प्राकर्तिक स्थलों की जीवंतता के प्रतीक भोरें
गुनगुनाते यह कीट भारत के प्रेम गीतों में अक्सर याद किये जाते हैं, इनका फूलों के आसपास मंडराना इन्हें सौन्दर्य काव्य के एक किरदार के रूप में दर्शाता है।
अक्सर हम इन भंवरों को ततैयों के नजदीक का सदस्य समझते हैं परन्तु यह मधुमखियों के अधिक नजदीक हैं। कहते हैं ततैया अपने पैरों को लटकाये हुए उड़ते हैं और मधुमखी उन्हें शरीर के साथ जोड़े हुए उड़ती हैं। साथ ही मधुमखियां एक ही बार डंक मार सकती हैं जबकि ततैया अनेक बार डंक मर सकता हैं। खैर मधुमखी जहाँ एक समूह में रहती हैं और यह समूह समाज विन्यास के उच्चतम स्तर पर अपने जीवन को संयोजित करता हैं वहीँ भंवरों की अधिकांश प्रजातियां एकल जीवन जीते हैं एवं लकड़ी में छेद करके अपने लिए घर बनाते हैं।
इनके लकड़ी में घर बनाने के कारण ही इन्हें “कारपेंटर बी (Carpenter bee)” कहते हैं।
काले रंग के यह तेजी से उड़ने वाले भँवरे कोमल फूलों पर धुप आने पर स्थिरता के साथ उड़ते हैं एवं उड़ते-उड़ते ही उनका रस चूस लेते हैं, जबकि कम धुप में इनके पंख इतनी तेज नहीं हिलते हैं अतः वह अधिक विशाल एवं मजबूत डंठल वाले फूलों पर बैठ कर रस चूसते हैं। धुप से उन्हें तेजी से पंख फड़फड़ाने की ताकत मिलती हैं और इनका गहरा काला शरीर धुप की गर्मी को आसानी से गृहण करता हैं।
लकड़ी में बनाये गये छिद्रों में यह फूलों से एकत्रित परागकण (Pollen grains) के गोल-गोल पिंड या लड्डू बनाते हैं एवं इनपर मादा भँवरे अंडे देते हैं। कीट जगत में इनके अंडो का आकार शरीर की तुलना में सबसे बड़ा होता है। नर भंवरो की आंखे मादा की तुलना में अधिक बड़ी होती हैं ,
यह अनेको पौधों के लिए परागण (Pollination) की प्रक्रिया में सहायक हैं एवं इनकी उपस्थिति प्राकृतिक आवासों को जीवंत बनाती हैं।