यह बहुत दुर्लभ है कि, प्रकर्ति में शिकारी खुद शिकार बन जाता है। एक बार राजस्थान के पुलिस प्रमुख श्री शांतुनु कुमार (DGP – Rajasthan) से मिलने एक बाजदार आया। शांतनु जी वन्यजीवों में अत्यधिक रूचि रखते थे और गहरी समझ भी। यह बाजदार जयपुर के रहने वाले है और इन्हें वन्यजीव अधिनियम आने के बाद भी बाज रखने की इजाजत थी। क्योंकि इनके पालतू बाज यह कहाँ छोड़ते अतः उन्हें बाज आदि शिकारी पक्षियों के रखने की वन विभाग से अनुमति मिल गई। शायद यह भारत का एक मात्र उदाहारण है जब जिन्दा बाज पलने की इजाजत मिली थी।

पेरेग्रीन फाल्कन (Falco peregrinus) (फोटो: डॉ धर्मेंद्र खांडल)

ग्रे फ्रैंकोलिन का समूह (Ortygornis pondicerianus) (फोटो: डॉ धर्मेंद्र खांडल)

कई वर्षो तक वह उन बाजों को हवा में उड़ाता और उनकी थोड़ी बहुत शारीरिक श्रम कराता ताकि वह स्वस्थ रहे। इन उड़ानों के बाद वह प्रशिक्षित बाज अंत में पुनः उस बाजदार के पास आ जाते थे। जब वह बाजदार शांतनु कुमार से मिलने गए तो उन्होंने बताया की आज उसके साथ उसका बाज भी है। शान्तनुजी ने उसे देखने की इच्छा जाहिर करने पर बाजदार अपना एक बाज लेकर आया और कहाँ की में आपको इसकी शानदार उड़ान दिखता हूँ। शांतनु जी जयपुर के बाहरी क्षेत्र में रहते थे जहाँ अनेक पक्षी आदि भी रहते उनके कृषि फार्म में एक तीतर का झुण्ड भी रहता था जो इंसानो से भय नहीं होने के कारण निडर होकर घुमा करते थे।

एक मुर्गा लड़ाई प्रदर्शन। इस खुनी खेल में ग्रे फ़्रैंकोलिन्स (Ortygornis pondicerianus) का भी उपयोग किया जाता था।

स्वर्गीय श्री शांतनु कुमार (दाएं) और साथ में श्री फतेह सिंह राठौर (बाएं), रणथंभौर के पूर्व फील्ड निदेशक और टाइगर वॉच के संस्थापक। (फोटो: श्री हेमंत सिंह)

बाज ने उड़ान भरने के बाद अपनी असली फितरत दिखायो और सीधा एक तीतर पर झपटा मारा। यह इतना तेजी से हुआ की सब देखते रह गये। परन्तु माजरा और भी चौकाने वाला था, बाज अपना दाव लगाता इस से पहले तीतर का स्पर या पांव का कांटा उसके दिल में धंस चूका था। तीतर तेजी से पंजो से छूट कर भाग गया परन्तु बाज अपनी जान गवा चूका था। यह स्पर कई पक्षियों में होते है जिसमें मुर्गे भी शामिल है। स्पर (spur) कुछ पक्षियों के पांव में एक बढ़ी हुई हड्डी होती है जो एक केरीटिन से ढका हुआ होता है। कुछ पक्षियों में यह स्पर उनके पांव के पीछे होने की बजाय पंख के कार्पल पर स्थित होते है एवं आपस और दुसरो के साथ संघर्ष में उपयोगी होते है।

लड़ने वाले पक्षियों के स्पर्स से जोड़े जाने वाला ब्लेड और यह ब्लेड स्पर के विनाशकारी प्रभाव को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

रिवर लैपविंग की एक जोड़ी: इसके कंधों पर छोटे स्पर्स (रीढ़ जैसी संरचना) मौजूद होते हैं। (फोटो: डॉ धर्मेंद्र खांडल)

मुर्गो के पांव में भी स्पर होते है परन्तु अक्सर मुर्गे लड़ने वाले उन पर एक छोटी छुरी जैसा दिखने वाला चाकू भी बांध देते है और कई बार मुर्गे लड़नेवाले भी खुद इस छुरी के शिकार होजाते है। मुर्गा लड़ाना एक ज़माने में ग्रामीण भारत का एक बहुत प्रसिद्ध खेल था।

खैर शान्तनुजी हँसते हुए बोले पुलिस वालो का तीतर भी बाज पर भारी पड़ता है।

लेखक:

Dr. Dharmendra Khandal (L) has worked as a conservation biologist with Tiger Watch – a non-profit organisation based in Ranthambhore, for the last 16 years. He spearheads all anti-poaching, community-based conservation and exploration interventions for the organisation.

Mr. Ishan Dhar (R) is a researcher of political science in a think tank. He has been associated with Tiger Watch’s conservation interventions in his capacity as a member of the board of directors.