रणथंभोर में बाघ संरक्षण की वर्तमान चुनौतियां

रणथंभोर में बाघ संरक्षण की वर्तमान चुनौतियां

राजस्थान में बाघ संरक्षण में रणथंभोर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है और यहीं से राज्य के अन्य क्षेत्रों के लिए बाघों को भेजा जा रहा है। अक्सर यह देखा गया है की राजनीतिक दबाव के कारण नए स्थापित रिजर्वों में भेजे जाने वाले बाघों का चयन जल्दबाजी में अवैज्ञानिक तरीके से किया जाता रहा है, जिससे रणथंभोर के बाघों की आबादी पर गहरा नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। यह लेख रणथंभोर में बाघों की आबादी से जुड़ी मुश्किलों और चुनौतियों पर प्रकाश डालता है, साथ ही यह आलेख स्पष्ट करता है की किस प्रकार कुछ वर्षों में किये गए बाघों के अन्यत्र स्थानांतरण ने रणथंभोर को किस प्रकार मुश्किल में डाला है।

यहाँ मुख्यतः निम्न प्रश्नों पर टिप्पणी की गई है:

  • रणथंभोर के बाघों में अक्सर नर अपना जीवनकाल पूरा नहीं कर पाते और समय से पहले ही अपना क्षेत्र खो देते हैं, जबकि मादा अधिक समय तक जीवित रहती हैं, कुछ तो 19 वर्ष की आयु भी पार कर जाती हैं। इसके पीछे क्या कारण रहते है? यदि स्थान की कमी मात्र एक कारण होता तो यह प्रभाव दोनों पर देखने को मिलना चाहिए था?
  • रणथंभोर में बाघों की वर्तमान जनसंख्या के आंकड़े क्या हैं? और रणथंभोर की बाघ आबादी में कितने नर और मादा हैं?
  • बढ़ते मानव-बाघ संघर्ष के पीछे क्या कारण हैं?

1.   वयस्क नर-मादा अनुपात में असंतुलन

वर्तमान में, रणथंभोर (डिवीजन I) की बाघ आबादी 46 (वयस्क) हैं – इनमें 23 नर और 23 मादा है। हालांकि, 23 में से केवल 18 मादा ही प्रजनन योग्य हैं। जबकि पाँच बाघिनें (T08, T39, T59, T69, और T84) 15 वर्ष से अधिक या समकक्ष आयु अथवा बीमार हैं और उनके आगे प्रजनन करने की संभावना अत्यंत क्षीण है। हालाँकि अभी 23 नर में से कोई भी नर 11 वर्ष से अधिक का नहीं हुआ है, जो नरों के बीच उच्च संघर्ष दर का कारण है। वयस्क नर समय से पहले ही उनकी टेरिटरी से भगा दिए जा रहे है।

रणथंभोर में 46 वयस्क बाघों के अलावा 15 शावक भी हैं। इसके अतिरिक्त, कैलादेवी क्षेत्र (रणथंभोर के डिवीजन II) में 4 बाघ हैं, जिससे रणथंभोर बाघ अभयारण्य में बाघों की कुल आबादी 65 हो गई है। हालांकि, रणथंभोर में कुछ लोगों की माने तो 88 बाघ है, परन्तु यह दावे गलत हैं। एक समय यह संख्या निश्चित रूप से 81 तक पहुँच गई थी, लेकिन कई बाघ प्राकृतिक कारणों से समय से पहले मर गए और अनेक बाघ इधर उधर भेज दिए गए। आजकल शावकों को भी गिनती में शामिल किया जाने लगा है, जिससे बाघों की बढ़ी हुई संख्या सामने आती है। हालाँकि छोटे शावकों को गिनती में शामिल करना एक सही तरीका नहीं है। अक्सर वन अधिकारियों द्वारा इन बढ़े हुए आंकड़ों को मीडिया में बढ़ावा दिया जाता रहा है। इसका उद्देस्य असल में रणथंभोर से बाघों के स्थानांतरण को विरोध का सामना नहीं करना पड़े इसलिए किया जा रहा है।

2.   बाघों के स्थानांतरण के परिणाम: बिगड़ा हुआ लिंग अनुपात, परिणाम स्वरूप मानव-बाघ एवं बाघ-बाघ संघर्ष में बढ़ोतरी।

अब तक 11 बाघिनों (T1, T18, T44, T51, T52, T83, T102, T106, T119, T134, और T2301) और 5 नर बाघों (T10, T12, T75, T110, और T113) को रणथंभोर से दूसरे रिजर्व में स्थानांतरित किया जा चुका है। मादा-से-नर के इस 2:1 स्थानांतरण अनुपात ने रणथंभोर में नर-मादा के अनुपात को पूरी तरह असंतुलित कर दिया है। पारिस्थितिकी जरूरत के अनुरूप बनाए जाने के बजाय,  राजनीतिक प्रभाव में स्थापित किए गए नए रिजर्व एवं बिना इकोलॉजिकल सुधार के बाघों के स्थानांतरण के कारण अनेक स्थानांतरित बाघों (T10, T12, T44, T75, T83, T102, और T106) की मृत्यु दर्ज की गयी, साथ ही उनको प्रजनन सफलता की कमी और मानव-वन्यजीव संघर्षों का सामना करना पड़ा है। रणथंभोर के भीतर गुढ़ा और कचिदा जैसे प्रमुख क्षेत्र अब बाघों के हटाए जाने के कारण खाली पड़े हैं, जिससे आबादी का सामाजिक ढांचा बाधित हो रहा है क्योंकि इन जगह से अनेक बार रेजिडेंट बाघों को उठाया गया है। जैसे स्थानांतरित बाघिन T102 का क्षेत्र तीन वर्षों से अधिक समय से खाली पड़ा है। इसी तरह, नर T12 के स्थानांतरित होने के बाद, उसकी मादा  साथी T13 पार्क छोड़कर चली गयी और अंततः उसके दो शावक मारे गए। यह सभी कारण प्रदर्शित करते है कि बाघों के संरक्षण में अवैज्ञानिक तरीके अपनाए गए है।

3.   युवा नर बाघों की अधिक संख्या से संघर्ष बढ़ रहे हैं

रणथंभोर में आज के समय जो 23 नर हैं, उनमें सबसे अधिक उम्र का मात्र एक बाघ है, जो 10-11 साल का है।  इन 23 बाघों में से 20 बाघ छह साल से कम उम्र के हैं, जो दर्शाता है कि इनके मध्य संघर्ष बढ़ने की संभावना है और यह सब भी संघर्ष का ही नतीजा प्रतीत हो रहा है। इन बाघों के बीच क्षेत्रीय संघर्ष के कारण बाघ अपनी उम्र से पहले ही टेरिटरी छोड़ रहे है।

कुछ को नए क्षेत्रों की तलाश में बाहरी क्षेत्रों में जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है। रणथंभोर में विषम लिंग अनुपात के बारे में पता होने के बावजूद, पिछले साल तीन बाघिनों को अन्य क्षेत्रों में स्थानांतरित कर दिया गया था। संतुलन बहाल करने और संघर्ष को कम करने के लिए नर बाघों की अधिक संख्या को नियंत्रित करने की आवश्यकता है और मादाओं के स्थानन्तरित करने पर रोक की ओर अधिक बल देना चाहिए।

4.   रणथंभोर में बाघिनों की दीर्घायु के कारण

रणथंभोर में मादाएँ अक्सर लंबे समय तक जीवित रहती हैं, कुछ की आयु 19 वर्ष से अधिक पहुंची है। यह दीर्घायु आंशिक रूप से पार्क अधिकारियों द्वारा किए गए हस्तक्षेपों के कारण है, जो अक्सर स्वास्थ्य चुनौतियों या शिकार की कठिनाइयों का सामना करने वाले बाघिनों को शिकार उपलब्ध करवाकर के उनकी सहायता करते हैं। हालाँकि ये उपाय उनके कठिन समय के दौरान जीवित रहने को सुनिश्चित करते हैं, परन्तु वे उन्हें जंगल की प्राकृतिक प्रतिकूलताओं से बचाकर कृत्रिम रूप से उनके जीवनकाल को भी बढ़ाते हैं। इसमें सबसे बड़े कारण हमारे मीडिया बंधु होते है अथवा बाघ प्रेम प्रदर्शित करने वाले सोशल मीडिया के बाघ प्रेमी जो इसके लिए अक्सर कई तरह से दबाव बनाते है। दूसरा कारण है की बाघिनें पार्क के भीतर अधिक आसानी से दिखाई देती हैं, अक्सर अधिकारियों को अधिक दिखाई देती है और वे उनके प्रति नरम दृष्टिकोण अपनाते हैं ओर उन्हें बुढ़ापा आने तक भी मरने नहीं देते है।

इसके अलावा, युवा बाघिनों को अन्य रिजर्व में स्थानांतरित करने से रणथंभोर में मादाओं की संख्या में और कमी आई है। परिणामस्वरूप, शेष बाघिनों, जिनमें से कई बड़ी उम्र की हैं को शिकार, पानी और सुरक्षित क्षेत्रों जैसे संसाधनों के लिए कम प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है ओर वे आधी उम्र तक जिंदा रहती है।

हालाँकि, प्रजनन क्षमता वाली कम उम्र की मादा बाघिनों के स्थानांतरण के साथ, सीमित प्रजनन क्षमता वाली वृद्ध मादा बाघिनों की उपस्थिति इस भ्रामक धारणा को और मजबूत करती है कि पार्क में संतुलित या अधिक मादा आबादी है। यह क्षेत्र में बाघ आबादी की दीर्घकालिक स्थिरता को कमजोर करता है।

5.   क्या रणथंभोर से बाघों के स्थानांतरण को पूरी तरह से रोक दिया जाना चाहिए?

नहीं, बाघों के स्थानांतरण को पूरी तरह से रोकना समाधान नहीं है। रणथंभोर की बाघ आबादी राज्य और उसके बाहर के अन्य पार्कों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हालाँकि, ऐसे स्थानांतरण के लिए धैर्य, सावधानीपूर्वक योजना और सूचित निर्णय की आवश्यकता होती है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि स्रोत आबादी को खतरे में डाले बिना (स्रोत और प्राप्तकर्ता) दोनों क्षेत्रों को लाभ हो।

रणथंभोर में वर्तमान में 15 शावक वयस्कता के करीब हैं, जो भविष्य के स्थानांतरण की संभावना प्रदान करते हैं। हालाँकि, इस स्तर पर मादा बाघिनों को और हटाने से आबादी की स्थिरता गंभीर रूप से बाधित हो सकती है। अन्य अभयारण्यों की जरूरतों को रणथंभोर की बाघ आबादी के दीर्घकालिक स्वास्थ्य और स्थिरता के साथ संतुलित करना महत्वपूर्ण है।

सुझाव

1.  बाघिनों के स्थानांतरण पर तुरंत रोक लगाएं

रणथंभोर की आबादी को और अधिक अस्थिर होने से बचाने के लिए बाघिनों के स्थानांतरण को रोका जाना चाहिए। यदि स्थानांतरण आवश्यक है, तो  कुछ नर बाघों को स्थानांतरित करने से क्षेत्रीय टकराव कम होगा और महत्वपूर्ण मादा आबादी सुरक्षित रहेगी।

2.  आनुवंशिक विविधता के लिए अन्य राज्य का सहयोग करें एवं उनसे मदद

राजनीतिक रूप से समान विचारधारा के राज्यों जैसे मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र से नए बाघ मांगे जा सकते है।  उनसे बाघों के आदान-प्रदान का अवसर ढूँढने पर बल देना चाहिए। इससे राजस्थान की बाघ आबादी में नई आनुवंशिक विविधता का संचार होगा और इसकी दीर्घकालिक व्यवहार्यता मजबूत होगी।

3.  डिवीजन II के विकास पर ध्यान केंद्रित करें

नए रिजर्व बनाने के बजाय, संसाधनों को रणथंभोर के डिवीजन II के विकास के लिए आवंटित किया जाना चाहिए। स्रोत आबादी को मजबूत करना पूरे राजस्थान में बाघ संरक्षण प्रयासों को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।

4.  विचारशील स्थानांतरण रणनीतियों को अपनाएं

बाघ SBT 2303 के हालिया स्थानांतरण उल्लेखनीय कदम है, यह कोर आबादी को प्रभावित किए बिना भटकते बाघों को स्थानांतरित करने का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। कड़ी निगरानी और विशेषज्ञ परामर्श द्वारा समर्थित इसी तरह के स्थानांतरण को बढ़ावा देना चाहिए ।

5.  स्थानांतरण पर एक साल का स्थगन लागू करें

स्थानांतरण पर अस्थायी रोक बाघों की निगरानी और अध्ययन में सहायता करेगा और साथ ही स्थानांतरण के लिए संभावित उम्मीदवारों पहचान में भी लाभकारी होगा। यह विराम सुनिश्चित करने में मदद करेगा कि भविष्य के स्थानांतरण विज्ञान-संचालित और न्यूनतम विघटनकारी हों।

पारिस्थितिकी नोट्स 1: प्राकृतिक रूप से मरे बाघों का शव क्यों नहीं मिलता?

पारिस्थितिकी नोट्स 1: प्राकृतिक रूप से मरे बाघों का शव क्यों नहीं मिलता?

आज कल जब भी बाघ अभयारण्य से कोई बाघ गायब होते है तो मीडिया के लोग और वन्य जीव प्रेमी वन अधिकारियों को एक कटघरे में खड़ा कर देते है की मृत बाघ का शव क्यों नहीं मिला? यह जवाब आसान नहीं है परन्तु हमें समझाना होगा की – अक्सर दो तरह के बाघ गायब होते है – बूढ़े अथवा आपसी लड़ाई में घायल हुए अन्य बाघ।  हालाँकि देखे तो बाघों का पूरा जीवन ही संघर्ष मय होता और कोई भी बाघ वनों में 15 वर्ष से अधिक उम्र आसानी से प्राप्त नहीं कर सकता, क्योंकि उसकी जैविक गतिविधियां जैसे प्रजनन आदि सिमित होने लगती है।  ऐसे में उन्हें अपने साथी बाघ का सहयोग भी नहीं मिल पाता और आपसी संघर्ष अधिकांशतया नए नए वयस्कता हासिल किये हुए बाघों में अधिक होती है। हालांकि दोनों ही तरह के बाघ अभयारण्य से बाहर भी निकल जाते है।

आप जानते है की बाघ सर्वोच्च शिकारी प्राणी है जिसने जीवन पर्यन्त शिकार से ही अपना पेट पालन किया है।  शिकार करना एक अत्यंत दुष्कर कार्य है जिसके लिए कई प्रकार के जतन करने पड़ते है और पूरा जीवन शारीरिक क्षमता और बौद्धिक कुशलता पर निर्भर करता है।  एक बाघ 15 -16 वर्ष के अपने जीवन काल में 600 -800 जीवों (चितल के आकार के) को अपना भोजन बनता है, क्योंकि उन्हें 40 -50 प्राणी हर वर्ष भोजन के रूप में चाहिए। शिकार के सम्बन्ध में हर समय चौकना रहना और प्रयासरत रहना ही बाघ के जीवन का मूल आधार है- इसके लिए ही वह प्रशिक्षित है और इसके लिए ही वह विकसित हुए है। उनके शरीर की बनावट, लचक और ताकत एवं साथ ही उसके दिमाग की फितरत और मानसिक दृढ़ता का उद्देश्य मात्र बड़े से बड़ा प्राणी और अधिक से अधिक प्राणियों के शिकार के अनुरूप ही बने है।

दूसरी तरफ बाघ एक टेरीटोरियल प्राणी है जिसे अपने क्षेत्र की रक्षा करनी है जिससे उसे निर्बाध रूप से पर्याप्त भोजन मिल सके और साथ ही आसानी से अन्य जरूरत भी पूरी होती रहे।   टेरिटरी बनाने के लिए वह निरन्तर दूसरे बाघों से द्वन्द्व करता रहता है। इसी प्रकार मादा और नर का साथ पाने के लिए भी संघर्ष ही एक मात्र रास्ता है। मादा बाघ के लिए, चुनौती बढ़ जाती है क्योंकि उसे अपने शावकों को अन्य बाघों से बचाना होता है। क्षेत्र को सुरक्षित और संरक्षित करने में विफलता के गंभीर परिणाम हो सकते हैं, जिससे भुखमरी, चोट या यहां तक कि मृत्यु भी हो सकती है।

मौत के 48 घंटे बाद मिले शव की यह हालत है; यह उसी स्थान पर दूसरे बाघ से संघर्ष के बाद मारा गया था। अगर यह घायल होता तो छिपकर मारा जाता।

क्षेत्रीय संघर्षों (टेर्रीटोरैल फाइट)  के कारण विस्थापित हुए वृद्ध और युवा बाघों के लिए और भी अधिक खतरनाक स्थिति तब पैदा होती है जब वे घनी आबादी वाले गांवों के पास जाते हैं। यहां, उन्हें मवेशियों और अन्य पशुओं के रूप में आसान शिकार का सामना करना पड़ता है, लेकिन ग्रामीणों के साथ संघर्ष का जोखिम बहुत अधिक रहता है।

साथ ही बाघ के जीवन में भोजन के लिए द्वन्द्व तो है ही और अन्य द्वन्द्व भी है जैसे – टेरिटरी के लिए द्वन्द्व, साथी हासिल करने के लिए जंग और खुद की और अपने परिवार की रक्षा के लिए जंग यह सभी सतत प्रक्रियाएं है।

इस प्रकार, बाघ का जीवन भोजन, क्षेत्र, संभोग और सुरक्षा के लिए संघर्षों से भरा होता है। जीवित रहने के लिए, बाघ मृत्यु दर और संभावित खतरों के बारे में तीव्र जागरूकता विकसित करता है। वह समझता है कि अगर वह कमजोर हो गया, तो प्रतियोगी उसे मार देंगे, जैसा कि उसने दूसरों को किया है। बाघ जैसे जैसे कमजोर और वृद्ध होता है वह डर और भय वश अपने आप को अन्य बाघों से अलग- थलग कर लेता है, अपने विचरण को संयमित कर लेता है – खुले में घूमने की बजाय छुप कर रहने लगता है। अक्सर यह  दो बाघों की टेरिटरी के मध्य सबसे  एकांत स्थान का चयन करते है।  अपनी जरूरतों को संकुचित करते है।  टेरिटरी की रक्षा नहीं करते, बच्चे का लालन पालन आदि से निवृत्त हो ही जाते है।  परन्तु कभी न कभी यह किसी मजबूत और उस क्षेत्र के मुख्य बाघ के द्वारा मार भी दिए जाते है या रुग्ण अवस्था में किसी गुफा या कटीली झाडी के मध्य जा कर यह अपनी अंतिम साँस लेते है। अतः इनका अंतिम समय में दिखना अत्यंत मुश्किल हो जाता है।

यहाँ आप बाघ के शव को तेज़ी से सड़ते हुए देख सकते हैं। माना जा रहा है कि यह शव सिर्फ़ 5-6 दिन पुराना है और जंगली सूअरों और दूसरे जानवरों द्वारा सड़ने और खा जाने के कारण इसका वज़न सिर्फ़ 18-20 किलोग्राम रह गया है।

चूंकि मांसाहारी जानवर शाकाहारी जानवरों की तुलना में तेजी से सड़ते हैं, इसलिए मृत बाघों या अन्य मांसाहारियों के अवशेषों को ढूंढना विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है। बाघों में उच्च मांसपेशी घनत्व और कम शरीर वसा होता है, जो मांसपेशियों के ऊतकों की प्रकृति के कारण अधिक तेज़ी से टूटता है, जिसमें महत्वपूर्ण मात्रा में पानी और प्रोटीन होता है। मांसपेशियों के ऊतक बैक्टीरिया और एंजाइमेटिक गतिविधि के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं, जो अपघटन को तेज करता है। इसके विपरीत, शाकाहारी जानवरों में आमतौर पर अधिक शरीर में वसा और संयोजी ऊतक होते हैं। वसा, मांसपेशियों के विपरीत, अपनी कम पानी की मात्रा और माइक्रोबियल टूटने के प्रतिरोध के कारण अधिक धीरे-धीरे विघटित होती है।

इसके अतिरिक्त, शाकाहारी जीवों के पाचन तंत्र और आहार एक अलग माइक्रोबायोम बनाते हैं जो मांसाहारियों की तुलना में मृत्यु के बाद क्षय प्रक्रिया को धीमा कर सकता है। बाघों के उच्च प्रोटीन आहार में बैक्टीरिया और एंजाइम होते हैं जो मृत्यु के बाद अपघटन को तेज करते हैं। हालांकि, शाकाहारी जीवों में ऐसे बैक्टीरिया होते हैं जो पौधों की सामग्री को किण्वित करते हैं, जिससे अपघटन प्रक्रिया धीमी हो जाती है।

बाघ जैसे शिकारी प्राणियों के साथ विभिन्न प्रकार के कीड़े और सूक्ष्मजीव साहचर्य के रूप में रहते है जैसे फलेश फ्लाई जो इनके आस पास मंडराते हुए देखी जा सकती है। बाघ जैसे मांसाहारियों की गंध एवं उनका निरंतर किसी शिकार के संपर्क में रहना इन प्राकृतिक अपघटक कीटों एवं सूक्ष्मजीवों को आकर्षित करता है। बाघ की मृत्यु के बाद यही अपघटक इनका स्वयं का ही अपघटन को तेज कर देते हैं। साथ ही बाघ जैसे मांसाहारी प्राणी की आंत में बैक्टीरिया का अधिक लोड होता है जो मांस को पचने में अधिक माहिर होते हैं। जब बाघ स्वयं मर जाता है, तो ये बैक्टीरिया तेजी से गुणात्मक रूप से बढ़ते है, शाकाहारी प्राणियों की तुलना में ऊतकों को तेजी से तोड़ते हैं, जिनमें पौधों की सामग्री को पचाने के लिए अनुकूलित सूक्ष्मजीव होते हैं। इसीलिए जब आप बाघ बघेरे के शव को देखते है तो पाएंगे की इनकी खाल तुरंत सड़ने लगती है जबकि की किसी शाकाहारी प्राणी की खाल शरीर से चिपक कर सुख जाती है। बाघ आदि के शव की खाल से बाल तुरंत झड़ने लगता है जबकि शाकाहारी प्राणी की त्वचा से बाल चिपके रहते है।

सार्कोफेगा बरकेया, एक मांसाहारी मक्खी है जो लगातार बाघों और अन्य जानवरों पर अंडे देने के अवसरों की तलाश करती है। जब उसे कोई मृत जानवर मिलता है, तो वह तुरंत अपने अंडे जमा करके अपघटन प्रक्रिया शुरू कर देती है, जिससे लार्वा निकलते हैं जो शव को खाते हैं।

अक्सर यह भी माना जाता है, की अनेक प्रकार के स्कैवेंजर जैसे लकड़बग्घा एवं सियार आदि इन्हें खाने नहीं आएंगे परन्तु जंगली सूअर भी उतना ही सक्षम स्कैवेंजर है और वह निर्भीक रूप से इनके शरीर को सड़ने के साथ ही कुछ समय बाद खाने लगता है। बस यही सब कारण है हमें बूढ़े बाघ मरने के बाद आसानी से नहीं मिलते। रणथम्भोर में पिछले दो दशकों के मैंने पाया की मात्र दो बाघ ही उम्र दराज हो कर मृत अवस्था में मिले थे- बाकि बाघ अप्रकार्तिक रूप से मारे जाने के बाद ही उनका शव बरामद हुआ है। यह दो बाघ भी इंसानों द्वारा पोषित थे जैसे मछली बाघिन (T16) एवं बिग डैडी (T2)। इन सभी कारणों की वजह से मृत बाघ वनों में आसानी से नहीं मिलते है।

रणथम्भौर से गायब हुए बाघों का रहस्य

रणथम्भौर से गायब हुए बाघों का रहस्य

राजस्थान के मुख्य वन्यजीव संरक्षक ने रणथम्भौर से 25 बाघों के लापता होने की जांच के लिए एक जांच समिति का गठन किया है। प्रारंभिक निष्कर्षों के अनुसार, ये बाघ दो चरणों में गायब हुए: 2024 से पहले 11 बाघों का पता नहीं चला था, और पिछले 12 महीनों में 14 बाघ गायब हो गए। जांच शुरू होने के बाद, अधिकारियों ने रिपोर्ट किया कि इनमें से 10 बाघों को खोज लिया गया है जबकि 15 अभी भी लापता हैं।

तो, बाकी 15 बाघों का क्या हुआ?

टाइगर वॉच के विस्तृत डेटाबेस पर आधारित यह लेख इन लापता बाघों के प्रोफाइल और अंतिम ज्ञात रिकॉर्ड का विश्लेषण करता है, ताकि उनके गायब होने के संभावित कारणों को उजागर किया जा सके।

बाघों की जानकारी और गायब होने के संभावित कारण

बाघ IDलिंगअंतिम रिपोर्टेडजन्म वर्षउम्र (गायब होने के समय)गायब होने का संभावित कारण
T3नर03-08-2022200418-19 वर्षवृद्धावस्था के कारण मरा हो सकता है
T13मादा17-05-2023200519-20 वर्षवृद्धावस्था के कारण मरा हो सकता है
T38नर04-12-2022200814-15 वर्षवृद्धावस्था के कारण मरा हो सकता है
T41मादा15-06-2024200717-18 वर्षवृद्धावस्था के कारण मरा हो सकता है
T48मादा12-09-2022200715-16 वर्षवृद्धावस्था के कारण मरा हो सकता है
T54मादाअक्टूबर-22201113-14 वर्षउम्र के कारण प्रमुख बाघ द्वारा बाहर किया गया
T63मादाजुलाई-23201113-14 वर्षउम्र और प्रतिस्पर्धा के कारण मरा हो सकता है
T74नर14-06-2023201212-13 वर्षप्रमुख बाघ T121 और T112 द्वारा बाहर किया गया
T79मादा16-06-2023201311-12 वर्षसंदिग्ध मृत्यु; पार्क के बाहर रहती थी
T99मादा26-07-202420169 वर्षगर्भावस्था में जटिलताएं, फरवरी 2024 में गर्भपात
T128नर05-07-202320204 वर्षक्षेत्रीय संघर्ष / मानव संघर्ष के कारण मरा हो सकता है
T131नर30-11-202220194 वर्षक्षेत्रीय संघर्ष / मानव संघर्ष के कारण मरा हो सकता है
T138मादा20-06-202220203 वर्षक्षेत्रीय संघर्ष / मानव संघर्ष के कारण मरा हो सकता है
T139नर17-07-202420214 वर्षक्षेत्रीय संघर्ष / मानव संघर्ष के कारण मरा हो सकता है
T2401नर04-05-202420223 वर्षक्षेत्रीय संघर्ष / मानव संघर्ष के कारण मरा हो सकता है

निरीक्षण और तार्किक अनुमान

यह 15 बाघ अब तक गायब हैं, और उनके गायब होने के संभावित कारण निम्नलिखित हो सकते हैं:

  • वृद्ध बाघ: इन बाघों में से पांच—T3, T13, T38, T41, और T48—15 साल से ऊपर के हैं, जिनकी उम्र 19-20 साल तक पहुंच चुकी है।
  • दूसरे दो, T54 और T63, 13-14 साल के हैं और संभवतः अपने प्राकृतिक रूप से जीवन के अंतिम दौर के करीब हैं।
  • मादा बाघ T99 को फरवरी 2024 में गर्भावस्था में जटिलताएं आई थीं, जिससे उनका गर्भपात हो गया था। उन्हें व्यापक चिकित्सा देखभाल दी गई थी और वे जीवित रही थीं। हाल ही में रिपोर्ट आई थी कि वे फिर से गर्भवती हो सकती हैं, हालांकि यह पुष्टि नहीं हो पाई है। संभव है कि इसी प्रकार की जटिलताएं फिर से उत्पन्न हुई हों, जिसके कारण उनका वर्तमान स्थिति समझी जा सकती है।

फोटो: बाघिन T99 के गर्भपात के दौरान लिया गया चित्र

  • बाघ T74, जो 12 साल से अधिक उम्र की है, को डोमिनेंट बाघ T121 और T112 द्वारा उनके क्षेत्र से बाहर किया जा सकता है।
  • बाघिन T79 अजीब परिस्थितियों में गायब हो गई, जिसके बाद वन विभाग ने उसकी खोज शुरू की और उसकी दो शावकों को पाया। वह रणथम्भौर के बाहर कंडुली  नदी क्षेत्र में रहती थी, और ऐसी चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में उसका अब तक जीवित रहना आश्चर्यजनक था।
  • सबसे महत्वपूर्ण नुकसान पांच युवा नर बाघों का है, जो रणथम्भौर के प्रमुख बाघों के मध्य प्रतिस्पर्धा का शिकार हो गए। वन्य जीवन में, नर बाघों को क्षेत्रीय संघर्षों का सामना करना पड़ता है, जो अक्सर घातक मुठभेड़ों की ओर ले जाता है, जिनमें केवल सबसे मजबूत जीवित रहते हैं। वन विभाग के विस्तृत विश्लेषण के अनुसार, युवा नर  बाघों जैसे T128, T131, T139, और T2401 को अक्सर अप्रयुक्त क्षेत्रों की तलाश करते हुए देखा गया था।प्रमुख बाघों के साथ क्षेत्रीय संघर्ष उनकी गायब होने का एक संभावित कारण हो सकता है।
  • बाघिन (T138) का गायब होना चिंता का विषय है, तथा 15 लापता बाघों में से इस अल्प-वयस्क बाघिन की अनुपस्थिति विशेष रूप से चिंताजनक है।
  • प्राकृतिक प्रतिस्पर्धा के अतिरिक्त, मानव से संबंधित संघर्ष को भी ध्यान में रखना चाहिए। ये युवा बाघ स्थानीय समुदायों के साथ संघर्षों का शिकार भी हो सकते हैं, जैसे कि जहर देना या अन्य मानव जनित खतरों का सामना करना। क्षेत्र में पहले के घटनाएं, जैसे कि T114 और उसकी शावक, और T57 की जहर से मौत, मानव-बाघ संघर्ष के जोखिम को स्पष्ट रूप से दर्शाती हैं।

सारांश

रणथम्भोर से बाघों के गायब होने के कारणों में बढ़ती आयु, स्वास्थ्य समस्याएं, क्षेत्रीय संघर्ष और अन्य मानवजनित कारण शामिल हो सकते  हैं। उम्रदराज बाघ, जैसे T3, T13, T38, T41, और T48, अपनी उम्र के कारण स्वाभाविक रूप से मरे हो सकते हैं। बाघ सामान्यतः 15 साल तक जीवित रहते हैं, और उसके बाद उनका जीवित रहना मुश्किल हो जाता है। 15 साल की उम्र के बाद, उन्हें स्वास्थ्य और क्षेत्रीय संघर्षों का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके जीवित रहने की संभावना घट जाती है।

T54, T63, T74, और T79 जैसे बाघ, जो अपनी उम्र के कारण कमजोर हो चुके थे, शायद युवा और प्रमुख बाघों से अपने क्षेत्रों की रक्षा करने में असमर्थ भी। इस कारण उनके जीवन का संकट में पड़ना स्वाभाविक है, खासकर जब वे पार्क के बाहरी इलाकों में रह रहे होते हैं, जैसे कि T54 जो तालरा रेंज के बाहरी इलाके में रहता था।

जब परिपक्व बाघिन T63, जिसने पहले तीन बार शावकों को जन्म दिया था और खंडार घाटी में पार्क के केंद्र में रहती थी, को औदी खो क्षेत्र में वन अधिकारी द्वारा लगभग मृत घोषित कर दिया गया था, तो अधिकारियों ने उसे शिकार भी उपलब्ध कराया था, यहाँ तक कि एक समय कहा गया कि वह जीवित नहीं बचेगी। अउ समय यह बाघिन अत्यंत दुर्बल अवस्था में मिली थी।

सबसे महत्वपूर्ण नुकसान युवा चार नर एवं एक मादा बाघ (T128, T131, T139, T2401 और T138) का है, जिनका सामना डोमिनेंट बाघों से क्षेत्रीय संघर्षों में हुआ। ये युवा बाघ अक्सर नए क्षेत्रों की तलाश में रहते है, और ऐसे संघर्षों के कारण उनकी मौत हो सकती है।

हालांकि, मानव जनित कारणों पर भी विचार करना जरूरी है। इन युवा बाघों ने स्थानीय समुदायों से भी खतरों का सामना किया हो सकता है, जैसे कि जहर देना या अन्य मानव जनित खतरों से मुठभेड़।

अंततः, बाघिन T99, जो गर्भावस्था की जटिलताओं से जूझ रही थी, शायद इन समस्याओं के कारण गायब हो गईं।

यह समीक्षा यह रेखांकित करती है कि रणथम्भौर में बाघों की स्थिति को लेकर लगातार निगरानी और सक्रिय उपायों की आवश्यकता है, ताकि हम इन खतरों को समझ सकें और अधिक प्रभावी रणनीतियाँ तैयार कर सकें, जिससे इस सुंदर प्रजाति का दीर्घकालिक संरक्षण सुनिश्चित हो सके।