राजस्थान में मिलने वाली चमगादड़ प्रजातियां

राजस्थान में मिलने वाली चमगादड़ प्रजातियां

राजस्थान में पाए जाने वाले चमगादड़ों की विविधता को संकलित करता आलेख

चमगादड़ स्तनधारी प्राणियों का एक ऐसा समूह जिसे लोग सदैव हेय दृष्टि से ही देखते आये हैं।  इन्होंने भी अपने आप को हमसे दूर रखने में कोई कमी नहीं रखी, एक तो उड़ने वाले प्राणी के रूप में विकसित हुए और दूसरे यह मात्र रात के समय सक्रिय रहते हैं। चमगादड़ एकांत प्रेमी होते हैं और अक्सर निर्जन स्थान पर रहते हैं। इन सभी वजहों के कारण हम इनके बारे में कम ही जानते हैं। वहीं इनके जीवन जीने की सैली भी थोड़ी विचित्र है, यह प्राणी अपना मूत्र और विष्ठा का उत्सर्जन वहीं करते है जहाँ यह रहते हैं, जिसकी गंध अक्सर अन्य प्राणी पसंद नहीं करते और  इस तरह चमगादड़ अपने आप को अन्य प्राणियों से बचाते हैं और वहीं इंसान भी इन्हें दूर रखने का प्रयास करते हैं।

चमगादड़ को भोजन के आधार पर दो मुख्य भागों में बांटा जा सकता है – फल खाने वाले विशाल फल भक्षी मेगाबैट्स और दूसरे किट खाने वाले छोटे कीटभक्षी माइक्रो-बैट्स। राजस्थान में ३ चमगादड़ फ्रूट बैट प्रजाति की है और बाकि लगभग 18 कीटभक्षी प्रजाति की है। हालांकि कुछ और भी चमगादड़  प्रजातियां राजस्थान में हो सकती है और जंतु वैज्ञानिकों में कई प्रजातियों के राजस्थान में मिलने नहीं मिलने को लेकर कई तरह की बहस भी चल रही है।
राजस्थान में निम्न चमगादड़ प्रजातियां आसानी से मिल जाती है।

मेगाबैट्स:

यह बैट इकोलोकेशन का इस्तेमाल नहीं करते है और फलों को खाकर अपना पेट भरते है।  तीन प्रजातियों की फ्रूट बैट हमारे यहाँ मिलती है।

1. इंडियन फ्लाइइंग फॉक्स (Pteropus medius)

अधिकांशतया बरगद के विशाल वृक्षों पर कॉलोनी बनाकर रहते है। यह एक विशाल चमगादड़ है जिनके हाथों के साथ पंखों का फैलाव 890mm तक हो सकता है। यह अक्सर विशाल बरगद के वृक्षों पर मिलते है।  बरगद, गूलर आदि फलों को खाने वाले यह चमगादड़ अपनी विष्ठा से बीजों को फैलाने में एक महत्ती भूमिका निभाते हैं।

2. ग्रेटर शॉर्ट-नॉज्ड फ्रूट बैट (Cynopterus sphinx)

यह चमगादड़ इंडियन फ्लाइंग फॉक्स की तुलना में आधे आकार की फ्रूट बैट है। जिनके पंखों का फैलाव 480 mm तक होता है।  दिन के समय यह केले, घने पत्ते वाले पेड़ों में छिप कर रहती है। राजस्थान में इसका प्रसार व्यापक है परन्तु राज्य में इसे 1980 में पहली बार देखा गया।

 

3. लेसचेनॉल्ट का रुसेट (Rousettus leschenaultii)

इस फ्रूट बैट का आकर 560 mm तक होता है। अक्सर यह चमगादड़ गुफाओं अथवा इमारतों में मिलती है। झालावाड़ के गागरोन के किले और जालोर के स्वर्णगिरि के किले पर इसके बड़े समूह देखे जा सकते है।

माइक्रोबैट्स:

राजस्थान में अनेक कीटभक्षी चमगादड़ मिलती है।

A. राइनोपोमा (माउस-टेल्ड बैट)

राजस्थान में अनेक स्थानों पर राइनोपोमा चमगादड़ मिल जाती है। यह एक चूहे के समान दिखने वाली चमगादड़ है जिसके एक लम्बी पूंछ होती है। राजस्थान में इनकी दो प्रजातियां पाई जाती है

4. लेसर माउस-टेल्ड बैट (Rhinopoma hardwickii)


5. ग्रेटर माउस-टेल्ड बैट (Rhinopoma microphyllum)

R. hardwikii की पूंछ इनके फोरआर्म से लम्बी होती है। इनके नाक के पास दोनों और फुले हुए नथुने होते है इन भिन्नताओं के अलावा इसमे और R. microphyllum में कोई अंतर नहीं है।

B. टैफोज़स (टॉम्ब बैट)

इस वंश की 4 प्रजातियां राजस्थान में मानी जाती है। इस जीनस की चमगादड़ को टॉम्ब बैट कहा जाता है, अक्सर पुरानी इमारतों में रहती है अथवा गुफाओं के खुले हिस्से को पसंद करती है। यानी अधिक गहरी और अधिक अँधेरी जगह में कम रहती है।

6. नेकेडरम्प्ड टॉम्ब बैट (Taphozous nudiventris)

7. लॉंग-आर्मड टॉम्ब बैट (Taphozous longimanus)

8. ब्लैक बेयरडेड टॉम्ब बैट (Taphozous melanopogon)

9. ईजिप्शियन टॉम्ब बैट (Taphozous perforatus)

इन में से नुडीवेन्ट्रिस बैट के शरीर पर अत्यंत छोटे और पतले बाल होते है एवं इसके ऊपरी भाग पर एक तिहाई हिस्से पर बाल नहीं होते है यानि इसका रम्प वाला हिस्सा नग्न होता है। यह सूर्यास्त से आधे घंटे पहले सक्रिय हो जाती है, तेजी से उड़ती है और उड़ते हुए कीड़ों को शिकारी पक्षी की भांति पकड़ती है। वहीं लोन्गिमैनस की आगे की आर्म अधिक लम्बी होती है और मुँह के नीचे बाल रहित गले के पास एक अर्ध गोलाकार गूलर सैक होता है। मेलनोपोगों के नर में गले पर काली दाढ़ी होती है।

C. हिप्पोसिडरोस (राउन्डलीफ बैट)

10. फुलवस लीफ-नोज़ड़ बैट (Hipposideros fulvus)


11. इंडियन राउन्डलीफ बैट (Hipposideros lankadiva)

इनके नाक पर मिलने वाले विभिन्न आकारों के कारण इन्हे सामूहिक रूप से राउंड लीफ चमगादड़ कहा जाता है। इसमें अभी तक दो प्रजातियों के चमगादड़ राज्य में मिले हैं। फुलवस प्रजाति आकर में छोटी और लंकादिवा आकर में बड़ी होती है। लंकादिवा अक्सर नम क्षेत्र में मिलती है और राज्य में मात्र करौली जिले में ही देखी गयी है, जो इस आलेख के लेखक ने ही पहली बार रिकॉर्ड की है। फुलवस राज्य में जैसलमेर से लेकर धौलपुर तक सभी हिस्सों में मिल जाती है।  यद्यपि यह भी कुछ नमी वाले स्थानों को पसंद करती है और राइनोपोमा चमगादड़ के साथ भी रह लेती है।

D. स्कोटोफिलुस (येल्लो बैट)

12. लेसर एशियाटिक येल्लो बैट (Scotophilus kuhlii)


13. ग्रेटर एशियाटिक येल्लो बैट (Scotophilus heathii)

एक वेस्पर्टिलिओनिडे परिवार की बैट है, वेस्पर का अर्थ है ‘शाम’; उन्हें “शाम के चमगादड़” कहा जाता है।  इसमें २ प्रजाति राजस्थान में मिलती है। हीथी सबसे अधिक मिलने वाली बैट है जो अकसर भवनों की सीधी दीवारों पर चिपकी रहती है। इन की मादा चमगादड़ में शुक्राणु संग्रहित करने की क्षमता होती है जो ओव्यूलेशन के समय इस्तेमाल होते है। कुहली आकर में छोटी होती है और ब्रीडिंग के समय इनके अंदरूनी हिस्से का रंग और अधिक पीला हो जाता है।

E. टैडारिडा (फ्री-टेल्ड बैट)

इस जीनस में मुक्त पूंछ वाले चमगादड़ों की 2 प्रजातियों राजस्थान में मिलती हैं।

14. ईजिप्शियन फ्री-टेल्ड बैट (Tadarida aegyptiaca)

15. रिंकल-लिप्ड फ्री-टेल्ड बैट (Tadarida plicata)

यह सबसे तेजी से उड़ने वाले बैट है जो १५० कम प्रतिघंटा की स्पीड से उड़ सकती है।  इसको तेजी से उडने में इसकी पूंछ और उस से लगी झिल्ली काम आती है।  इनकी पूँछ आमतौर पर आराम करते समय ही दिखाई देती है। इनकी उपास्थि (cartilage) का एक विशेष छल्ला पूंछ कशेरुकाओं को ऊपर या नीचे स्लाइड करती है साथ ही पूंछ के पास की झिल्ली भी मांसपेशियों द्वारा आगे पीछे खींचने के काम आती है। aegyptiaca प्रजाति अधिकांश राजस्थान में सामान्य तौर पर मिल जाती है परन्तु plicata  मात्र माउंट आबू से 1980 में श्री सिन्हा द्वारा रिपोर्टेड है। यह तेजी से आवाज करने में भी माहिर है।

F. राइनोलोफस (हॉर्सशू बैट) 

16. ब्लीदस हॉर्सशू बैट (Rhinolophus lepidus)

राइनोलोफस जीनस में हॉर्सशू बैट की कई प्रजातियों आती है। असल में इन चमगादड़ों की नाक के चारों ओर त्वचा का एक गोलाकार आवरण होता है जो घोड़े की नाल की तरह होता है।अधिकांश कीटभक्षी चमगादड़ों की तरह, उनकी आंखें छोटी होती हैं और उनकी दृष्टि का क्षेत्र अक्सर उनकी नाक की पत्ती तक सीमित होता है।  राजस्थान में एडवर्ड ब्लाइथ द्वारा खोजी गयी एक बैट मिलती है।  यह नाम गुफा में मिलने वाली छोटी बैट है।

G. लयरोडेर्मा (फ़ाल्स वैम्पायर बैट)

17. ग्रेटर फ़ाल्स वैम्पायर बैट (Lyroderma lyra)

यह अपेक्षाकृत बड़े चमगादड़ हैं, जिनके बड़ी आंखें  और बहुत बड़े कान और एक उभरी हुई नाक पर एक पत्ती समान संरचना होती है। उनके पिछले पैरों या यूरोपेटागियम के बीच एक चौड़ी झिल्ली होती है, लेकिन कोई पूंछ नहीं होती। इनका पुराना नाम मेगाडरमा था। इन्हें फाल्स वैम्पायर बैट कहते है।  यह वैम्पायर जैसे लगते है परन्तु असल में यह अन्य प्राणियों का रक्त नहीं पीते है। राजस्थान में इसकी एक ही lyra नामक प्रजाति मिलती है।

H. पिपिस्टरेलस

18. केलार्ट पिपिस्ट्रेल (Pipistrellus ceylonicus)


19. लीस्ट पिपिस्ट्रेल  (Pipistrellus tenuis)

जीनस का नाम इतालवी शब्द पिपिस्ट्रेलो से लिया गया है, जिसका अर्थ है “चमगादड़”।  यह अत्यंत छोटे चमगादड़ है।  जिनमें २ चमगादड़ राजस्थान से शामिल किये गए है। यह वजन में मात्र ३-८ ग्राम तक के है। इनकी पहचान बाह्य आकर से कम ही हो सकती है परंतु वैज्ञानिक इनकी आवाज , डीएनए, एवं स्कल की बनावट से इनका पता लग सकते है।  केलार्ट पिपिस्ट्रेल (Pipistrellus ceylonicus) को अब तक मात्र माउंट आबू, सिरोही से रिकॉर्ड किया गया है। लीस्ट पिपिस्ट्रेल (Pipistrellus tenuis)  को गुढ़ा, लिहोरा, नावा, नागौर, (बिस्वास और घोस 1968) जोधपुर, नागौर, जयपुर, टोंक, पाली, सिरोही (सिन्हा 1980) आदि से रिकॉर्ड किया है। यद्यपि यह राजस्थान में विस्तृत रूप से मिलती है।

I. स्कोटोजोस

20. डॉर्मर पिपिस्ट्रेल (Scotozous dormeri)

 

इस जीनस में मात्र एकमात्र प्रजाति है, यह है -डॉर्मर पिपिस्ट्रेल (स्कॉटोज़स डॉर्मरी) प्रजाति। वितरण: जोधपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, भरतपुर (सिन्हा, 1980)

J. असेलिआ

21. ट्राइडेंट लीफ़-नोज़्ड बैट (Asellia tridens)

यह चमगादड़ गर्म क्षेत्रों में मिलती है। इसकी महत्वपूर्ण खोज राजस्थान से मात्र १० वर्ष पूर्व में की गयी है और साथ में पहली बार यह चमगादड़ भारत की सूची में भी शामिल हुई है। राजस्थान के दो जंतु वैज्ञानिक डॉ के आर सेनेचा एवं डॉ सुमित डूकिया ने मिलकर इसकी खोज जैसलमेर से 2013 में की है। इस खोज के बाद शायद इसे पुनः कभी नहीं देखा गया है। इसके नाक की पत्ती नुमा संरचना त्रिशूल के आकर की होती है यानी इसके तीन भाग होते हैं; बाहरी दो हिस्से कुंद हैं, जबकि केंद्रीय हिस्सा नुकीला होता है।

संकलित चमगादड़ों की सूची के अलावा भी कई और चमगादड़ों का राजस्थान के वैज्ञानिक साहित्य में वर्णन है परन्तु उनके रिकॉर्ड त्रुटि पूर्ण लगते है। अतः इन २१ चमगादड़ों को ही राजस्थान का माना जाना चाहिए, यह मेरा मत है।

राजस्थान के एक खूबसूरत ऑर्किड का एक पेचीदा परागण

राजस्थान के एक खूबसूरत ऑर्किड का एक पेचीदा परागण

राजस्थान एक सूखा क्षेत्र है परन्तु कुछ सुंदर दिखने वाले नम क्षेत्रों के अनोखे पौधे भी यदा कदा इधर उधर मिल जाते है। इसी तरह का एक खूबसूरत ऑर्किड – ईस्टर्न मार्श हेलेबोरिन (एपिपैक्टिस वेराट्रिफ़ोलिया- Epipactis veratrifolia) राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में मिलता है। इस के अलावा राजस्थान में यह कहीं और से अभी तक देखा नहीं गया है।  इस तरह के पौधे कैसे अपने लायक उपयुक्त स्थान तलाश लेते है एक शोध का विषय है । यद्यपि यह पूरे भारत में कई  अन्य स्थानों पर पाया जाता है। यह एक स्थलीय आर्किड है।

एपिपैक्टिस वेराट्रिफ़ोलिया, Epipactis veratrifolia

राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में पाए जाने वाला ईस्टर्न मार्श हेलेबोरिन (Epipactis veratrifolia)

परन्तु इस ऑर्किड के परागण की प्रक्रिया अत्यंत रोचक है – यह होवरफ्लाइज़ नामक कीट को धोखा देकर परागण प्रक्रिया को संपादित करता है।
होवरफ्लाइज़ एक छोटी मक्खी नुमा कीट है जो फूलों के आस पास मंडराते है।  यह आर्किड इसके लिए एक रणनीति का उपयोग करते है जो अत्यंत जटिल है, यह एक अन्य कीट एफिड के अलार्म फेरोमोन की नकल करते हुए गंध को छोड़ते  है। यानी ऐसी गंध जो एफिड खतरे के समय छोड़ता है।

होवरफ्लाइज़, अपने लार्वा के लिए एफिड्स को भोजन के रूप में पसंद करते है। चूँकि यह ऑर्किड भी एफिड द्वारा छोड़ी गई अलार्म गंध के समान ही गंध छोड़ता है, तो मादा होवरफ्लाइज़ को आभास होता है की, कोई एफिड समूह ऑर्किड के फूल के पास है, और यह होवरफ्लाईस उस ओर आकर्षित होती हैं।

Hoverflies होवरफ्लाइज़

होवरफ्लाइज़ अनजाने में अपने अंडे इस ओर्किड के फूल को एफिड समझ कर फूल पर ही जमा कर देते हैं

ये होवरफ्लाइज़ अनजाने में अपने अंडे एफिड समझ कर इस आर्किड के फूल पर ही जमा कर देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अंडे से निकले उनके लार्वा का भूख से दुखद अंत होता है। हालांकि यह विश्वासघात न केवल होवरफ्लाइज़ के लिए जोखिम पैदा करता है बल्कि आर्किड के पौधे को भी खतरे में डालता है यदि वे अपने स्वयं के परागणकर्ताओं को ही मार देते हैं।

फिर ऐसा क्यों होता है ?

दिलचस्प बात यह है कि शोधकर्ताओं ने देखा है कि यह पौधा एफिड्स से मुक्त रहता है। नतीजतन, वैज्ञानिक अनुमान लगाते हैं कि ऑर्किड एक ऐसी गंध का उत्सर्जन करता है जो एफिड्स को उनसे दूर रखता है, अनजाने में स्वयं होवरफ्लाइज़ को धोखा देता है। अतः इसका पहला उद्देश्य है एफिड को दूर रखना और दूसरा स्वार्थ परागण करवाना अपने आप सिद्ध हो जाता है।

शायद आपने इतने कलिष्ट परागण प्रक्रिया को कभी नहीं सुना हो।