तीज : लाल रंग का सूंदर रहस्यमय जीव
“मानसून की कुछ बौछारो के साथ क्या यह लाल रंग का कीडेनुमा जीव भी बरसता है?”
मानसून की कुछ बौछारो के साथ क्या यह लाल रंग का कीडेनुमा जीव भी बरसता है? मेरे स्कूल के दिनों में लगभग हम सभी के मन में यह प्रश्न रहता था, न जाने क्यों यह सुन्दर सा जीव बारिश के पहले कभी नहीं दिखता और ना ही बाद में।
राजस्थान के अधिकांश हिस्से में इन्हे तीज के नाम से जाना जाता है और भारत के अन्य स्थानों पर इनको अनेक नामो से जाना जाता है जैसे बीरबहूटी या सावन की बुढ़िया आदि। यह सूंदर गहरे लाल रंग का दिखने वाला जीव मखमल जैसा दिखता है, अतः इसे अंग्रेजी में रेड वेलवेट माइट (Red Velvet mite) कहते है। भारत में मिलने वाली प्रजाति को Trombidium grandissimum कहा जाता है।
असल में है ट्रॉम्बिडियम नामक यह जीव, कीटक समाज से नहीं बल्कि एक माइट के रूप में वर्गीकृत किया गया है, यानि खून चूसने वाले चींचड़े के ये अधिक नजदीक है। इनके शरीर के मात्र दो हिस्से होते है, जो यह प्रमाणित करता है की यह कीटक नहीं है क्योंकि किटक के शरीर के तीन हिस्से होते है। यह एक अरकनिडा वर्ग का जीव है, जो छोटे कीड़ो एवं उनके अंडो आदि को अपना भोजन बनाते है। इनके छोटे लार्वे – टिड्डो एवं मकड़ियों आदि पर परजीवी के तौर पर मिलते है। लार्वे से जब यह बड़ा होकर निम्फ अवस्था में आता है, एवं अपने वयस्क के सामान लगने लगता है। अचानक से बारिश के समय यह अधिक विचरण करने लगता है एवं अधिक दिखाई लगने लगता है, हम सब इस कयास में लग जाते है के यह वर्षा के साथ बरसे है, परन्तु असल में अनुकूल मौसम के कारण यह जमीन से निकल कर विचरण करते नजर आते है। अक्सर धुप बढ़ने पर भी यह मिटटी को खोद कर उसमें छिप जाते है। इसके शरीर पर मुलायम लाल रंग के बाल नुमा रोये मखमली आभास देता है I यह जमीन में छिपाने के बाद भी इसके बालो से मिटटी चिपकती नहीं है।
इन जीवो को यूनानी एवं होम्योपैथिक चिकित्षा पद्धतियों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। कुछ स्थानीय लोग इनका इस्तेमाल योन संवर्धक दवा के तोर पर भी करता है। भारत में कुछ लोग इसका व्यापार भी करते है। आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं ओड़िसा के कुछ हिस्सों में इसका निरंतर व्यापार होता है। यद्दपि यह एक किसान का मित्र है एवं विभिन्न किटको की संख्या को नियंत्रित करता है।