फूलों से लदे पलाश के पेड़, यह आभास देते हैं मानो वन में अग्नि दहक रही है I इनके लाल केसरी रंगों के फूलों से हम सब वाकिफ हैं, परन्तु क्या आप जानते है पीले फूलों वाले पलाश के बारे में ?
पलाश (Butea monosperma) राजस्थान की बहुत महत्वपूर्ण प्रजातियों में से एक है जो मुख्यतः दक्षिणी अरावली एवं दक्षिणी-पूर्वी अरावली के आसपास दिखाई देती है। यह प्रजाति 5 उष्ण कटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वनों का महत्वपूर्ण अंश है तथा भारत में E5 – पलाश वन बनाती है। E5 – पलाश वन मुख्यरूप से चित्तौड़गढ़, अजमेर, पाली, जालोर, टोंक, भीलवाड़ा, बूंदी, झालावाड़, धौलपुर, जयपुर, उदयपुर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, अलवर और राजसमंद जिलों तक सीमित है।
पीले पलाश (Butea monosperma var. lutea) का वृक्ष (फोटो: डॉ. सतीश शर्मा)
राजस्थान में पलाश की तीन प्रजातियां पायी जाती हैं तथा उनकी विविधताएँ नीचे दी गई तालिका में प्रस्तुत की गई हैं:
क्र. सं.
वैज्ञानिक नाम
प्रकृति
स्थानीय नाम
मुख्य वितरण क्षेत्र
फूलों का रंग
1
Butea monosperma
मध्यम आकार का वृक्ष
पलाश, छीला, छोला, खांखरा, ढाक
मुख्य रूप से अरावली और अरावली के पूर्व में
लाल
2
Butea monosperma var. lutea
मध्यम आकार का वृक्ष
पीला खांखरा, ढोल खाखरा
विवरण इस लेख में दिया गया है
पीला
3
Butea superba
काष्ठबेल
पलाश बेल, छोला की बेल
केवल अजमेर से दर्ज (संभवतः वर्तमान में राज्य के किसी भी हिस्से में मौजूद नहीं)
लाल
लाल पलाश (Butea monosperma) का वृक्ष (फोटो: डॉ. धर्मेंद्र खांडल)
लाल पलाश के पुष्प (फोटो: डॉ. धर्मेंद्र खांडल)
Butea monosperma var. lutea राजस्थान में पलाश की दुर्लभ किस्म है जो केवल गिनती योग्य संख्या में मौजूद है। राज्य में इस किस्म के कुछ ज्ञात रिकॉर्ड निम्न हैं:
क्र. सं.
तहसील/जिला
स्थान
वृक्षोंकीसंख्या
भूमिकीस्थिति
1
गिरवा (उदयपुर)
पाई गाँव झाड़ोल रोड
1
राजस्व भूमि
2
गिरवा (उदयपुर)
पीपलवास गाँव के पास, (सड़क के पूर्व के फसल क्षेत्र में)
2
राजस्व भूमि
3
झाड़ोल (उदयपुर)
पारगीया गाँव के पास (पलियाखेड़ा-मादरी रोड पर)
1
राजस्व भूमि
4
झाड़ोल (उदयपुर)
मोहम्मद फलासिया गाँव
2
राजस्व भूमि
5
कोटड़ा (उदयपुर)
फुलवारी वन्यजीव अभयारण्य के पथरापडी नाका के पास
1
राजस्व भूमि
6
कोटड़ा (उदयपुर)
बोरडी गांव के पास फुलवारी वन्यजीव अभयारण्य के वन ब्लॉक में
4
आरक्षित वन
7
कोटड़ा (उदयपुर)
पथरापडी नाका के पूर्व की ओर से आधा किलोमीटर दूर सड़क के पास एक नाले में श्री ननिया के खेत में (फुलवारी वन्यजीव अभयारण्य का बाहरी इलाका)
2
राजस्व भूमि
8
झाड़ोल (उदयपुर)
डोलीगढ़ फला, सेलाना
1
राजस्व भूमि
9
झाड़ोल (उदयपुर)
गोत्रिया फला, सेलाना
1
राजस्व भूमि
10
झाड़ोल (उदयपुर)
चामुंडा माता मंदिर के पास, सेलाना
1
राजस्व भूमि
11
झाड़ोल (उदयपुर)
खोड़ा दर्रा, पलियाखेड़ा
1
आरक्षित वन
12
प्रतापगढ़ (चित्तौड़गढ़)
जोलर
2
झार वन ब्लॉक
13
प्रतापगढ़ (चित्तौड़गढ़)
धरनी
2
वन ब्लॉक
14
प्रतापगढ़ (चित्तौड़गढ़)
चिरवा
2
वन ब्लॉक
15
प्रतापगढ़ (चित्तौड़गढ़)
ग्यासपुर
1
मल्हाड वन खंड
16
आबू रोड
गुजरात-राजस्थान की सीमा, आबू रोड के पास
1
वन भूमि
17
कोटड़ा (उदयपुर)
चक कड़ुवा महुड़ा (फुलवारी वन्यजीव अभयारण्य)
1
देवली वन ब्लॉक
18
कोटड़ा (उदयपुर)
बदली (फुलवारी वन्यजीव अभयारण्य)
1
उमरिया वन ब्लॉक
19
कोटड़ा (उदयपुर)
सामोली (समोली नाका के उत्तर में)
1
राजस्व भूमि
20
बांसवाड़ा जिला
खांडू
1
राजस्व भूमि
21
डूंगरपुर जिला
रेलड़ा
1
राजस्व भूमि
22
डूंगरपुर जिला
महुडी
1
राजस्व भूमि
23
डूंगरपुर जिला
पुरवाड़ा
1
राजस्व भूमि
24
डूंगरपुर जिला
आंतरी रोड सरकन खोपसा गांव, शंकर घाटी
1
सड़क किनारे
25
कोटड़ा (उदयपुर)
अर्जुनपुरा (श्री हुरता का कृषि क्षेत्र)
2
राजस्व भूमि
26
गिरवा (उदयपुर)
गहलोत-का-वास (उबेश्वर रोड)
6
राजस्व भूमि
27
उदयपुर जिला
टीडी -नैनबरा के बीच
1
राजस्व भूमि
28
अलवर जिला
सरिस्का टाइगर रिजर्व
1
वन भूमि
चूंकि पीला पलाश राज्य में दुर्लभ है, इसलिए इसे संरक्षित किया जाना चाहिए। राज्य के कई इलाकों में स्थानीय लोगों द्वारा इसकी छाल पूजा और पारंपरिक चिकित्सा के लिए प्रयोग ली जाती है जो पेड़ों के लिए हानिकारक है। वन विभाग को इसकी रोपाई कर वन क्षेत्रों में इसका रोपण तथा स्थानीय लोगों के बीच इनका वितरण करना चाहिए।
दुर्लभ वृक्ष का अर्थ है वह वृक्ष प्रजाति जिसके सदस्यों की संख्या काफी कम हो एवं पर्याप्त समय तक छान-बीन करने पर भी वे बहुत कम दिखाई पड़ते हों उन्हें दुर्लभ वृक्ष की श्रेणी में रखा जा सकता है। किसी प्रजाति का दुर्लभ के रूप में मानना व जानना एक कठिन कार्य है।यह तभी संभव है जब हमें उस प्रजाति के सदस्यों की सही सही संख्या का ज्ञान हो। वैसे शाब्दिक अर्थ में कोई प्रजाति एक जिले या राज्य या देश में दुर्लभ हो सकती है लेकिन दूसरे जिले या राज्य या देश में हो सकता है उसकी अच्छी संख्या हो एवं वह दुर्लभ नहीं हो।किसी क्षेत्र में किसी प्रजाति के दुर्लभ होने के निम्न कारण हो सकते हैं:
1.प्रजाति संख्या में काफी कम हो एवं वितरण क्षेत्र काफी छोटा हो, 2.प्रजाति एंडेमिक हो, 3.प्रजाति अतिउपयोगी हो एवं निरंतर व अधिक दोहन से उसकी संख्या में तेज गिरावट आ गई हो, 4.प्रजाति की अंतिम वितरण सीमा उस जिले या राज्य या देश से गुजर रही हो, 5.प्रजाति का उद्भव काफी नया हो एवं उसे फैलने हेतु पर्याप्त समय नहीं मिला हो, 6.प्रजाति के बारे में पर्याप्त सूचनाएं उपलब्ध नहीं हो आदि-आदि।
इस लेख में राजस्थान राज्य के दुर्लभ वृक्षों में भी जो दुर्लभतम हैं तथा जिनकी संख्या राज्य में काफी कम है, उनकी जानकारी प्रस्तुत की गयी है।इन दुर्लभ वृक्ष प्रजातियों की संख्या का भी अनुमान प्रस्तुत किया गया है जो वर्ष 1980 से 2019 तक के प्रत्यक्ष वन भ्रमण,प्रेक्षण,उपलब्ध वैज्ञानिक साहित्य अवलोकन एवं वृक्ष अवलोककों(Tree Spotters), की सूचनाओं पर आधारित हैं।
अब तक उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर राजस्थान की अति दुर्लभ वृक्ष प्रजातियां निम्न हैं:
क्र. सं.
नाम प्रजाति
प्रकृति
कुल
फ्लोरा ऑफ राजस्थान (भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण अनुसार स्टेटस)
कमलनाथ नाला (कमलनाथ वन खंड,उदयपुर) गौमुख के रास्ते पर(मा.आबू)
वन्य अवस्था में विद्यमान
5.
Butea monosperma leutea पीला पलाश
मध्यम आकार का वृक्ष
Fabaceae
दर्ज नहीं
B
मुख्यतः दक्षिणी राजस्थान, बाघ परियोजना सरिस्का
वन्य अवस्था में विद्यमान
6.
Celtis tetrandra
मध्यम आकार का वृक्ष
Ulmaceae
दुर्लभ के रूप में दर्ज
A
माउन्ट आबू (सिरोही), जरगा पर्वत (उदयपुर)
वन्य अवस्था में विद्यमान
7.
Cochlospermum religisoumगिरनार, धोबी का कबाड़ा
छोटा वृक्ष
Lochlospermaceae
‘अतिदुर्लभ’ के रूप में दर्ज
B
सीतामाता अभ्यारण्य, शाहबाद तहसील के वन क्षेत्र (बारां)
वन्य अवस्था में विद्यमान
8.
Cordia crenata ,(एक प्रकार का गैंदा)
छोटा वृक्ष
Boraginaceae
‘अतिदुर्लभ’ के रूप में दर्ज
पुख़्ता जानकारी उपलब्ध नहीं
मेरवाड़ा के पुराने जंगल, फुलवारी की नाल अभ्यारण्य
वन्य अवस्था में विद्यमान
9.
Ehretia serrata सीला, छल्ला
मध्यम आकार का वृक्ष
Ehretiaceae
दुर्लभ के रूप में दर्ज
A
माउन्ट आबू (सिरोही), कुम्भलगढ़ अभयारण्य,जरगा पर्वत,गोगुन्दा, झाड़ोल,कोटड़ा तहसीलों के वन एवं कृषि क्षेत्र
वन्य एवं रोपित अवस्था में विद्यमान
10.
Semecarpus anacardium, भिलावा
बड़ा वृक्ष
Anacardiaceae
फ्लोरा में शामिल लेकिन स्टेटस की पुख़्ता जानकारी नहीं
हाल के वर्षों में उपस्थित होने की कोई सूचना नहीं है
माउन्ट आबू (सिरोही)
वन्य अवस्था में ज्ञात था
11.
Spondias pinnata, काटूक,आमण्डा
बड़ा वृक्ष
Anacardiaceae
दर्ज नहीं
संख्या संबधी पुख़्ता जानकारी नहीं
सिरोही जिले का गुजरात के बड़ा अम्बाजी क्षेत्र से सटा राजस्थान का वनक्षेत्र, शाहबाद तहसील के वन क्षेत्र (बारां)
वन्य अवस्था में विद्यमान
12.
Antidesma ghaesembilla
मध्यम आकार का वृक्ष
Phyllanthaceae
दर्ज नहीं
A
रणथम्भौर बाघ परियोजना (सवाई माधोपुर)
वन्य अवस्था में विद्यमान
13.
Erythrinasuberosasublobata
छोटा वृक्ष
Fabaceae
दर्ज नहीं
A
शाहबाद तहसील के वन क्षेत्र (बारां)
वन्य अवस्था में विद्यमान
14.
Litsea glutinosa
मैदा लकड़ी
Lauraceae
दर्ज नहीं
A
रणथम्भौर बाघ परियोजना (सवाई माधोपुर)
वन्य अवस्था में विद्यमान
(*गिनती पूर्ण विकसित वृक्षों पर आधारित है A=50 से कम,B=50 से 100)
उपरोक्त सारणी में दर्ज सभी वृक्ष प्रजातियां राज्य के भौगोलिक क्षेत्र में अति दुर्लभ तो हैं ही,बहुत कम जानी पहचानी भी हैं।यदि इनके बारे में और विश्वसनीय जानकारियां मिलें तो इनके स्टेटस का और भी सटीक मूल्यांकन किया जा सकता है।चूंकि इन प्रजातियों की संख्या काफी कम है अतः ये स्थानीय रूप से विलुप्त भी हो सकती हैं। वन विभाग को अपनी पौधशाला में इनके पौधे तैयार कर इनको इनके प्राकृतिक वितरण क्षेत्र में ही रोपण करना चाहिए ताकि इनका संरक्षण हो सके।