विकास के साथ प्रकृति संरक्षण: बीकानेर राज्य
ये कहानी है राजस्थान के मरुस्थल क्षेत्र में स्थित एक जिले – बीकानेर की जो कभी एक स्वतंत्र राज्य था, जिसके विकासोन्मुखी शासक ने वर्षो पहले पर्यावरण संरक्षण के प्रति जिम्मेदारी की एक अनूठी मिसाल पेश की …
बीकानेर के महाराजा श्री गंगा सिंह जी को आधुनिक युग के “भागीरथ” के रूप में भी जाना जाता है। सन 1890 के उत्तरार्ध में जब महाराजा ने अपने राज्य का कार्यभार संभाला, तब बीकानेर रेलवे की कुल लंबाई केवल 87 मील ही थी। परन्तु 1936 में उनके प्रयासों से यह लम्बाई बढ़ा कर 568 मील कर दी गई, जो की बड़ौदा को छोड़कर किसी भी अन्य भारतीय राज्य से बड़ी थी। साथ ही यह किसी भी भारतीय राज्य की तुलना में सबसे अधिक आर्थिक रूप से निपुण और कुशलता से चलने वाली प्रणाली थी। उस समय जब बीकानेर रेलवे तेजी से विकसित हो रही थी तब बागसेऊ के ठाकुर सर सादुल सिंह जी रेल मंत्री थे।
शुरुआत में बीकानेर और जोधपुर रेलवे एक संयुक्त कार्य प्रणाली हुआ करती थी, समय के साथ बीकानेर रेलवे मैत्रीपूर्ण तरीके से अलग हो गया। इसके पश्चात बीकानेर रेलवे ने शहर के पास एक लोकोमोटिव और रेल मरम्मत कार्यशाला भी खोल ली, जिससे बीकानेर रेलवे की विकास के प्रति दूरदर्शिता दिखाई देती है।
वहीँ दूसरी ओर जब बीकानेर को जोधपुर रेलवे के साथ जोड़ने के लिए रेलवे लाइन बिछाई जा रही थी, तब देशनोक को भी एक स्टेशन के रूप में शामिल करने का निर्णय लिया गया, ताकि यात्री रेल सेवा का लाभ उठा कर करणी माता मंदिर के दर्शन कर सके। परन्तु इस विकास की एक कीमत भी थी और वो थी शुष्क रेगिस्तान में वर्षों से विकसित किये गए “ओरण” (Sacred groves) के हज़ारों पेड़। क्यूंकि ट्रैन की पटरियों को बिछाने से पहले मंदिर के “ओरण” से लगभग 8,000 पेड़ों को काटने की आवश्यकता थी, अतः कार्य को शुरू करने से पूर्व, एक पूजा की गई तथा करनी माता से पेड़ काटने की अनुमति भी ली गई थी।
मेरी माता श्रीमती देव कुमारी जी इस बात की प्रत्यक्ष साक्षी है और वह आज भी यह बताती है की जब देशनोक में ओरन से 8,000 पेड़ काटे गए थे तब मुआवजे के रूप में 100 रुपये प्रति पेड़ दिए गए और इन 8000 पेड़ों को दूसरे क्षेत्र में लगाने के लिए बराबर जमीन भी दी गई। यह घटना आज से लगभग 80 वर्ष पुरानी है परन्तु आज के समय में भी संरक्षण की एक मिसाल हैI
जबकि उस समय में बीकानेर राज्य बड़े पैमाने पर अकाल से उभर रहा था, ऐसे विकट समय में भी पर्यावरण के संरक्षण को पूर्ण महत्व दिया गया था।
सन्दर्भ : के एम, पणिक्कर 1937, महामहिम बीकानेर के महाराजा का चित्रण पुस्तक