वन रक्षक 2:       पक्षी विविधता और संरक्षण प्रेमी: राजाराम मीणा

वन रक्षक 2: पक्षी विविधता और संरक्षण प्रेमी: राजाराम मीणा

राजाराम, एक ऐसे वन रक्षक जिन्हे वन में पाए जाने वाली जैव-विविधता में घनिष्ट रुचि है जिसके चलते ये विभिन्न पक्षियों पर अध्यन कर चुके हैं तथा स्कूली छात्रों को वन्यजीवों के महत्त्व और संरक्षण के लिए जागरूक व प्रेरित भी करते हैं…

एक मध्यमवर्गीय किसान परिवार में जन्मे राजाराम मीणा वनरक्षक (फोरेस्ट गार्ड) में भर्ती होकर प्रकृति एवं वन्यजीवों के प्रति आज सजगतापूर्वक कार्य कर रहे हैं। कई प्रकार की वन सम्पदा की जानकारी जुटाना, पक्षियों के अध्ययन में गहन अभिरुचि लेना व वन संरक्षण में निष्ठा पूर्वक गतिशील रहना इनकी कार्यशैली को दर्शाता है। अपने कार्य के प्रति अच्छी सोच,अच्छे विचार व एक जुनून उनके व्यक्तित्व से झलकता है। साधारणतया किसान परिवार से होने के नाते उनको सरकारी सेवा में आने से पहले वन्य जीव व वन संपदा के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। लेकिन वनों के प्रति मन में कुछ अभिलाषाए छिपी हुई थी तथा उन को उजागर करने के लिए इन्हें मनपसंद कार्यक्षेत्र मिल ही गया।

वर्तमान में 31 वर्षीय, राजाराम का जन्म 10 अक्टूबर 1989 को जयपुर जिले की जमवारामगढ़ तहसील के रामनगर गांव में हुआ तथा इनकी प्रारम्भिक शिक्षा गांव में ही हुई व स्नातक तक की पढ़ाई इन्होंने मीनेष महाविद्यालय जमवारामगढ़ से की है। इन्हें हमेशा से ही खेलकूद प्रतियोगिताओ क्रिकेट व बेडमिंटन में अधिक रुचि है। हमेशा से ही इनके परिवार वाले और राजाराम खुद भी चाहते थे की वे लोको पायलट बने। परन्तु अपनी स्नातक की पढ़ाई के अंतिम चरण में इन्होने वनरक्षक की परीक्षा दी जिसमें ये उतरिन हो गए तथा 30 मार्च 2011 को पहली बार नाहरगढ़ जैविक उधान जयपुर में वनरक्षक के पद पर नियुक्त हुए। इनकी इस कामयाबी पर घरवाले व सहपाठी मित्र भी खुश हुए परन्तु सबका यह भी कहना था की फिलहाल जो मिला है उसे ही कीजिए वन सेवा के दौरान पढाई भी करते रहना किस्मत में होगा तो लोको पायलट भी बन जाओगे वन्यप्रेमी महत्वाकांक्षी राजाराम वन सेवा में शामिल हो गए तथा वन व वन्यजीवों को जानना समझना शुरू कर दिया। एक वर्ष बाद में घरवालों ने इनपर लोको पायलट की परीक्षा देने के लिए दबाव बनाया और घरवालों की बात मानते हुए राजाराम ने परीक्षा भी दी जिसमें वो पास हो गए, परन्तु अब तक इनका मन वन्यजीवों के साथ जुड़ चूका था। जिसके चलते उन्होंने बिना तैयारी किये इंटरव्यू दिया और जान बूझकर फेल हो गए, ताकि वे वन्यजीव सेवा से ही जुड़े रहे। राजाराम बताते हैं कि “जब मैं वनरक्षक बना था मुझे जंगल के पेड़-पौधों और जीवों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी परन्तु सेवा में आने के बाद मैंने हमेशा नई चीजे सीखने कि चाह रखी और घरवालों के कहने पर भी कभी पीछे मुड़कर नही देखा। राजाराम अपने पुरे मन से वन सम्पदा व वन्यजीवों की सेवा में समर्पित हो गए और 8 साल की सेवा के बाद इनको सहायक वनपाल के पद पर पदोन्नति मिली। वर्तमान में राजाराम मीणा लेपर्ड सफारी पार्क झालाना, रेंज जयपुर प्रादेशिक में सहायक वनपाल के पद पर कार्यरत हैं।

अपने पिताजी के साथ उनकी नर्सरी में हाथ बटाते हुए राजाराम

शुरु से ही इनको पक्षियों में गहन रुचि रही है जिसमें उनकी विशेषताओं को समझना, आवाज पहचानना व अधिकांश पक्षियों के नाम से परिचित होना मुख्य है। परन्तु शुरुआत में इनको पक्षियों के बारे में बहुत अधिक जानकारी नहीं थी, पर फिर जब ये वन अधिकारीयों के साथ जंगल में कार्य के लिए जाते थे तो इनके बीच अधिकतर पक्षियों के बारे में जिक्र होता था। राजाराम बताते हैं कि “साथ मे जो वनपाल या कोई भी वरिष्ठ साथी मेरे से चिड़िया के बारे में चर्चा करते थे, वो किसी भी चिड़िया को मुझे दिखाकर एक बार उसका नाम बताते थे। फिर बाद में आगे जाकर उसी चिड़िया का नाम पूछ लेते थे तो मुझे भी भय रहता था कि नाम नही आया तो मुझे ये डांटेंगे उसी डर की वजह से मैं 20 – 25 चिड़ियाओं को नाम से पहचानने लगा और धीरे-धीरे रुचि बढ़ती चली गई। बाद में कभी कोई नई चिड़िया दिखती तो मैं वनपाल व साथियों से उनके बारे में पूछता था।” आज राजाराम की एक अलग ही पहचान है क्योंकि ये एक ऐसे वनरक्षक हैं जिनको पक्षियों के बारे काफी अच्छी जानकारी है तथा इन्हें पक्षियों की 300 से ज्यादा प्रजातियों की पहचान व उनकी विशेषताओं के बारे में जानकारी है।

पक्षियों में इसी रूचि के चलते राजाराम पिछले दो वर्षों से “इंडियन ईगल आउल” के एक जोड़े को देख रहे हैं तथा उनके प्रजनन विज्ञान (Breeding Biology) को समझ रहे हैं।

इंडियन ईगल आउल (फोटो: डॉ. धर्मेंद्र खांडल)

पहले झालाना में पत्थर की खाने हुआ करती थी परन्तु वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के बाद वे खाने बंद हो गयी तथा वहां प्रोसोपिस उग गया। राजाराम जब वहां पहली बार गए तो उनको लगा की यह एक अलग स्थान है तथा वहां कुछ चिड़ियाएं देखी जाए और तभी उनको इंडियन ईगल आउल देखने को मिले। उन्होंने यह बात अधिकारियों के अलावा किसी और को नहीं बताई ताकि अन्य लोग वहां जाकर आउल को परेशान न करें। शुरूआती दिनों में तो सिर्फ एक ही आउल दिखता था पर कुछ दिन बाद एक जोड़ा दिखने लगा फिर एक दिन राजाराम ने आउल के चूज़े देखे और उनको बहुत ख़ुशी मिली उनको परेशानी न हो इसलिए उनकी महत्वता को समझते हुए राजाराम कभी भी उनके करीब नहीं गए और हमेशा दूरबीन से देख कर आनंद लेते थे। राजाराम यह भी बताते हैं की हर वर्ष ये जोड़ा चार अंडे देता है परन्तु चारों बच्चे जिन्दा नहीं रहते है जैसे की पिछले वर्ष दो तथा इस वर्ष तीन बच्चे ही जीवित रहे। तथा इनका व्यवहार काफी रोचक होता है क्योंकि मादा हमेशा चूजों के आसपास रहती है और यदि कभी वो ज्यादा दूर चली जाए तो नर एक विशेष प्रकार की आवाज करता है और यदि चूज़े उस तक नहीं पहुंच पाते हैं तो खुद उनके पास आ जाता है।

इसके अलावा इन्होने नाहरगढ़ बायोलॉजिकल पार्क पार्क में दिखने वाली बहुत ही दुर्लभ चिड़िया “वाइट नपेड़ टिट” के क्षेत्र को जीपीएस (GPS) से चिन्हित किया तथा जिस क्षेत्र में चिड़िया पायी जाती है उस क्षेत्र के सभी पेड़ों के बारे में जानकारी एकत्रित कर वाइट नपेड़ टिट के आवास को समझा।

इन सबके अलावा “चेस्ट नट टेल्ड स्टर्लिंग” को जयपुर में सबसे पहले इन्ही ने देखा व दस्तावेज किया है।

जैव-विविधता को समझने के अलावा राजाराम जंगल में अवैध कटाई व पशु चरवाहों को रोकने की भी कोशिश करते हैं और ऐसा करते समय कई बार ग्रामीण लोगों के साथ मुठभेड़ भी हो जाती है। ऐसी ही एक घटना हुई थी नवम्बर 2011 में जब शाम के समय कुछ ग्रामीण लोग जंगल से लकड़ी काट रहे थे। इसकी सुचना मिलते ही राजाराम व उनके साथी ग्रामीण लोगो को रोकने के लिए घटना स्थल पर पहुंचे। वहां उस समय कुल 7 लोग थे (5 पुरुष और 2 महिलायें)। वन विभाग कर्मियों को देख कर ग्रामीण लोगों ने फ़ोन करके अपने अन्य साथियों को भी बुला लिया तथा राजाराम व उनके साथी के साथ लाठियों से मारपीट करने लगे। जैसे ही विभाग के अन्य कर्मी वहां पहुंचे लोग भाग गए, परन्तु 3 आदमी सफलता पूर्वक पकडे गए। पकडे हुए लोगों पर जंगल कि अवैध कटाई व विभाग के कर्मचारियों के साथ मारपीट का केस हुआ तथा उन्हें जेल भी हुई। जब पुलिस केस चल रहा था उस दौरान ग्रामीण लोगों ने राजाराम को डराने, धमकाने और केस लेने के लिए दबाव भी बनाया, परन्तु राजाराम निडर होकर डटे रहे। राजाराम बताते हैं कि “जब मैं कोर्ट में ब्यान देने गया था तब एक मुजरिम ने वहीँ मुझे कहा कि मेरे सिर पर बहुत केस हैं एक और सही, तू बस अपना ध्यान रखना”। इन सभी धमकियों के बाद भी राजाराम के मन में केवल एक ही बात थी कि वो सही हैं वनसेवा के प्रति ऐसी नकारात्मक बाते उनके मंसूबो को कमजोर नही कर सकती। इस पूरी घटना के दौरान उनके अधिकारियों व साथियों ने उनका पूरा साथ दिया व उनका हौसला बढ़ाया। इस घटना के बाद अवैध कटाई व पशु चरवाहों के मन में एक डर की भावना उतपन्न हुई और ग्रामीण भी वनों के महत्व को समझने लगे।

झालाना लेपर्ड रिज़र्व लेपर्ड का प्राकृतिक आवास है और लेपर्ड की अधिक संख्या एवं अन्य वनजीवों की उपलब्धता की वजह से झालाना लेपर्ड रिज़र्व वन्यजीव प्रेमियों और पर्यटकों में बहुत लोकप्रिय है। (फोटो: श्री सुरेंद्र सिंह चौहान)

परन्तु अगर ध्यान से समझा जाए तो जंगल का संरक्षण सिर्फ वन-विभाग के हाथों में नहीं है बल्कि यह जंगल के आसपास रह रहे ग्रामीण लोगों कि भी जिम्मेदारी है। यदि ग्रामीण लोग विभाग से नाराज रहेंगे तो संरक्षण में काफी मुश्किलें आएगी तथा ग्रामीणों को साथ लेकर चलना भी जरुरी है। इसी बात को समझते हुए नाराज हुए ग्रामीण लोगों को मनाने कि कोशिश कि गयी। जैसे वर्ष 2013-14 में बायोलॉजिकल पार्क में प्रोसोपिस हटाने का काम चला था जिसमें नाराज हुए ग्रामीणों को बुला कर प्रोसोपिस की लकड़ी ले जाने दी। तथा उनको समझाया गया की धोक का पेड़ कई वर्षों में बड़ा होता है और आप लोग इसे कुछ घंटों में जला देते हो और आगे से इसको नहीं काटें व् जंगल की महत्वता को समझते हुए वृक्षों का ध्यान रखें।

राजस्थान के अन्य संरक्षित क्षेत्रों की तुलना में झालाना में एक अलग व अनोखी परेशानी है और वो है “पतंग के मांझे”। प्रति वर्ष जयपुर में मकर सक्रांति के दिन सभी लोग सिर्फ एक दिन के आनंद के लिए पतंग उड़ाते हैं और उस पतंग के मांझे से पक्षियों के घायल होने की चिंता भी नहीं करते हैं। मकर सक्रांति के बाद पुरे जंगल में मांझों का एक जाल सा बिछ जाता है तथा राजाराम व उनके साथी पुरे जंगल में घूम-घूम कर पेड़ों पर से मांझा उतारते हैं क्योंकि इन मांझों में फस कर पक्षियों को चोट लग जाती है।

आजा राजाराम 300 से अधिक पक्षी प्रजातियों की पहचान व उनकी विशेषताओं के बारे में जानकारी रखते हैं।

आज चिड़ियों के बारे में ज्ञान होने के कारण राजाराम को कई अधिकारी जानते हैं। परन्तु चिड़ियों के अलावा इन्हें अन्य जीवों में भी रुचि है तथा इन्होने उनके लिए भी कार्य किया है। जैसे इन्होने वर्ष 2015 में वन्यजीव गणना के दौरान दुनिया की सबसे छोटी बिल्ली “रस्टी स्पॉटेड कैट” की फोटो ली तथा यह जयपुर का सबसे पहला रिकॉर्ड था। राजाराम, 30 तितलियों की प्रजातियाँ भी पहचानते हैं और इन्होने “पयोनीर और वाइट ऑरेंज टिप तितली” की मैटिंग भी देखि व सूचित की है। समय के साथ-साथ इन्होने सांपो के बारे में भी सीखा और आज सांप रेस्क्यू भी कर लेते हैं। यह बहुत सारे वृक्षों को भी पहचानते हैं तथा एक बार सफ़ेद पलाश को देखने के लिए इन्होने गर्मियों में नाहरगढ़ बायोलॉजिकल पार्क, आमेर, कूकस और जमवा रामगढ का पूरा जंगल छान मारा और सारे पहाड़ घूमे। सफ़ेद पलाश तो नहीं मिल पाया परन्तु कई नई चिड़ियाँ, अन्य पेड़ और घोसलें देखने व जानने को मिले।

जैव-विविधता के इनके ज्ञान व समझ के चलते अब विभाग इन्हें आसपास के विद्यालयों में भेजता है ताकि ये छात्रों को वन्यजीव संरक्षण के लिए प्रेरित करें। वर्ष 2019 के वन्यजीव सप्ताह में इन्होने झालाना के आसपास 15 स्कूलों में जाकर वन्यजीवों, पर्यावरण और लेपर्ड के बार में बच्चों को जागरूक किया तथा उनको वनों की महत्वता के बार में भी समझाया। साथ ही बच्चों को पतंग के मांझों से होने वाले नुक्सान के बार में भी बताया।

वन्यजीवों के प्रति राजाराम का व्यवहार व ह्रदय बहुत ही कोमल है ये किसी भी जीव को दुःख में नहीं देख सकते हैं तथा इसी व्यवहार के चलते जब ये बायोलॉजिकल पार्क में थे तब जो भी प्लास्टिक व कांच की बोतल, टूटे कांच के टुकड़े इनको मिल जाते थे उसको ये एक बोरी में भर कर बाहर ले आते थे। ताकि किसी जानवर के पैर में चोट न लग जाए।

राजाराम समझते हैं कि, सभी फारेस्ट कर्मचारियों को जंगल के पेड़ों, वन्यजीवों और चिड़ियाँ के बारे में पता होना चाइये। इस से नई चीजे देखने को मिलेगी क्योंकि जंगल में सबसे ज्यादा फारेस्ट का आदमी ही रहता है। नई खोज करने से और प्रेरणा मिलती है की इस जंगल को बचाना है तथा नई प्रजाति के बारे में जान ने को भी मिलता है। इनका मान ना है कि, चिड़िया के संरक्षण के लिए सामान्य लोगों में मानवीय संवेदना की बहुत जरूरत है इसके संरक्षण के लिए मिट्टी के बर्तन दाना पानी व लकड़ी का घोंसला बनाकर आसपास के वृक्षों में टांग दे और गांव में घरो के आसपास झाड़ीनुमा वृक्षों का रोपण करें और साथी सदस्यों को वन्यजीवों के संरक्षण के लिए प्रेरित करना चाहिए।

प्रस्तावित कर्ता: श्री सुदर्शन शर्मा, उप वन सरंक्षक सरिस्का बाघ परियोजना सरिस्का

लेखक:

Meenu Dhakad (L) has worked with Tiger Watch as a conservation biologist after completing her Master’s degree in the conservation of biodiversity. She is passionately involved with conservation education, research, and community in the Ranthambhore to conserve wildlife. She has been part of various research projects of Rajasthan Forest Department.

Shivprakash Gurjar (R) is a Post Graduate in Sociology, he has an interest in wildlife conservation and use to write about various conservation issues.