खर्चिया गेंहू: पाली- मारवाड़ की खारी मिट्टी में उगने वाले लाल गेंहू

खर्चिया गेंहू: पाली- मारवाड़ की खारी मिट्टी में उगने वाले लाल गेंहू

खर्चिया, पाली जिले की खारी मिट्टी में उगने वाला लाल गेंहू जिसने राजस्थान के एक छोटे से गाँव “खारची” को पुरे विश्व में प्रसिद्धि दिलवाई।

राजस्थान के पाली जिले में किसानों के साथ काम करने के दौरान मैंने गेहूं की एक स्थानीय प्रजाति देखी, जिसे पूरे जिले में खर्चिया गेहूं के नाम से जाना जाता है। परन्तु यह जानना बेहद दिलचस्प है कि इस किस्म को यह नाम कैसे मिला। दरअसल इस गेहूं की उत्पत्ति खारची नामक गाँव से हुई है और यहाँ की मिट्टी और पानी में नमक की मात्रा अधिक होने के कारण इस गाँव का नाम खारची पड़ा है। स्थानीय भाषा में खार्च का मतलब नमक होता है। खर्चिया गेहूं को पुरे विश्व में अत्यधिक नमक की मात्रा में उगने वाले गेहूं जीनोटाइप के रूप में जाना जाता है। मिट्टी में नमक की ज्यादा मात्रा के कारण फसलों में रस प्रक्रिया (metabolism) और खनिज का अपवाह (uptake of mineral) प्रभावित होता है। परन्तु, खर्चिया गेंहू की ऐसी किस्म है जो नमक के प्रभावों का अधिक कुशलता से सामना करती है । इसी कारण से ये स्थानीय गेंहू प्रजाति को व्यापक रूप से उच्च उपज वाली नमक प्रतिरोधी किस्म खर्चिया 65, KRL 1-4, KRL 39 और KRL 19 के उत्पादन के लिए उपयोग किया जाता है। भविष्य के फसल सुधार कार्यक्रम के लिए इसके महत्त्व को ध्यान में रखते हुए, इसे गेहूं अनुसंधान निदेशालय, करनाल के पंजीकरण संख्या INGR 99020 द्वारा NBPGR, नई दिल्ली में पंजीकृत किया गया है। खर्चिया गेहूं को पीढ़ियों से खारची गाँव में उगाया जा रहा है। गेहूँ की अन्य हाइब्रिड किस्मों की तुलना में खर्चिया गेहूँ के लिए बहुत कम पानी की आवश्यकता होती है और ऐसी जगहों पर जहाँ पानी उपलब्ध नहीं होता है, यह बारिश के मौसम में उगाया जाता है। इस किस्म की एक अन्य विशेषता यह है कि पौधे की लम्बाई भी अधिक होती है जिससे किसानो को अनाज के साथ-साथ पशुओं को खिलाने के लिए चारा भी मिल जाता है। जानवरो को भी अन्य गेहूं के भूसे की तुलना में खर्चिया गेहूँ का चारा अधिक पसंद आता हैं।

इस स्थानीय प्रजाति के महत्त्व को समझते हुए, हमने पीपीवी और एफआर प्राधिकरण, नई दिल्ली द्वारा दिए जाने वाले Plant Genome Saviour Community (PGSC) अवार्ड के लिए खार्ची गांव समुदाय के लिए आवेदन किया। प्रत्येक वर्ष यह पुरस्कार किसानो, विशेषरूप से आदिवासी और ग्रामीण समुदायों के लोगो को कृषि जैव विविधता के संरक्षण व् सुधार के लिए प्रदान किया जाता है। पीपीवी और एफआर प्राधिकरण दवारा सभी प्रकार की जांच करने के बाद खारची गाँव के किसानो को यह प्रतिष्ठित पुरस्कार मिला, जिसमे एक प्रशस्ति पत्र, एक स्मृति चिन्ह और दस लाख रुपयों की राशि थी तथा यह पुरस्कार माननीय कृषि मंत्री द्वारा NASC कॉम्प्लेक्स, नई दिल्ली में आयोजित एक विशेष समारोह में दिया जाता है।

खर्चिया गेहूं से तैयार किये गए कुछ व्यंजनों के साथ एक किसान दम्पति

खारची गाँव का विवरण:

खारची गाँव, जिला मुख्यालय पाली से पूर्व की ओर 32 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह एक ग्राम पंचायत है, जिसका खर्चिया गेहूं की खेती में बड़ा योगदान है। जोग माया मंदिर के समय से खारची गाँव की अपनी एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है। उस समय, खारची गाँव आसपास के तीन गाँवों और पंचायत समिति मारवाड़ जंक्शन का मुख्य व्यवसाय केंद्र और बिक्री स्थल हुआ करता था। यह गाँव और इसके आस-पास की भूमि नमक से इतनी अधिक प्रभावित है कि ऐसा लगता है मानो किसी ने मिट्टी पर नमक की परत चढ़ा दी हो। नमक के जमने के कारण भूमि ऊपर से सफेद हो जाती है जिसे स्थानीय रूप से खारच कहा जाता है और इसलिए इस गांव को खारची नाम मिला। इस पंचायत का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल लगभग 12,224 वर्ग किमी है। जिसमें से 85 प्रतिशत भूमि क्षेत्र का उपयोग कृषि के लिए किया जाता है और केवल चार प्रतिशत ही सिंचित क्षेत्र है। गाँव के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि है क्लस्टर बीन, मूंग, तिल खरीफ में उगाए जाते हैं और रबी में मिर्ची, चीकू, जीरा और जौ प्रमुख कृषि फसलें हैं। बेर, आमला और लहसोरा मुख्य बागवानी फ़सलें हैं। इस जिले में कृषि आधारित औद्योगिक क्षेत्रों में मुख्य रूप से मेंहदी उद्योग, दाल उद्योग और दूध प्रसंस्करण संयंत्र शामिल हैं। कृषि के साथ पशुधन भी आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण भाग है।  गाँव में डेयरी क्षेत्र भी तेजी से बढ़ रहा है और वर्तमान में प्रतिदिन लगभग 2500 लीटर दूध का उत्पादन है तथा पशु, भैंस, भेड़ और बकरी यहाँ मुख्य पशु हैं।

जलवायु की स्थितिशुष्क से अर्ध-शुष्क, 20-25˚C  
मृदा प्रकारदोमट से रेतीले दोमट, नमक की मात्रा अधिक है।
खरचिया गेहूं की बीज दर100-120 Kg/Ha (मिट्टी के प्रकार पर निर्भर करता है)।  
बुवाई की विधि:  संरक्षित नमी की स्थिति में तथा सिंचित अवस्था में: 4-5 सिंचाई
उपज16-32 qt / Ha (न्यूनतम और उच्चतम उपज मिट्टी में नमक की मात्रा और पानी की उपलब्धि पर निर्भर करती है)
प्रमुख कीटदीमक
रोगYellow rust, Black smut

QUALITY PARAMETERS OF KHARCHIA WHEAT:

S. No.CharacteristicsKharchia wheatNormal Wheat
1.                   Grain colourRedGenerally amber
2.                   Grain TextureSemi-hardSemi-hard to Hard
3.                   ChapatiSoft (soft for eating and can be used for two days)Soft-semi-soft (can be used up to 4-5 hours on the same day only)
  Chapati prepared in morning is used with butter milk in the after noon gives more taste. Normal taste
4.                   DaliaAbsorbs plenty of water for cooking and gives more quantity after cookingAbsorbs less water
  Gives more taste due to absorption of more waterLess tasty as compared to kharchia wheat
5.                   Bran More branLess bran
6.                   Khichdi (Dalia+dal +ghee)Given to the pregnant ladies,  being light, there is less pressure on other body parts. It is light for stomach, increases blood and gives energy.Normal
7.                   Salt affected waterHigh productionLow production 
 Yield16-32 qt/ha10-15 q/ha
8.                   Straw yieldMore due to  tallnessLess due to short height
9.                   Marketing approach·    Used by local peopleWell established market channels.
  ·    Migrants from this region prefer to purchase bulk stock for the entire year from villagers/growers directly. 
पुरस्कार प्राप्त करते हुए खारची गाँव के किसान

चूंकि, गाँव की भूमि ज्यादातर खारी है, इसलिए, राजस्थान के पाली जिले के खारची और आस-पास के क्षेत्र में खर्चिया गेंहू की खेती की जाती है। खारची गांव में 1200 बीघा में खर्चिया गेहूं उगाया जाता है। खर्चिया गेहूं की औसत उपज लगभग 16-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। लवणीय मिट्टी में खेती करने पर उपज की क्षमता कम होती है और यदि सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो और भूमि सामान्य हो तो उपज बढ़ जाती है। किसान खेतों में केवल फार्म यार्ड खाद (FYM) का उपयोग करते हैं। परन्तु खर्चिया गेहूं की खेती प्रायः नमी और रासायनिक उर्वरकों के बिना की जाती है। चेन्नई, पुणे, बैंगलोर, हैदराबाद जैसे अन्य स्थानों के किसानों द्वारा भी खारची गाँव का दौरा किया जाता है जो इस गेंहू की गुणवत्ता के बारे में अच्छी तरह से जानते है और बुवाई के उद्देश्य से खारचिया गेहूँ खरीदने के लिए आते हैं। गाँव की महिलाओ से बातचीत के दौरान, यह पता लगा गया कि खर्चिया गेहूँ बहुत ही पौष्टिक और स्वास्थ्यवर्धक होता है इसके आटे से लड्डू और बर्फी बनायीं जाती है। इन लड्डूओं को एक सप्ताह या दस दिनों के प्रसव के बाद शिशु की माँ को एक पौष्टिक व्यंजन के रूप में दिया जाता है। इस से बने दलिया और लापसी का उपयोग आमतौर पर नाश्ते में किया जाता है। महिलाओं द्वारा यह भी बताया गया कि इस गेहूं का आटा गूंधने में अधिक मात्रा में पानी सोखता है और इसकी रोटी का स्वाद मीठा होता है तथा 24 घंटे तक  ताजा रहती है और कभी भी अन्य गेहूं की किस्मों की तरह सूखती नहीं है। भंडारण में किसी प्रकार के कीट-पतंगे अनाज पर आकर्षित नहीं होते हैं, इसलिए इसे लंबे समय तक भंडारघर में रखा जा सकता है।