मॉबिंग : सुरक्षा का एक तरीका

मॉबिंग : सुरक्षा का एक तरीका

कई बार छोटे पक्षियों को बड़े शिकारी पक्षी (और कभी-कभी स्तनधारी) पर लगातार हमला करते हुए देखा जाता हैं, इस व्यवहार को “मॉबिंग (Mobbing)” कहा जाता है। ये आमतौर पर प्रजनन क्षेत्र, घोंसले, चूजों या अपने भोजन से संभावित शिकारियों को दूर करने के प्रयास में किया जाता हैं।

Photo: Dr. Dharmendra Khandal

मॉबिंग के दौरान छोटे पक्षी अपनी परवाह किए बिना एक साथ शोर मचाते हुए शिकारी पक्षियों को दूर भगाने का प्रयास करते हैं।

जिसमें वे लगातार शिकारी पक्षी के चारों तरफ मंडराते हैं तथा सुरक्षित मौका मिलने पर शिकारी पक्षी के सिर व शरीर के बाकी भाग पर चोंच से चोट मारते हैं या फिर कई बार उनकी पीठ पर चढ़, उनके पंखों को तोड़ने की कोशिश भी करते हैं।

कई बार देखते ही देखते ये सामूहिक रूप से भी हमला कर देते हैं और यह स्थिति बड़े पक्षी के लिए परेशान करने वाली होती है,  क्योंकि इसमें हमला हर तरफ से होता है और ऐसे में शिकारी पक्षी को परेशान होकर अपना स्थान छोड़ना पड़ जाता है।

मॉबिंग शिकारी पक्षी के लिए एक संकेत भी होती है की, उसे पहचान लिया गया है और अब शायद उसे स्थान छोड़ने के लिए मजबूर भी किया जाएगा।

कभी-कभी विशेषज्ञों द्वारा मॉबिंग को किसी तात्कालिक खतरे के बजाय सिर्फ एक शिकारी की उपस्थिति से भी शुरू होते देखा गया है। अतः मॉबिंग छोटे पक्षियों की मनोवृति है जिसमें उन्होंने समझ रखा है की कोई पक्षी अगर शिकारी प्रवर्ति का है तो उसे दूर ही भगाना है।

 

 

जोड़बीड़: एक गिद्ध आवास

जोड़बीड़: एक गिद्ध आवास

जोड़बीड़, एशिया का सबसे बड़ा गिद्ध स्थल, जो राजस्थान में प्रवासी पक्षियों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान भी है, गिद्धों की घटती आबादी के लिए प्राकृतिक आवास व भोजन व्यवस्था का श्रोत है…

जोड़बीड़ गिद्ध आवास को लेकर पुरे दक्षिणी एशिया में अपना एक अलग ही स्थान रखता है । 1990 के दशक मे जहाँ पूरी दुनिया से गिद्ध समाप्त हो रहे थे वहीँ दूसरी ओर राजस्थान वो प्रदेश था जिसने उनके प्राकृतिक आवास व भोजन व्यवस्था को बनाये रखा। वैज्ञानिक अनुसंधानों ने गिद्धों की गिरती हुई आबादी का प्रमुख कारण मवेशियों में उपयोग होने वाली दर्दनिवारक दवाई डिक्लोफेनाक (Diclofenac) को माना। एक तरफ गिद्धों की संख्या निरंतर गिरती गयी तो वहीँ जोड़बीड़ गिद्ध आवास बीकानेर में उनकी संख्या वर्ष 2006 के बाद निरंतर बढती गयी और इसका प्रमुख कारण था भोजन की प्रचुर मात्रा। जोड़बीड़ बीकानेर जिले में मृत मवेशियों और ऊंटों के शवो के लिए एक डंपिंग ग्राउंड है।

यह संरक्षण रिजर्व 56.26 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है और गिद्ध दृष्टि से एक महत्वपूर्ण स्थल है। घास और रेगिस्तानी पौधे यहाँ की मुख्य वनस्पति है जो यहाँ और वहाँ बहुत दुर्लभ पेड़ों से लाभान्वित है। जोड़बीड़ मृत पशु निस्तारण स्थल के एक तरफ ऊंट अनुसंधान केंद्र, अश्व अनुसंधान केंद्र और दूसरी तरफ बीकानेर शहर है।

जोड़बीड़ में एक साथ लगभग 5000 गिद्ध व शिकारी पक्षियों को देखा जा सकता है (फोटो: डॉ. दाऊ लाल बोहरा)

बीकानेर का इतिहास 1486 ई. का है, जब जोधपुर के संस्थापक राव रावजी ने अपने पुत्र को अपना राज्य स्थापित करने की चुनौती दी। राजकुमार राव बीकाजी के लिए, राव जोधाजी के पांच बेटों में से एक पुत्र जंगलवासी जांगल, ध्यान बिंदु बन गया और उन्होंने इसे एक प्रभावशाली शहर में बदल दिया। उन्होंने 100 अश्वारोही घोड़ों और 500 सैनिकों के साथ अपना काम पूरा किया और शंखलास द्वारा छोड़े गए 84 गाँवों पर अपना राज्य स्थापित किया। अपनी प्रभावशाली सेना के लिए उंट, घोड़े व मवेशी रखने के लिए बीकानेर शहर के पास गाड़वाला के बीड (जोड़बीड़) में स्थान निर्धारित किया जिसे रसाला नाम से भी जाना गया।

आधुनिक बीकानेर के सबसे प्रतिष्ठित शासक, महाराजा गंगा सिंह (1887-1943) की दूरदर्शिता का परिणाम रहा की जोड़बीड़ में  भेड़ पालन का कार्य भेड़ अनुसंधान केंद्र, अविकानगर जयपुर की सहायता से शुरु हो पाया। जोड़बीड़ का एक बड़ा भाग ऊंढ़ व अश्व अनुसंधान के पास रहा जो बाद में वन अधिनियम बनने के बाद चारागाह भूमि (जो उंट के लिए होती थी) वन का भाग बन गयी। वर्तमान मे जोड़बीड़ गिद्ध स्थल पिछले 30 वर्षों में 6 बार विस्थापित हुआ परन्तु 2007 में स्थानीय कलेक्टर महोदय के द्वारा जोड़बीड़ संरक्षण स्थान बनने से पहले मृत पशुओं के लिए निर्धारित कर दिया गया। चूंकि जोड़बीड़ में मृत पशुओं के रूप में पर्याप्त भोजन है और जैसा कि यह स्थान गिद्धों के प्रवास मार्ग में स्थित है, यह उनके लिए स्वर्ग से कम नहीं है। बिल्डरों और ग्रामीणों द्वारा किसी भी अतिक्रमण को रोका जा सके इसको सुनिश्चित करने के लिए वन विभाग ने इस क्षेत्र को एक जोड़बीड़ अभयारण्य के रूप में घोषित कर दिया है। जिले के शहरी भाग, गंगाशहर, भीनाशहर, दूध डेरियों से मृत शव पार्क के पश्चिमी  भाग (बीकानेर पश्चिम रेल्वे स्टेशन) में डाले जाते हैं। आसपास के गाँवों व शहरों से गर्मियों में लगभग 100-120 शव व सर्दियों में 170-200 शव (छोटे व बड़े पशु ) निस्तारित किये जाते हैं।

जोड़बीड़ बीकानेर जिले में मृत मवेशियों और ऊंटों के शवो के लिए एक डंपिंग ग्राउंड है (फोटो: डॉ. दाऊ लाल बोहरा)

शिकारी पक्षी अक्सर भोजन श्रृंखला के शीर्ष पर होते हैं तथा यह पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य के संकेतक होते है (फोटो: श्री नीरव भट्ट)

गिद्ध, जिनका उद्देश्य पर्यावरण से मृत शवों को साफ करना है, इस काम के लिए प्रकृति की सबसे अच्छी रचना हैं। यद्यपि ऐसे अन्य जानवर भी हैं जो समान कार्य करते हैं पर गिद्ध इसे अधिक कुशलता से करते हैं। भारत के विभिन्न हिस्सों में गिद्धों की नौ प्रजातियां पायी जाती हैं। ये प्रजातियां Long-billed Vulture, Egyptian Vulture, Bearded Vulture, White-rumped Vulture, Slender-billed Vulture, Himalayan griffon Vulture, Eurasian griffon Vulture, Cinereous Vulture, Red-headed Vulture हैं। डिक्लोफेनाक, जो मवेशियों में दर्द निवारक के रूप में प्रयोग की जाती है से मृत्यु के कारण इनकी आबादी में 90-99% की कमी देखी गई है। गिद्धों द्वारा खाए जाने पर, इन जानवरों का शव गुर्दे की विफलता के कारण उनकी मृत्यु का कारण बनता है। व्यापक शिक्षा और पशु चिकित्सा में डाइक्लोफेनाक के उपयोग पर प्रतिबंध के कारण, गिद्ध आबादी एक छोटे से विकास को देख रही है, लेकिन कुल मिलाकर स्थिति अभी भी लुप्तप्राय स्तर पर ही है।

Cinereous Vulture मध्य पूर्वी एशिया से प्रवास कर भारत में आते है (फोटो: श्री नीरव भट्ट)

जोड़बीड़ अभ्यारण्य Black kite, steppe eagle, Greater spotted eagle, Indian spotted eagle, Imperial eagle, White tailed eagle आदि जैसे विभिन्न प्रकार के रैप्टर्स (शिकारी पक्षियों) को भी आकर्षित करता है। लगभग 5000 गिद्ध व रेप्टर यहां पाए जा सकते हैं, प्रवासी प्रजातियां Eurasian griffon Vulture स्पेन और टर्की, Cinereous Vulture मध्य पूर्वी एशिया तथा Himalayan griffon Vulture तिब्बत और मंगोलिया से आते हैं।

Himalayan Griffon Vulture (फोटो: डॉ. दाऊ लाल बोहरा)

Eurasian Griffon Vulture (फोटो: डॉ. दाऊ लाल बोहरा)

शिकारी पक्षी अक्सर भोजन श्रृंखला के शीर्ष पर होते हैं तथा यह पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य के संकेतक होते है। अगर प्रकृति में ये पक्षी किसी भी प्रकार से प्रभावित होते हैं तो उसके परिणाम स्वरूप पारिस्थितिक तंत्र में अन्य जानवर भी खतरे में हो जाता हैं। जोड़बीड़ न केवल गिद्धों बल्कि अन्य शिकारी पक्षियों के लिए भी महत्वपूर्ण स्थान है। अभ्यारण्य के आसपास का क्षेत्र जो खेजरी और बेर के पेड़ों के साथ एक खुली भूमि है तथा यहाँ डेजर्ट जर्ड नामक छोटा कृंतक देखा जा सकता है जो बाज का भोजन है तथा बाज को इसका शिकार करते हुए देखा भी जा सकता है।

Egyptian Vulture (फोटो: डॉ. दाऊ लाल बोहरा)

Long-legged buzzard (फोटो: डॉ. दाऊ लाल बोहरा)

शिकारी पक्षियों के अलावा अभ्यारण्य में Ashy Prinia, Black winged Stilt, Citrine Wagtail, Common Pochard, Common Redshank, Eurasian Coot, European Starling, Ferruginous Pochard, Gadwall, Great Cormorant, Isabelline Shrike, Isabelline Wheatear, Kentish Plover, Little Grebe, Ruff, Shikra, Variable Wheatear आदि भी सर्दियों में आसानी से देखे जाते हैं। यहाँ Yellow eyed Pigeon (Columba eversmanni) कज़ाकिस्तान से अपने प्रवास के दौरान आते हैं तथा यहाँ मरू लोमड़िया, भेड़िया, जंगली बिल्ली, जंगली सूअर इत्यादी भी आसानी से देखे जा सकते है।

गिद्ध हमारे पारिस्थितिक तंत्र का अभिन्न अंग है ये मृत जीवों को खाकर पर्यावरण को साफ-सुथरा रखते हैं (फोटो: डॉ. दाऊ लाल बोहरा)

स्थानीय रूप से वन विभाग द्वारा आने वाले प्रवासी पक्षियों के लिए अनुकूल व्यवस्था की गयी है परन्तु जल स्त्रोत की कमी, मृत पशुओ के शरीर से निकलने वाली प्लास्टिक, शहरों से आने वाले आवारा पशु व कुत्ते व्यवस्था प्रबंधन मे बाधक सिद्ध हो रहे हैं। इनके अलावा मृत पशु निस्तारण स्थल के पास निकलने वाली रेल्वे लाइन व गावों मे जाने वाली बिजली के तार गिद्धों व शिकारी पक्षियों को मौत के घाट उतार रहे है। आवारा कुत्तों की उपस्थिति पक्षियों और पर्यटकों दोनों के लिए खतरा पैदा करती है। ये कुत्तों इतने क्रूर होते है की वे भोजन करते समय गिद्धों को परेशान करते हैं। इसके अलावा अभ्यारण्य में खेजड़ी, साल्वाडोरा, बेर, केर और नीम के वृक्षों का बहुत सीमित रोपण है।

Credits:

Cover Photo- Mr. Nirav Bhatt