अजमेर के मदार पर्वत की एक विश्मयकारी चमकनेवाली छिपकली 

अजमेर के मदार पर्वत की एक विश्मयकारी चमकनेवाली छिपकली 

यह दो सरिसर्प विशेषज्ञो के मध्य हुए एक वैज्ञानिक मंथन पर आधारित आलेख है, इस मंथन के मध्य मैंने कुछ ऐसे प्रमाण प्रस्तुत किये है जो बहस को और अधिक उलझा देता है। मैं चूँकि कोई सरीसृप विषेशज्ञ नहीं अतः इस बहस को प्रामाणिक और तार्किक तोर पर तो किनारे तक नहीं ले जा पाया परन्तु इसे विषय पर सूक्ष्मता से कार्य हो इस के लिए जरुरत को अवस्य जाहिर किया है। 

प्रिय सरीसृप वैज्ञानिकों,

यह पत्र आपके नाम एक अपील है। मुझे पता है आप लोग निरंतर इस देश में सरीसृपों की कई नयी प्रजातियों की खोज कर रहे है। नई प्रजातियों को ढूंढ़ना, उनका नामकरण करना जीव वैज्ञानिकों के लिए एक नशा है। एक जमाना था जब डिनर प्लेट में नयी पक्षी प्रजातियां और  मांस की दुकानों पर एक नए स्तनधारी मिल जाते थे। आज यह सब इतना सहज नहीं रहा। मेरी अपील आपसे इसलिए है क्योंकि लगभग 40 वर्षों से एक पहेली राजस्थान में उलझी हुई है।

जूलॉजिकल सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के सरीसृप वैज्ञानिक श्री आर सी शर्मा

राजस्थान के सरीसृप वैज्ञानिक डॉ आर सी शर्मा ने अजमेर के पास स्थित मदार नामक पर्वत से वर्ष 1973 में एक अनोखी छिपकली खोजी और उसे 1980 में नाम दिया स्यारटोडक्टील्युस मदरेंसिस (Cyrtodactylus madarensis)। इस छिपकली की प्रजाति का नाम मदार पर्वत पर ही रखा गया था। श्री शर्मा का मानना था की यह छिपकली अँधेरे में भी चमकती है। उनका कहना था यह एक गिरगिट की भांति धीरे धीरे चलती है और अपने शरीर को चारो पांवो से उठा के चलती है। यह एक असाधारण खोज जैसे लग रही थी।

मलेशिया सरवाक यूनिवर्सिटी से कंज़र्वेशन बायोलॉजिस्ट श्री इंद्रनील दास (Photo: Saravak University )

जूलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया के अनुभवी जीववैज्ञानिक की इस खोज को एक अन्य सरीसृप  वैज्ञानिक ने एक अन्य शोध पत्र के माध्यम से पूरी तरह से धराशाई करदिया।  इन सरीसृप वैज्ञानिक का नाम है डॉ इंद्रनील दास  जो मलेशिया सरवाक यूनिवर्सिटी  में कंज़र्वेशन बायोलॉजिस्ट के रूप में कार्यरत है।

दास ने 1992 में प्रकशित अपने शोध पत्र में कहा की यह खोज एक मात्र नमूने पर आधारित है, जो की एक अवयस्क नर छिपकली थी। दूसरा उनका कहना था, इसके दिए गए विवरण और चित्र के आधार पर कहा जासकता है कि, इसका जीनस ही गलत ढंग से पहचना गया है एवं इसका जीनस यूबलफारिस (Eublepharis) है, न की स्यारटोडक्टील्युस (Cyrtodactylus)। क्योंकि इनकी आँखों पर मोटी पलक है जो यूबलफारिस (Eublepharis) जीनस का एक मुख्य गुण है। उन्होंने आगे लिखा की इसके अलावा भी अनेको अन्य गुण भी इसके यूबलफारिस (Eublepharis) से ही मिलते है।

पाकिस्तान के जानेमाने सरीसृप वैज्ञानिक मुहम्मद शरीफ खान द्वारा लिए गए Eublepharis macularius का फोटो

फिर उन्होंने शर्मा द्वारा दिए गए विवरणों की तुलना की और बताया कि, यह Eublepharis की macularius प्रजाति है । जिसे सामान्य भाषा में Common Leopard Gecko, Spotted fat-tailed gecko कहा जाता है।,

वैज्ञानिको के अनुसार भारत में चार प्रकार की लेपर्ड गेक्को अभी तक मिली है –

  1. Eublepharis satpuraensis  जो 2014  में सतपुड़ा मध्य प्रदेश से भारतीय सरिसर्प विशेषज्ञो द्वारा खोजी गयी थी। दूसरी है।
  2. Eublepharis fuscus जिसे BÖRNER, 1974  ने इसे बॉम्बे से खोजा, जो आज ३ राज्यों में मिलती है – कर्नाटक, महाराष्टृ, एवं गुजरात से।
  3. Eublepharis hardwickii  जो  GRAY, 1827 ने  बांग्लादेश से खोजा परन्तु भारत के कई राज्यों जैसे – बिहार, उत्तरप्रदेश , ओडिशा, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, आदि में भी मिली है।
  4. Eublepharis macularius  को BLYTH, 1854 ने वर्तमान के पाकिस्तान से खोजा जो कभी भारत का ही हिस्सा हुआ करता था,  परन्तु माना जाता है यह अफगानिस्तान नेपाल, ईरान ,और भारत के पश्चिमी भाग – राजस्थान एवं पंजाब में मिलती है। इस प्रजाति की कई उप-प्रजाति भी मानी गयी है।  कभी Eublepharis fuscus को भी इसीकी उप प्रजाति के रूप में जाना गया था। इंद्रनील दास ने डॉ. आर सी शर्मा के द्वारा अजमेर से खोजी गयी छिपकली को विवरण और वितरण के आधार पर भी Eublepharis macularius ही माना है।

सरीसृप वैज्ञानिक मुहम्मद शरीफ खान द्वारा सुझाया गया Eublepharis macularius का वितरण

परन्तु लगता है –

राजस्थान दिल्ली और राजस्थान से जुड़े हुए मध्य प्रदेश के भू भाग में एक और leopard gecko मिलती है। मैंने वर्ष 2016  में बूंदी जिले – राजस्थान से इस फोटोग्राफ किया है इस Eublepharis को में यहाँ प्रेषित कर रहा हूँ। मेरे अलावा भी इसी प्रकार की Eublepharis को श्री सूर्य प्रकाश ने JNU – दिल्ली से एवं डॉ सतीश शर्मा ने उदयपुर से फोटोग्राफ किया है। एक अन्य सरीसृप विशेषज्ञ  ने इस से जुड़े कुछ प्रमाण मध्य प्रदेश से भी ढूंढे है।  यदि यह इतने विस्तृत क्षेत्र में मिल रही है तो लगता है यह अजमेर में भी मिलती होगी है। यद्दपि अभी तक यह वैज्ञानिक तोर पर सिद्ध नहीं होपाया हैकी हमारे द्वारा फोटोग्राफ की गयी Eublepharis  एक अलग प्रजाति है।

धर्मेंद्र खांडल द्वारा लिए गए Eublepharis sp की फोटो जो राजस्थान के बूंदी जिले से है।

परन्तु मुझे यह अलग क्यों लगती है?-

में कोई प्रशिक्षित सरीसृप विशेष्ज्ञ नहीं हूँ अतः वैज्ञानिक मानदंडों पर आधारित तर्क तोह नहीं रख पाउँगा पंरतु पाकिस्तान के प्रसिद्ध सरीसृप वैज्ञानिक मुहम्मद शरीफ खान द्वारा फोटोग्राफ की गयी Eublepharis macularius से मेरे द्वारा खोजी गयी लेपर्ड गेक्को  पूरी तरह से अलग दिखाई देती है। आप चित्रों के माध्यम से तुलना करें।

तो होसकता है की डॉ आर सी शर्मा द्वारा खोजी गयी अजमेर की छिपकली भी एक नयी लेपर्ड गेक्को हो जो JNU – दिल्ली  से लेकर उदयपुर तक मिलती है। मैं यह तय तोर पर मानता हूँ की डॉ. आर सी शर्मा के शोध पत्र में अनेक खामिया है। परन्तु इंद्रनील दास के द्वारा कहा जाना की यह macularius  है भी थोड़ी जल्दबाजी भी हो सकती है।

देखते है आप इस गुत्थी को कब तक सुलझाते है, मुझे इंतजार रहेगा।

बेस्ट ऑफ़ लक !

धर्मेंद्र खांडल

सन्दर्भ:

  • Das, I. 1992. Cyrtodactylus madarensis Sharma (1980), a junior synonym of Eublepharis macularius (Blyth, 1854). Asiatic Herpetological Research 4: 55-56
  • Sharma, R.C. 1980. Discovery of a luminous geckonid lizard from India. Bulletin of the Zoological Survey of India 3(1&2): 111-112, 1pl
लेखक:

Dr. Dharmendra Khandal (L) has worked as a conservation biologist with Tiger Watch – a non-profit organisation based in Ranthambhore, for the last 16 years. He spearheads all anti-poaching, community-based conservation and exploration interventions for the organisation.

Mr. Ishan Dhar (R) is a researcher of political science in a think tank. He has been associated with Tiger Watch’s conservation interventions in his capacity as a member of the board of directors.