चमगादड़ द्वारा COVID-19 को फैलाने के डर से, राजस्थान के दो स्थानों पर अज्ञानता के कारण लोगों द्वारा भारतीय चमगादड़ों को मारते हुए देखा गया है। हाल ही में चूरू जिले के सादुलपुर में 45 चमगादड़ को इस वजह से मार दिया गया, झुंझुनू जिले के लोहरगर्ल क्षेत्र में 150 से अधिक चमगादड़ों को मारा गया।
रोजाना स्थानीय टीवी मे प्रसारित समाचारों के द्वारा चमगादड़ों को कोरोना का मुख्य कारण बताये जाने के कारण भारत में लोगो में यह अवधारणा बन रही है की यह एक अत्यंत घातक प्राणी है, और इसी के चलते चमगादड़ो को अपने आसपास से समाप्त किया जा रहा है I यह पूर्णतया आधारहीन, गैर-वैज्ञानिक एवं भ्रामक है बल्कि यह हमारे पर्यावरण के लिए अत्यंत खतरनाक स्थिति है I
वर्तमान में चमगादड़ो का प्रजनन समय चल रहा है, मादा से प्रजनन के पश्चात नर समूह के रूप मे अलग हो जाते है जिससे चमगादड़ो का वितरण और अधिक दिखाई देने लगता है। यह विशाल समहू लोगो द्वारा COVID-19 के चमगादड़ से जुड़े समाचारो के मध्य भयावह स्थिति पैदा करते हैI इस समय कोरोना के डर से इन नर समूह से स्थानीय लोग डर गए, जिस से 45 नर चमगादड़ (Greater Mouse-tailed Bat) मारे गए। इसी के समान झुंझुनू जिले के लोहार्गल क्षेत्र में भी 150 से अधिक चमगादड़ों (Greater Mouse-tailed Bat) को मारा दिया गया।
भारत में पाए जाने वाले चमगादड़ फल और कीट खाने वाले हैं जो कृषि और पर्यावरण संतुलन के लिए अच्छे हैं। लोगों को अपने अंधविश्वास को छोड़ देना चाहिए और चमगादड़ को मारना बंद कर देना चाहिए क्योंकि वे भारत में मानव जाति के लिए SARS CoV-2 के वेक्टर नहीं हैं। यदि उनके चल रहे प्रजनन के मौसम में गड़बड़ी होती है, तो राजस्थान के उत्तर-पश्चिम में फलों के चमगादड़ विलुप्त होने का सामना करेंगे, क्योंकि ज्यादातर नर चमगादड़ों को लोगों द्वारा कथित रूप से मारा गया है। चीन में SARS-CoV-2 को जोड़ते हुए राइनोफिडे परिवार के हॉर्सशू चमगादड़ द्वारा ले जाया गया था। यहां तक कि दक्षिण एशियाई चमगादड़ों की दो प्रजातियों में कोरोना वाइरस की खोज पर ICMR की हालिया रिपोर्ट में कोई ज्ञात स्वास्थ्य खतरा नहीं है। अध्ययन में पाए गए वायरस SARS-CoV-2 से अलग हैं और COVID-19 का कारण नहीं बन सकते हैं। लोगों ने चमगादड़ों पर ICMR की अन्य रिपोर्ट का गलत मतलब निकाला है।
रिवर्स ट्रांसमिशन: IUCN व BCI के अनुसार, संक्रमित मानव से घरेलू जानवरों और यहां तक कि चमगादड़ तक रिवर्स ट्रांसमिशन हो सकता है। महाराष्ट्र और गुजरात की तरह COVID-19 की गंभीर सामुदायिक प्रसार स्थितियों में, रिवर्स ट्रांसमिशन की संभावना हो सकती है अमरीका, नीदरलैंड और स्वीडन मे सीवेज जाँच मे कोरोना वायरस पाए गए है न्यूवेजीन, नीदरलैंड के KWR Research Institute के अनुसार सीवेज से संक्रमण फलने की मनुष्य मे कम है परन्तु मवेशियो व चमगादड़ों मे यह संक्रमित जा सकता है। यदि यह घातक वायरस सीवेज, तालाबों, जल निकाय और किसी अन्य अपशिष्ट पदार्थ में मिल जाता है। यह देश के हॉटस्पॉट शहरों में तालाबंदी के बाद ज्यादा विनाशकारी हो सकता है।
COVID-19 महामारी के दौरान चमगादड़ को बचाने के लिए, पहले कर्नाटक सरकार और अब राजस्थान सरकार के अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक अरिन्दम तोमर ने दिशा-निर्देश जारी किए हैं और चेतावनी दी है कि चमगादड़ किसी भी तरह से चोट या मारे नहीं जाने चाहिए क्योंकि चमगादड़ भारतीय वन्यजीव अधिनियम की अनुसूची-वी 1972के तहत आते हैं। आज तक, उन्हें मारने के लिए सजा का कोई प्रावधान नहीं था, लेकिन अब चमगादड़ नुकसान पहुंचाने वाले चमगादड़ राजस्थान में अपराधियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करेंगे।
दुनिया भर में चमगादड़ों की 1411 से अधिक प्रजातियां पारिस्थितिक भूमिका निभा रही हैं जो प्राकृतिक पारिस्थितिकी प्रणालियों और मानव अर्थव्यवस्थाओं के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हैं। चमगादड़ हमारे मूल वन्यजीवों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो भारत में लगभग एक तिहाई स्तनपायी प्रजातियों को नियमित रखते हैं और इस तरह के वेटलैंड्स, वुडलैंड्स, साथ ही शहरी क्षेत्रों में निवास की एक विस्तृत श्रृंखला पर कब्जा करते हैं। वे हमें पर्यावरण की स्थिति के बारे में बहुत कुछ बता सकते हैं, क्योंकि वे सामान्य निशाचर कीटों के शीर्ष शिकारी हैं। चमगादड़ वास्तव में कीट नियंत्रक होते हैं जो हर रात हजारों कीड़े खाते हैं। भारत के चमगादड़ आपको नहीं काटेंगे या आपका खून नहीं चूसेंगे – लेकिन वे मच्छरों के खून को साफ़ करने में मदद करेंगे। चमगादड़ तिलचट्टे, मेढ़क, मक्खियों और मुख्य रूप से मच्छरों को खाते हैं. एक चमगादड़, एक घंटे में 1,200 से 1,400 मछरों को खाता है। इन मच्छरों की वजह से मलेरिया, टायफायड, डेंगू, चिकनगुनिया जैसी बीमारियां फैलती हैं। चमगादड परागण तथा छोटे कीट-पतंगों का शिकार करते हैं, जिन कीट-पतंगों की वजह से मनुष्य और फसलों को तरह-तरफ़ का रोग होता है। चमगादड उनको खाकर फसलों के लिए जैविक कीटनाशक का काम करते हैं। वर्तमान में कोरोना वायरस महामारी की वजह से चमगादड़ बताई जा रही हैं। ऐसा माना जा रहा है कि यह वायरस चमगादड़ से ही मनुष्य के शरीर में आया है। जिससे चमगादड़ की एक नकारात्मक छवि बनी है। ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि इस महामारी के बाद की चमगादड़ को लेकर नकरात्मकता बढ़ सकती है, जिससे इस जीव के अस्तित्व पर ख़तरा भी उत्पन्न हो सकता है। पर वर्तमान वैज्ञानिक युग में यह सोचना जरूरी होगा जो मनुष्य के उदभव से मानव उपयोगी रहा हो वो केसे इस महामारी फेला सकता है। वैसे 60 प्रकार के वायरस चमगादड़ में पाए जाते हैं परन्तु ये किसी मनुष्य में नहीं फैलते। यदि वर्तमान में प्रकाशित कोरोना संबंधी अनुसंधान पत्रो को देखे तो कहीं पर कोरोना के लिए चमगादड़ ज़िमेदार नहीं है। COVID-19 चमगादड़ से नहीं फैलता।
भारत में वे चमगादड़ जो कीटभक्षी हैं – वे केवल कीड़े खाते हैं। कीड़े-मकोड़े खाने वाले चमगादड़ों को फसलों से दूर रखने के साथ-साथ चमगादड़ के काटने के स्थानों के लिए बहुत अच्छा है। कपास की खेती में मुक्त पूंछ वाले चमगादड़ को एक महत्वपूर्ण “कीट प्रबंधन सेवा” के रूप में मान्यता दी गई है। क्योंकि चमगादड़ कुछ क्षेत्रों में बहुत सारे कीड़े खाते हैं, वे कीटनाशक स्प्रे की आवश्यकता को भी कम कर सकते हैं। पक्षियों की तरह, कुछ चमगादड़ पेड़ों और अन्य पौधों के बीजों को फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कुछ उष्णकटिबंधीय फल चमगादड़ अपने अंदर बीज ले जाते हैं क्योंकि वे फल को पचा लेते हैं, फिर मूल पेड़ से दूर बीज को निकालते हैं। ये बीज अपने स्वयं के तैयार उर्वरक में जमीन पर गिरते हैं, जो उन्हें अंकुरित होने और बढ़ने में मदद करते हैं। क्योंकि चमगादड़ परागण और बीज को फैलाने में मदद करते हैं, वे वन निकासी के बाद पुनर्वृष्टि में मदद करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। 1411 से अधिक चमगादड़ प्रजातियों में से कई कीटों की विशाल मात्रा का उपभोग करते हैं, जिनमें से कुछ सबसे हानिकारक कृषि कीट हैं। बैट ड्रॉपिंग (जिसे गानो कहा जाता है) एक समृद्ध प्राकृतिक उर्वरक के रूप में मूल्यवान हैं। गुआनो दुनिया भर में एक प्रमुख प्राकृतिक संसाधन है, और, जब चमगादड़ को ध्यान में रखते हुए जिम्मेदारी से उपयोग किया जाता है, तो यह भूस्वामियों और स्थानीय समुदायों के लिए महत्वपूर्ण आर्थिक लाभ प्रदान कर सकता है। चमगादड़ों को अक्सर “कीस्टोन प्रजाति” माना जाता है जो रेगिस्तानी पारिस्थितिक तंत्र के लिए आवश्यक हैं। चमगादड़ के परागण और बीज-प्रसार सेवाओं के बिना, स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र धीरे-धीरे ढह सकते हैं क्योंकि खाद्य श्रृंखला के आधार के पास पौधे वन्यजीव प्रजातियों के लिए भोजन और आवरण प्रदान करने में विफल होते हैं। चमगादड़ जंगल में बीजों को फैलाने में चमगादड़ इतने प्रभावी होते हैं कि उन्हें “उष्णकटिबंधीय के किसान” कहा जाता है। जंगलों को पुनर्जीवित करना एक जटिल प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिसमें पक्षियों, प्राइमेट्स और अन्य जानवरों के साथ-साथ चमगादड़ों द्वारा बीज-प्रकीर्णन की आवश्यकता होती है। लेकिन पक्षी बड़े, खुले स्थानों को पार करने से सावधान रहते हैं, जहां उड़ने वाले शिकारी हमला कर सकते हैं, इसलिए वे आम तौर पर सीधे अपने पर्चों के नीचे बीज गिराते हैं। दूसरी ओर, रात-रात के खाने वाले फलों के चमगादड़, अक्सर हर रात बड़ी दूरी तय करते हैं, और वे काफी हद तक पार करने के लिए तैयार होते हैं और आमतौर पर उड़ान में शौच करते हैं, साफ किए गए क्षेत्रों में पक्षियों की तुलना में कहीं अधिक बीज बिखेरते हैं। रात्रिचर स्वभाव होने के कारण ये रात में फलने और फूलने वाले लगभग सवा पांच सौ प्रजातियों के पेड़ों के परागकण और बीज़ को अलग-अलग प्राकृतिक वास में फैलाते हैं, जिससे जंगल को प्राकृतिक रूप से स्थापित होने में मदद मिलती है। इसलिए इनको ‘प्राकृतिक जंगल को स्थापित’ करने वाले के साथ-साथ, ‘जंगल का रक्षक’ भी कहा जाता है। चमगादड परागण के साथ ही विभिन्न प्रकार के कीट-पतंगों का शिकार करते हैं, जिन कीट-पतंगों की वजह से मनुष्य और फसलों को तरह-तरफ़ का रोग होता है। चमगादड उनको खाकर फसलों के लिए जैविक कीटनाशक का काम करते हैं। एक अध्ययन से यह भी पता चला है कि एक मादा चमगादड़, गर्भावस्था के दौरान अपने शरीर के तीन गुना ज़्यादा वजन तक कीटों का भक्षण कर सकती है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि एक चमगादड़, अपने जीवन काल (लगभग 30 वर्ष) में कितने कीट खाता होगा? इन सबके अलावा चमगादड़ की सुनने की क्षमता बहुत ज़्यादा होती है, जिसकी वजह से ये प्राकृतिक आपदा जैसे तूफान, भूकंप आदि के आने पर अपने व्यवहार में परिवर्तन करते हैं, जिससे मनुष्य को भी इन ख़तरों की कई बार समय से पहले जानकारी हो जाती है।
राजस्थान चमगादड़ की विविधता के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।राजस्थान का रेगिस्तानी क्षेत्र 1980 के दशक तक चमगादड़ों की दो प्रजातियों का घर था, और इंदिरा गांधी नहर के निर्माण के साथ, श्री गंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर, जोधपुर, जैसलमेर, चूरू और कुछ हिस्सों चमगादड़ों की प्रजाति तेजी फेलती गयी। राजस्थान में 25 प्रकार की प्रजातियां पाई जाती है। जिसमें 3 फल चमगादड़ व 22 कीट खाने वाली प्रजाति पाई जाती है। तीन प्रकार की फल चमगादड़, जिसमें टैरोपस ग्रागेटस, रुस्टस प्रजाति, सिनोपटेरस प्रजाति पाई जाती है। यह सामन्यत बड़े पेड़ो पर लटकी हुई अवस्था में पाई जाती है। यह प्रजाति पीपल बरगद पर लटकी हुई देखी जा सकती है। जो पानी के स्त्रोत के पास रहना पसंद करती है। पुरे राजस्थान मे Lesser Mouse-tailed Bat सर्वाधिक संख्या मे पाई जाती है जो समाज के साथ मनुष्यों के घरो मे, पुरानी हवलियो, मंदिरों मे रहना पसंद करती है। रेगिस्तानी क्षेत्र से 15 प्रजातियों, गैर-रेगिस्तानी क्षेत्र से 17 प्रजातियों और अरावली पहाड़ियों से 16 प्रजातियों पाई जाती है। 7 प्रजातिया Indian Flying Fox, Naked-rumped Tomb Bat, Greater Mouse-tailed Bat, Greater False Vampire Bat, Egyptian Free-tailed bat, Greater Asiatic Yellow House Bat and Least Pipistrelle, राजस्थान के सभी भोगोलिक क्षेत्र मे पाई जाती है सात प्रजातिया Greater Short-nosed Fruit Bat, Egyptian Tomb Bat, Lesser Mouse-tailed Bat, Blyth’s Horseshoe Bat, Fulvous Leaf-nosed Bat, Lesser Asiatic Yellow House Bat and Dormer’s Pipistrelle राजस्थान के रेगिस्तानी व पर्वती दोनों क्षेत्र मे पाई जाती है दो प्रजातिया Leschenault’s Rousette व Long-winged Tomb Bat केवल असुष्क और अरावली पर्वत माला मे ही पाई जाती है I अतःआवश्यकता है इन्हे बचाने की न की इन्हे समाप्त करने की।
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