTR – कोटा, सरिस्का, रामगढ़ विषधारी -बूँदी, कुंभलगढ़ आदि आज भी अत्यंत असुरक्षित स्थान हैं एवं बाघों के लिए अत्यंत जोखिम भरे हैं। फिर हम क्यों नहीं कोई सुरक्षित रणनीति बना पा रहे हैं, इसके दो मुख्य कारण हैं-

  1. एक स्थान से बाघ पकड़ कर नए स्थानों पर छोड़ना शायद सबसे आसान काम हैं परन्तु उन स्थानों को विकसित एवं सुरक्षित आवास में तब्दील करने में बहुत अधिक धन और निवेश की आवश्यकता होती है, और साथ ही हम यह स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं, इसके बाद उस निवेश को पुनः कैसे प्राप्त किया जायेगा, इसीलिए अभी तक सरकारें बाघों के संरक्षण को एक बोझ की तरह समझती हैं।
  2. आमतौर पर बाघों का परिचय जल्दबाजी में लिए जाने वाले राजनीतिक फैसले होते हैं और जब सरकार बदलती है तो सब ठंडा हो जाता है।

हम सब जानते हैं की MHTR के मामले में, 4 बाघ छोड़े गये थे, लेकिन असल में मात्र  2 बाघों को ही स्थानांतरित किया गया था। दो बाघ अपने आप पहुंच गए। MT3 (T98) अपने आप उस सटीक जगह पर पहुंचा जहां वाल्मिक थापर और डॉ। जीवी रेड्डी की टीम ने MHTR में बाघों को लाने का फैसला किया था। उसे रणथम्भौर से वहाँ पहुँचने में मात्र एक महीना लगा। इसी तरह, MT1 (T91) ने  पहले ही रणथंभौर को छोड़ दिया और रामगढ़ विषधारी वन्यजीव अभ्यारण्य की ओर बढ़ गया था और यहां तक कि वह इसे भी पार कर भीलवाड़ा जिले में पहुंच गया था और एक बार तो उसने MHTR तक पहुंचने की कोशिश भी की थी, लेकिन रस्ते के अवरोध के कारण वह MHTR से कुछ ही किलोमीटर दूर रह गया था।

एक लम्बे समय तक T91 का रामगढ विषधारी में  रुके रहना शायद यह भ्रम देता हैं की यह एक सुरक्षित ठिकाना हैं, वास्तव में यह पूरी तरह सही नहीं हैं क्योंकि उसे रोके रखने के लिए कई तरह के प्रयास किये गये थे, जैसे उसे तय समय पर, तय स्थान पर खाना देना, यह असल में उसे पकड़ने की रणनीति का एक हिस्सा था। रामगढ़ विषधारी के समर्थक अक्सर यह कसक दिल में रखते हैं की बाघ को यहाँ से पकड़ कर कोटा क्यों छोड़ा गया? क्योंकि आज भी रामगढ़ विषधारी पूरी तरह सुरक्षित नहीं एवं इतिहास की घटनाओ ने भी सिद्ध किया हैं की सामाजिक स्टार पर बाघों के अनुकूल माहौल बनाना अभी बाकि हैं, मात्र एक दो वन्यप्रेमीयो के अखबारों के बयान रामगढ़ विषधारी को बाघों के लिए मुफीद नहीं बनाता।

रणथंभौर ने निश्चित रूप से T83 और T106 नमक दो मादा बाघों को स्थानांतरित किया था । लाइटनिंग अथवा T83 लगातार बाहर जा रही थी और शेरपुर / खव्वा गांव के निवासी के लिए कई तरह की समस्या पैदा कर रही थी, वे निरंतर यह मांग कर रहे थे, कि उसे एक सुरक्षित क्षेत्र में स्थानांतरित कर दिया जाए और इसी तरह T106 भी उसकी माँ और दो अन्य बहनों के बीच रणथम्भौर के एक कोने में अपर्याप्त स्थान में रह रही थी।  मैं यहां यह साबित करने की कोशिश कर रहा हूं, MHTR में बाघों को छोड़ना, आंशिक रूप से एक प्राकृतिक घटना थी और आंशिक रूप से रणथम्भौर के लिए एक तनाव मुक्त करने का जरिया भी।

MHTR में छोड़े गये बाघों का चयन तकनीकी रूप से बहुत सही था और यह किसी भी तरह से रणथम्भौर के लिए भार नहीं था, जैसे सरिस्का के समय  WII के जीवविज्ञानी और अधिक दबाव वाले वन अधिकारियों ने  गलत बाघों का चयन किया था – जिसमें कोई भाई-बहन था, कोई बाघ ऐसे थे जिन्होंने अपनी टेरिटरी स्थापित करली थी अथवा पर्यटन क्षेत्र को प्रभावित करने वाले बाघ।

सरिस्का के समय अत्यंत गलत बाघों का चयन किया गया, जिससे बाघो के परिवारों को भी नुकसान पहुंचा। T12 का चयन यह भलीभांति  साबित करता है। सरिस्का के लिए हर समय रणथम्भौर में आसानी से मिलने, दिखने वाले बाघों का चयन किया गया और इससे निश्चित रूप से रणथम्भौर में पर्यटन से जुड़े लोगों में आक्रोश भी रहा। यह प्रयास पुनः भी किया गया, जब T65  का चयन सरिस्का के लिए किया गया, जो T73  मादा के साथ उसके 4 शावको का पिता हैं। खैर इस बार श्री अयान साधु – WII के वैज्ञानिक ने इसे समर्थन नहीं किया वरना पूर्व फील्ड डायरेक्टर उसे सरिस्का भेजने पर तुले हुए थे।

राजनीतिक रूप से प्रेरित या तर्कहीन अवैज्ञानिक रूप से बाघों की अनुचित हैं। जैसे रामगढ़ विषधारी-बूँदी से पहले कुंभलगढ़ में बाघों को लाने का कोई औचित्य नहीं है।

बूँदी के जंगल रणथम्भौर की बाघों की एक बड़ी आबादी के करीब हैं और उनके बीच टुटा फूटा एक गलियारा भी मौजूद है। यदपि कुम्भलगढ़ भी एक अच्छा निवास स्थान है, लेकिन यह रणथम्भौर के बाघों की मुख्य आबादी से तुलनात्मक रूप से दूर है, लेकिन रामगढ़ और MHTR  के विकास को प्राथमिकता देने के बाद, कुंभलगढ़ को बाघों के लिए भी विकसित किया जाना चाहिए ।

अतः अन्य क्षेत्रों में बाघों को छोड़ा जाना अत्यंत आवश्यक है ताकि हम अपने बाघों को आजकल फैलने वाली महामारियों से बचा सके । दूसरा हम रणथम्भौर को बाघों की बढ़ती आबादी के दबाव से मुक्त रख सकें। परन्तु सही बाघ का चयन आवश्यक है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है  कि नये क्षेत्रों को सुरक्षित बनाना और उनके लिए एक दीर्घकालिक संरक्षण रणनीति बनाना हैं । अप्राकृतिक कारणों से बाघों को मरते देखना बहुत दर्दनाक होता है।