वर्ष 1941 में  माउंट आबू  में छुट्टी मनाने आया एक बायोलॉजिस्ट वहां की जैव- विविधता पर शोध पत्र लिख कर राजस्थान के इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया, उनकी शोध को आज भी प्रासांगिक माना जाता है।  

युले मेरवीन चार्ल्स मेकैन (4 दिसंबर 1899 – 29 नवंबर 1980) भारत में ही जन्मे एक अत्यंत मेधावी और मेहनती वनस्पति शास्त्री थे। जिन्होंने भारत के प्रमुख वनस्पति शास्त्री एथेलबर्ट ब्लैटर के साथ वर्षो तक पेड़ पौधों पर शोध की। चार्ल्स मेकैन बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (BNHS) के संग्रहालय के सहयक क्यूरेटर रहे और वर्षो तक भारत के प्रसिद्ध जर्नल – JBNHS के संपादन का कार्य भी किया। इन्होने 200 से अधिक शोध पत्र और भारत के पेड़ो पर एक पुस्तक भी लिखी है। इनके द्वारा घास पर लिखा गया मोनोग्राफ अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है।

युले मेरवीन चार्ल्स मेकैन

मई 1916 , में एक छात्र के रूप में उनकी पहली माउंट आबू यात्रा की। उन दिनों में परिवहन के कोई सुलभ साधन नहीं होते थे तो वह लिखते है किस प्रकार उन्होंने १५ मील की यात्रा को १२ घंटे में पूरा किया। उनकी इस पहली यात्रा में प्रसिद्ध वनस्पति शास्त्री एथेलबर्ट ब्लैटर एवं प्रोफ. पी .ऍफ़. हॉलबेर्ग भी उनके साथ थे जो उन्हें एक बोटैनिकल यात्रा पर लेकर आये थे। चार्ल्स मेकैन लिखते है कि, किस प्रकार उनकी यह पहली यात्रा उनके जीवन में मील का पत्थर साबित हुई, जिसने उनके भविष्य की दिशा तय की। उन्होंने प्रकृति के विभिन्न पहलुँओं को नजदीक से देखा और ब्लैटर और हॉलबेर्ग जैसे विशेषज्ञो की मदद से उनका विश्लेषण किया।

चार्ल्स मेकैन  7 अक्टूबर 1941 को सपत्नी अपने बच्चो से मिलने माउंट आबू आये जो वहां पढ़ते थे। उनका विचार था स्वयं के लिए एवं परिवार के लिए खाली समय निकालने का और कार्य मुक्त होकर आराम करने का।  परन्तु उन्होंने इस समय में भी एक शानदार शोध पत्र लिखा और बड़े मजेदार ढंग से उसे एक अनोखा शीर्षक दिया – A ‘Busman’s’ holiday in the Abu Hills  जो 1942  के JBNHS – 43(2):206-217  के संस्करण में प्रकाशित हुआ था।

चार्ल्स मेकैन व उनके साथी

‘Busman’s’ holiday एक ब्रिटिश मुहावरा है जिसका मतलब है कि, किस प्रकार एक बस चालक छुट्टी मनाने जाता है, एवं तभी भी वह बस चलाते हुए जाता है और उसका छुट्टीवाला समय भी एक सामान्य कामकाजी समय के रूप में बीत जाता है।

यह शोध पत्र असल में प्रकृति की गहन समझ रखने वाले जीववैज्ञानिक की विभिन्न प्राणियों और पोधो पर अवलोकन का दस्तावेज है जिसे देख कर प्रेरणा मिलती है की एक जमाने में किस प्रकार के कठोर परिश्रम से लोग एक-एक जीव की पहचान और उनके व्यव्हार की व्याख्या करते थे। यह कहा जा सकता है कि, प्रकृति पर डायरी लिखने वाले शोधार्थी, यात्रा वृतांत लिखने वाले यायावर या वन्य जीवों का संरक्षण करनेवाले संरक्षणवादी सभी इनकी लेखनी से प्रभावित होंगे और नए विचारो के प्रवाह को रोक नहीं पायेंगे।

आबू टोड- आबू से एकत्रित किये गए टोड मेंढक जो अब नई ज़ीलैण्ड में सुरक्षित रखे गए है

उनका इसी क्रम में दूसरा शोध पत्र एक वर्ष पश्च्यात 1943 में JBNHS 43: 641–47 में प्रकाशित हुआ The rains come to the Abu Hills यह शोध पत्र अत्यंत खूबसूरती से लिखा गया है जो  मानसून की बारिश से होने वाले बदलाव को रेखांकित करता है।

चार्ल्स मेकैन  ने 1946 तक BNHS के साथ काम किया और उसके बाद, देश आजाद होने से पहले वह  न्यू ज़ीलैण्ड चले गए। उन्होंने खुद के द्वारा संकलित किये गए सरीसर्पों के 700 स्पेसिमेन को वहां के दो मुख्य संग्रहालयों को भेंट कर दिये जो आज भी उनके द्वारा किये गए उल्लेखनीय कार्यो की श्रेणी में आते है। वर्ष 2014 , में भी न्यू ज़ीलैण्ड के ऑकलैंड म्यूजियम ने उनके द्वारा जमा किये गए सरीसर्पों के संग्रह पर एक शोध पत्र प्रकशित किया था- Gill, B.J. and J.M.A. Froggatt (2014) The Indian herpetological collections of Charles McCann, Records of the Auckland War Memorial Museum. Volume 49, Auckland, New Zealand

खैर राजस्थान के प्रिय प्रकति प्रेमियों देर नहीं हुई आप चार्ल्स मेकैन के माउंट आबू पर लिखे हुए इन दो शोध पत्रों को अवस्य पढ़े –

(1942) A ‘busman’s’ holiday in the Abu Hills. JBNHS. 43(2):206-217.

(1943) The rains come to the Abu hills. JBNHS. 43(4):641-647.

आपको नहीं मिले तो BNHS से समपर्क करे अथवा dharmkhandal@gmail.com को मेल लिखे

लेखक:

Dr. Dharmendra Khandal (L) has worked as a conservation biologist with Tiger Watch – a non-profit organisation based in Ranthambhore, for the last 16 years. He spearheads all anti-poaching, community-based conservation and exploration interventions for the organisation.

Mr. Ishan Dhar (R) is a researcher of political science in a think tank. He has been associated with Tiger Watch’s conservation interventions in his capacity as a member of the board of directors.

 

Cover Photo Credit: Mr. Dheeraj Mali