क्या आपने कभी सोचा है आजादी से पूर्व में राजस्थान में कैमरा ट्रैप फोटो लिया गया था ? आइये जानिए कैमरा ट्रैप के इतिहास एवं उससे जुड़े कुछ रोचक तथ्यो के बारे में…
वन्यजींवों के संरक्षण में वन्यजींवों की संख्या का अनुमान लगाना एक अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य है। भारत में वर्ष 2006 के बाद से बाघ अभयारण्य में बाघों की संख्या का अनुमान लगाने के लिए कैमरा ट्रैप का उपयोग होने लगा। आज कैमरा ट्रैप के उपयोग से संख्या का अनुमान अधिक सटीक और बिना इंसानी दखल के होने लगा है। कैमरा ट्रैप के इस्तेमाल से न केवल वन्यजींवों की संख्या का अनुमान बल्कि इससे उनके संरक्षण के लिए कई महत्वपूर्ण जानकारियां जैसे जंगल में शिकारियों व् अवैध कटाई के परिणाम भी प्राप्त किये जाते है।
वर्तमान में प्रयोग में लिया जाने वाला कैमरा ट्रैप दूर से काम करने वाली मोशन सेंसर बीम तकनीक पर आधारित है, इन अत्याधुनिक उपकरण में से निकलने वाली इंफ़्रारेड बीम के सामने यदि कोई भी गतिविधि होती है तो तस्वीर कैद हो जाती है। परन्तु पहली बार जब कैमरा ट्रैप के अविष्कार कर्ता जॉर्ज शिरस-III ने सन 1890 में इसका उपयोग किया तब वह एक ट्रिप वायर और एक फ़्लैश लाइट का इस्तेमाल करके बनाया गया था। इनसे लिए गए फोटो 1906 में नेशनल जियोग्राफिक मैगज़ीन में प्रकाशित हुए थे। भारत में ऍफ़ डब्लू चैंपियन ने 1926 में राजाजी नेशनल पार्क में टाइगर की कैमरा ट्रैप से पहली पिक्चर लेने में सफलता प्राप्त की। ऍफ़ डब्लू चैंपियन, प्रसिद्ध शिकारी जिम कॉर्बेट के दोस्त एवं संरक्षक थे और उन्होने ही जिम कॉर्बेट को बन्दुक की जगह कैमरा पकड़ने की सलाह दी थी। जिसके बाद जिम कॉर्बेट एक वन्यजीव प्रेमी के रूप में प्रसिद्ध हुए।
परन्तु क्या आप जानते है? राजस्थान में संयोजित तरह से आधुनिक कैमरा ट्रैप का इस्तेमाल डॉ जी वी रेड्डी के दिशा निर्देशन में रणथम्भोरे रास्ट्रीय उद्यान में सन 1999 में किया गया था। उन्होने पहली बार डॉ उल्हास कारंथ के सहयोग से बाघों की संख्या का अनुमान लगाने का प्रयास किया। परन्तु इतिहास के अनछुए पन्नो में प्रमाण मिलते है की राजस्थान में सबसे पहले कैमरा ट्रैप का इस्तेमाल चितोड़गढ़ में किया गया था। आज़ादी से पहले देश में ब्रिटिश लोगो को खुश रखने के लिए यहाँ के राजा-महाराजा, वन्यजीवों के शिकार के लिए विशेष आयोजन किया करते थे। परन्तु इन्ही दिनों की एक विशेष फोटो अनायाश ध्यान आकर्षित करती है। वर्ष 1944 में चित्तोड़ में एक तालाब पर आने वाले बाघ की फोटो लेने में जब सफलता हासिल नहीं हुई तो यहाँ सबसे पहले कैमरा ट्रैप का इस्तेमाल करके टाइगर का चित्र लिया गया। जिसका साक्षी बीकानेर का लक्ष्मी विल्लास होटल हे, जहाँ यह फोटो आज भी लगी हुई है और यदि ध्यान से देखा जाये तो टाइगर के पीछे के पैर के पास एक खींची हुई रस्सी या तार देखी जा सकती है जो दाये और बाये दोनों हिस्सों में दिखाई देती है।
आजकल कैमरा ट्रैप अत्याधुनिक डिजीटल कार्ड तथा बैटरी द्वारा संचालित फोटो एवं वीडियो दोनों बनाने में सक्षम होते हैI उस दौर में कैमरा ट्रैप में प्लेट एवं कालांतर में रील का उपयोग किया जाता था और फोटो को लैब में प्रोसेस होने के बाद ही देखा जा सकता था।
आज डिजिटल कार्ड की बदौलत पलभर में जंगल के अंदर ही मोबाइल में फोटो देखी व् तुरंत साझा की जा सकती है।
Good article Bhuvneshji
Really amazing information about Camera Trap and it’s use in wildlife.
Thank you so much Mr.Bhuvnesh Suthar for sharing such a great info about Tiger ka and Camera Trap.
This is such a good information
For everywildlifer.
Bez some people knows about trap camera .
In the world of digitalization .near Future technology all trap cameras should be direct viewing of every photo and videos to Forest department
Super boss
I had no idea India could use trap cameras as early as 1926, thanks for sharing an informative article.
Informative article, well written!