अंग्रेजो ने अपने राज में किस कदर बेहूदगी से इस देश में शिकार किये है, इसका एक उदाहरण विलियम राइस के अनुभवों से समझा जा सकता है। विलियम राइस २५ वी बॉम्बे रेजिमेंट में लेफ्टिनेंट पद पर थे और उन्होंने अपने शिकार के संस्मरण में लिखा है कि, किस प्रकार से उन्होंने पांच वर्षो के समय में 156 बड़े शिकार किये जिनमें 68 बाघ मारे एवं 30 को घायल करते हुए कुल 98 बाघों का शिकतर किया, मात्र 4 बघेरे मारे एवं 3 घायल करते हुए कुल 7 बघेरे एवं 25 भालू मारे एवं 26 घायल किये और इस तरह कुल 51 भालुओं का शिकार किया।

उन्हें लगता था कि, लोग उनके इस साहसिक कार्य को सही नहीं मानेगे इसलिए उन्होंने सात चश्मदीद अफसरों के नाम इस तथ्य के साथ में उल्लेखित करें हैं। यह अधिकांश प्राणी उन्होंने कोटा के वर्तमान में गाँधी सागर, जवाहर सागर, राणा प्रताप सागर, बिजोलिया, मांडलगढ़, भेरोडगढ़ आदि क्षेत्र से मारे थे। यदि आप वन्यजीव प्रेमी हो उनके लिखे हुए हर एक पृष्ठ को पढ़ने के बाद उन्हें कोसना नहीं भूलेंगे। भावनाओ की नदी में बहते हुए यदि इतिहास पढ़ते है तो उस ज़माने की असली तस्वीर धूमिल हो जाति है अतः विलियम राइस द्वारा लिखे उदाहरण हमें आज के परिपेक्ष्य में बाघ संरक्षण की आज तस्वीर के हिस्से लगते है।

टाइगर शूटिंग इन इंडिया से ‘जाट पैंथर हमला करते हुए’: सर विलियम राइस द्वारा 1850 से 1854 तक गर्मियों के दौरान राजपूताना में पैदल किये गए शिकार के अनुभवों का लेखा-जोखा जिसमें पैंथर का अर्थ है तेंदुआ

एक उन्होंने लिखा कि जब उन्हें पांच दिन भैंसरोडगढ़ के सामने चम्बल के उस पार स्थित अम्भा गांव के जंगल में कोई बड़ा प्राणी शिकार के लिए नहीं मिला तो उन्होंने जानकारी हासिल की क्या कारण है तो उन्हें लोगों ने बताया की कुछ समय पूर्व पशुपालको ने २-3 बाघों को आर्सेनिक ज़हर देकर मार दिया है। लगभग वर्ष 1850 -54 के मध्य भी ज़हर देकर मारना कितना आम रहा होगा।

टाइगर शूटिंग इन इंडिया से ‘एक घायल बाघ का पीछा करती हुई लोगों की भीड़’: सर विलियम राइस द्वारा 1850 से 1854 तक गर्मियों के दौरान राजपूताना में पैदल शिकार के अनुभवों का लेखा-जोखा।

वर्तमान में बाघों से बदला लेने के लिए उन्हें ज़हर देकर मारने की घटनाये किस कदर आम है इसका अंदाज लगाना आसान नहीं है। रणथंभौर में पिछले दस वर्षो में कम से कम 5 बाघ मृत मिले है जिनको मारने के लिए ज़हर दिया गया था। यह पांच बाघ वह थे, जिन्हें ज़हर देना फॉरेंसिक विभाग ने प्रमाणित किया था। ना जाने कितने ही ऐसे मामले सामने नहीं आये हैं। टाइगर वाच की इन तथ्यात्मक रिपोर्टों – https://tigerwatch.net/status-of-tigers-in-ranthambhore-tiger-reserve/ के अनुसार पिछले १० -११ वर्षों के रणथमभोर के बाघों के गायब होने के आंकड़ों का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि, प्रति वर्ष 3 बाघ गायब होते रहे हैं। पिछले वर्ष 2019 -20 में तो यह संख्या 12 पहुँच गयी है- https://tigerwatch.net/the-missing-tigers-of-ranthambhore-2020-2021/। इन गायब बाघों के बारे में तय तौर पर नहीं कहा जा सकता कि कितने बाघ इंसानी दखलंदाजी की वजह से ही गायब हुए है।

टाइगर शूटिंग इन इंडिया से ‘दयपुरा में भगदड़’: सर विलियम राइस द्वारा 1850 से 1854 तक गर्मियों के दौरान राजपूताना में पैदल शिकार के अनुभवों का लेखा-जोखा।

विलियम राइस ने लिखा है कि, बाघ जब भी गाय का शिकार करता था तो पशुपलक उससे बदला लेने के लिए उसका ध्यान रखते और बाघ के इधर उधर होने पर वह उसक गाय के पिछले पुट्ठे को चाकू से लम्बवत काटते एवं आर्सेनिक से भर देते थे। साथ ही राइस लिखते है कि, एक लाल रंग की बेरी का चूर्ण भी इसी तरह से विष का कार्य करता था। सायद यह बेरी कुचला हो सकती है क्योंकि यह आम विष था जो भारत के आम लोगों द्वारा इस्तेमाल किये जाते थे आज की तरह उस समय रासायनिक विष मौजूद ही नहीं थे। इन दोनों विष में किसी भी प्रकार की गंध नहीं होती है एवं बाघ बड़े बड़े मांस के लोथड़े निगलते हुए खाता है और मारा जाता है। आज कल पशुपालक इंजेक्शन में कीटनाशक भरकर पशुओं को जहरीला बनाते है।
लक्ष्मीपूरा के रामसिंह मोगिया ने स्वयं कहा की आज कल किस प्रकार जानवरो का विनाश किया जा रहा है और यह बढ़ रहा है। इस तरह जानवरो को मरते देख अक्सर शिकारी चाहे वो विलियम राइस हो या मोगिया समाज के लोग वो सभी भी दुखी हो जाते है।

सन्दर्भ:

  • Tiger Shooting in India : Being an account of Hunting Experiences on Foot in Rajpootana, During the Hot seasons from 1850 to 1854
लेखक:

Dr. Dharmendra Khandal (L) has worked as a conservation biologist with Tiger Watch – a non-profit organisation based in Ranthambhore, for the last 16 years. He spearheads all anti-poaching, community-based conservation and exploration interventions for the organisation.

Mr. Ishan Dhar (R) is a researcher of political science in a think tank. He has been associated with Tiger Watch’s conservation interventions in his capacity as a member of the board of directors.