टाइगर गोल्ड : श्री वाल्मीक थॉपर की रणथम्भौर के बाघों पर एक नई पुस्तक

टाइगर गोल्ड : श्री वाल्मीक थॉपर की रणथम्भौर के बाघों पर एक नई पुस्तक

 

श्री वाल्मीक थॉपर ने दुर्लभ बाघ व्यवहार दर्शाने वाले छाया चित्रों के संग्रह के साथ अनोखी पुस्तक का प्रकाशन किया है. इस पुस्तक में बाघों के आपसी टकराव, शिकार, बच्चों के लालन पालन, प्रणय, बघेरे, भालू, लकड़बग्घा आदि के साथ बाघ के आपसी व्यवहार, आदि सभी विषयों पर अद्भुत छायांकन और लेखन से जानकारी साझा की है.

इस पुस्तक को हाथ में लेने के बाद इसके 336 पृष्ठों को एक बार में देखे बिना छोड़ पाना लगभग नामुमकिन है. मैंने भी इसके बनने में सहयोग दिया हैं अतः मुझे भी पुस्तक के मुख पृष्ठ पर स्थान मिला है, अतः इस पुस्तक को पहली बार देखना मेरे लिए एक गर्व और सुखद अहसास का क्षण रहा है . यह पुस्तक मुख्यतया श्री थॉपर के रणथम्भौर में दो लम्बे प्रवासों के दौरान प्राप्त हुए छाया चित्रों एवं अनेक बाघों के द्वारा प्रदर्शित किये गए व्यवहार की जानकारी पर आधारित है .  इस दौरान मुझे भी अधिकांश बार उनके साथ पार्क में जाने का मौका मिला था .

पुस्तक में मूलतः चार्जर (T120) नामक बाघ द्वारा प्रदर्शित किये गए व्यवहार को अत्यंत सूक्ष्मता से छायांकन किया गया एवं उतनी ही गहराई से श्री थॉपर द्वारा अपने दीर्घ अनुभव के माध्यम से उनका गहन विश्लेषण किया है. श्री थॉपर की पत्नी श्रीमती संजना कपूर ने भी इस दौरान लिए अनेकों छायाचित्र लिए जिनसे रिक्त स्थानों को सम्पूर्णता मिली है . असल में इन दो प्रवासों के 40 -50  दिनों तक उनके साथ रहने वाले सभी लोग एक टीम के रूप में कार्य करने लगे. जैसे अनोखे सामर्थ्य के धनी श्री सलीम अली के वन भ्रमण के लम्बे अनुभव और बाघों के व्यवहार को समझने वाले गाइड के तौर पर कुशल संयोजन किया है . शेरबाग होटल के दीर्घ अनुभवी ड्राइवर श्री श्याम ने अपनी मक्खन ड्राइविंग से उन दिनों की तप्ती धुप को  भी सहज बनाये रखा .

इस पुस्तक में भारत के जाने माने अन्य वन्यजीव छायाकारो ने भी अपने छाया चित्र इस पुस्तक के लिए श्री थापर को सहर्ष भेंट किये है . जिनमे है – श्री आदित्य सिंह , श्री कैरव इंजीनियर, श्री चन्द्रभाल सिंह, श्री जयंत शर्मा, श्री हर्षा नरसिम्हामूर्ति, श्री अरिजीत बनर्जी,  श्री उदयवीर सिंह, श्री अभिनव धर,श्री अभिषेक चौधरी आदि हैं. यह सभी पार्क में जाने का लम्बा अनुभव रखते हैं .

श्री थॉपर के अनुसार यह पुस्तक अपने इष्ट मित्रों और परिजनों के लिए ही प्रकाशित की गयी है शायद इसका  मतलब है यह बाजार, अमेज़ॉन और फ्लिपकार्ट पर यह उपलब्ध नहीं होगी. क्योंकि अभी तक श्री थापर का मानना है की मार्केटिंग आदि अत्यंत कष्ट पूर्ण कार्य है .
श्री थॉपर ने इस पुस्तक का नाम दिया है टाइगर गोल्ड यानी वह पुस्तक जिसमें बाघों ने अपने व्यवहार का सर्वोच्च
प्रदर्शन किया है और श्री थॉपर ने भी अपनी अर्धशती के लम्बे अनुभव के साथ इसका बखूबी संकलन किया है . अपने 70 वें जन्म वर्ष में उनका यह उत्साह अनुकरणीय है . आप यह पुस्तक मेरे व्यक्तिगत संग्रह में देखने के लिए सादर आमंत्रित हैं .

लम्पी गायों के लिए एक अत्यंत घातक रोग : क्या करे? कैसे बचाये अपने पशु धन को ?  

लम्पी गायों के लिए एक अत्यंत घातक रोग : क्या करे? कैसे बचाये अपने पशु धन को ?  

लम्पी स्किन डिजीज यानि गुमड़दार त्वचा रोग जो मवेशियों का एक संक्रामक वायरल रोग है, जो अक्सर एपिज़ूटिक रूप में होता है। एपिज़ूटिक यानि किसी पशु प्रजाति में  व्यापक रूप से कोई बीमारी का प्रसार।
आज कल राजस्थान में इसका अनियंत्रित फैलाव हो रहा हैं . इस रोग में त्वचा पर गांठे बनती है, जो जानवर के पूरे शरीर को ढक लेती है।

इसके प्रमुख प्रभावों में पाइरेक्सिया (तेज बुखार), एनोरेक्सिया (कमजोरी एवं वजन काम होना), डिस्गैलेक्टिया (दुग्ध उत्पादन में कमी वह अनिमितता) और निमोनिया (फेफड़ो में संक्रमण) शामिल हैं; कभी कभी घाव मुंह और ऊपरी श्वसन नली में भी पाए जाते हैं।

रोग की गंभीरता मवेशियों की नस्लों पर भिन्न तरह से असर दिखती है। इस रोग से ग्रस्त मवेशी कई महीनों तक गंभीर दुर्बलता का सामना करते हैं। इस से होने वाले घाव त्वचा को स्थायी रूप से नुकसान पहुंचाते हैं।

अब तक इस रोग के फैलने का तरीका स्पष्ट रूप से ज्ञात नहीं है। माना जाता हैं की कीट इसके फैलने के मुख्य वजह हैं।

यह रोग उप-सहारा अफ्रीका तक ही सीमित रहा है, परन्तु हाल ही में मिस्र और इज़राइल में एपिज़ूटिक रूप से प्रकट हुआ था। रेगिस्तान से लेकर सम शीतोष्ण घास के मैदानों और सिंचित भूमि तक  के जीवों में संचरण पाया गया है।
राजस्थान में वन्य जीवन में भी इसका प्रसार देखा गया है -जिनमें एक चिंकारा एंटीलोप है जो राजस्थान के मरुस्थली भाग में प्रभावित हुआ है, परन्तु बाघ एवं अन्य मांसाहारी प्राणियों में अभी तक किसी प्रकार का कोई प्रभाव परिलक्षित नहीं हुआ है I
विभिन्न एंटीलोप एवं डियर प्रजाति के प्राणियों पर नजर रखना आवश्यक होगा I

बचाव ही उपचार है 


* ज्यादातर देसी गौवंश को प्रभावित कर रही हैं
*जब मक्खी या मच्छर संक्रमित पशु को काट कर स्वस्थ पशु को काटती हैं तो संक्रमण फैलता है या फिर
स्वस्थ पशु के  बीमार पशु के संपर्क में आने से भी ये रोग फेल सकता है ( कोरोना की तरह वायरस जनित रोग है)
* इनक्यूबेशन(संक्रमण लगने के बाद बीमारी के लक्षण दिखाई देने तक का समय) पीरियड 4से14 दिन तक का हो सकता हैं

बीमारी के मुख्य लक्षण:-
– शुरुवाती दिनों में तेज बुखार रहता है।
कुछ पशुओं में फेफडो पर असर भी हो सकता है,जिससे स्वास लेने में कठिनाई होती है ।
-शरीर पर बादाम / नीम की गुटली के आकार की कठोर गांठे निकल आती हैं।
-इन गांठों के फूटने पर घाव पड़ जाते हैं
– कुछ पशु लंगड़ा कर चलते है एवम  पैरो में सूजन भी हो सकती  हैं
-मुंह से लार व नाक से पानी भी गिर सकता हैं
-पशु को भूख कम लगती हैं
उत्पादन कम हो जाता हैं
-मादा पशुओं में गर्भपात भी हो सकता हैं

 

बीमारी के लक्षण दिखते ही अपने बीमार पशु को स्वस्थ पशुओं से अलग कर तुरंत नजदीक के पशु चिकित्सा केंद्र से संपर्क कर उचित इलाज करावे ।
* यदि नजदीक कोई पशु चिकित्सा कर्मी नही हो तो बुखार उतारने की मेलोनेक्स प्लस गोली दो दो  गोलीबड़े गौवंश के लिए आधी आधी गोली छोटो बछड़ों के लिए रोटी के साथ  दिन में दो बार पांच दिन तक ।
–  शरीर  में आगे संक्रमण रोकने के लिए सुल्फाडिमिडिन + ट्राई मेथोप्रिम की दो दो गोली बड़े पशु को व आधी आधी छोटे पशु को सावधानी से दिन में दो बार पांच दिन तक देवें।
यदि पशु दो दिन तक चारा पानी नहीं करें तो तुरंत पशु चिकित्सक /चिकित्सा कर्मी से संपर्क कर उचित इलाज करावे,जिसमे कि वो लोग  एंटीबायोटिक,एंटी पायरेटिक, मल्टीविटामिन आदि इंजेक्शन लगा कर बीमारी को बिगड़ने से रोकने की कोशिश करते हैं इनमे मुख्य  ये दवाइयां भी दी जा सकती हैं:-

 Inj.Beekom L 10ml im
For three days
Tab.Melonex plus 1 twice daily for 3days
Inj.Fortivir 30ml im (if needed)

यदि घाव हो तो घाव को लाल दवा के  घोल से धोकर  टॉपीक्योर स्प्रे या अन्य उपलब्ध रोगाणु नाशक दवा  सुबह शाम लगना चाहिए।
आटे पानी का घोल बनाकर जबरदस्ती नाल नही देवे,कई बार नाल का पानी स्वास नली में जाकर दूसरी जानलेवा समस्या पैदा कर सकता है।
बीमार पशु को बाहर ज्यादा दूर नहीं जाने दे,,दिन में चार पांच बार बाजरे की रोटी,,आंवला,हल्दी तेल का लड्डू बना कर दिया जा सकता है,,

* यदि आस पास लंपी बीमारी नहीं देखी गई हो तो स्वस्थ गौवंश के  बचाव हेतु उपलब्ध लंपी वैक्सीन वैक्सीन जरूर करावे,,बीमारी के लक्षण आने का इंतजार नही करें।
साथ ही यदि लंपी का टीका आपके क्षेत्र में उपलब्ध नहीं हो पाया हो तो बकरी प्रजाति के माता रोग से बचाव का टीका (गोट पॉक्स) की वैक्सीन 3से5 एमएल (सब/ कट) पशु चिकित्सा कर्मी से मंगवाकर लगवाए ताकि कुछ हद तक बीमारी के प्रकोप को कम किया जा सकेगा ।
ये भी ध्यान रहे कि टीका लगाने के बाद भी इम्यूनिटी (बीमारी से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता) बनाने में 15से 25 दिन लग सकते हैं,इसलिए सभी सावधानियां निरंतर जारी रखें।

बीमारी ग्रस्त  पशुओ की अच्छी देख रेख की जाय तो बिना इलाज भी ज्यादातर पशु ठीक हो सकते हैं
लंपी स्किन डिजीज में मृत्यु दर केवल  05% से 10%ही है  परंतु क्षेत्र में संक्रमण होने की स्तिथि में बचाव के उपाय नही करने पर संक्रमित होने की दर 80% होती हैं

**पशु पालकों से अपील :- अपने स्वस्थ पशुओं का वर्षा ऋतु में होने वाले अन्य जानलेवा बीमारियां जैसे इफेमेरल फेवर (3डे शिकनेस), गल घोंटू(HS),लंगड़ा बुखार(BQ) आदि से बचाए ।
HS एवम BQ रोग का टीका पशु पालन विभाग के केंद्रों में उपलब्ध हैं, अपने पशु को  नजदीक के पशु चिकित्सा केंद्र ले जाकर टीकाकरण अवस्य करवाए।
– अपने पशु बाड़ो को साफ सुधरा रखे,,जिससे कि मक्खी मच्छर आकर्षित नहीं होंगे.
– गौवंश को  नीम के पत्तो व फेटकरी के 1%घोल के पानी को उबाल कर वापस ठंडा कर  स्वस्थ पशु को सुबह नहलाये शाम को नही ।
– फिनाईल का 5% घोल बनाकर पशु के ऊपर पोछा फेरे ताकि मक्खी मच्छर दूर रहेंगे।
**लंपी बीमारी से ग्रस्त गौवंश का दूध गर्म करके काम में ले सकते हैं,,ये बीमारी इंशानो में कभी नही फैलती।

** अधिक जानकारी के लिए नजदीक के पशु चिकित्सा केंद्र/ पशु पालन विभाग के कंट्रोल रूम से या मेरे से ( डॉ.श्रवणसिंह राठौड़ 9829116064)भी संपर्क किया जा सकता है

भींग: एक निर्भीक बीटल

भींग: एक निर्भीक बीटल

भीं भीं भीं ””””’ की निरंतर आवाज करते हुए यह भारी भरकम बीटल निर्भीक तौर पर दिन में उड़ते हुए दिख जाते हैं।स्टेरनोसरा क्रिसिस (Sternocera chrysis) को राजस्थान में भींग कहा जाता हैं।  इनका ऊपरी खोल या एलेंट्रा भूरे रंग का होता हैं परन्तु प्रोनोटुं एक हरे चमकीले रंग का होता हैं, यह एक ज्वेल बीटल हैं जो अद्भुत चमकीले रंग के लिए जाने जाते हैं। यह रंग इन्हें अपने शत्रुओं के लिए अदृश्य बनाने में मददगार होते हैं।  रंग हालाँकि आकर्षण के लिए होता हैं परन्तु इनकी अनोखी चमक जीवों को चौंधिया देती हैं और यह अपने शत्रुओं से अपना बचाव कर पाते हैं।

बीटल एक प्रकार के कीट हैं,  जिनके कठोर पंखों के जोड़े को विंग-केस या एलीट्रा कहा जाता है, जो इन्हें अन्य कीड़ों से अलग करता है। यह उड़ने की बजाय अंदर के मुलायम पंख अथवा शरीर की रक्षा में काम आते हैं।  बीटल की लगभग 400,000 वर्णित प्रजातियों हैं यह सम्पूर्ण ज्ञात कीटों का लगभग 40% और सभी ज्ञात प्राणियों का 25% हैं।

पुराने ज़माने में राजस्थान में छोटी लड़कियां इनके चमकीले खोल का इस्तेमाल अपनी गुड़ियों को सजाने में करती थी, यह खोल अक्सर इनके मरने के बाद इधर – उधर गिरे हुए मिल जाते थे।
बारिश के समाप्त होने के दिनों में जब सूरज सर पर हो तब यह उड़ते हुए जमीं पर उतरते हैं और जमीन में अंडे देते हैं, यह उस पेड़ के नजदीक अंडे डालते हैं जो इनके लार्वों को भोजन प्रदान कर सके। कैसिया फिस्टुला या अमलताश के पेड़ इनके होस्ट प्लांट माने जाते हैं। अमलताश के पेड़ों के नीचे यह अपने पीछे के भाग से कई बार अंडे देता हैं एवं इन के लार्वों की वजह से यह पेड़ मारे भी जाते हैं, अथवा कमजोर हो जाते हैं। क्योंकि यह पेड़ो की मुख्य जड़ो को खोखला कर उसको नुकसान पहुंचाते हैं।

यदपि भींग को प्रकृति में हानिकारक कीट के रूप में देखने की आवश्यकता नहीं हैं, इसकी अपनी एक भूमिका हैं जो यह निभाते हैं, और वह हैं पेड़ों के संख्या को नियंत्रित करना।

राजस्थान का एक सुनहरा  बिच्छू : बूथाकस अग्रवाली (Buthacus agarwali)

राजस्थान का एक सुनहरा बिच्छू : बूथाकस अग्रवाली (Buthacus agarwali)

राजस्थान के सुनहरे रेतीले धोरों पर मिलने वाला  एक सुनहरा बिच्छू जो मात्र यहीं पाया जाता हैं …………………………………..

राजस्थान के रेगिस्तान में ऐसे तो कई तरह के भू-भाग है, परन्तु सबसे प्रमुख तौर पर  जो जेहन में आता है वह है सुनहरे रेत के टीले या धोरे। इन धोरो पर एक खास तरह का बिच्छू रहता है- जिसका नाम है- बूथाकस अग्रवाली (Buthacus agarwali)। मेरे लिए यह इस लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि मेरे एक साथी श्री अमोद जामब्रे ने 2010 में इसकी खोज की थी। यहाँ खोज से मतलब है, पहली बार जंतु जगत के सामने इस प्रजाति के अस्तित्व के बारे में जानकारी रखी थी। उन्हें यह बिच्छू उनके मित्र श्री ईशान अग्रवाल ने ही संगृहीत करके दिया था जो राजस्सथान के जैसलमेर जिले के सगरो गांव से मिला था।श्री अमोद ने इसे अपने इसी मित्र के उपनाम से नाम भी दिया – अग्रवाली।

राजस्थान  के  कठोर वातावरण को दर्शाते  हुए  एक सटीक कविता है |

लू री लपटा लावा लेवे |
धोरा में तू किकर जीवै ?
कियाँ रेत में तू खावै पीवै ?
(एक अज्ञात राजस्थानी कवि की रचना)

खोज कर्ता :- श्री अमोद जामब्रे

यह बिच्छू आपको राजस्थान के मुलायम रेत वाले धोरों पर ही मिलेगा, इन धोरों पर लगभग उसी रंग के यह मध्यम आकार के बिच्छू शाम को सूरज ढलते ही सक्रिय हो जाते है और अपने लिए भोजन तलाशते है। पूरे दिन यहां तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाता हैं अतः इन्हें छुप कर रहना पड़ता हैं। इनकी एक विशेषता यह है  की यह धोरों के सबसे मुलायम रेत वाले हिस्से पर रहता है।त्वरित रूप से अपने आगे के तीनो पांवों की जोड़ियों से रेत निकालते हुए अपने चतुर्थ पांव की जोड़ी से मिट्टी को तेजी से बाहर निकालता है (जैसे अक्सर कोई ततैया करता है) और एक छोटा सा कोटर बना कर छुप कर बैठ जाता है।   और तब तक इंतज़ार करता है, जब तक कोई शिकार नहीं आ जाये जिसे वह अपना भोजन बना सके । यदि यह अधिक धोरों पर अधिक विचरण कर अपना शिकार खोजेगा तो खुद का भी इसे किसी शिकारी द्वारा पकड़े जाने का खतरा रहेगा। दिन उगते ही यह एक कोटर को और गहरा करके रेत में समा जाता हैं।

अमोद अपने आलेख में लिखते हैं की यह जीनस बूथाकस अफ्रीका में मिलता हैं परन्तु इस खोज के साथ यह जीनस भारत में पहली बार पाया गया हैं। साथ ही यह प्रजाति राजस्थान की एक एंडेमिक या स्थानिक प्रजाति हैं जो मात्र राजस्थान में ही मिलती हैं।

Citation:
Amod Zambre and  R Lourenço (Feb 2011), A NEW SPECIES OF BUTHACUS BIRULA, 1908 (SCORPIONES, BUTHIDAE) FROM INDIA,   115 Boletín de la Sociedad Entomológica Aragonesa, nº 46 (2010) : 115 -119.

दुनिया कि सबसे छोटी बिल्ली एवं राजस्थान में उसका वितरण

दुनिया कि सबसे छोटी बिल्ली एवं राजस्थान में उसका वितरण

हाल ही में एक अध्ययन से खुलासा, कि राजस्थान के कई जिलों में उपस्थित है दुनियाँ की सबसे छोटी बिल्ली …

दुनियाँ की सबसे छोटी बिल्ली रस्टी-स्पोटेड कैट (Prionailurus rubiginosus), का वितरण क्षेत्र अन्य बिल्ली प्रजातियों की अपेक्षाकृत सीमित है। यह बिल्ली भारत, नेपाल एवं श्रीलंका में पायी जाती है। मनुष्यों की बढ़ती आबादी तथा जंगलों के विनाश व खंडन के कारण आज यह खतरे के निकट (Near Threatened) है। भारत में इसकी उपस्थिति राजस्थान के अलावा गुजरात, हरियाणा उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, ओडिशा, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश से दर्ज की गयी है। राजस्थान में इसकी वितरण सीमा को समझना महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत में यह राज्य इसकी वितरण सीमा का पश्चिमी छोर है। वर्ष 2020 से पहले इसे राजस्थान के कुल 34 जिलों में से केवल पांच से दर्ज किया गया था। राजस्थान के दक्षिणी छोर पर स्थित उदयपुर जिले में 1994 में रस्टी-स्पॉटेड कैट की प्रथम उपस्थिति दर्ज की गयी थी। इसके बाद कुल 86,205 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले चार और जिलों; अलवर, सवाई माधोपुर, बूंदी और भरतपुर से इसे दर्ज किया गया है और शेष जिलों में इसकी उपस्थिति के बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं था।

वैज्ञानिकों और प्रकृतिवादियों के लिए बहुत ही ख़ुशी की बात यह है की हाल ही में रस्टी-स्पॉटेड कैट के वर्तमान वितरण क्षेत्र पर एक अध्ययन किया है, जो की  “Journal of Threatened Taxa” में प्रकाशित हुआ है, इसमें यह देखा गया है, कि पिछले 20 वर्षों (2000 से 2020) में रस्टी-स्पॉटेड कैट की राजस्थान में उपस्थिति कहाँ-कहाँ रही है (Sharma and Dhakad 2020)?

रस्टी-स्पॉटेड कैट, आकार में बिल्ली कुल कि सबसे छोटी सदस्य है। इनके भूरे फर पर कत्थई-भूरे-लाल रंग के धब्बे और बादामी रंग की लकीरें होती है। इसकी आँखों के ऊपर चार काली रेखाएं होती हैं जिनमें से दो गर्दन के ऊपर तक फैली होती हैं। सिर के दोनों तरफ छः गहरे रंग कि धारियाँ होती हैं जो गालों और माथे तक फैली जाती हैं। इसकी ठुड्डी, गला, पैरों का अंदरूनी भाग और पेट मुख्यतः सफ़ेद होते हैं जिस पर छोटे भूरे धब्बे होते हैं। इसके पंजे और पूंछ एक समान लाल भूरे रंग के होते हैं। यह लगभग 35 से 48 सेंटीमीटर तक लम्बी होती है तथा इसका वज़न 1.5 किलो तक हो सकता है।

रस्टी-स्पोटेड कैट कैमरा ट्रैप तस्वीर (फोटो: टाइगर वॉच)

मनुष्यों की बढ़ती जनसंख्या और वनों के कटाव एवं विखंडन के कारण रस्टी-स्पॉटेड कैट की स्थिति प्रभावित हुई है। वर्ष 2016 में इसे IUCN की रेड लिस्ट में खतरे के निकट (Near Threatened) श्रेणी में रखा गया। इस बिल्ली प्रजाति के वितरण क्षेत्र व अन्य पहलुओं पर अध्ययन बहुत ही सीमित है। इसी प्रयास में, राजस्थान में इसकी उपस्थिति जानने हेतु इस अध्ययन के लेखकों ने राज्य से पिछले 20 वर्षों की सभी सूचनाएं; प्रत्यक्ष अवलोकन, सड़क दुर्घटना में मारे गए, विपदा में फंसे बचाये बिलौटे तथा कैमरा ट्रैप में दर्ज हुए प्राणियों के चित्र एकत्रित करने का प्रयास किया, तथा इन सभी सूचनाओं को नक़्शे पर दर्शाया और वितरण क्षेत्र एवं सीमा का मूल्यांकन भी किया।

अध्ययन के लेखकों ने वर्ष 2000 से शुरू होकर मार्च 2020 तक 30 अलग-अलग स्थानों से कुल 51 सूचनाएं एकत्रित की। अध्ययन द्वारा संगृहीत आंकड़ों के संकलन से पता चलता है कि रस्टी-स्पॉटेड कैट राजस्थान के दस और जिलों; अजमेर, सिरोही, कोटा, धौलपुर, करौली, चित्तौड़गढ़, जयपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ और पाली में भी उपस्थित है, तथा इसकी वितरण सीमा 71,586 वर्ग किमी क्षेत्र तक है जो मुख्यरूप से अरावली एवं विंध्यन पर्वतमाला तथा पूर्वी राजस्थान के अर्ध-शुष्क क्षेत्र हैं। इसे विभिन्न प्रकार के आवासों में देखा गया जैसे कि कांटेदार और शुष्क पर्णपाती वन, मानव बस्तियों के बाहरी इलाकों में, कंदरा क्षेत्र (ravines), बगीचे, वनों के निकट स्थित कृषि क्षेत्र एवं मानव आबादियों के पास स्थित वन कुंजों, सागवान वन और अर्ध-सदाबहार चौड़ी पत्ती के पहाड़ी वन क्षेत्र।

 राजस्थान में रस्टी-स्पोटेड कैट का वितरण क्षेत्र

सभी सूचनाओं की समीक्षा करने पर यह ज्ञात होता है कि रस्टी स्पॉटेड कैट अरावली पर्वत श्रृंखला में व्यापक रूप से वितरित है। यदि हम ऊंचाई के दृष्टिकोण से बात करते हैं, तो इसे अरावली हिल्स के सबसे ऊंचे स्थान “माउंट आबू” तक वितरित है।

सभी सूचनाओं कि समीक्षा से यह भी पता चलता है कि यह बिल्ली पूर्णरूप से निशाचर है क्योंकि इसे मुख्यतः अँधेरे के समय देर शाम और शुरुआती सुबह में ही देखा गया है। वर्षा ऋतु में इसे कई बार वन क्षेत्रों कि दिवार एवं पैरापेट दीवार पर भी बैठा देखा गया है, जिसमें से एक बार तो इसे और तेंदुए को लगभग 50 मीटर कि दूरी पर एक साथ बैठे देखा गया है। एक अवसर पर, बिल्ली को रौंज (Acacia leucophloea) के वृक्ष पर देखा गया और पेड़ के कांटे होने के बावजूद भी बिल्ली को एक शाखा पर आराम से बैठे देखा गया था। इन अवलोकनों से बिल्ली के अर्ध-वृक्षीय स्वभाव के बारे में पता चलता है।

अध्ययन में अरावली पर्वतमाला के पश्चिमी भाग से कोई भी रिकॉर्ड नहीं मिला जो कि राजस्थान का थार मरुस्थलीय भाग है। थार में बिल्ली की अनुपस्थिति के लिए उच्च तापमान और आवास प्रकार में अंतर को मुख्य कारण प्रतीत होते हैं। इसके अलावा अरावली के पूर्व में आने वाले कुछ जिलों जैसे कि दौसा, टोंक, राजसमंद, भीलवाड़ा, बारां और झालावाड़ में शुष्क पर्णपाती वन होते हुए भी कोई रिकॉर्ड नहीं मिला है। इन जिलों में उपयुक्त आवासों में कैमरा ट्रैप विधि को अपनाने की जरुरत है ताकि इस प्रजाति की उपस्थिति सम्बन्धी ठोस जानकारी मिल सके।

सड़क दुर्घटना में मारी गई रस्टी-स्पोटेड कैट की तस्वीर (फोटो: श्री नीरव भट्ट)

अध्यन्न के दौरान छह बार बिलौटे देखे गए। वयस्क बिल्लियां 45 बार दर्ज की गयी जिनमें 41 जीवित तथा चार सड़क दुर्घटना में मृत पायी गई। विशेष रूप से रात के समय, बिल्ली को सड़क के आसपास विचरण करते हुए देखा गया, सडकों पर विचरण करने से इस बिल्ली के वाहनों के चपेट में आने का खतरा बढ़ जाता है। रस्टी-स्पोटेड कैट को सड़क दुर्घटना में शिकार होने से रोकने के लिए महत्वपूर्ण निवारक उपायों की आवश्यकता है। जैसे कि पैट्रोलिंग स्टाफ को सड़क पर मरे (Roadkill) एवं आसपास निस्तारित किए गए मवेशियों के शवों की जांच करने और जंगलों से गुजरने वाली सड़कों से उनको हटवाने का उचित प्रावधान किया जाना चाहिए। इस प्रजाति के संरक्षण हेतु सडकों के किनारे स्थित होटलों और रेस्तरां में उचित अपशिष्ट निपटान प्रणाली, सडकों पर उचित अंतराल पर अंडरपास की व्यवस्था, सड़कों से दूर पानी की सुविधा, और ड्राइवरों के लिए गति संकेतों, द्वारा न केवल रस्टी-स्पोटेड कैट को दुर्घटनाओं से बचा सकते हैं बल्कि सड़कों को पार करने वाली कई अन्य प्रजातियों को भी बचाया जा सकता है।

राजस्थान में रस्टी-स्पोटेड कैट अभी भी कम ज्ञात प्रजाति है। वन विभाग को इस बिल्ली की सही पहचान करने के लिए वन कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने और गणना के आंकड़ों को शामिल करने की पहल करनी चाहिए। इस प्रजाति की स्थिति जानने के लिए राज्य के अन्य जिलों में गहन कैमरा ट्रैप अध्ययन की आवश्यकता है। रस्टी-स्पॉटेड कैट के दीर्घकालीन बचाव हेतु वन संरक्षण सबसे जरूरी है। राजस्थान में रस्टी-स्पॉटेड कैट की संख्या निर्धारण हेतु संरक्षित क्षेत्रों के बाहर इसके सर्वेक्षण की पुरजोर अनुशंषा करते हैं।

सन्दर्भ:

  • Cover photo credits: Dr. Dharmendra Khandal
  • Sharma, S.K. & M. Dhakad (2020). The Rusty-spotted Cat Prionailurus rubiginosus (I. Geoffroy Saint-Hillaire, 1831) (Mammalia: Carnivora: Felidae) in Rajasthan, India – a compilation of two decades. Journal of Threatened Taxa 12(16): 17213–17221. https://doi.org/10.11609/jott.6064.12.16.17213-17221

लेखक:

Ms. Meenu Dhakad (L): She has worked with Tiger Watch as a conservation biologist after completing her Master’s degree in the conservation of biodiversity. She is passionately involved with conservation education, research, and community in the Ranthambhore to conserve wildlife. She has been part of various research projects of the Rajasthan Forest Department.

Dr. Satish Kumar Sharma (R): An expert on Rajasthan Biodiversity, he retired as Assistant Conservator of Forests, with a Doctorate in the ecology of the Baya (weaver bird) and the diversity of Phulwari ki Nal Sanctuary. He has authored 600 research papers & popular articles and 10 books on nature.