आम की बारहमासी फल देने वाली राजस्थान की एक किस्म – ‘सदाबहार’ 

आम की बारहमासी फल देने वाली राजस्थान की एक किस्म – ‘सदाबहार’ 

 

क्या कोई यह  विश्‍वास करेगा की राजस्थान के एक किसान ने  आम की एक ऐसी नई किस्म विकसित की हैं जो वर्ष में तीन बार फल देती है।   राजस्थान के  कोटा शहर के पास गिरधरपुरा गांव के  रहने वाले किसान श्री किशन सुमन ने 20 वर्ष की कड़ी मेहनत कर आमों यह एक अनूठी किस्म  विकसित की है  जिसे “सदाबहार” नाम दिया गया है।

वह बड़े गर्व से कहते है की ग्रीष्म, वर्षा एवं शीत ऋतुओ में हमारी आम की यह किस्म  फल देती है।  श्री किशन अतीत  के मुश्किल समय को याद करते है | पहले हमारा परिवार मात्र पारम्परिक कृषि पर आधारित था | जिसमें गेहू एवं चावल आदि की फसले उगाकर जीवन यापन करते थे | परन्तु जितनी मेहनत उसमे लगायी जाती थी उतना लाभ प्राप्त नहीं होता था ।  अत: पारम्परिक खेती को छोड़ कर उनका परिवार सब्ज़ियों की खेती करने लगा परन्तु इसके लिए जितनी मात्रा में कीटनाशकों का उपयोग किया जाता था | उससे मन को बहुत ख़राब लगता था एवं एक अपराध भाव पैदा होता था की हम लोगों को मानो जहर ही खिला रहे है । अत: उन्होंने फूलों की खेती शुरू कर दी।  जिनमें गुलाब के फूलों की  खेती भी शामिल थी  और यहाँ से श्री किशन की शोध यात्रा आरम्भ होती है । गुलाब पर कई प्रकार की कलमें  चढ़ा कर उन्होंने एक पौधें पर कई रंग के पुष्प प्राप्त किये |

 

अब उन्हें लगने लगा की फलदार वृक्षों पर भी मेहनत की जा सकती है फिर उन्होंने बाजार से कई प्रकार के आमों के फल लाना शुरू किया और उगाकर के उनके पौधें लगाने शुरू किये ।  उन्होंने पाया की आमों की अलग – अलग  किस्म के स्वाद में तो अंतर है  ही परन्तु इनमें एक और अंतर है  वह हैं उनके  पुष्प एवं फलो के लगने के समय में भी । श्री किशन ने पाया की जब विभिन्न आमों  के पौधों की किस्मों की कलमों को एक साथ लगाया गया तो पाया की एक आम के पेड़ के एक हिस्से में कुछ फल बड़े हो चुके है, और किसी हिस्से में अभी भी छोटे है और किसी हिस्से में अभी बोर भी आये हुए थे ।

इस तरह धीरे – धीरे कई वर्षो के प्रयोगों के बाद  सदाबहार किस्म का विकास हुआ।  यह विकसित किस्म वर्ष में तीन बार फसल देती है। यानी इस पर वर्ष भर आम के फल लगे रहते है।  श्री किशन ने कोटा के कृषि अनुसन्धान केंद्र  को अपनी बात बताई परन्तु उन्होंने इस प्रयास के प्रति उदासीनता का भाव रखा ।

परन्तु राष्ट्रीय नव प्रवर्तन प्रतिष्ठान भारत ( National Innovation Foundation  – India – NIF) के सुंडा राम जी ( सीकर निवासी ) ने श्री किशन   को एक अनोखा अवसर दिलाने में मदद की उन्होंने NIF की मदद से इस किस्म को राष्ट्रपति भवन में प्रदर्शित करने के लिए उन्हें वहां भेजा । उन्हें वहां अत्यंत सम्मान एवं पहचान मिली ।  इस “सदाबहार” आम एवं श्री किशन को देश विदेश के लोग जानने लगे। देश के विभिन्न हिस्सों से श्री किशन को इस किस्म के पौधों के लिए आर्डर आ ने लगे । साथ ही   भा . कृ . अनु . प . केंद्रीय उपोषण बागवानी संसथान ( ICAR- Central Institute for subtropical Horticulture) के वैज्ञानिको के साथ संपर्क किया गया एवं इस नस्ल को एक नई नेसल होने का दर्जा मिला साथ ही उन्होंने ही इसे एक नाम दिया  – ‘सदाबहार’ है।  यह आम अत्यंत स्वादिष्ट है एवं  इनमें में  पूर्णतः घुले हुए ठोस पदार्थ (Total dissolved solids – TSS ) 16 % मानी गयी है , TSS का मतलब होता है, इसके  मीठास कार्बोहाइड्रेट, कार्बनिक अम्ल , प्रोटीन , वसा एवं खनिज  की मात्रा कितनी है | सदाबहार आमों की TSS मात्रा अच्छी मानी गयी है |

श्री किशन जी मुस्कुराते हुए कहते है की कृषि अनुसन्धान केंद्र का सहयोग न सही, परन्तु मेरी पत्नी सुगना देवी और ईश्वर साथ देने में कोई कमी भी नहीं छोड़ी है। आज श्री किशन आशान्वित हैं की इस आम को जनता ने पहचान लिया हैं एवं इस की सफलता को अब कोई रोक नहीं पायेगा।  आप भी श्री किशन से आम का पौधा मंगवा सकते हैं।

वेडर्स ऑफ द इंडियन सबकॉन्टीनैन्ट: भारतीय उपमहाद्वीप के परिप्रक्ष में एक बेहतरीन सन्दर्भ ग्रन्थ

वेडर्स ऑफ द इंडियन सबकॉन्टीनैन्ट: भारतीय उपमहाद्वीप के परिप्रक्ष में एक बेहतरीन सन्दर्भ ग्रन्थ

जलाशयों के किनारे-किनारे, जल रेखा व कीचड़युक्त आवास को पसंद करने वाले पक्षियों को ‘‘वेडर्स’’ नाम से जाना जाता है। इस वर्ग के पक्षी तैरते नहीं हैं बल्कि पानी के किनारे-किनारे या कुछ दूर पानी या कीचड़ में चलते हुये ही भोजन ढूंढते हैं। इस वर्ग के कुछ पक्षी पानी के अन्दर उगे पौधों की पत्तियों या दूसरी तैरती हुई वस्तुओं पर भी चलकर अपना भोजन ढंूढ लेते हैं। इस वर्ग में स्नाइप, जकाना, ऑयस्टरकैचर, प्लोवर, लैपविंग, वुडकॉक, गौडविट करलेव, विमब्रेल, रैडशैंक, ग्रीनशैंक, सेन्डपाइपर, टैटलर, टर्नस्टोन, डॉविचर, सैन्डरलिंग, स्टिन्ट, रफ, आइबिसबिल, स्टिल्ट, एवोसेट, फैलारोप, थिक-नी, करसर एवं प्रेटिनकॉल शामिल हैं।

इस वर्ग के अनेक पक्षियों को सही-सही पहचानना कई वर्ष तक पक्षी अवलोकन करने के बाद भी कठिन लगता है। प्रायः कई पक्षियों के अच्छे क्लोज अप फोटो खींच लेने के बाद फोटो को तसल्लीपूर्वक देखने पर भी पहचान में संशय बना रहता है। वेडर वर्ग के देशान्तर गमन कर सर्दी में हमारे जलाशयों पर पहुंचने वाले पक्षियों को भी पहचानने में कठिनाई बनी रहती है।

इस कठिनाई को दूर करने का सराहनीय प्रयास भारत के जाने-माने पक्षीविद   श्री हरकीरत सिंह संघा ने किया है। विशेष बात यह है कि श्री संघा राजस्थान के निवासी हैं। उन्होने जो स्तुतियोग्य पुस्तक प्रकाशित की है उसका विवरण निम्न है:-

पुस्तक का नाम  :-  वेडर्स ऑफ द इंडियन सब-कॉन्टीनेन्ट ( Waders of the Indian subcontinent )
भाषा                :- अंग्रेजी
पृष्ठ संख्या         :-  XVI + 520
प्रकाशन वर्ष      :- 2021
प्रकाशक           :- लेखक स्वयं (विष्व प्रकृति निधि-भारत के आंषिक सहयोग से)
मूल्य                 :-3500.00 रूपये
मंगाने का पता     :- श्री हरकीरत सिंह संघा, बी-27, गौतम मार्ग, हनुमान नगर,
जयपुर-302021, भारत

इस संदर्भ ग्रन्थ में 84 प्रजातियो के वेडर वर्ग के पक्षियों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया है। प्रत्येक प्रजाति के स्थानीय नाम, पुराने नाम, वितरण, फील्ड में  पहचानने हेतु विशेष गुणों की जानकारी, शारीरिक नाप, आवास, स्वभाव, भोजन, प्रजनन, गमन, संरक्षण स्थिति आदि की विस्तृत, आद्यतन एवं प्रमाणिक जानकारी प्रस्तुत की गई है। पुस्तक में 450 रंगीन फोटो, 540 पेन्टिंग, उपमहाद्वीप में वितरण को स्पष्टता से प्रदर्शित करने वाले रंगीन मैप आदि प्रचुरता से दिये गये हैं। इतनी सामग्री को एक ही जगह सहज उपलब्धता से हम फील्ड में वेडर्स को अच्छी तरह पहचान सकते हैं। इस पुस्तक की छपाई अच्छी है एवं कागज भी उत्तम क्वालिटी का प्रयोग किया गया है। कवर पेज आकर्षक व विषय को सार्थक करता है। कुल मिलाकर यह ग्रन्थ गागर में सागर है।

यह पुस्तक भारत, बांगलादेश, भूटान, मालद्वीप, नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका एवं चांगोस, जो कि भारतीय उपमहाद्वीप के देश हैं, सभी के लिये समान रूप से उपयोगी है।

यह पुस्तक पठनीय व संग्रहणीय है। इसे सहजता से फील्ड में उपयोग किया जा सकता है। यह पुस्तक हर पक्षी अवलोकक के लिये बहुत ही उपयोगी फील्ड गाइड तो है ही, शोधार्थियों व अध्यापकों हेतु भी अत्यंत उपयोगी संदर्भ है।