लम्पी गायों के लिए एक अत्यंत घातक रोग : क्या करे? कैसे बचाये अपने पशु धन को ?
लम्पी स्किन डिजीज यानि गुमड़दार त्वचा रोग जो मवेशियों का एक संक्रामक वायरल रोग है, जो अक्सर एपिज़ूटिक रूप में होता है। एपिज़ूटिक यानि किसी पशु प्रजाति में व्यापक रूप से कोई बीमारी का प्रसार।
आज कल राजस्थान में इसका अनियंत्रित फैलाव हो रहा हैं . इस रोग में त्वचा पर गांठे बनती है, जो जानवर के पूरे शरीर को ढक लेती है।
इसके प्रमुख प्रभावों में पाइरेक्सिया (तेज बुखार), एनोरेक्सिया (कमजोरी एवं वजन काम होना), डिस्गैलेक्टिया (दुग्ध उत्पादन में कमी वह अनिमितता) और निमोनिया (फेफड़ो में संक्रमण) शामिल हैं; कभी कभी घाव मुंह और ऊपरी श्वसन नली में भी पाए जाते हैं।
रोग की गंभीरता मवेशियों की नस्लों पर भिन्न तरह से असर दिखती है। इस रोग से ग्रस्त मवेशी कई महीनों तक गंभीर दुर्बलता का सामना करते हैं। इस से होने वाले घाव त्वचा को स्थायी रूप से नुकसान पहुंचाते हैं।
अब तक इस रोग के फैलने का तरीका स्पष्ट रूप से ज्ञात नहीं है। माना जाता हैं की कीट इसके फैलने के मुख्य वजह हैं।
यह रोग उप-सहारा अफ्रीका तक ही सीमित रहा है, परन्तु हाल ही में मिस्र और इज़राइल में एपिज़ूटिक रूप से प्रकट हुआ था। रेगिस्तान से लेकर सम शीतोष्ण घास के मैदानों और सिंचित भूमि तक के जीवों में संचरण पाया गया है।
राजस्थान में वन्य जीवन में भी इसका प्रसार देखा गया है -जिनमें एक चिंकारा एंटीलोप है जो राजस्थान के मरुस्थली भाग में प्रभावित हुआ है, परन्तु बाघ एवं अन्य मांसाहारी प्राणियों में अभी तक किसी प्रकार का कोई प्रभाव परिलक्षित नहीं हुआ है I
विभिन्न एंटीलोप एवं डियर प्रजाति के प्राणियों पर नजर रखना आवश्यक होगा I
बचाव ही उपचार है
* ज्यादातर देसी गौवंश को प्रभावित कर रही हैं
*जब मक्खी या मच्छर संक्रमित पशु को काट कर स्वस्थ पशु को काटती हैं तो संक्रमण फैलता है या फिर
स्वस्थ पशु के बीमार पशु के संपर्क में आने से भी ये रोग फेल सकता है ( कोरोना की तरह वायरस जनित रोग है)
* इनक्यूबेशन(संक्रमण लगने के बाद बीमारी के लक्षण दिखाई देने तक का समय) पीरियड 4से14 दिन तक का हो सकता हैं
बीमारी के मुख्य लक्षण:-
– शुरुवाती दिनों में तेज बुखार रहता है।
कुछ पशुओं में फेफडो पर असर भी हो सकता है,जिससे स्वास लेने में कठिनाई होती है ।
-शरीर पर बादाम / नीम की गुटली के आकार की कठोर गांठे निकल आती हैं।
-इन गांठों के फूटने पर घाव पड़ जाते हैं
– कुछ पशु लंगड़ा कर चलते है एवम पैरो में सूजन भी हो सकती हैं
-मुंह से लार व नाक से पानी भी गिर सकता हैं
-पशु को भूख कम लगती हैं
उत्पादन कम हो जाता हैं
-मादा पशुओं में गर्भपात भी हो सकता हैं
बीमारी के लक्षण दिखते ही अपने बीमार पशु को स्वस्थ पशुओं से अलग कर तुरंत नजदीक के पशु चिकित्सा केंद्र से संपर्क कर उचित इलाज करावे ।
* यदि नजदीक कोई पशु चिकित्सा कर्मी नही हो तो बुखार उतारने की मेलोनेक्स प्लस गोली दो दो गोलीबड़े गौवंश के लिए आधी आधी गोली छोटो बछड़ों के लिए रोटी के साथ दिन में दो बार पांच दिन तक ।
– शरीर में आगे संक्रमण रोकने के लिए सुल्फाडिमिडिन + ट्राई मेथोप्रिम की दो दो गोली बड़े पशु को व आधी आधी छोटे पशु को सावधानी से दिन में दो बार पांच दिन तक देवें।
यदि पशु दो दिन तक चारा पानी नहीं करें तो तुरंत पशु चिकित्सक /चिकित्सा कर्मी से संपर्क कर उचित इलाज करावे,जिसमे कि वो लोग एंटीबायोटिक,एंटी पायरेटिक, मल्टीविटामिन आदि इंजेक्शन लगा कर बीमारी को बिगड़ने से रोकने की कोशिश करते हैं इनमे मुख्य ये दवाइयां भी दी जा सकती हैं:-
Inj.Beekom L 10ml im
For three days
Tab.Melonex plus 1 twice daily for 3days
Inj.Fortivir 30ml im (if needed)
यदि घाव हो तो घाव को लाल दवा के घोल से धोकर टॉपीक्योर स्प्रे या अन्य उपलब्ध रोगाणु नाशक दवा सुबह शाम लगना चाहिए।
आटे पानी का घोल बनाकर जबरदस्ती नाल नही देवे,कई बार नाल का पानी स्वास नली में जाकर दूसरी जानलेवा समस्या पैदा कर सकता है।
बीमार पशु को बाहर ज्यादा दूर नहीं जाने दे,,दिन में चार पांच बार बाजरे की रोटी,,आंवला,हल्दी तेल का लड्डू बना कर दिया जा सकता है,,
* यदि आस पास लंपी बीमारी नहीं देखी गई हो तो स्वस्थ गौवंश के बचाव हेतु उपलब्ध लंपी वैक्सीन वैक्सीन जरूर करावे,,बीमारी के लक्षण आने का इंतजार नही करें।
साथ ही यदि लंपी का टीका आपके क्षेत्र में उपलब्ध नहीं हो पाया हो तो बकरी प्रजाति के माता रोग से बचाव का टीका (गोट पॉक्स) की वैक्सीन 3से5 एमएल (सब/ कट) पशु चिकित्सा कर्मी से मंगवाकर लगवाए ताकि कुछ हद तक बीमारी के प्रकोप को कम किया जा सकेगा ।
ये भी ध्यान रहे कि टीका लगाने के बाद भी इम्यूनिटी (बीमारी से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता) बनाने में 15से 25 दिन लग सकते हैं,इसलिए सभी सावधानियां निरंतर जारी रखें।
बीमारी ग्रस्त पशुओ की अच्छी देख रेख की जाय तो बिना इलाज भी ज्यादातर पशु ठीक हो सकते हैं
लंपी स्किन डिजीज में मृत्यु दर केवल 05% से 10%ही है परंतु क्षेत्र में संक्रमण होने की स्तिथि में बचाव के उपाय नही करने पर संक्रमित होने की दर 80% होती हैं
**पशु पालकों से अपील :- अपने स्वस्थ पशुओं का वर्षा ऋतु में होने वाले अन्य जानलेवा बीमारियां जैसे इफेमेरल फेवर (3डे शिकनेस), गल घोंटू(HS),लंगड़ा बुखार(BQ) आदि से बचाए ।
HS एवम BQ रोग का टीका पशु पालन विभाग के केंद्रों में उपलब्ध हैं, अपने पशु को नजदीक के पशु चिकित्सा केंद्र ले जाकर टीकाकरण अवस्य करवाए।
– अपने पशु बाड़ो को साफ सुधरा रखे,,जिससे कि मक्खी मच्छर आकर्षित नहीं होंगे.
– गौवंश को नीम के पत्तो व फेटकरी के 1%घोल के पानी को उबाल कर वापस ठंडा कर स्वस्थ पशु को सुबह नहलाये शाम को नही ।
– फिनाईल का 5% घोल बनाकर पशु के ऊपर पोछा फेरे ताकि मक्खी मच्छर दूर रहेंगे।
**लंपी बीमारी से ग्रस्त गौवंश का दूध गर्म करके काम में ले सकते हैं,,ये बीमारी इंशानो में कभी नही फैलती।
** अधिक जानकारी के लिए नजदीक के पशु चिकित्सा केंद्र/ पशु पालन विभाग के कंट्रोल रूम से या मेरे से ( डॉ.श्रवणसिंह राठौड़ 9829116064)भी संपर्क किया जा सकता है