तूतिया-राजस्थान का एक अद्भुत स्थानिक सांप
राजस्थान सरीसृपों के लिए स्वर्ग के सामान है। कई प्रकार के विषैले और अविषैले सांप यहाँ विचरण करते हैं। मेरे अनुसार लगभग 40 प्रकार की विभिन्न प्रजातियां अथवा उपप्रजातियाँ यहाँ पाई जाती हैं। इन सबमें तूतिया सांप Lytorhynchus paradoxus (GÜNTHER, 1875), इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह राजस्थान के थार मरुस्थल की एक स्थानिक (Endemic) प्रजाति है, यानि यह थार के अलावा और कहीं नहीं मिलती है। जीनस Lytorhynchus में 6 प्रजातियों के सर्प मिलते हैं जिनमे भारत में केवल Paradoxus ही मिला है।
अल्बर्ट कार्ल गुंथर नामक एक जर्मन ब्रिटिश सर्प वैज्ञानिक ने सर्वप्रथम 1875 में तूतिया सर्प की खोज सिंध क्षेत्र में की, जो वर्तमान में पाकिस्तान का हिस्सा है। गुंथर एक अत्यंत मेधावी सरीसृप वैज्ञानिक थे, जिन्होंने 340 सरीसृपों को नाम दिया एवं उनकी खोज की। उनसे अधिक सरीसृपों की खोज जॉर्ज अल्बर्ट बोलेन्गेर नामक वैज्ञानिक ने की है जिन्होंने 587 प्रजातियों का विश्लेषण किया एवं उन्हें नाम दिया था। खैर हम बात कर रहे हैं तूतिया सांप की जो थार मरुस्थल के रेतीले हिस्से में मिलते हैं।थार मरुस्थल में कई प्रकार के पर्यावास (habitat) मिलते हैं जैसे की कठोर सतह वाला सपाट मैदान, बलुई टीले अथवा पथरीले ऊबड़खाबड़ स्थल I बलुई टीले भी दो प्रकार के होते है एक वह जो अपना स्थान तेज हवाओ और आँधियो में बदलते रहते है दूसरे वह जो एक जगह ठोस जमे रहते हैं I तूतिया सांप,अधिकांशतया स्थान बदलने वाले मुलायम बालू वाले रेत के टीलों में विचरण करता है I रोचक बात यह है की यह सांप मिट्टी की सतह के नीचे ऐसे चलता है मानो तैर रहा हो। पाकिस्तान के प्रसिद्ध सरीसृप वैज्ञानिक डॉ शर्मन मिंटो ने Lytorhynchus paradoxus के सन्दर्भ में लिखा की यह बलुई रेत केअस्थाई टीलों में जो की हवा से अपना स्थल बदलते रहते हैं, पाए जाते हैं, यह स्थान समुद्रतल से 500 मीटर की ऊंचाई तक हो सकते हैं।
यह सांप अक्सर 8-14 इंच लम्बा एवं पतले मुंह एवं सिर वाला होता है। यह सर्प पूर्णतया रात्रिचर सर्प है। जब यह खतरा महसूस करता है तो कभी ‘8’ का कभी ‘S’ का आकार बनाकर तो कभी एक स्प्रिंग के सामान अपने शरीर को ऊपर उठाकर एक विशेष तरह का कम्पन्न पैदा करते हुए हल्की हिसिंग की ध्वनि पैदा करता है। इस दौरान यह अपना सिर अकसर नीचे रखते हुए छिपाता रहता है। यह इसके बचाव करने एवं आक्रामक दिखने की मुद्रा है। चूंकि यह अविषैला सर्प है,अतः इसे अपने बचाव के लिए कई प्रकार के अन्य तरीके निकालने पड़ते हैं।
राजस्थान में यह सर्प सर्वप्रथम अगस्त 2004 में मेरे द्वारा गोगा देव के मेले में चूरू जिले में देखा गया जो पास के ही एक गाँव गाजसर से लाया गया था।गोगा देव मेले में ग्रामीण कई प्रकार के सांपों को अपने गाँवों से चूरू शहर में लेकर आते हैं। तत्पश्चात उसी दिन मुझे यह सीकर जिले के रामगढ़ शेखावाटी कस्बे के पास धोरों में भी दिखा, यह क़स्बा मेरा पैतृक स्थान भी है तूतिया सर्प की खोज इसलिए महत्वपूर्ण थी क्योंकि इसके पूर्व में यह सर्प केवल मात्र पाकिस्तान से ही रिपोर्ट किया गया था । पाकिस्तान में यह जंगीपुर, जंगशाही,फतेहपुर,बारां,नाइ,जमराओ,बुर्रा,उमरकोट,थार एवं पारकर क्षेत्र से रिपोर्ट किया गया था। यह थार मरुस्थल के पश्चिमी छोर के हिस्से हैं,जो वर्तमान में पाकिस्तान के हिस्से हैं। मैंने इन्ही सांपों को राजगढ़-चूरू के राजमार्ग पर अधिक संख्या में उस दिन देखा जब अत्यधिक गर्मी वाले अप्रैल महीने में एक चक्रवाती वर्षा हुई।उस दिन रात्रिचर माने जाने वाले ये सांप शाम के 4 बजे उस राजमार्ग पर निकले और लगभग 8-9 की संख्या में वाहनों से कुचलने से मरे हुए मिले। यद्यपि कुछ वर्षों में यह सर्प राजस्थान के कुछ और इलाके जैसे जैसलमेर, बीकानेर एवं बाड़मेर जिलों में भी देखा गया है।यह सर्प टीलों पर रेंगने वाली छोटी छिपकली को अपना शिकार बनाता है। इस छिपकली का रंग रूप भी इस सर्प के समान दिखता है। इसका शिकार एवं खुद यह प्रजाति मुलायम सूखी बलुई रेत में ही रहने के लिए विकसित हुई है,यदि इस पर्यावास में निरंतर अधिक मात्रा में पानी से सिंचाई आदि की जाये तो, यह उस स्थान से विलुप्त हो जायेगा।
References
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Günther A. 1875. “Second Report on Collections of Indian Reptiles obtained by the British Museum”. Proc. Zool. Soc. London 1875: 224-234. (Acontiophis paradoxa, new species, pp. 232–233, Figure 5).
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