पैंगोलिन: अत्यंत दुर्लभ जीव की बढ़ती समस्याएं

पैंगोलिन: अत्यंत दुर्लभ जीव की बढ़ती समस्याएं

एक नजर में दिखने पर किसी को अचम्भित कर देने वाला शर्मीले स्वभाव का वन्यजीव पैंगोलिन राजस्थान में बहुत ही कम तथा सीमित स्थानों पर पाया जाता है, इसकी दुर्लभता के कारण कभी किसी ने सोचा भी न होगा कि पैंगोलिन कि तस्करी राजस्थान से भी हो सकती है।

जून 2020 में मध्य प्रदेश वन विभाग कि स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने एक बड़ी सफलता के साथ वीडियो शेयरिंग साइट यूट्यूब (YouTube) पर पैंगोलिन शल्क बेचने वाले तस्करों के एक गिरोह का भंडाफोड़ किया है। पुलिस ने दो लोगों को गिरफ्तार किया है जिनकी पहचान शेर सिंह धाकड़ और राजस्थान के निवासी वकिल उर्फ पप्पू के रूप में हुई है। एसटीएफ के अधिकारी रितेश सरोठिया के अनुसार, एसटीएफ विंग ने शिवपुरी जिले के निवासी शेर सिंह धाकड़ के कब्जे से 2.7 किलोग्राम पैंगोलिन शल्क जब्त किया है। वैश्विक ग्राहकों को आमंत्रित करने के लिए उसने यू-ट्यूब पर अपना मोबाइल नंबर दिखाया था, एसटीएफ ने इसको पकड़ने के लिए एक ग्राहक भेजा और मौके पर गिरफ्तार किया। पुलिस के अनुसार, 10वीं कक्षा का टॉपर धाकड़, पप्पू से शल्क खरीदता था।

वीडियो शेयरिंग साइट यूट्यूब (YouTube) पर पैंगोलिन शल्क बेचने वाला शेर सिंह “शेरु” जब्त शल्कों के साथ (फ़ोटो: रितेश सरोठिया)

अवैध नेटवर्क के भंडाफोड़ के बाद एसटीएफ की यह 12 राज्यों से 165वीं गिरफ्तारी है। इससे पूर्व रणथंभोर स्थित टाइगर वॉच संस्था द्वारा दी गई एक महत्वपूर्ण सूचना के अंतर्गत कार्यवाही करते हुए एसटीएफ द्वारा 27-28 किलो पैंगोलिन शल्क जब्त किया गया तथा एक तस्कर दम्पत्ति (मुन्नी और हरी सिंह) कि गिरफ़्तारी भी कि गई। कार्यवाही के दौरान पाया गया कि भिंड / मोरेना स्थित मोगया सहित अन्य शिकारी जाति के लोग इनकी तस्करी में मदद करते थे और बाघ, बघेरा और अन्य वन्यजीवों कि भी तस्करी में शामिल थे। विश्व में सबसे ज्यादा पैंगोलिन कि तस्करी की जाती है और हर दिन लगभग तस्कर और शिकारी पैंगोलिन शल्क के साथ पकड़े जाते हैं। इसका अन्धाधुन्ध शिकार, बड़े पैमाने पर तस्करी, तेजी से बढ़ता शहरीकरण व इनके घटते प्राकृतिक आवासों से इनकी संख्या में भारी गिरावट आयी है।

पैंगोलिन एक गैर आक्रामक खूबसूरत लेकिन शर्मीला स्तनधारी जीव है। दूर से देखने पर यह छोटा डायनासोर जैसा प्रतीत होता है। गहर-भूरे, पीले-भूरे अथवा रेतीले रंग के इस शुण्डाकार निशाचर जीव को फोलिडोटा (Pholidota) ऑर्डर में रखा गया है। पैंगोलिन का छोटा शरीर एक चीड़ शंकु (pine cone) के समान होता है जिसकी लम्बाई लगभग दो मीटर तथा वजन लगभग पैंतीस किलो तक का होता है। इसके शरीर पर केराटिन के बने शल्क नुमा (scaly) संरचना होती है जो कि इस मासूम जीव का एकमात्र रक्षा तंत्र है। पैंगोलिन ऐसे शल्कों वाला अकेला ज्ञात स्तनधारी है। हालांकि वर्मी (Armadillo) भी कवच युक्त होते हैं लेकिन उनका कवच चमड़े का बना होता है। खतरा महसूस होने पर ये चेहरे को पूंछ में छुपा कर खुद को लपेटकर अच्छी तरह से संरक्षित एक गेंद का रूप ले लेते हैं। नुकीले शल्क इन्हें शिकारियों से सुरक्षा प्रदान करते हैं। इनकी पूंछ नुकीले काँटों के रूप में विकसित होती है जिन्हें ये हथियार के रूप में इस्तेमाल करते हैं।

पैंगोलिन नाम मलय शब्द पेंगुलिंग से आया है, जिसका अर्थ है “जो लिपटकर गोल हो जाता है” भारत में इसे चींटीखोर, वज्रशल्क या सल्लू साँप भी कहते हैं। इस जिज्ञासु कीटभक्षी की विश्व भर में आठ प्रजातियां हैं जो अफ्रीकी और एशियाई महाद्वीप पर पाए जाते हैं। इन आठों ज्ञात प्रजातियों को मनीडे (Manidae) परिवार में रखा गया है। इस परिवार में इनको तीन जातियों में बांटा गया है, मानिस (Manis), फेटाजीनस (Phataginus) और स्मटसिया (Smutsia)। एशिया में पाई जाने वाली चारों प्रजातियां मनीस में शामिल हैं, जबकि अफ्रीका में रहने वाली चार प्रजातियां फेटाजीनस और स्मट्सिया में शामिल हैं।

 

भारतीय पैंगोलिन एक निशाचर प्राणी है जो दिन के समय अपनी माँद में आराम करते हैं और रात में भोजन कि तलाश में बाहर आते हैं। दिन में नींद व आराम में खलल न हो इस हेतु यह बिल के मुहाने को मिट्टी से हल्का सा बन्द कर देता है। ये लगभग 11 फुट गहरी सुरंग खोदकर अपने रहने के लिए 4 प्रकार के माँद का निर्माण करते हैं। पैंगोलिन मुख्यतः कीटभक्षी होते हैं, उनके आहार में अधिकांश चींटियों और दीमक की विभिन्न प्रजातियां शामिल हैं। इनके अलावा ये अन्य कीड़ों, विशेष रूप से लार्वा का भी उपभोग करते हैं। इन्हे आहार में ज्यादा बदलाव पसंद नहीं है, कीटों कि कई प्रजातियाँ उपलब्ध होने के बावजूद भी केवल एक या दो प्रजातियों का ही उपभोग करते हैं। एक पैंगोलिन प्रति दिन 140 से 200 ग्राम कीटों का उपभोग कर सकता है। (Mahmood et al., 2014)

पैंगोलिन की दृष्टि असामान्य रूप से कमजोर होती है जिसकी कमी अत्यधिक विकसित गंध लेने और सुनने की क्षमता से पूरी करते हैं। पैंगोलिन में दांतों कि भी कमी होती है इसलिए इनमें चींटियों और दीमक को खाने के लिए अन्य भौतिक विशेषताएँ विकसित हुई है। जैसे कि मजबूत कंकाल संरचना, मजबूत नुकीले नाखूनों से लैस पंजे। वे अपने शक्तिशाली पंजों का उपयोग दीमक के टीले खोदने और फाड़ने तथा शिकार को पेड़, जमीन और वनस्पति के बीच खोजने के लिए करते हैं। उनकी जीभ और पेट कि संरचना कीटों को पचाने में सहायता करती है। उनकी चिपचिपी लार चींटियों और दीमकों को जीभ से चिपकाने में सहायक होती है। दांतों कि कमी के कारण वे शिकार खोजते (foraging) समय छोटे पत्थरों को निगलते हैं जो उनके पेट में जमा होकर चींटियों को पीसने में मदद करता है। (Mohapatra et al., 2014)

खतरा महसूस होने पर पैंगोलिन एक स्कंक के स्प्रे के समान गुदा के पास ग्रंथियों से एक विषाक्त-महक वाले रसायन का उत्सर्जन कर सकता है। पैंगोलिन की जीभ विशालकाय चींटीखोर कि तरह बहुत लंबी होती है। बड़े पैंगोलिन 1.5 फुट तक अपनी जीभ का विस्तार कीट सुरंगों के अंदर जांच करने और अपने शिकार को प्राप्त करने के लिए उपयोग करते हैं।

 

पैंगोलिन अपने जीवन का अधिकांश भाग एकांत में व्यतीत करते हैं और वर्ष में केवल एक बार प्रजनन करने के लिए गर्मियों या सर्दियों में मिलते हैं। नर अपने क्षेत्र को मूत्र या मल से चिह्नित करते हैं जिससे कि मादाएँ उनको खोज सके। मादाओं के लिए प्रतिस्पर्धा होने पर नर अपने पूंछ का उपयोग आपसी युद्ध के लिए करते हैं। गर्भधारण की अवधि 65 से 70 दिनों कि होती है। इस दौरान नर व मादा पैंगोलिन जोड़े में रहते हैं। मादा साल में एक ही शिशु (पैंगोपप्स) को जन्म देती है। जन्म के समय वजन 80 से 450 ग्राम और औसत लंबाई 150 मिमी (6 इंच) होता है। जन्म के समय शल्क नरम और सफेद होते हैं जो कि कई दिनों के बाद एक वयस्क पैंगोलिन के समान कठोर और काले हो जाते हैं। थोड़े बड़े होने पर पैंगोपप्स को मादाएँ अपनी पूँछ पर बिठाकर जंगल में विहार कराने के दौरान सुरक्षा तथा भोजन खोजने व खाने का हुनर भी सिखाती है। कुछ महीनों बाद शिशु अपनी माँ से अलग हो जाता है। पैंगोलिन पेड़ों पर चढ़ने व पानी में तैरने में दक्ष होते हैं।

भारतीय पैंगोलिन कि उपस्थिति को विभिन्न प्रकार के वनों से दर्ज किया गया है, जिसमें श्रीलंकाई वर्षावन और मैदानी क्षेत्र से लेकर मध्य पहाड़ी स्तर शामिल हैं। यह घास के मैदानों और माध्यमिक जंगलों में भी पाया जा सकता है, तथा रेगिस्तानी क्षेत्रों के लिए अच्छी तरह से अनुकूलित है लेकिन बंजर और पहाड़ी क्षेत्र इसके पसंदीदा आवासों में शामिल है। कभी – कभी यह पैंगोलिन उच्चतम ऊंचाई वाले स्थान जैसे कि श्रीलंका के 1100 मीटर कि ऊंचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों और भारत में 2300 मीटर कि ऊंचाई वाले नीलगिरि पहाड़ों पर भी देखा गया है। यह नरम और अर्ध-रेतीली मिट्टी पसंद करता है, जो कि इनके बिल खोदने के लिए उपयुक्त होते है। (Mohapatra et al., 2015)

वैसे तो पैंगोलिन अपने पर्यावास में व्यापक रूप से वितरित हैं लेकिन कहीं भी आसानी से नहीं दिखते। वर्ष 2019 में राजस्थान के कुम्भलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य में 25 सालों बाद पहली बार नजर आया। कुम्भलगढ़ के अलावा जयपुर, सवाई माधोपुर, बारां, और कोटा में भी इसकी उपस्थिति दर्ज कि गई है।(मानचित्र: समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरों पर आधारित)

पैंगोलिन अपने प्राकृतिक आवासों में दीमक और चींटियों की आबादी को नियंत्रित कर प्राकृतिक सन्तुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं। लेकिन ग्रामीण व आदिवासी लोग अपनी बेवकूफी व नासमझी के कारण निहायती भोले इन जीवों का बर्बरता पूर्वक शिकार करते हैं। साथ ही हाल के कुछ वर्षों में, लोगों द्वारा पेड़ों कि कटाई से वन क्षेत्र में व्यापक कमी आई है जिसने कई प्रकार के पर्यायवासों को नष्ट कर दिया है। नए और सुगम यातायात सुविधाओं और अच्छे पैसे मिलने के कारण शिकारियों ने स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय खपत के लिए कई दुर्लभ वन्यजीव प्रजातियों की तलाश और तस्करी तेजी से बढ़ा दी है। (Dr Jeff Salz, 2020)

चींटियों की बांबी के पास रहने वाले इस जानवर की तलाश में शिकारियों को मुश्किल नहीं होती। इसके अलावा इसे मारने के लिए उन्हें खास हथियार भी नहीं ले जाने पड़ते हैं। छूने या खतरे का आभास होने पर पेंगोलिन खुद को शल्कों (खोल) में समेटकर फुटबाल की तरह गोल हो जाता है। इसके बाद वह देख ही नहीं पाता कि उस पर हमला किया जा रहा है। शिकारी आसानी से उसे पीट-पीटकर मार डालते हैं।

इसका मांस लजीज होने से चीन व वियतनाम जैसे कई देशों के होटल व रेस्टोरेंट में खाने की लिए बेधड़क परोसा जाता है। वैश्विक स्तर पर इनके मांस, चमड़ी, शल्क, हड्डियां व अन्य शारीरिक अंगों की अधिक मांग होने से इनका बड़े पैमाने पर शिकार करवाया जाता है तथा राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर इनकी भारी मात्रा में तस्करी की जाती है। दूसरी ओर चीन व थाईलैंड जैसे कई देशों में इसके शल्कों का उपयोग यौनवर्धक औषधि व नपुसंकता दूर करने के लिये भी किया जाता है। जबकि आज तक इसका कोई वैज्ञानिक सबूत उपलब्ध नहीं है। पैंगोलिन से बने काढ़े और संक्रमित तरल पदार्थ से इलाज करवाने हेतु पिछले वर्ष तक चीनी सरकार द्वारा नागरिकों को स्वास्थ्य बीमा के रूप में मदद भी दी जाती थी।

यूएस पार्टी सर्किट में शल्क का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है। हाल ही में इंटरपोल की एक रिपोर्ट के अनुसार, पैंगोलिन के 26 प्रतिशत शल्कों को अमेरिका में भेजा जाता है। शल्क का उपयोग क्रिस्टल, मेथामफेटामाइन (methamphetamine ) के निर्माण के लिए किया जाता है, जो पार्टी ड्रग क्रिस्टल मेथ या क्रैंक (crystal meth or crank) का एक महत्त्वपूर्ण घटक है। जानकारी के मुताबिक शल्कों को निकालने की लिये निर्दयतापूर्वक इन्हें जिन्दा ही खौलते गर्म पानी में डाल दिया जाता है। शल्कों का व्यापार गैर कानूनी होने के बावजूद भारत में आज भी इनकी बिक्री बेखौफ होकर धड़ल्ले से होती है।

हालांकि पर्यावरण एवं वन विभाग इन वन्य जीवों की ताजा स्थिति बताने में गुरेज करते हैं। लेकिन फिर भी कुछ राज्यों के विभाग इनके संरक्षण के लिए उतक्रिस्ट कार्य कर रहे हैं। मध्य प्रदेश के अलावा उत्तराखंड वन विभाग ने भी विशेष कार्य बल संगठित किया है जो पंगोलीन को रेडियो टैग करने का कार्य कर रहा है। रेडियो टैग का कार्य अभी शुरुवाती दौर में है और फिलहाल मध्य प्रदेश वन विभाग ने अभी तक दो और उत्तराखंड वन विभाग ने एक पैंगोलिन को टैग किया है। (TOI, 2020)

अन्तरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) के नवीनतम अपडेट (2019) के अनुसार पैंगोलिन का भविष्य, आबादी में तेजी से कमी आने के कारण निराशाजनक दिखाई देता है। IUCN के अनुसार विश्व कि आठ प्रजातियों में से तीन प्रजातियाँ (चीनी, सुंडा, और फिलीपीन पैंगोलिन) गंभीर रूप से विलुप्तप्राय हैं, तीन विलुप्तप्राय (भारतीय, सफेद पेट वाले और विशाल पैंगोलिन) और बाकी के दो असुरक्षित है।

पहले से ही दुर्लभ और संकटग्रस्त इस जीव कि समस्याएं और बधाई है चीनी शोधकर्ताओं के नए शोध ने। साउथ चाइना एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का दावा है कि पैंगोलिन, चमगादड़ों और मनुष्यों के बीच कोरोना वायरस का एक मध्यवर्ती मेजबान हो सकता है। इसका अंदाजा पैंगोलिन में पहचाने गए वायरस से लगाया गया जो कि 99% कोरोना वायरस के समान था। हालांकि पैंगोलिन को कोरोना वायरस के कई स्ट्रैनस की मेजबानी के लिए जाना जाता है लेकिन इस प्रेस विज्ञप्ति के पीछे का शोध अभी तक वैज्ञानिक साहित्य में प्रकाशित नहीं हुआ है जिससे इन दावों का मूल्यांकन करना मुश्किल हो जाता है।

वैज्ञानिकों द्वारा वायरस को स्थानांतरित करने का संदेह मात्र पैंगोलिन पर ही नहीं रहा। कोविड-19 के शुरुआती दिनों में चीनी शोधकर्ताओं ने बताया कि मूल रूप से सांप संभावित कैरियर थे लेकिन अब उन्होंने इस विचार का खंडन कर दिया है। 22 मार्च को प्रकाशित एक नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि वायरस की प्रोटीन संरचना और जीनोम प्रभावी रूप से सांपों से अलग है।

अभी सर्वसम्मति यह है कि कोरोना वायरस के मूल स्रोत चमगादड़ हैं। चमगादड़ SARS-CoV-2 वायरस के साथ अन्य कई वायरस के एक प्राकृतिक संग्रह केन्द्र के रूप में कार्य करते हैं। 2000 के दशक की शुरुआत में भी चमगादड़ ही SARS वायरस के लिए जिम्मेदार थे। लेकिन एक विचार ये भी है कि किसी अन्य जानवर ने वायरस को चमगादड़ से मनुष्यों में पहुँचाया होगा जो पैंगोलिन हो सकता है। अवैध चीनी व्यापार द्वारा पैंगोलिन का पारंपरिक चीनी चिकित्सा में उपयोग मनुष्यों में संचरण के लिए एक वेक्टर के रूप में सुझाया गया था। पैंगोलिन कोरोवायरस के कई वंशों की खोज और SARS-CoV-2 से उनकी समानता से संकेत मिलता है कि पैंगोलिन SARS-CoV-2 जैसे कोरोनवायरस के होस्ट हो सकते हैं। हालांकि, पूरे जीनोम की तुलना में पाया गया कि पैंगोलिन और मानव कोरोनवायरस अपने RNA का 92% ही साझा करते हैं। (Cyranoski et al., 2020)

अभी तक कोई निर्णायक शोध नहीं होने के बावजूद चीनी वैज्ञानिकों द्वारा पैंगोलिन को वायरस के संभावित ट्रांसमीटर के रूप में सूचीबद्ध करने पर पर्यावरणविदों ने चिंता जताई है। इन शुरुआती अटकलों के कारण पहले से ही संकटग्रस्त इस स्तनपायी के लिए और संकट उत्पन्न हुए हैं। आज बड़े पैमाने पर इनकी हत्या करने का प्रोत्साहन उसी प्रकार मिल है जैसा कि SARS के प्रकोप के दौरान एशियाई पाम सिवेट के साथ हुआ था। (CBS News, 2004) बहरहाल, पंगोलिन के अवैध व्यापार को समाप्त करना वन्यजीवों के उपभोग से जुड़े संभावित स्वास्थ्य जोखिमों को कम करने में योगदान दे सकता है। कोरोना वायरस महामारी के पीछे वन्यजीव व्यापार कि अहम भूमिका को देखते हुए चीन के अधिकारी इसे वन्यजीव बाजारों को खत्म करने वाले एक संकेत के रूप में ले रहे हैं। जो कि आने वाले समय में वन्यजीवों के लिए एक अच्छी खबर हो सकती है।

पंगोलीन संरक्षण के लिए 2016 में, कई देशों ने पैंगोलिन की सभी आठ प्रजातियों को CITES Appendix I श्रेणी में सूचीबद्ध करने के लिए मतदान कर इनके व्यापार पर प्रतिबंध लगाया था। IUCN SSC पैंगोलिन स्पेशलिस्ट ग्रुप ने भी इनके संरक्षण के लिए वर्ष 2014 में “Scaling up Pangolin conservation” नाम से वैश्विक कार्य योजना प्रारंभ कि। (IUCN SSC)

भारत में पाए जाने वाले दोनों प्रजातियों (भारतीय और चीनी पैंगोलिन) को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची 1 भाग 1 के तहत सूचीबद्ध किया गया है। इसका शिकार करना, इसको सताना, मारना या पीटना, विष देना, तस्करी करना यह सब गैर कानूनी एवं अपराध की श्रेणी में आते हैं। यह प्रजाति विलुप्त न हो इस हेतु लोगों में जागरूकता लाने व इसके संरक्षण के लिये विश्व भर में प्रतिवर्ष फरवरी माह के तीसरे शनिवार को ‘वर्ल्ड पैंगोलिन डे’ (विश्व चींटीखोर दिवस) मनाया जाता है। लेकिन भारत में इसके प्रति लोगों में उत्साह नजर नहीं आता है।

References:

  1. Cyranoski, David. (2020-02-07). Did pangolins spread the China coronavirus to people? Nature. DOI: 1038/d41586-020-00364-2
  2. Mohapatra, R.K., Panda, S. (2014). Behavioural Descriptions of Indian Pangolins (Manis crassicaudata) in Captivity. International Journal of Zoology. Hindawi Publishing Corporation. Vol. 2014, Article ID 795062. http://dx.doi.org/10.1155/2014/795062
  3. IUCN SSC Pangolin specialist group, Red List Update: https://www.pangolinsg.org/2019/12/23/iucn-red-list-update-highlights-need-for-concerted-conservation-action-for-pangolins/
  4. Zhang, Y. (2020). Protein Structure and Sequence Reanalysis of 2019-nCoV. Proteome Res. 2020, 19, 4, 1351–1360 Publication Date: March 22, 2020 https://doi.org/10.1021/acs.jproteome.0c00129
  5. Mohapatra, R.K., Et al. (2015). A note on the illegal trade and use of pangolin body parts in India. TRAFFIC Bulletin Vol. 27 No. 1. https://www.pangolinsg.org/wp-content/uploads/sites/4/2018/06/Mohapatra-et-al_2015_A-note-on-the-illegal-trade-and-use-of-pangolin-body-parts-in-India.pdf
  1. Mahmood; Irshad; Hussain (2014). “Habitat preference and population estimates of Indian pangolin”. Russian Journal of Ecology. 45 (1): 70–75. DOI:10.1134/s1067413614010081
  2. In a first, MP shows way, radio-tags two pangolins: https://timesofindia.indiatimes.com/city/nagpur/in-a-first-mp-shows-way-radio-tags-two-pangolins/articleshow/cms
  3. Scientists radio-tag Indian pangolin (2020): https://www.thehindu.com/sci-tech/energy-and-environment/scientists-radio-tag-indian-pangolin/articleece
  4. MP: Wildlife STF arrests two for selling pangolin scales on YouTube (2020): https://timesofindia.indiatimes.com/city/bhopal/mp-stf-wildlife-arrests-two-for-selling-pangolin-scales-on-youtube/articleshow/76717230.cms
  5. Civet Cat Slaughter To Fight SARS (2004): https://www.cbsnews.com/news/civet-cat-slaughter-to-fight-sars/

 

 

 

NATURE’S WARRIORS

NATURE’S WARRIORS

Novel Corona virus may not be so noble for us, but the way it has changed us is certainly noble. It has united humans by dividing them physically, never have we all freaked together, got anxious for our lives together, and felt together that we were wrong that this planet endured for ages.

Our world lies torn and shattered and all because of an invisible virus that probably was let loose by a horseshoe bat. In our understanding of the Corona virus one critical factor stands out. The destruction of wildlife and wildlife habitats led to its creation. It could be from Wuhan’s horrific wet wildlife markets or fiddling with bats in a Wuhan laboratory or just destroying bat habitats that led to a crisis where millions are infected and hundreds of thousands are dead. Intermediary species like the Pangolin might have helped in mutating this virus and over the last decade we humans have left no stone unturned to decimate pangolins and smuggle them live into wildlife markets. They could very easily have been the intermediary species. China is hugely responsible for the demand and needs to be shamed across the world. My finger is pointed at it. I watched closely its enormous role in the tiger crisis that enveloped India from the 1990’s for two decades. I have watched its increasing presence in Africa and the resultant decline in African wildlife. At so many international meetings for the last 30 years it was warned to end its illegal wildlife trafficking and markets. It never paid heed. Endless wildlife WARRIORS fought to prevent China from this highly destructive role. But China as a global economic power cared little and stomped on in its craze for wild animal parts and associated medicine. As far as I am concerned this virus is a result of this. This virus is also a result of all those political and business leaders who did not care. All those who scoffed and mocked at Nature’s Warriors, hurled abuse on those who served both wildlife and nature.

Wildlife trade and wet markets are viruses mixing bowls (PC: Dr. Dharmendra Khandal). 

Pangolin might have helped in mutating Corona virus and we humans have smuggle them live into wildlife markets (PC: Dr. Dharmendra Khandal).

The disrespect that so many who have suffered who served nature is shocking. Many of us are now angry and unforgiving. Our warnings for the last 50 years have come true. We have tirelessly strived to prioritized the protection of our natural world. Few who made policy or took decisions listened. Today they should be covered in guilt. Big business failed nature. Few provided grants to protect it. The leaders of business preferred to remain ignorant of nature’s ways. Now they have been hit where it hurts. Trillions of dollars lost and economies at a standstill. If we wake up from this nightmare will they learn? Will they shed their arrogance? The less said about our politicians and their bureaucrats the better. I remember how hard I tried to get Prime Minister Manmohan Singh to create a department of forests and wildlife (which did not exist in our Ministry of Environment and Forests) so that this essential sector was properly governed. The idea was to make a separate ministry over time and allow a Ministry of Environment and Climate Change to be independent of it. He agreed with my logic, (10 years ago) and instructed that it should be done. But a bunch of secretaries vetoed him. Prime Minister Narendra Modi has not held one meeting of the National Board of Wildlife in 7 years. Nobody cares. They still do not realize that the virus they deal with finds its origin in wildlife and gets released because of bad governance. They do not realize that our country is in dire straits, the economy a mess and life disrupted because of how we deal with the natural world and its myriad species. Prime Ministers, Ministers, political leaders, bureaucrats, business leaders, and society at large…. get educated fast as nature’s time bomb is ticking. This Corona virus is a warning. The next time Nature will let loose a virus that will be much worse.

This global pandemic could have come much earlier. It did not because of the tireless service of both Nature Warriors and Wildlife Warriors. These people come from all walks of life in village, town and city and spend their time passionately defending nature. Without them we would have no world to live in. They provide the most essential service to our nation but are least recognized or respected. More often than not they are relegated to oblivion. We need to remember all of them today and salute them. Who are these people? 150000 are forest officers and forest guards. Another 100000 are scientists, wildlife watchers, wildlife travel promoters, wildlife hotel creators, wildlife photographers, wildlife filmmakers, writers, conservationists, naturalists, village volunteers and NGO’S. We need to celebrate them and when we are out of this crisis the Prime Minister must do some brainstorming with them. You cannot run an economy without a healthy natural world. This virus reveals how easily economic collapse comes. Prime Ministers of the world will have to put forests, wildlife and the environment on the top of the agenda if you do not want to be plagued with more disease and death. Economic recoveries must be green in nature. No longer can we harm the natural wealth of our country or of any country. This virus has proven that a virus from Wuhan has swept the world. That is the interdependence of the world today. Heal nature must be our call sign. Our leadership across this planet must wake up to a new era where life, the economics of it, the design of it arenon-wasteful and non-exploitative, and led with a great respect for nature. To prevent global warming and climate change must be immediate priorities.  This virus has revealed how our planet is vulnerable and without healing nature we as a human race can die. Let’s learn our lessons and act hand in hand with the natural world. We need urgent global meetings of world leaders on forests and wildlife. We need global decisions to close wet markets and wildlife trade. We need to find noninvasive solutions to our future. Enough of diplomacy. It is time to call a spade a spade. Enough of G7 and G20 meets. They need to be re-strategized in the light of what has happened. Our mission today must be to create key strategies to protect natural eco -systems, our wilderness and all the life that abounds in it. If we do not achieve this mission, there is no hope of a future for our planet.