अरावली की आभा: मामेर से आमेर तक

अरावली की आभा: मामेर से आमेर तक

अरावली, थार रेगिस्तान को उत्तरी राजस्थान तक सीमित रखे और विशाल जैव-विविधता को सँजोती पर्वत श्रृंखला हिमालय से भी पुरानी मानी जाती है। इसके 800 किलोमीटर के विस्तार क्षेत्र में 20 वन्यजीव अभयारण्य समाये हुए हैं, आइए इसकी विविधता कि एक छोटी यात्रा पर चलते है…

संसार की सबसे प्राचीनतम पर्वत श्रखलाओ में से एक अरावली, भारत के चार राज्यों गुजरात, राजस्थान, हरियाणा एवं  दिल्ली तक प्रसारित है। अरावली का अधिकतम विस्तार राजस्थान में ही है। तो इसके प्राकृतिक वैभव को जानने के लिए, आइये चलते है दक्षिणी राजस्थान के मामेर से उत्तर दिशा के आमेर तक।

मामेर, गुजरात राज्य की उत्तरी सीमा के पास बसे धार्मिक नगरों खेड़ब्रम्हा एवं अम्बाजी के पास स्थित है। यहाँ अरावली की वन सम्पदा देखते ही बनती है। प्रसिद्ध फुलवारी वन्यजीव अभयारण्य यहाँ से शुरू होकर उत्तर दिशा तक विस्तारित है। तो वहीँ मामेर की पश्चिमी दिशा की ओर से माउन्ट आबू अभयारण्य पहुंचा जा सकता है, जो राजस्थान का एकमात्र “हिल स्टेशन” है। फुलवारी, अरावली का एक मात्र ऐसा अभयारण्य है जहाँ धोकडा यानि एनोजीसस पेंडुला (Anogeissus pendula)  प्राकृतिक रूप से नहीं पाया जाता। अभयारण्यों में यही अकेला ऐसा अभयारण्य है जहाँ राजस्थान के सुन्दर बांस वन पाए जाते हैं।

अरावली पर्वत श्रृंखला के ऊँचे पहाड़ (फोटो: डॉ धर्मेंद्र खांडल)

इस क्षेत्र में आगे चलते है तो रास्ते में वाकल नदी आती है, यह नदी कोटड़ा के बाद गुजरात में प्रवेश कर साबरमती से मिल जाती है। वाकल नदी को पार कर डेढ़मारिया व लादन वनखंडो के सघन वनों को देखते हुए रामकुंडा पंहुचा जा सकता है। यहाँ एक सूंदर मंदिर एवं एक झरना भी है जो वर्षा ऋतु में दर्शनीय हो जाता है। यहीं एक कुंड में संरक्षित बड़ी-बड़ी मछलिया भी देखने को मिलती है।

इसी क्षेत्र में पानरवा नामक स्थान के पास सोमघाटा स्थित है जिस से होकर किसी समय में अंग्रेज़ रेजीडेंट, खैरवाड़ा, बावलवाड़ा होकर पानरवा के विश्राम स्थल में ठहरकर कोटड़ा छावनी पहुंचते थे। पानरवा से मानपुर होकर कोल्यारी के रास्ते कमलनाथ के पास से झाड़ोल पंहुचा जा सकता है। यह क्षेत्र “भोमट” के नाम से जाना जाता है। झाड़ोल के बहुत पास का क्षेत्र ” झालावाड़ ” कहलाता है। अरावली के इस क्षेत्र में चट्टानों पर केले की वन्य प्रजाति (Ensete superbum) उगती है। झाड़ोल के पास स्थित मादडी नामक गांव में राज्य का सबसे विशाल बरगद का पेड़ स्थित है तथा यहीं मादडी वनखंड में राज्य का सबसे बड़ा ” बॉहिनिया  वेहलाई ” (Bauhinia vahlii) कुञ्ज भी विध्यमान है।

उत्तर की तरफ बढ़ने पर जूड़ा, देवला, गोगुंदा आदि गांव आते हैं। फुलवारी की तरह, यहां भी मिश्रित सघन वन पाए जाते हैं तथा इस क्षेत्र में अरावली की पहाड़ियों पर मिट्टी की परत उपस्थित होने के कारण उत्तर व मध्य अरावली के मुकाबले यहाँ अधिक सघनता व जैव विविधता वाले वन पाए जाते हैं। इस क्षेत्र के “नाल वन” जो दो सामानांतर पर्वत श्रंखला के बीच नमी वाले क्षेत्र में बनते हैं दर्शनीय होते हैं। नाल सांडोल, केवड़ा की नाल, खोखरिया की नाल, फुलवारी की नाल, सरली की नाल, गुजरी की नाल आदि इस क्षेत्र की प्रसिद्ध नाल हैं। जिनके “रिपेरियन वन” (नदी या नालों के किनारे के वन) सदाबहार प्रजातियों जैसे आम, Syzygium heyneanum (जंगली जामुन), चमेली, मोगरा, लता शीशम, Toona ciliata, salix, Ficus racemosa, Ficus hispida, Hiptage benghalensis (अमेती), कंदीय पौधे, ऑर्किड, फर्न, ब्रयोफिट्स आदि से भरे रहते हैं।

अरावली, विशाल जैव-विविधता को सँजोती पर्वत श्रृंखला (फोटो: डॉ धर्मेंद्र खांडल)

अरावली के दक्षिणी भाग में Flying squirrel, Three-striped palm squirrel, Green whip snake, Laudankia vine snake, Forsten’s cat snake, Black headed snake, Slender racer, Red spurfowl, Grey jungle fowl (जंगली मुर्गा), Red whiskered bubul, Scimitar babbler (माऊंट आबू), White throated babbler आदि जैसे विशिष्ट प्राणी निवास करते है। राज्य की सबसे बड़ी मकड़ी “जायन्ट वुड स्पाइडर” यहाँ फुलवारी, कमलनाथ, कुम्भलगढ़ व सीतामाता में देखने को मिलती है तथा राज्य का सबसे बड़ा शलभ “मून मॉथ ” वर्षा में यहाँ जगह-जगह देखने को मिलता है। कभी बार्किंग डीयर भी यहाँ पाए जाते थे। सज्जनगढ़ व इसके आसपास भारत की सबसे छोटी बिल्ली “रस्टी स्पॉटेड कैट” भी देखने को मिलती है।

देवला के बहुत पास पिंडवाडा रोड पर सेई नामक बाँध पड़ता है, जिसे “इम्पोटेंड बर्ड एरिया” होने का गौरव प्राप्त है। राजस्थान के 31 मान्य आई.बी.ए में से 12 स्थान; जयसमंद झील व अभयारण्य, कुंभलगढ़, माऊंट आबू, फुलवारी, सरेसी बाँध, सेई बाँध, उदयपुर झील संकुल एवं बाघदड़ा आदि, दक्षिण राजस्थान में अरावली क्षेत्र व उसके आसपास विध्यमान हैं।

आइये देश के सागवान वनों की उत्तर व पश्चिम की अंतिम सीमा, सागेटी, चित्रवास व रीछवाडा की ओर बढ़ते हैं। इस क्षेत्र से पश्चिम में जाने पर पाली जिले की सीमा आ जाती है। यहाँ सुमेरपुर से होकर सादडी, घाणेराव आदि जगह का भू – भाग “गोडवाड़” के नाम से जाना जाता है। गोडवाड़  में अरावली व थार का मिलन होने से एक मेगा इकोटोन बनता है जो अरावली के पश्चिम ढाल से समान्तर आगे बढ़ता चलता है।

कुंभलगढ़ अभयारण्य, सागवान वितरण क्षेत्र के अंतिम बिंदु से प्रारम्भ होता है जो देसूरी की नाल को लांघते ही रावली-टॉडगढ़ अभयारण्य के जंगलों से मिल जाता है। इस क्षेत्र में जरगा व कुम्भलगढ़ के ऊंचे पर्वत शिखर देखने को मिलते हैं। जरगा, माउंट आबू के बाद सबसे ऊंचा स्थल है। इस क्षेत्र की आबोहवा गर्मी में सुहानी बनी रहती है। गोगुन्दा व आसपास के क्षेत्र में गर्मी की रातें काफी शीतल व सुहावनी रहती है। इस क्षेत्र में दीवारों, चट्टानों व वृक्षों पर लाइकेन मिलती हैं। जरगा में नया जरगा नामक स्थान पश्चिमी ढाल पर व जूना जरगा पूर्वी ढाल पर दर्शनीय मंदिर है एवं पवित्र वृक्ष कुज भी है। कुंभलगढ़ व जरगा में ऊंचाई के कारण अनेकों विशिष्ट पौधे पाए जाते हैं। यहाँ Toona ciliate, Salix, Salix tetrandra, Trema orientalis, Trema politoria, Ceasalpinia decapetala, Sauromatum pedatum आदि देखने को मिलते हैं। जरगा पहाड़ियों को पूर्वी बनास का उद्गम स्थल माना जाता है। जरगा के आसपास बनास के किनारे विशिष्ट फर्नो का अच्छा जमाव देखा जाता है। वेरो का मठ के आस पास मार्केंशिआ नामक ब्रायोफाइट देखा गया है। कुंभलगढ़ में ऐतिहासिक व धार्मिक महत्त्व के अनेकों स्थान है तथा कुछ स्थान जैसे कुंभलगढ़ किला, रणकपुर मंदिर , मुछाला महावीर, पशुराम महादेव आदि मुख्य दर्शनीय स्थान है।

आगे चलते है रावली-टॉडगढ़ अभयारण्य की ओर। इतिहासकार कर्नल टॉड के नाम से जुडी रावली-टॉडगढ़ अभयारण्य वन्यजीवों से भरपूर है। यहाँ आते-आते वन शुष्क पर्णपाती हो जाते है तथा पहाड़ पथरीले नजर आते है। यहाँ धोकड़ की क्लाइमैक्स आबादी को देखा जा सकता है। यह अभयारण्य ग्रे जंगल फ़ाउल की उतरी वितरण सीमा का अंतिम छोर है।

उतर दिशा में आगे बढ़ने पर राजसमन्द एवं अजमेर के बीच पहाड़ियां शुष्क होने लगती है। धोकड़े के जंगलो में डांसर व थूर का मिश्रण साफ़ दीखता है और सघनता विरलता में बदल जाती है। इसी भाग में सौखालिया क्षेत्र विद्यमान है जो गोडवान (Great Indian bustard) के लिए विख्यात है। कभी – कभार खड़मोर (Lesser florican) भी यहाँ देखने को मिलता है। यहाँ छितरे हुए गूगल के पेड़ मिलते हैं जो एक रेड डेटा प्रजाति है। इस भाग में आगे बढ़ने पर नाग पहाड़ आता है जो की काफी ऊँचा है, जहाँ कभी सघन वन एवं अच्छी जैव विविधता पायी जाती थी।

हमारी यात्रा के अंतिम पड़ाव में जयपुर के पहाड़ आते हैं और यहीं पर स्थित है, आमेर।  झालाना व नाहरगढ़ अभयारण्य में अधिक सघनता व जैव विविधता वाले वन हैं। कभी यहाँ बाघ तथा अन्य खूंखार प्राणियों की बहुतायत हुआ करती थी। यहाँ White-naped tit और Northern goshawk जैसे विशिष्ट पक्षियों को आसानी से देखा जा सकता है। यहाँ से पास ही में स्थित है सांभर झील। सांभर झील, घना के बाद दूसरा रामसर स्थल है तथा हर वर्ष बहुत प्रजातियों के प्रवासी पक्षी यहाँ आते हैं । रामसागर और मानसागर इस क्षेत्र के प्रसिद्ध जलाशय हैं जो जलीय जीव सम्पदा के खजाने हैं। कभी रामगढ भी यहाँ का प्रसिद्ध जलाशय हुआ करता था परन्तु मानवीय हस्तक्षेपों के चलते वह सूख गया।

हम रुकते हैं, अभी आमेर में लेकिन अरावली को तो और आगे जाना है, आगे दिल्ली तक!!

राजस्थान में पीले पुष्प वाले पलाश

राजस्थान में पीले पुष्प वाले पलाश

फूलों से लदे पलाश के पेड़, यह आभास देते हैं मानो वन में अग्नि दहक रही है I इनके लाल केसरी रंगों के फूलों से हम सब वाकिफ हैं, परन्तु क्या आप जानते है पीले फूलों वाले पलाश के बारे में ?

पलाश (Butea monosperma) राजस्थान की बहुत महत्वपूर्ण प्रजातियों में से एक है जो मुख्यतः दक्षिणी अरावली एवं दक्षिणी-पूर्वी अरावली के आसपास दिखाई देती है। यह प्रजाति 5 उष्ण कटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वनों का महत्वपूर्ण अंश है तथा भारत में E5 – पलाश वन बनाती है। E5 – पलाश वन मुख्यरूप से चित्तौड़गढ़, अजमेर, पाली, जालोर, टोंक, भीलवाड़ा, बूंदी, झालावाड़, धौलपुर, जयपुर, उदयपुर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, अलवर और राजसमंद जिलों तक सीमित है।

पीले पलाश (Butea monosperma var. lutea) का वृक्ष (फोटो: डॉ. सतीश शर्मा)

राजस्थान में पलाश की तीन प्रजातियां पायी जाती हैं तथा उनकी विविधताएँ नीचे दी गई तालिका में प्रस्तुत की गई हैं:

क्र. सं.वैज्ञानिक नामप्रकृति स्थानीय नाममुख्य वितरण क्षेत्रफूलों का रंग
1Butea monospermaमध्यम आकार का वृक्षपलाश, छीला, छोला, खांखरा, ढाकमुख्य रूप से अरावली और अरावली के पूर्व मेंलाल
2Butea monosperma var. luteaमध्यम आकार का वृक्षपीला खांखरा, ढोल खाखराविवरण इस लेख में दिया गया हैपीला
3Butea superba काष्ठबेलपलाश बेल, छोला की बेलकेवल अजमेर से दर्ज (संभवतः वर्तमान में राज्य के किसी भी हिस्से में मौजूद  नहीं)लाल

लाल पलाश (Butea monosperma) का वृक्ष (फोटो: डॉ. धर्मेंद्र खांडल)

लाल पलाश के पुष्प (फोटो: डॉ. धर्मेंद्र खांडल)

Butea monosperma var. lutea राजस्थान में पलाश की दुर्लभ किस्म है जो केवल गिनती योग्य संख्या में मौजूद है। राज्य में इस किस्म के कुछ ज्ञात रिकॉर्ड निम्न हैं:

क्र. सं.तहसील/जिलास्थानवृक्षों की संख्याभूमि की स्थिति
1गिरवा (उदयपुर)पाई गाँव झाड़ोल रोड1राजस्व भूमि
2गिरवा (उदयपुर)पीपलवास गाँव के पास, (सड़क के पूर्व के फसल क्षेत्र में)2राजस्व भूमि
3झाड़ोल (उदयपुर)पारगीया गाँव के पास (पलियाखेड़ा-मादरी रोड पर)1राजस्व भूमि
4झाड़ोल (उदयपुर)मोहम्मद फलासिया गाँव2राजस्व भूमि
5कोटड़ा (उदयपुर)फुलवारी वन्यजीव अभयारण्य के पथरापडी नाका के पास1राजस्व भूमि
6कोटड़ा (उदयपुर)बोरडी गांव के पास फुलवारी वन्यजीव अभयारण्य के वन ब्लॉक में4आरक्षित वन
7कोटड़ा (उदयपुर)पथरापडी नाका के पूर्व की ओर से आधा किलोमीटर दूर सड़क के पास एक नाले में श्री ननिया के खेत में (फुलवारी वन्यजीव अभयारण्य का बाहरी इलाका)2राजस्व भूमि
8झाड़ोल (उदयपुर)डोलीगढ़ फला, सेलाना1राजस्व भूमि
9झाड़ोल (उदयपुर)गोत्रिया फला, सेलाना1राजस्व भूमि
10झाड़ोल (उदयपुर)चामुंडा माता मंदिर के पास, सेलाना1राजस्व भूमि
11झाड़ोल (उदयपुर)खोड़ा दर्रा, पलियाखेड़ा1आरक्षित वन
12प्रतापगढ़ (चित्तौड़गढ़)जोलर2झार वन ब्लॉक
13प्रतापगढ़ (चित्तौड़गढ़)धरनी2वन ब्लॉक
14प्रतापगढ़ (चित्तौड़गढ़)चिरवा2वन ब्लॉक
15प्रतापगढ़ (चित्तौड़गढ़)ग्यासपुर1मल्हाड वन खंड
16आबू रोडगुजरात-राजस्थान की सीमा, आबू रोड के पास1वन भूमि
17कोटड़ा (उदयपुर)चक कड़ुवा महुड़ा (फुलवारी वन्यजीव अभयारण्य)1देवली वन  ब्लॉक
18कोटड़ा (उदयपुर)बदली (फुलवारी वन्यजीव अभयारण्य)1उमरिया वन ब्लॉक
19कोटड़ा (उदयपुर)सामोली (समोली नाका के उत्तर में)1राजस्व भूमि
20बांसवाड़ा जिलाखांडू1राजस्व भूमि
21डूंगरपुर जिलारेलड़ा1राजस्व भूमि
22डूंगरपुर जिलामहुडी1राजस्व भूमि
23डूंगरपुर जिलापुरवाड़ा1राजस्व भूमि
24डूंगरपुर जिलाआंतरी रोड सरकन खोपसा गांव, शंकर घाटी1सड़क किनारे
25कोटड़ा (उदयपुर)अर्जुनपुरा (श्री हुरता का कृषि क्षेत्र)2राजस्व भूमि
26गिरवा (उदयपुर)गहलोत-का-वास (उबेश्वर रोड)6राजस्व भूमि
27उदयपुर जिलाटीडी -नैनबरा के बीच1राजस्व भूमि
28अलवर जिलासरिस्का टाइगर रिजर्व1वन भूमि

चूंकि पीला पलाश राज्य में दुर्लभ है, इसलिए इसे संरक्षित किया जाना चाहिए। राज्य के कई इलाकों में स्थानीय लोगों द्वारा इसकी छाल पूजा और पारंपरिक चिकित्सा के लिए प्रयोग ली जाती है जो पेड़ों के लिए हानिकारक है। वन विभाग को इसकी रोपाई कर वन क्षेत्रों में इसका रोपण तथा स्थानीय लोगों के बीच इनका वितरण करना चाहिए।

 

राजस्थान की मुख्य दुर्लभ वृक्ष प्रजातियां

राजस्थान की मुख्य दुर्लभ वृक्ष प्रजातियां

दुर्लभ वृक्ष का अर्थ है वह वृक्ष प्रजाति जिसके सदस्यों की संख्या काफी कम हो एवं पर्याप्त समय तक छान-बीन करने पर भी वे बहुत कम दिखाई पड़ते हों उन्हें दुर्लभ वृक्ष की श्रेणी में रखा जा सकता है। किसी प्रजाति का दुर्लभ के रूप में मानना व जानना एक कठिन कार्य है।यह तभी संभव है जब हमें उस प्रजाति के सदस्यों की सही सही संख्या का ज्ञान हो। वैसे शाब्दिक अर्थ में कोई प्रजाति एक जिले या राज्य या देश में दुर्लभ हो सकती है लेकिन दूसरे जिले या राज्य या देश में हो सकता है उसकी अच्छी संख्या हो एवं वह दुर्लभ नहीं हो।किसी क्षेत्र में किसी प्रजाति के दुर्लभ होने के निम्न कारण हो सकते हैं:

1.प्रजाति संख्या में काफी कम हो एवं वितरण क्षेत्र काफी छोटा हो,
2.प्रजाति एंडेमिक हो,
3.प्रजाति अतिउपयोगी हो एवं निरंतर व अधिक दोहन से उसकी संख्या में तेज गिरावट आ गई हो,
4.प्रजाति की अंतिम वितरण सीमा उस जिले या राज्य या देश से गुजर रही हो,
5.प्रजाति का उद्भव काफी नया हो एवं उसे फैलने हेतु पर्याप्त समय नहीं मिला हो,
6.प्रजाति के बारे में पर्याप्त सूचनाएं उपलब्ध नहीं हो आदि-आदि।

इस लेख में राजस्थान राज्य के दुर्लभ वृक्षों में भी जो दुर्लभतम हैं तथा जिनकी संख्या राज्य में काफी कम है, उनकी जानकारी प्रस्तुत की गयी है।इन दुर्लभ वृक्ष प्रजातियों की संख्या का भी अनुमान प्रस्तुत किया गया है जो वर्ष 1980 से 2019 तक के प्रत्यक्ष वन भ्रमण,प्रेक्षण,उपलब्ध वैज्ञानिक साहित्य अवलोकन एवं वृक्ष अवलोककों(Tree Spotters), की सूचनाओं पर आधारित हैं।

Antidesma ghaesembilla

अब तक उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर राजस्थान की अति दुर्लभ वृक्ष प्रजातियां निम्न हैं:

क्र. सं.नाम प्रजातिप्रकृतिकुलफ्लोरा ऑफ राजस्थान (भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण अनुसार स्टेटस)राज्य में संख्या अनुमान*मुख्य वितरण क्षेत्रवि. वि.
1.Borassus flabellifer, Asian Palmyra palm,ताड़ वृक्षArecaceaeदर्ज नहींAबांसी (चित्तौड़गढ़), सलूम्बर, ऋषभदेववन्य एवं रोपित अवस्था में विद्यमान
2.Commiphora agallocha, (बड़ी गूगल)छोटा वृक्षBurseraceaeदर्ज नहींBभींडर (उदयपुर), कुंडाखोह (बारां), विजयपुर (चित्तौड़गढ़)वन्य अवस्था में विद्यमान
3.Washingtonia robusta, Mexican Fan Palm वृक्ष Arecaceaeदर्ज नहींAनागफणी (डूंगरपुर) वन भवन एवं गुलाबबाग,(उदयपुर)वन्य एवं रोपित अवस्था में विद्यमान
4.Protium serratumमध्यम आकार का वृक्षBurseraceaeदर्ज नहींAकमलनाथ नाला (कमलनाथ वन खंड,उदयपुर) गौमुख के रास्ते पर(मा.आबू) वन्य अवस्था में विद्यमान
5.Butea monosperma leutea पीला पलाशमध्यम आकार का वृक्षFabaceaeदर्ज नहींBमुख्यतः दक्षिणी राजस्थान, बाघ परियोजना सरिस्कावन्य अवस्था में विद्यमान
6.Celtis tetrandraमध्यम आकार का वृक्षUlmaceaeदुर्लभ के रूप में दर्जAमाउन्ट आबू (सिरोही), जरगा पर्वत (उदयपुर)वन्य अवस्था में विद्यमान
7.Cochlospermum religisoum गिरनार, धोबी का कबाड़ाछोटा वृक्षLochlospermaceae‘अतिदुर्लभ’ के रूप में दर्जBसीतामाता अभ्यारण्य, शाहबाद तहसील के वन क्षेत्र (बारां)वन्य अवस्था में विद्यमान
8.Cordia crenata ,(एक प्रकार का गैंदा)छोटा वृक्षBoraginaceae‘अतिदुर्लभ’ के रूप में दर्जपुख़्ता जानकारी उपलब्ध नहींमेरवाड़ा के पुराने जंगल, फुलवारी की नाल अभ्यारण्यवन्य अवस्था में विद्यमान
9.Ehretia serrata सीला, छल्लामध्यम आकार का वृक्षEhretiaceaeदुर्लभ के रूप में दर्जAमाउन्ट आबू (सिरोही), कुम्भलगढ़ अभयारण्य,जरगा पर्वत,गोगुन्दा, झाड़ोल,कोटड़ा तहसीलों के वन एवं कृषि
क्षेत्र
वन्य एवं रोपित अवस्था में विद्यमान
10.Semecarpus anacardium, भिलावाबड़ा वृक्षAnacardiaceaeफ्लोरा में शामिल लेकिन स्टेटस की पुख़्ता जानकारी नहींहाल के वर्षों में उपस्थित होने की कोई सूचना नहीं हैमाउन्ट आबू (सिरोही)वन्य अवस्था में ज्ञात था
11.Spondias pinnata, काटूक,आमण्डाबड़ा वृक्षAnacardiaceaeदर्ज नहींसंख्या संबधी पुख़्ता जानकारी नहींसिरोही जिले का गुजरात के
बड़ा अम्बाजी क्षेत्र से सटा
राजस्थान का वनक्षेत्र, शाहबाद तहसील के वन क्षेत्र (बारां)
वन्य अवस्था में विद्यमान
12.Antidesma ghaesembillaमध्यम आकार का वृक्षPhyllanthaceaeदर्ज नहींAरणथम्भौर बाघ परियोजना (सवाई माधोपुर)वन्य अवस्था में विद्यमान
13.Erythrinasuberosasublobataछोटा वृक्षFabaceaeदर्ज नहींAशाहबाद तहसील के वन क्षेत्र (बारां)वन्य अवस्था में विद्यमान
14.Litsea glutinosaमैदा लकड़ीLauraceaeदर्ज नहींAरणथम्भौर बाघ परियोजना (सवाई माधोपुर)वन्य अवस्था में विद्यमान

(*गिनती पूर्ण विकसित वृक्षों पर आधारित है A=50 से कम,B=50 से 100)

उपरोक्त सारणी में दर्ज सभी वृक्ष प्रजातियां राज्य के भौगोलिक क्षेत्र में अति दुर्लभ तो हैं ही,बहुत कम जानी पहचानी भी हैं।यदि इनके बारे में और विश्वसनीय जानकारियां मिलें तो इनके स्टेटस का और भी सटीक मूल्यांकन किया जा सकता है।चूंकि इन प्रजातियों की संख्या काफी कम है अतः ये स्थानीय रूप से विलुप्त भी हो सकती हैं। वन विभाग को अपनी पौधशाला में इनके पौधे तैयार कर इनको इनके प्राकृतिक वितरण क्षेत्र में ही रोपण करना चाहिए ताकि इनका संरक्षण हो सके।

राजस्थान के एंडेमिक प्राणी

राजस्थान के एंडेमिक प्राणी

एंडेमिक प्राणी वे प्राणी हैं जो एक स्थान विशेष में पाए जाते हैं । राजस्थान भारत का सबसे बड़ा राज्य है। यह राज्य न केवल वनस्पतिक विविधता से समृद्ध है बल्कि विविध प्रकार के प्राणियों से भी समृद्ध है। इस राज्य में विभिन्न प्रकार के आवास, प्रकृति में हैं जो कि जीव-जंतुओं की विविधता एवं स्थानिकता (Endemism) के अस्तित्व को सुनिश्चित करते हैं। साथ ही कई प्रकार के एंडेमिक प्राणी यहाँ मिलते हैं। अपृष्ठवंशी जीवों से लेकर स्तनधारी जीवों तक कई स्थानिक प्रजातियां एवं उप-प्रजातियां राजस्थान की भौगोलिक सीमा के भीतर पायी जाती हैं। जीव-जंतुओं की स्थानिकता की एक अच्छी झलक अली और रिप्ले (1983), घोष एवं साथी (1996), गुप्ता और प्रकाश (1975), प्रकाश (1973) एवं शर्मा (2014,2015) के शोध द्वारा मिलती है।

कई प्रजातियाँ राजस्थान के थार रेगिस्तान, गुजरात और पाकिस्तान  के लिए स्थानिक हैं तो वहीं कई प्रजातियां राजस्थान के अन्य हिस्सों और आसपास के राज्यों के कुछ हिस्सों में स्थानिक हैं। जो प्रजातियां, उप-प्रजातियां एवं किस्में मुख्य रूप से राजस्थान राज्य की भौगोलिक सीमाओं के लिए विशेष रूप से स्थानिक हैं उनको नीचे सारणी में प्रस्तुत किया गया है:

S.No.Species/sub-speciesTaxonomic group
1.Rogerus rajasthanensis Porifera (Sponge)
2.Orentodiscus udaipurensisPlatyhelminthes (Trematode)
3.Thapariella udaipurensisPlatyhelminthes (Trematode)
4.Neocotylotretus udaipurensisPlatyhelminthes (Trematode)
5.Indopseudochinostomus rajasthaniPlatyhelminthes (Trematode)
6.Triops (Apus) mavliensisPlatyhelminthes (Trematode)
7.Artemia salinaArthropoda (Crustacea)
8.Branchinella biswasiArthropoda (Crustacea)
9.Leptestheria jaisalmerensisArthropoda (Crustacea)
10.L. longimanusArthropoda (Crustacea)
11.L. biswasiArthropoda (Crustacea)
12.Sevellestheria sambharensisArthropoda (Crustacea)
13.Incistermes dedwanensisArthropoda (Termite)
14.Microcerotermes laxmiArthropoda (Termite)
15.Micorcerotermes rajaArthropoda (Termite)
16.Angulitermes jodhpurensisArthropoda (Termite)
17.Microtermes bharatpurensisArthropoda (Termite)
18.Eurytermes mohanaArthropoda (Termite)
19.Tentyria rajasthanicusArthropoda (Beetle)
20.Mylabris rajasthanicusArthropoda (Beetle)
21.Buthacus agarwaliArthropoda (Scorpion)
22.Octhochius krishnaiArthropoda (Scorpion)
23.Androctonus finitimusArthropoda (Scorpion)
24.Baloorthochirus becvariArthropoda (Scorpion)
25.Compsobuthus rogosulusArthropoda (Scorpion)
26.Odontobuthus odonturusArthropoda (Scorpion)
27.Orthochirus fuscipesArthropoda (Scorpion)
28.O. pallidusArthropoda (Scorpion)
29.Vachonus rajasthanicusArthropoda (Scorpion)
30.Apoclea rajasthansisArthropoda (Dipetra)
31.Oxyrhachis geniculataArthropoda (Hemipetra)
32.Diphorina bikanerensisArthropoda (Hemipetra)
33.Ceroplastes ajmeransisArthropoda (Coccid)
34.Kerria chamberliniiArthropoda (Coccid)
35.Labeo rajasthanicusChordata (Fish)
36.Labeo udaipurensisChordata (Fish)
37.Nemacheilus rajasthanicusChordata (Fish)
38.Aphanius disparChordata (Fish)
39.Bufoniceps laungwalansisChordata (Agama)
40.Saxicola macrorhynchaChordata (Bird)
41Salpornis spilonotus rajputanaeChordata (Bird)

विभिन्न स्थानिक वर्गों की एक झलक

S.No.Taxa /groupNumber of species
1.Sponge1
2.Trematoda4
3.Crustacea7
4.Termite6
5.Beetle2
6.Scorpion9
7.Diptera1
8.Hemiptera2
9.Coccids2
10.Fish4
11.Agama1
12.Birds2
Total41

राजस्थान में किसी भी प्रकार की प्रभावी बाधाएं नहीं हैं, इसलिए राज्य में अधिक स्थानिकवाद विकसित नहीं हुआ है। कोई भी प्राणी वंश यहाँ स्थानिक नहीं पाया गया है।पहले कई प्रजातियों को राजस्थान की एंडेमिक प्रजाति माना जाता है लेकिन समान जलवायु एवं आवासीय परिस्थितियों के कारण उनकी उपस्थिति अन्य भारतीय राज्यों एवं पाकिस्तान के कुछ सुदूर हिस्सों में होने की सम्भावना है। हमें राज्य की एंडेमिक प्रजातियों की  स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए अधिक सटीक सर्वेक्षण और शोध की आवश्यकता है।

References

  1. Ali, S. & S.D. Ripley (1983): Handbook of the birds of India and Pakistan (Compact edition)
  2. Ghosh, A.K., Q.H. Baqri & I. Prakash (1996): Faunal diversity in the Thar Desert: Gaps in research.
  3. Gupta, R. & I. Prakash (1975): Environmental Analysis of the Thar Desert
  4. Prakash, I (1963): Zoogeography and evolution of the mammalian fauna of Rajasthan desert, India. Mammalia, 27: 342-351
  5. Sharma, S.K. (2014): Faunal and Floral endemism in Rajasthan.
  6. Sharma, S.K. (2015): Faunal and floral in Rajasthan. Souvenir, 18th Birding fair, 30-31 January 2015, Man Sagar, Jaipur
राजस्थान की एंडेमिक वनस्पति प्रजातियां

राजस्थान की एंडेमिक वनस्पति प्रजातियां

राजस्थान वनस्पतिक विविधता से समृद्ध राज्य है। जहाँ रेगिस्तान,आर्द्रभूमि,घास के मैदान, कृषि क्षेत्र, पहाड़, नमक फ्लैट जैसे कई प्रकार के प्राकृतिक आवास विद्यमान हैं। जिनमे विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधों की प्रजातियां भी पायी जाती हैं। यहाँ मुख्य रूप से तीन प्रकार के वन पाए जाते हैं जो उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन उष्ण कटिबंधीय कांटेदार वन एवं उपोष्ण कटिबंधीय चौड़ी पत्ती वाले पर्वतीय प्रकार के वन हैं । राज्य के अधिकतर जंगल पहले दो वन प्रकार के ही हैं और उपोष्ण कटिबंधीय चौड़ी पत्ती वाले पर्वतीय वन सबसे कम जो केवल सिरोही जिले के माउंट आबू के ऊपरी इलाकों तक ही सीमित हैं। इन सभी वनों में कई प्रकार की स्थानिक (endemic) वनस्पतिक प्रजातियां पायी जाती हैं ।

स्थानिक वनस्पतियों के विभिन्न पहलुओं की अच्छी जानकारी अवस्थी (1995), भंडारी (1978), शेट्टी और सिंह (1987,1991और1993) एवं शर्मा (2014, 2015) के कार्य द्वारा भी हुई है।

कई वनस्पतिक प्रजातियाँ राजस्थान के थार रेगिस्तान गुजरात और पाकिस्तान  के लिए स्थानिक हैं तो वहीं कई प्रजातियां राजस्थान के अन्य हिस्सों और आसपास के राज्यों के कुछ हिस्सों के लिए स्थानिक हैं। जो प्रजातियां उप-प्रजातियां एवं किस्में मुख्य रूप से राजस्थान राज्य की भौगोलिक सीमाओं के लिए विशेष रूप से स्थानिक हैं उनकी जानकारी नीचे सारणी में प्रस्तुत है:

S.No.SpeciesMain Taxa
1.Rivularia globiceps abuensisAlga
2.Gloeotrichia raciborskii kaylanaensisAlga
3.Physica abuensisLichen
4.Serratia sambharianaBacterium
5.Riccia abuensisBryophyte
6.R. jodhpurensisBryophyte
7.R. reticulatulaBryophyte
8.Asplenium pumilum hymenophylloidesFern
9.Seleginella rajasthanensisFern
10.Isoetus tuburculataFern
11.I reticulataFern
12.I rajasthanensisFern
13.Marselia condensataFern
14.M. rajasthanensisFern
15.M. rajasthensis ballardiiFern
16.M. minuta indicaFern
17.Cheilanthes aravallensisFern
18.Farsetia macranthaDicot plant
19.Cleome gynandra nanaDicot plant
20.Abutilon fruticosum chrisocarpaDicot plant
21.A . bidentatus majorDicot plant
22.Pavonia arabica glatinosaDicot plant
23.P. arabica massuriensisDicot plant
24.Melhania magnifloliaDicot plant
25.Ziziphus truncataDicot plant
26.Alysicarpus monilifer venosaDicot plant
27.Ipomoea cairica semine-glabraDicot plant
28.Anogeissus seriea nummulariaDicot plant
29.Pulicaria rajputanaeDicot plant
30.Convolvulus auricomus ferrugenosusDicot plant
31.C. blatteriDicot plant
32.Merremia rajasthanensisDicot plant
33.Barleria prionitis subsp. prionitis var. dicanthaDicot plant
34.Cordia crenataDicot plant
35.Dicliptera abuensisDicot plant
36.Strobilanthes helbergiiDicot plant
37.Euphorbia jodhpurensisDicot plant
38.Phyllanthus ajmerianusDicot plant
39.Anticharis glandulosa caeruleaDicot plant
40.Lindernia bracteoidesDicot plant
41.L. micranthaDicot plant
42.Oldenlandia clausaDicot plant
43.Veronica anagallis – aquatica bracteosaDicot plant
44.Veronica beccabunga attenuataDicot plant
45.Apluda blatteriMonocot plant (grass)
46Aristida royleana Monocot plant (grass)
47Cenchrus prieuri scabraMonocot plant (grass)
48C. rajasthanensisMonocot plant (grass)
49Digitaria pennata settyanaMonocot plant (grass)
50Ischaernum kingiiMonocot plant (grass)

विभिन्न स्थानिक वर्गों का विश्लेषण

S.No.Taxa/GroupNumber of Species,sub-species and verities
1.Algae2
2.Lichen1
3.Bacteriya1
4.Bryophyta3
5.Petridothyta (fern)10
6.Dicot plants27
7.Monocot plants6
Total50

कई लेखक कॉर्डिया क्रेनाटा को राजस्थान की एक स्थानिक प्रजाति के रूप में मानते हैं लेकिन भारत के बाहर यह मिस्र में खेतों में भी उगाया जाता है। हालाँकि राजस्थान में अरावली एवं थार रेगिस्तानी जैसी प्राकृतिक संरचनाएं विद्यमान हैं लेकिन वे प्रभावी अवरोध नहीं बना पाते हैं। इसलिए राज्य में अधिक स्थानिकवाद विकसित नहीं हुआ है। कोई भी वनस्पति वंश यहाँ स्थानिक नहीं पाया गया है। कभी-कभी कुछ प्रजातियों एवं उप प्रजातियों की स्थिति को स्थानिक नहीं माना जाता है क्योंकि उनकी उपस्थिति अन्य भारतीय राज्यों और पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में समान प्रकार के निवास स्थानों की निरंतरता के कारण संभव है। हमें राज्य की स्थानिक प्रजातियों की  स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए अधिक सटीक सर्वेक्षण और शोध की आवश्यकता है।

References

  1. Awasthi, A. (1995): Plant geography and flora of Rajasthan.
  2. Bhandari, M.M. (1978): Flora of the Indian desert.
  3. Sharma, S.K. (2014): Faunal and Floral endemism in Rajasthan.
  4. Sharma, S.K. (2015): Faunal and floral in Rajasthan. Souvenir, 18th Birding fair, 30-31 January 2015, Man Sagar, Jaipur
  5. Shetty, B.V. & V. Singh (1987, 1991, 1993): Flora of Rajasthan. Vol. I, II, III