सियार (Golden Jackal) जिसे राजस्थानी स्थानीय भाषा में “गेदुआ” कहा जाता है अपने आहार के अनुसार अवसरवादी होते हैं , प्रायः मरे हुए जानवरों को तो खाते ही हैं लेकिन कभी मौका मिले तो छोटे जानवरों का शिकार भी कर लेते हैं। इनका आहार बहुत विविध होता है जिसमें ये कई प्रकार के जीवों जैसे चिंकारा, खरगोश और तीतर-बटेर जैसे ज़मीनी पक्षियों के साथ-साथ गावों के आसपास रहकर बकरियों, भेड़ों और बछड़ों जैसे छोटे पशुधन का शिकार कर भी खा जाते हैं। ये जोड़ों में रहते हैं लेकिन कई बार जब अवयस्क बच्चे भी साथ होते हैं तो एक छोटा समूह भी बन जाता है। यह साथ में भोजन करते हैं परन्तु कई बार दूसरे समूह के सदस्य पास आने पर अपने भोजन को बचाने के लिए उनसे लड़ाई भी हो जाती है।ऐसी ही
एक घटना मैंने भी देखी…
उस दिन मैं हमेशा की तरह गिद्ध देखने के लिए निकला और कुछ दुरी पर मैंने देखा की कुछ गिद्ध और 5-6 अवयस्क सियार जो कि एक मृत गाय के शव को खा रहे थे।
थोड़ा ही समय बीता था कि कुछ वयस्क सियार वहां आ गए और मुख्य संघर्ष शुरू हो गया।
कुछ समय के भीतर व्यस्क सियारों ने सभी गिद्धों को वहां से उड़ा दिया, परन्तु अवयस्क सियार अपने भोजन को बचाने के लिए संघर्ष करने लगे। कुछ समय संघर्ष चला परन्तु अवयस्क सियार हार गए और उन्हें वहां से जाना पड़ा।
ये तस्वीरें उनमें से कुछ हैं, जो मूल रूप से भोजन के लिए लड़ाई और अवयस्क सियारों के ऊपर वयस्कों के प्रभुत्व को दर्शा रही हैं।
The photographer clearly made extra effort to capture this photo from the perfect angle. This perfectly-timed photo looks like it took a lot of patience and skill – definitely the work of a pro!
Wonderful job.
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Good Job Mr Anirudh Singh..keep doing good work..best of luck..