राजस्थान के हिल स्टेशन – माउंट आबू में भालू अक्सर कचरे के ढेरो के आसपास भोजन ढूंढते देखे जाते हैं परिणामस्वरूप उनके व्यवहार में बदलाव आ रहा है।
कुछ दिनों पहले मैंने माउंट आबू में एक विचलित करने वाला दृश्य देखा, जिसमें चार भालू कचरे के ढेर में गाय एवं भैंस के साथ भोजन ढूंढ रहे थे। खैर अचानक से आई 2-3 पर्यटकों की गाड़ी से वो भाग गए परन्तु एक भालू निर्भय होकर अपना भोजन ढूंढ़ता ही रहा। यह दृश्य अब यहाँ एक साधारण बात हैं।
गाय भैंस के मध्य कचरे से खाना तलाशता एक भालूI (फोटो: श्री धीरज माली)
राजस्थान का हिल स्टेशन – माउंट आबू, भालूओं के लिए एक अनुकूल पर्यावास हैं, लेकिन कई वर्षों से प्लास्टिक और गन्दगी के अम्बार से यहाँ की वादियों का मानो दम घुट रहा है। जगह-जगह बिखरा हुआ कचरा, यहाँ के वन्यजीवों और पक्षियों के व्यवहार को तेजी से बदल रहा हैं। कचरे के ढेरों में आसानी से मिलने वाला खाना खाने के लिए, यह मानव आबादी की ओर चले आते हैं एवं प्रतिकूल भोजन का सेवन करते हैं। कहते हैं, माउंट आबू में कचरा निस्तारण प्रणाली का कोई सार्थक प्रबंध इसलिए नहीं है, क्योंकि यहाँ के जनप्रतिनिधियों ने इसे विकसित ही नहीं होने दिया। क्योंकि कचरे से यहाँ के प्रभावशाली लोगों के व्यक्तिगत हित जुड़े हुए हैं। यहाँ कचरा निस्तारण के लिए इनके द्वारा एक बहुत बड़े समूह को रखा गया हैं, जो मात्र साबुत शराब की बोतले और रीसायकल होने योग्य प्लास्टिक ही इकठ्ठा कर रहे है। प्लास्टिक और शराब की साबुत बोतलों से हो रही मोटी कमाई के फेर में जिम्मेदार लोग मौन धारण करके बैठे है अथवा मात्र इतने ही शामिल हैं के अपना मतलब सिद्ध कर सके। इसका खामियाजा माउंट आबू की प्रतिष्ठा एवं वन्यजीव भुगत रहे है। लम्बे समय से यह सिलसिला जारी है लेकिन अब तक कोई पुख्ता प्रबंधन नजर नहीं आ रहे हैं।
पर्यटकों द्वारा रात में भालुओं के करीब तक जाने व् उनको खाना डालने से उनके व्यवहार में बदलाव आना तय है (फोटो: डॉ. दिलीप अरोड़ा)
वन विभाग की माने तो माउंट आबू वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी में दो सौ से भी अधिक भालू मौजूद हैं। इसके अलावा तेंदुए, सांभर, हनी बेजर सहित कई सारे दुर्लभ वन्यजीव भी यहाँ पर है लेकिन बढ़ते मनुष्यों के हस्तक्षेप ने वन्यजीवों के लिए खतरा पैदा कर दिया है। यहाँ पर भालुओं के मनुष्यों पर हमले भी बढ़ रहे है। देखना हैं कब तक विभाग, सरकार और यहाँ के स्थानीय लोग इन मुद्दों से मुँह मोड़ के रहते हैं।
यदि तेंदुए और बाघ शावक अपनी छोटी उम्र में कमजोर अथवा दिव्यांग हो तो माँ उनको बेहाल ही छोड देती है, जिसके बाद ऐसे शावकों की मौत हो जाती है अथवा कभी कभी तो माँ खुद उनको मार के खा जाती है। अधिकतर वन्यजीव विशेषज्ञ एक वाक्य ‘‘सर्वाईवल ओफ फिटेस्ट‘‘ में सारी कहानी को ख़तम कर देते है।
यह वाक्य एक बघेरे के शावक का है जिसने सर्वाईवल ओफ फिटेस्ट वाली अवधारणा को गलत साबित कर दिया साथ ही एक मां को प्रकृति के तय नियमों से लडते देखा।
आप बखूबी वाकिफ होंगे राजस्थान में स्थित जवाई लेपर्ड कन्जर्वेशन रिजर्व के बारे में, वहां एक लोकप्रिय मादा तेन्दुआ ‘‘नीलम‘‘ रहती है। वर्ष 2019 में नीलम ने तीन शावकों को जन्म दिया था। जिसमें से एक की मौत हो गई थी और अब अपने दो बचे हुए शावकों की परवरिश में नीलम जुट गई। पहली बार इस परिवार को तब देखा गया जब शावकों की उम्र करीब 2 माह थी। जिनमें से एक नर व एक मादा शावक थे। मादा शावक के अगले पंजे में कुछ कमजोरी रहने से वह सही ढंग से न तो चल पाती थी और न ही दौड पाती थी।
2 माह की उम्र में दिव्यांग शावक (फोटो: श्री धीरज माली)
5 माह की उम्र में दिव्यांग शावक (फोटो: श्री धीरज माली)
झाड़ियों के बीच छुप कर बैठी दिव्यांग (फोटो: श्री धीरज माली)
इस दिव्यांग शावक को देखते ही कईं सवाल उमडने लगते थे । नर शावक अक्सर उछलकूद करता और खेलता हुआ दिखता रहता था लेकिन लंगडी नर शावक की तरह न तो ज्यादा उछल कूद करती थी और न ही उसकी तरह दौडती थी। उसके आगे वाले एक पैर की दुर्बलता उसे चाहकर भी ऐसा कर पाने की हिम्मत नहीं देती थी। इस कमजोर मादा शावक ने अपनी जिजीविषा को बलवती रखा और अपनी बहादुर मां की परवरिश में धीरे धीरे अपनी युवावस्था की ओर बढने लगी ।
उसने समय के साथ छद्मावरण की कला में महारत हासिल कर ली और घात लगाकर शिकार करने की खूबी में पारंगत हो गई। एक वर्ष और कुछ महिनों की उम्र की होने तक इस दिव्यांग शावक को लगातार देखा गया। जिस छोटी उम्र में अपनी मां के शिकार पर निर्भर थी आज वही एक युवा तेंदुआ बन गई थी। अब वह अपनी मां नीलम से जुदा हो चुकी थी और एक नया इलाका हासिल कर लिया था। काफी खूबसूरत आंखों वाली इस मादा ने अपनी कमजोरी पर मनो विजय हासिल काली हो और प्रकृति के तमाम नियमों को चुनौती दे दी थी। अंतिम बार वह फरवरी 2020 में देखी गयी थी, और अब वह पहले से ज्यादा मजबूत दिख रही थी और आत्मविश्वास के साथ चट्टान पर लंगडाते हुए चलकर अपने वर्चस्व को स्थापित कर रही थी ।
माँ से अलग होने के पश्चात अकेले रहने का अभ्यास करती दिव्यांग शावक (फोटो: श्री धीरज माली)
अपनी पूर्ण युवावस्था में गुफा के बाहर बैठी दिव्यांग (फोटो: श्री धीरज माली)
पूर्ण व्यस्क अवस्था में दूर पहाड़ की चोटी पर बैठी दिव्यांग (फोटो: श्री धीरज माली)