“जंगल असीम प्रेम के स्रोत हैं। यह सभी को सुरक्षा देते हैं ये उस कुल्हाड़ी को भी लकड़ी का हत्था देते है, जो जंगल को काटने के काम आती है। ” (भगवन बुद्ध)
राजस्थान के करौली जिले की अर्ध-शुष्क विंध्य पर्वत श्रृंखलाओं में स्थित “कैलादेवी वन्यजीव अभयारण्य” गहरी घाटियों और चट्टानी पठारों का एक शानदार भूभाग है। शुष्क पर्णपाती धोक वन से आच्छादित इन पठारों को स्थानीय भाषा में “डांग” कहा जाता है। यहाँ की गहरी घाटियां जल की अधिक उपलब्धता के कारण मिश्रित पर्णपाती वनस्पति प्रजातियों और विभिन्न जीव-जंतुओं का घर है जो स्थानीय भाषा में “खोह” कहलायी जाती हैं।
परन्तु सालों से चारकोल, चारे, जलाऊ लकड़ी और अन्य कई चीजों के लिए पेड़ों की कटाई के कारण आज अधिकांश जंगल घास के मैदानों और धोक के पेड़ छोटी झाड़ियों में तब्दील हो गए हैं। हालांकि यह अभयारण्य विश्व प्रसिद्ध रणथम्भौर टाइगर रिज़र्व के आधे से अधिक हिस्से को बनाता है, लेकिन रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान की तुलना में यह काफी सूखा, बंजर और मानवीय दबाव वाला क्षेत्र है।
कैलादेवी अभयारण्य के अंदर लगभग 66 गाँव स्थित हैं जिनमें लगभग 5000 परिवार (कुल 19,179 लोग) और लगभग 1 लाख से अधिक गाय,भैंस, बकरी एवं भेड़े रहती हैं और वे निरंतर अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए पूरी तरह से अभयारण्य पर ही निर्भर रहते हैं। हालाँकि अभयारण्य मात्र इन्ही गाँवों की जरूरतों को पूरा नहीं करता बल्कि बारिश के मौसम में यहाँ आसपास के क्षेत्र से लगभग 35,000 से भी अधिक मवेशी चराई के लिए लाये जाते हैं। इसके अलावा 75 से अधिक गांव अभयारण्य के परीक्षेत्र पर स्थित हैं और यहाँ के लोग निरंतर जलाऊ लकड़ी और मवेशियों के लिए चारा लेने के लिए अभयारण्य का उपयोग कर रहे हैं।
इतनी बड़ी मात्रा में मानवीय आवश्यताओं को पूरा करने के बाद भी यह अभयारण्य कई ऐसी सेवाओं का खज़ाना हैं जिसकी हम न तो कल्पना कर सकते हैं और न ही मूल्यांकन। परन्तु एक कोशिश तो की जा सकती है।
इसी क्रम में, हाल ही में रणथम्भौर स्थित वन्यजीव संरक्षण संस्था टाइगर वॉच और रणथंभौर बाघ संरक्षण प्राधिकरण (Ranthambhore tiger conservation authority) द्वारा “कैलादेवी वन्यजीव अभयारण्य द्वारा दी जाने वाली पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं का मूल्यांकन” करने के लिए एक अध्ययन करवाया गया, जिसका कार्य मेरे नितृत्व में किया गया।
यह अध्ययन दस लोगों की टीम (4 शोधकर्ता एवं 6 फील्ड कर्मचारी) द्वारा एक साल तक किए गए विभिन्न सर्वेक्षणों और जांचों का परिणाम है जो अभयारण्य की विभिन्न सेवाओं पर प्रकाश डालता है।
अध्ययन द्वारा संगृहीत आंकड़ों के संकलन से पता चलता है कि, प्रतिवर्ष कैलादेवी वन्यजीव अभयारण्य 36,730 करोड़ रुपए की सेवाएं देता है। हालांकि शायद ही कोई पर्यटक इस अभयारण्य का दौरा करता है, परन्तु अगर आप यहां पहुंचते हैं तो आपको विश्वास नहीं होगा कि, इस बंजर खाली प्रतीत होने वाले अभयारण्य से हमें इतनी बड़ी कीमत की सेवाएं मिलती हैं।
आखिर क्या होती हैं पारिस्थितिक तंत्र सेवाएं ?
हमारी प्रकृति में वन और अन्य सभी प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र अविश्वसनीय रूप से मूल्यवान संसाधनों का खज़ाना हैं। ये शुद्ध पानी और हवा का श्रोत होने के साथ-साथ लकड़ी, चारा, दवा आदि के रूप में लाखों लोगों को आजीविका भी प्रदान करते हैं। यदि सरल भाषा में कहा जाए तो ये सभी पारिस्थितिक तंत्र कुदरत के खज़ाने हैं, जिसे हम “प्राकृतिक पूंजी (Natural capital)” कहते हैं और हम जो लाभ प्राप्त करते हैं, उन्हें पारिस्थितिक तंत्र सेवाएँ (Ecosystem Services) कहते हैं।
पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं को चार समूहों में वर्गीकृत किया गया है:
1 उत्पाद सेवाएँ (Provisioning services) : इन सेवाओं में सीधे उपयोग किए जाने वाले उत्पाद शामिल हैं जैसे भोजन, लकड़ी, चारा, दवाइयां आदि।
2 विनियमित सेवाएँ (Regulating Services) : इस श्रेणी में ऐसी प्रक्रियाएं शामिल हैं जो पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन को नियंत्रित करती हैं जैसे वनों द्वारा हवा की शुद्धता बनाए रखना, कार्बन स्ववियोजन (Carbon sequestration), नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Nitrogen fixation), जल चक्र, जल शुद्धिकरण और मिट्टी के कटाव को रोकना आदि।
3 सहायक सेवाएँ (Supporting services) : वन पारिस्थितिक तंत्र के समुचित कार्यों को सही से चलाने के लिए सहायक सेवाएं आवश्यक होती हैं। ये ऐसा कोई उत्पाद प्रदान नहीं करती हैं जो सीधे मनुष्यों को लाभ देते हैं परन्तु पारिस्थितिक तंत्र के अन्य महत्व पहलु जैसे जीन पूल एवं जैव विविधता के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये इतनी महत्वपूर्ण हैं कि, सभी पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं में, अकेले सहायक सेवाओं का योगदान लगभग 50% है।
4 सांस्कृतिक सेवाएँ (Cultural services) : इन सेवाओं में वनों से प्राप्त गैर-भौतिक लाभ शामिल हैं जैसे, मनोरंजन, सौंदर्य, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक लाभ आदि। यह मुख्यरूप से पर्यटन ही है जिसमें, अधिकांश प्राकृतिक क्षेत्रों जैसे कि, वन, पहाड़, गुफाएं, सांस्कृतिक और कलात्मक उद्देश्यों के लिए एक स्थान के रूप में उपयोग किए जाते हैं।
प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र और उनकी बहुमूल्य सेवाओं की कीमत का अनुमान लगाना निश्चित ही एक कठिन कार्य है।
पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं का इतिहास एवं विषय उत्पत्ति :
1970 के दशक तक शोधकर्ताओं को एक ऐसी विधि की आवश्यकता महसूस होने लगी जिससे प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र के लाभों का मूल्यांकन किया जा सके और वनों को काटने के बजाय उनके संरक्षण के लिए ठोस सबूत सामने रखे। इसी आवश्यकता ने, पारिस्थितिक तंत्र की भूमिका को दर्ज करने के उद्देश्य से ‘पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं’ के विचार को जन्म दिया।
हम सभी ने बचपन में कहानी सुनी है जिसमें, एक लालची आदमी सोने सारे अंडे एक साथ पाने के लालच में सोने के अंडे देने वाली मुर्गी को मार डालता है। इसी प्रकार हम मनुष्य भी छोटे फायदों के लिए प्राकृतिक वनों का दोहन कर रहे हैं।
ऐसे में हमें पारिस्थितिक तंत्र सेवा और उनके महत्त्व के दृष्टिकोण का उपयोग करके लोगों को जंगल या किसी अन्य पारिस्थितिक तंत्र के ‘वास्तविक मूल्य’ को समझा सकते हैं।
अब हम सबसे दिलचस्प भाग पर आते हैं। हम पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं को मूल्य कैसे प्रदान करते हैं?
कुछ पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं में कई मापने योग्य वस्तुएं शामिल हैं, जैसे जंगली फल, चारा, लकड़ी, प्राकृतिक फाइबर, दवाएं। तो हम उन सेवाओं का एक मूल्य लगा सकते हैं। फिर कुछ सेवाएं ऐसी हैं जैसे स्वच्छ पानी, ऑक्सीजन और परागण जिनका मूल्य लगा पाना कठिन है। इसलिए यहां हम उनके मूल्य का आकलन करने के लिए अप्रत्यक्ष तरीकों का उपयोग करते हैं। जैसे कि, वन द्वारा मिलने वाले मिलने वाले जल की कीमत का आकलन करने के लिए कैलादेवी वन और गैर वन क्षेत्र से जल गुणवत्ता की जांच की गई। जांच में पाया गया कि, वनों से निकलने वाला पानी गैर वन क्षेत्रों की तुलना में बेहतर और शुद्ध था। फिर कुछ ज्ञात सूत्रों का उपयोग करके हमने कैलादेवी अभयारण्य से निकलने वाले पानी की मात्रा की गणना की और नगरपालिका जल विभाग की दरों के अनुसार हमने इस शुद्ध जल सेवा के लिए एक मूल्य ज्ञात किया।
फिर कई ऐसी सेवाएँ भी हैं जिनकी कीमत का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता है। जैसे कुड़का खोह से सूर्यास्त का मनमोहक दृश्य, खोह के प्राचीन जल में तैरने का आनंद। ये अनुभव वाकई अनमोल हैं। कैलादेवी में लगभग तीन हजार साल पुराने रॉक पेंटिंग हैं। अब बताइये हम इन अमूल्य सांस्कृतिक विरासत पर मूल्य टैग कैसे लगा सकते हैं?
ऐसी सेवाओं का मूल्यांकन करने के लिए हमने “मूल्य+” दृष्टिकोण का प्रयोग किया। यहां ‘+’ अतिरिक्त मूल्यों को दर्शाता है जो रुपए के संदर्भ में अमूल्य हैं। इस अध्ययन में ऐसी सभी अमूल्य पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं को सूचीबद्ध किया और उनके लिए कोई मूल्य टैग नहीं लगाया गया।
हम 21 विभिन्न पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं का आकलन निम्नानुसार करते हैं
इस विषय को और बेहतर तरीके से समझने के लिए हमें ये समझना होगा कि, पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं को व्यापक रूप से प्रवाह लाभ (Flow benefits) और भंडार लाभ (stock benefits) के रूप में बांटा जाता है। प्रवाह लाभ वे होते हैं जिनका मनुष्यों द्वारा नियमित रूप से शोषण किया जाता है जैसे मछली पकड़ना, चराई और ईंधन की लकड़ी आदि। भंडार लाभ वे लाभ हैं जो एक पारिस्थितिक तंत्र में मौजूद तो होते हैं लेकिन विभिन्न कारणों से उपयोग नहीं किए जाते हैं जैसे कैलादेवी में मौजूद लकड़ी के भंडार का बाजार मूल्य तो बहुत है लेकिन भविष्य में इसका दोहन नहीं किया जा सकता है। सरल भाषा में समझे तो “भंडार लाभ” बैंक में जमा हमारी पूंजी की तरह है और “प्रवाह लाभ” प्रति वर्ष मिलने वाला ब्याज।
अध्ययन में सभी प्रवाह लाभों का कुल 84.41 अरब रुपए प्रति वर्ष मूल्यांकन किया गया है; जिसमें सबसे अधिक मूल्य जीन पूल का 6124.01 मिलियन रुपए प्रति वर्ष पाया गया। इसके बाद भूजल सेवा (823 मिलियन/वर्ष), अपशिष्ट निपटारा (484.43 मिलियन/वर्ष), चारा (415 मिलियन/वर्ष), आवास सेवा (157.44 मिलियन/वर्ष), परागण (121.10 मिलियन/वर्ष), कार्बन स्ववियोजन (86.943 मिलियन/वर्ष), मिट्टी के पोषक तत्व (85.92 मिलियन/वर्ष), जलाऊ लकड़ी (38.08 मिलियन/वर्ष) रही। इसके अलावा अन्य सेवाएं जैसे मिट्टी कटाव का बचाव, संग्रहित जल, मछली, जैविक नियंत्रण, वायु शुद्धिकरण और धार्मिक पर्यटन आदि मिलकर कुल 105.42 मिलियन रुपए प्रति वर्ष रही।
वहीँ दूसरी ओर भंडार लाभों को कुल 36.6 अरब रुपए प्रति वर्ष देखा गया जिसमें मुख्यरूप से कार्बन और लड़की भडार को पाया गया जिनका मूल्य क्रमशः 2.570 और 34.1 मिलियन रुपए प्रति वर्ष था।
और इस प्रकार कैलादेवी वन्यजीव अभ्यारण्य कुल 36.6 अरब रुपए की पूंजी है जिसपर हमें हर वर्ष 84.41 अरब रुपए का सेवाओं के रूप में ब्याज प्राप्त होता है।
इस अध्ययन में संसाधन उपयोग की स्थिरता और निरंतरता को भी समझा गया और पाया कि, कैलादेवी अभयारण्य में कई पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं का अत्यधिक दोहन किया गया है और वे सेवाएं आज गंभीर खतरे में हैं। जिसका सबसे मुख्य कारण है ईंधन की लकड़ी के लिए वन का कटाव और भारी मात्रा में चराई।
अध्ययन में बाघों को एक सुरक्षित क्षेत्र प्रदान करने, अन्य वन्यजीवों के संरक्षण और मानव-वन्यजीव संघर्षों को कम करने के लिए पर्यटन जैसी कुछ सेवाओं को बढ़ाने के संभावित लाभों की पहचान की है। तथा बाघ पर्यटन को बढ़ावा देकर करौली जिले में स्थानीय लोगों के लिए अतिरिक्त रोजगार और राजस्व उत्पन्न करने की अपार संभावनाएं हैं।
मानव समाज कई तरह से प्रकृति द्वारा लाभान्वित और उस पर निर्भर है। पहले समय में वनों को अपार संसाधनों का भण्डार माना जाता था और आर्थिक लाभ के लिए उनका दोहन भी किया जाता था। जैसे उदाहरण के लिए कौटिल्य के अर्थशास्त्र में राजा को लकड़ी, मसाले, दवाइयाँ और सबसे महत्वपूर्ण हाथियों जैसी वस्तुओं के लिए जंगलों की रक्षा करने के लिए कहा था!
अधिकांश वन वस्तुओं और सेवाओं की पुनःपूर्ति की भी एक सीमित क्षमता होती है। जैसे, यदि एक लकड़हारा लकड़ी के लिए बहुत सारे पेड़ काटता है, तो जंगल में कोई पेड़ नहीं बचेगा। संक्षेप में कहें तो, कोई जंगल नहीं बचेगा। और पेड़ों के साथ-साथ अन्य संबंधित सेवाएं जैसे मिट्टी और जल संरक्षण भी खत्म हो जायेगी। ऐसे में वह लकड़हारा कई लोगों के नुकसान के लिए जिम्मेदार है जो जंगल पर निर्भर हैं जैसे कि, किसान खेती में पानी की आपूर्ति के लिए जंगल पर निर्भर हैं, आदिवासी समुदाय शहद, दवा और अन्य उत्पादों के लिए जंगल पर निर्भर हैं। अंततः लकड़हारे का लालच जंगल को नष्ट करके उसकी नौकरी भी खा जायेगा। यदि बड़े पैमाने पर देखें तो सरकारें भी लालची लकड़हारे के रूप में कार्य कर रही हैं और अल्पकालिक छोटे आर्थिक फायदों जैसे बांध, खदान आदि के लिए जंगलों का व्यापार कर रही हैं।
इसीलिए हमें सभी प्राकृतिक संसाधनों का ध्यानपूर्वक उपयोग करना चाइये ताकि प्ररिस्थितक तंत्र की पूंजी समाप्त न हो।
हमें यकीन है कि, इस आलेख और अध्ययन ने आर्थिक दृष्टि से कैलादेवी वन के संरक्षण के पक्ष में एक ठोस सबूत प्रस्तुत किए है। हालांकि, यह पारिस्थितिक तंत्र द्वारा दिए जाने वाले बहुत सारे लाभों में से केवल कुछ लाभों का ही मूल्यांकन है, परन्तु प्रकृति की सभी सेवाओं का मूल्य लगा पाना असंभव है।
इसी के साथ मैं इस आलेख को पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट के एक सुविचार के साथ समाप्त करता हूं !