स्मूद कोटेड ओटर (Lutrogale perspicillata), एशिया में पाए जाने वाला सबसे बड़ा ऊदबिलाव जो नदी के स्वच्छ जल में निवास करते हैं। परन्तु आजकल वन क्षेत्रों के आसपास बढ़ती मानव आबादी के कारण आवारा कुत्तों की संख्या और इनके द्वारा न सिर्फ वन्यजीवों बल्कि जलीय स्तनधारियों पर भी हमले की घटनाएं भी बढ़ रही है क्योंकि उनका काफी समय किनारों पर धुप सेकते और खेलते हुए बीतता है तथा इनकी मांदे/गुफ़ा भी नदी के किनारे चट्टानों के पास ही होती है जहाँ ये बच्चे देते हैं। इसी बीच कई बार इन्हें कुत्तों के साथ मुठभेड़ का सामना करना पड़ता है ऐसी ही एक संघर्ष की घटना इस चित्र कथा में दर्शाई गई है।
चम्बल नदी में कुछ ऊदबिलाव नदी में मछलियों का शिकार कर उन्हें खा रहे थे। वहीँ दूसरी ओर किनारे पर दो कुत्ते आपस में खेल व भोंक रहे थे। कुत्तों की आवाज सुन कर ऊदबिलाव किनारे की तरफ जाने लगे।
जैसे ही वे किनारे पर पहुंचे उन कुत्तों ने ऊदबिलावों के ऊपर भोंकना व हमला करने की कोशिश शुरू कर दी। परन्तु ऊदबिलाव समझ रहे थे कि, कुत्ते पानी में नहीं आ सकते इसीलिए वे आसपास फ़ैल गए और कुत्ते इधर-उधर भाग कर परेशान होने लगे।
ऊदबिलावों और कुत्तों के बीच यह संघर्ष कुछ 10-15 मिनट तक चला और फिर वे वापिस नदी में चले गए।
कुत्तों के साथ भिड़ने से ऊदबिलाव घायल भी हो सकते है परन्तु फिर भी उनके पास जाना और ऐसा व्यवहार काफी दिलचस्प घटना है।
व्हाइट-नेप्ड टिट (Parus nuchalis) भारत की एक स्थानिक पक्षी प्रजाति है जिसकी वितरण सीमा बहुत ही छोटी है जो देश के केवल पश्चिमी और दक्षिणी हिस्से में सीमित है। राजस्थान में यह अनेक हिस्सों में मिलती है जिसके बारे में हम इस आलेख द्वारा जानेंगे। वैज्ञानिक साहित्य में उपलब्ध जानकारी बताती हैं कि, यह शुरुआत में सांभर झील के आसपास के क्षेत्र से दर्ज की गई थी (एडम 1873)। परन्तु बाद में, कई शोधकर्ताओं द्वारा इस प्रजाति के वितरण स्थानों और क्षेत्र को दर्ज करने के लिए विस्तृत अध्यन्न किये गए और अब तक यह प्रजाति राजस्थान के 13 जिलों से सूचित की जा चुकी है (शर्मा 2017)।
व्हाइट-नेप्ड टिट (Parus nuchalis) (फोटो: श्री श्याम शर्मा)
जिन जिलों और स्थानों पर यह प्रजाति दर्ज की गई है, उनकी सूची नीचे दी गई है:
क्र.सं.
क्षेत्र
जिला
उपस्थिति का स्थान
सन्दर्भ
1
अरावली पहाड़ियां और आसपास के पहाड़ी क्षेत्र
अजमेर
सेंदडा, आरक्षित वन, किशनगढ़, रावली -टॉडगढ़, नसीराबाद, रामसर के पास, अजमेर, सौंखलिया, ब्यावर पहाड़ी क्षेत्र
www.rdb.or.id;Hussain et al.,1992; Tiwari, 2001; Tiwari et al., 2013
2
चित्तौड़गढ़
बस्सी अभयारण्य , किशन करेरी (तहसील डूंगला)
Tiwari et al., 2013
3
जयपुर
सांभर झील के आसपास, कानोता, नसिया पुराना किला, नाहरगढ़ बायोलॉजिकल पार्क (जयपुर), खींची वन क्षेत्र (अचरोल के पास), गोदियाना वन ब्लॉक, झालाना अभयारण्य, विश्व वानिकी वृक्ष उद्यान, अमृता देवी वृक्ष उद्यान, दांतला वन खंड
Tiwari et al., 2013 एवं स्वयं प्रेक्षण
4
नागौर
मारोठ, पांचोटा पहाड़ी क्षेत्र, मकराना, सांभर झील क्षेत्र
Adam, 1873; Hussain et al., 1992; Tiwari, 2001; Tiwari et al.,2013
5
पाली
सेंदरा, देसूरी की नाल, मालगढ़ की चौकी, जोभा गाँव, सुमेर, बर
Tehsin et al., 2005; Tiwari et al., 2013
6
राजसमंद
बरवा गाँव (नाथद्वार तहसील), गोरमघाट
Tiwari, 2007 एवं स्वयं प्रेक्षण
7
सीकर
रुलियाना गाँव (बे और दंता गाँव के बीच में)
Sharma, 2004
8
सिरोही
माउंट अबू (देलवारा से अचलगढ़)
Butlar, 1875
9
उदयपुर
सज्जनगढ़ अभयारण्य, जयसमंद अभयारण्य, छावनी के पास वन क्षेत्र, शांति निकेतन कॉलोनी (बेदला-बड़गांव), देवला, जामुनिया की नाल, जंगल सफारी पार्क, माछला मगरा, कलेर आरक्षित वन, नीमच माता, मोती मगरी, थूर मगरा, बेदला के पास का जंगल, चीरवा घाटा, बाघदड़ा नेचर पार्क, उदयसागर वन क्षेत्र, सेगरा वन खंड, बोरडी और देबारी क्षेत्र, कोडियात, बड़ा हवाला गांव, घासा, मेनार, सज्जनगढ़ जैविक उद्यान; कैलाशपुरी, वल्लभनगर (तहसील वल्लभनगर), प्रकृति साधना केंद्र, भीलों-का-बेदला, मादड़ा गाँव, कैलेश्वर महादेव (सुराना गाँव, तहसील गिरवा), झामेश्वर महादेव
Hussain et al.,1992; Tiwari, 2001; Sharma, 2004; Mehra, 2004; Tiwari, 2007; Tiwari, et al., 2013; Sharma & Koli 2014; Sharma 2015 & 2016, एवं स्वयं प्रेक्षण
10
जालोर
सुंडामाता जालोर
Tiwari et al., 2013
11
विंध्य वनों में (अरावली के पूर्व दिशा में)
झालावाड़
झालावाड़
Hussain et al., 1992, Tiwari, 2001
12
थार रेगिस्तानी निवासों में (अरावली के पश्चिमी दिशा में)
बीकानेर
राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय कैंपस, बीकानेर में रोजरी गाँव के पास-( श्री गंगानगर सीमा)
Dookia, 2007
13
जोधपुर
जोधपुर
Hussain et al., 1992
प्रस्तुत सूची से संकेत मिलता है कि, व्हाइट – नेप्ड टिट मुख्य रूप से राजस्थान के अरावली वनों तक ही सीमित है जहां मुख्यरूप से कांटेदार वनस्पतियां पायी जाती हैं। माना जाता है कि, यह कुमठा (Acacia senegal) के वनों में पायी जाती है। अरावली के पूर्व और पश्चिम में इसका वितरण अपेक्षाकृत सीमित है। राजस्थान राज्य में इस प्रजाति की पूरी वितरण सीमा को जानने के लिए आसपास के जिलों के कांटेदार वनों में और अधिक शोध की आवश्यकता है।
व्हाइट-नैप्ड टिट, सालर और कुमठा के पेड़ों पर रहती व घोंसला बनाती है (फोटो: श्री नीरव भट्ट)
IUCN ने वाइट-नेप्ड टाइट को एक संवेदनशील (Vulnerable) प्रजाति के रूप में दर्ज किया है तथा इसके प्राकर्तिक आवास के नष्ट होने के कारण इस प्रजाति के अस्तित्व पर खतरा है। इसे बचाने के लिए कांटेदार वनस्पतियों के संरक्षण के अलावा, मृत पेड़ों के संरक्षण की भी आवश्यकता है। इस प्रजाति के संरक्षण के लिए सालर के पेड़ों (Boswellia serrata) को भी संरक्षित किया जाना चाहिए क्योंकि सज्जनगढ़ वन्यजीव अभयारण्य में हरे-भरे सालार के पेड़ों में मौजूद छिद्रों में व्हाइट – नेप्ड टिट को घोंसला बनाते और रहते हुए देखा जाता है (Sharma & Koli 2014)। इस प्रजाति के संरक्षण के लिए आवश्यक है पुराने वृक्षों और कुमठा के वनों को संरक्षित किया जाए।
सन्दर्भ:
Adam, R.M. 1873: Notes on the birds of Sambhar lake and its vicinity. Stray Feathers 1: 361-404.
Ali, S.& S.D. Ripley 1983 : Handbook of the birds of India and Pakistan. Oxford University Press.
Butler, E.A. 1875: Notes on the avians of Mount Aboo and northern Gujarat. Stray Feathers 3: 337-500.
Dookia, S.2007: First record of Pied Tit Parus nuchalis in Thar desert of Rajasthan. Indian Birds 3(3) : 112-113.
Hussain, S.A., S.A. Akhtar & J.K. Tiwari 1992 : Status and distribution of White-winged Black Tit Parus nuchalis in Kuchchh Gujarat, India. Bird Conservation International, 2 : 115-122.
Mehra, S.P.2004: Sighting of White-naped Tit Parus nuchalis at Udaipur. Newsletter for Ornithologists 5:77.
Sharma, S.K. 2004: New sight records of Pied Tit Parus nuchalis in Rajasthan. JBNHS 100(1):162-163.
Sharma, S.K. 2015: Night roosting on iron poles by the White-naped Tit Parus nuchalis in Udaipur, Rajasthan, India. JBNHS 112(2):100-101.
Sharma, S.K. 2016 : A study on White-naped Tit Parus nuchalis in Sajjangarh Wildlife Sanctuary for conservation of the species. Study report 2016-17. Dy. Conservator of Forests, Wildlife Division, Udaipur .1-65.
10 . Sharma, S.K.2017 : White-naped Tit ( Parus nuchalis) in Rajasthan , with special reference to southern parts of the state. Udaipur Bird Festval 2017-18 Souvenir.
Sharma, S.K. & V.K. Koli 2014 : Population and nesting characteristic of the vulnerable White-naped Tit Parus nuchalis at Sajjangarh Wildlife Sanctuary, Rajasthan, india. Forktail 30: 1-4 .
Tehsin, R.H., S.H. Tehsin & H.Tehsin 2005: Pied Tit Parus nuchalis in Pali district, Rajasthan, India. Indain Birds 1(1):15.
Tiwari, J.K. 2001: Status and distribution of the White-naped Tit Parus nuchalis in Gujarat and Rajasthan. JBNHS 98(1):26-30.
Tiwari, J.K. 2007 : Some observations of sightings and occurrence of Black-winged/ White-naped Tit Parus nuchalis in southern Rajasthan. Newsletter for Bird Watchers 47(5):72-74.
Tiwari, J.K. & A.R. Rahmani 1996: The current status and biology of the White-naped Tit Parus nuchalis in Kutch, Gujarat, India. Forktail 12: 95-102.
Tiwari, J.K., D. Bharjwaj & B.K. Sharma 2013: White-naped Tit Parus nuchalis : A vulnerable species in Rajasthan . In, B.K. Sharma, S. Kulshreshtha & A.R. Rahamani (eds.) Faunal Heritage of Rajasthan, India. Springer New York Heidelberg Dordrecht London. 411-414
इंडियन कोर्सर (Cursorius coromandelicus), एक जमीन पर रहने वाला पक्षी है तथा यह मिट्टी उथल कर सीधा जमीन पर ही अपना घोंसला बनाता है।
आसपास किसी की मौजूदगी महसूस होने पर यह झूठे घोंसले का नाटक करता है यानी जहाँ घोंसला होता ही नहीं है वहां ज़मीन पर बैठ जाता है ताकि देखने वाले का ध्यान इसकी तरफ रहे और असली घोंसला सुरक्षित बचा रहे।
शरुआती समय में माता-पिता ही चूजों को छोटे कीट उपलब्ध करवाते हैं जिनको वे खुले मैदानों में कभी आहिस्ता चलकर तो कभी दौड़-दौड़ कर पकड़ते हैं
माँ और चूजों में एक अनोखा ही जुड़ाव और संपर्क होता है जिसमें माँ जब दूर कहीं कोई कीट पकड़ती है तो चूजों को मालूम पड़ जाता है और वे दूर घोंसले में शोर मचाना शुरू कर देते हैं। और तब तक चुप नहीं होते जब तक माँ उस कीट को लेकर आ नहीं जाती। वैज्ञानिक भाषा में चूज़ों द्वारा खाने के लिया शोर मचाने के इस व्यवहार को बैग्गिंग (Bagging) कहा जाता है।
दुनियाँ में पक्षी अवलोकन (Bird watching or birding), साँप अवलोकन (Snake watching), वन्यजीव छायाचित्रण (Wildlife Photography), वन भ्रमण (Jungle trekking), जंगल सफारी (Jungle safari), पर्वतारोहण (Mountaineering), ऊँचे स्थानों पर चढाई चढना (Hicking) आदि काफी लोकप्रिय हो रहे हैं। हाल के वर्षों में लोगों में वनों एवं अन्य प्राकृतिक स्थलों पर किसी प्रजाति विशेष के विशालतम आकार या अत्यधिक आयु वाले या किसी असामान्य बनावट वाले वृक्षों को देखने की रूची पनपने लगी है। लोग वनों में या अपने आस-पास के परिवेश में प्रजाति विशेष के बडे से बडे वृक्षों को ढूढने के प्रयासों से व्यस्त देखने को मिल जाते हैं। वृक्ष अवलोकन या निहारन लोगों की प्रिय रूची बनता जा रहा है। यह उसी तरह लोकप्रिय होने लगा है जैसे देश में जगह- जगह पक्षी निहारन या अवलोकन (Bird watching) लोक प्रिय हो रहा है। विशिष्ठ वृक्षों को ढूँढ -ढूँढ कर देखने की अभिरुची (Hobby) को वृक्ष निहारण या वृक्ष अवलोकन (Tree watching or tree spotting) कहा जाता है। भारत सरकार द्वारा 1994 से राष्ट्रीय स्तर पर महावृक्ष पुरस्कार देने का सिलसिला प्रारम्भ किया गया है। इस पुरस्कार हेतु प्रतिवर्ष भारत सरकार किन्हीं प्रजाति विशेष की घोषणा करती है तथा उन प्रजातियों के देश के सबसे विशालतम् वृक्षों की जानकारी देने वाली प्रवष्ठियाँ मांगी जाती हैं। एक नियत तिथी के बाद सभी प्रविष्ठियो की जाँच एक विशेषज्ञ कमेटी द्वारा की जाती है तथा प्रजाति विशेष के सबसे बडे वृक्ष की प्रविष्टि का सत्यापन होने पर उस वृक्ष को प्रजाति विशेष की श्रेणी में देश का “महावृक्ष” मानते हुऐ महावृक्ष घोषित कर दिया जाता है। भारत सरकार अभी तक सागवान, देवदार, नीम, यूकेलिप्टस, इमली, चम्पा, शीशम, अंगू, होलोंग, फलदू, बहेडा, आँवला, तून, सेमल, मौलसरी, महुआ, बेंखोर आदि को महावृक्ष घोषित कर चुकी है।
हाँलाकि राजस्थान मे भारत सरकार ने किसी प्रजाति के वृक्ष को महावृक्ष घोषित नहीं किया है लेकिन जगह-जगह विशाल आकार-प्रकार के वृक्ष, झाडिया एवं यहाँ तक की काष्ठ लताएं (Lianas) भी देखने को मिल जाती हैं। इस अध्ययन में इन्हीं विशाल प्रकार के वृक्षों, झाडियों व काष्ठ लताओं की जानकारी दी गई है।
राजस्थान राज्य के विशालतम आकार के विभिन्न प्रजातियों के वृक्षों, झाडियों एवं काष्ठ लताओं की जानकारी नीचे सारणी 1 में प्रस्तुत की गई हैं।
उपरोक्त सारणी में दर्ज वृक्ष, झाडी व काष्ठ लताऐं राजस्थान के संदर्भ में ज्ञात विशाल आकार-प्रकार के विशिष्ठ पौधे हैं। कडेच गाँव के बरगद का फैलाव लगभग 0.2 हैक्टेयर में है। इसी तरह कुण्डेश्वर महादेव पवित्र कुंज (Sacred grove) के बरगद का विस्तार 0.3 हैक्टेयर है जो मादडी गाँव में स्थित राज्य के सबसे बडे बरगद से काफी कम है। मादडी गाँव का बरगद 1.02 हैक्टेयर में फैला हुआ है। दोनों छोटे बरगदों को इसलीए शामिल किया गया है क्योंकि इनका छत्रक अच्छे आकार का है तथा ये दोनों बहुत सुन्दर भी हैं, खास कर कुण्डेश्वर महादेव क्षेत्र का बरगद बहुत ही सुन्दर एवं दर्शनीय है। इस बरगद के आस-पास का पवित्र कुंज साल भर देखने लायक रहता है तथा बडी संख्या में धार्मिक एवं पारिस्थितिक पर्यटन करने वाले लोग यहाँ पहुँचते हैं।
रामकुण्डा मंदिर क्षेत्र मे काँकण गाँव के रास्ते आवरीमाता होकर ‘‘हाला हल्दू” के पास से चलते हुए करूघाटी तक जाने में रामकुण्डा एवं लादन वन खण्डों का जंगल पार करना पडता है। यहाँ पहाडों की ऊँचाई पर राजस्थान राज्य का बाँस (Dendrocalamus strictus) का श्रेष्ठतम् वन विद्यमान है। संभवत इस क्षेत्र में जंगली केले (Ensete superbum) का घनत्व पश्चिमी घाट के वनों के समतुल्य या उसमे कुछ बेहतर है। स्थल गुणवत्ता (Site quality) का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहाँ 24‘ ऊँचाई वाला बाँस दोहन किया जाता है तथा लगभग 873 मी. समुन्द्रतल से ऊँचाई पर भी पहाडों में हल्दू (Adina cordifolia) के वृक्षों की वृद्वी लगभग वैसी ही है जो की पहाडों की तलहटी में है। प्रसिद्व लैण्ड मार्क (Landmark) ‘‘हाला हल्दू’’ नामक हल्दू का वृक्ष इसका उदाहरण है जो इतनी ऊँचाई का पर भी विशाल आकार ग्रहण करने मे सफल रहा है।
सारणी 1: राजस्थान के कुछ विषाल आकार के वृक्ष, झाडियां एवं काष्ठ लताऐं
क्र.स.
स्थिती
जिला
प्रजाति
नाप संबंधित जानकारी (एवं स्वभाव)
सुरक्षा की स्थिती
1
नांदेशमा गाँव, तहसील गोगुन्दा
उदयपुर
पलास (Butea monosperma)
भूमि से निकलते ही दो शाखाओं में विभाजित जिनका वक्ष ऊँचाई घेरा क्रमषः 2.82 एवं 1.19 मीटर (वृक्ष)
सुरक्षित
2
कडेच गाँव, तहसील गोगुन्दा
उदयपुर
बरगद (Ficus benghalensis)
छत्रक फैलाव 50X42 मी., 27 प्रोप जडें(वृक्ष)
सुरक्षित
3
गुलाबबाग (चिडियाघर)
उदयपुर
महोगनी (Swietenia mahagoni)
वक्ष ऊँचाई घेरा 2.50 मी., ऊँचाई 12.0 मी. (वृक्ष)
सुरक्षित
4
गुलाबबाग (बच्चों का पार्क)
उदयपुर
महोगनी (Swietenia mahagoni)
वक्ष ऊँचाई घेरा 5.97 मी., ऊँचाई 15.0 मी. (वृक्ष)
सुरक्षित
5
गुलाबबाग (बच्चों का पार्क)
उदयपुर
महोगनी (Swietenia mahagoni)
वक्ष ऊँचाई घेरा 7.0 मी, ऊँचाई 15.0 मी.(वृक्ष)
सुरक्षित
6
कंडेश्वर र महादेव, तहसील गिर्वा
उदयपुर
बरगद (Ficus benghalensis)
छत्रक फैलाव 60X60 मी.(वृक्ष)
सुरक्षित
7
भेरू जी कुंज, बरावली गाँव, तहसील गोगुन्दा
उदयपुर
माल कांगणी (Celastrus paniculata)
भूमि तल पर घेरा 0.75 मी., लंबाई 20.0 मी. (काष्ठ लता)
श्री शंकर महाराज का खेत, मदारिया गाँव, करेडा- देवगढ रोड
राजसमन्द
बबूल (Acacia nilotica var. indica)
वक्ष ऊँचाई घेरा 3.90 मी., ऊँचाई 12.0 मी. (वृक्ष)
सुरक्षित
15
काँकल (काकंण) गाँव, तहसील झाडोल
उदयपुर
सेमल (Bombex ceiba)
वक्ष ऊँचाई घेरा 7.50 मी., ऊँचाई 25.0 मी. (वृक्ष)
आंशिक सुरक्षित
16
काँकल (काकंण) गाँव, तहसील झाडोल
उदयपुर
गूलर (Ficus recemosa)
वक्ष ऊँचाई घेरा 8.40 मी., ऊँचाई 21.0 मी. (वृक्ष)
आंशिक सुरक्षित
17
रामकुण्डा वनखण्ड, क.न. 18 तथा लादन क.न. 11
उदयपुर
हल्दू (Adina cordifolia)
वक्ष ऊँचाई घेरा 3.90 मी., ऊँचाई 25.0 मी. (वृक्ष)
सुरक्षित
18
लादन वनखण्ड मे करूघाटी से पहले पगडण्डी के पास
उदयपुर
पलास (Butea monosperma)
वक्ष ऊँचाई घेरा 4.80 मी., ऊँचाई 20.0 मी. (वृक्ष)
सुरक्षित
19
दीपेश्वर महादेव प्रतापगढ
प्रतापगढ
कलम (Mitragyna parvifolia)
वक्ष ऊँचाई घेरा 4.20 मी., ऊँचाई 15.0 मी. (वृक्ष)
सुरक्षित
20
पानगढ पुराना किला, (बिजयपुर रेंज)
चित्तौडगढ
बडी गूगल (Commiphora agalocha)
भूमि तल पर घेरा 1.05 मी., ऊँचाई 5.0 मी. (झाडी)
सुरक्षित
21
पानगढ तालाब की पाल (बिजयपुर रेंज)
चित्तौडगढ
रायण (Manilkara hexandra)
वक्ष ऊँचाई घेरा 5.0 मी., ऊँचाई 12.0 मी. (वृक्ष)
सुरक्षित
22
पानगढ तालाब की पाल (बिजयपुर रेंज)
चित्तौडगढ
इमली (Tamarandus indica)
वक्ष ऊँचाई घेरा 5.60 मी., ऊँचाई 12.0 मी. (वृक्ष)
सुरक्षित
23
गाँव भभाण, तह. माँण्डल
भीलवाडा
पीलवान (Cocculus pendulus)
काष्ठ लता, भूमि पर घेरा 0.95 मी. (काष्ठ लता)
आंशिक सुरक्षित
24
गाँव देवली (माँझी)
कोटा
दखणी सहजना (Moringa concanensis)
वक्ष ऊँचाई घेरा 3.14 मी., ऊँचाई 12.0 मी. (वृक्ष)
आंशिक सुरक्षित
25
आल गुवाल एनीकट, बाघ परीयोजना, सरिस्का
अलवर
गूलर (Ficus recemosa)
वक्ष ऊँचाई घेरा 11.67 मी., ऊँचाई 18.0 मी. (वृक्ष)
आंशिक सुरक्षित
26
जूड की बड़ली (रीछेड गाँव के पास तहसील केलवाड़ा)
उदयपुर
बरगद (Ficus benghalensis)
1.4 हैक्टेयर में फैलाव
सुरक्षित
सारणी 1 में दर्ज वृक्ष एवं काष्ठ लताऐं अपनी-अपनी प्रजाति के विशाल आकार प्रकार वाले वृक्ष हैं। ये राज्य की अद्भुत जैविक धरोहर भी हैं जिन्हें हमें जतनपूर्वक संरक्षित करना चाहिये। ये परिस्थितिकी पर्यटन को बढावा देकर स्थनीय जनता हेतु रोजगार के नये अवसर भी स्थापित कर सकते हैं।
विशाल आकार-प्रकार ग्रहण करने के लिए किसी भी पौधे को एक बडी आयु तक जीना पडता है। इस लेख में वर्णित पौधे बहुत बडी आयु तक संरक्षित रहे हैं तभी द्वितियक वृद्धी (Secondary growth) के कारण वे विशाल आकार ग्रहण कर पाये हैं। यह राज्य की एक अद्भुत जैविक विरासत है। हर वन मण्डल, रेंज एवं नाकों को अपने- अपने क्षेत्र में स्थिती इन विरासत वृक्षों की कटाई, आग, व दूसरे नकारात्मक कारकों से सुरक्षा करनी चाहिये। उचित प्रचार- प्रसार द्वारा जन-जन तक इन विरासत वृक्षों, झाडियों व काष्ठ लताओं की जानकारी पहुँचाई जानी चाहिये ताकी परिस्थितिकी पर्यटन को विस्तार दिया जा सके ताकि स्थानीय लोगों को रोजगार के अधिक अवसर मिल सकें।
बाघ को वन पारिस्थितिक तंत्र का शीर्ष शिकारी माना जाता है परन्तु कई बार अन्य जानवरों के साथ मुठभेड़ में बाघ को भी हार माननी पड़ती है। ऐसी ही एक घटना वर्ष 2011, अप्रैल माह में रणथम्भौर बाघ अभयारण्य में हुई। ज़ोन 6 में कालापानी एनीकट के पास चट्टानी पठार पर, एक बाघ और बाघिन का जोड़ा बैठा हुआ था कि, तभी एक भालू माँ अपनी पीठ पर दो बच्चे लिए बाघों की जोड़ी की ओर चल रही थी, और बाघिन आगे होकर उससे भिड़ने के लिए गई। जब तक भालू को एहसास होता कि आसपास बाघ है तब तक बाघिन उसके बिलकुल करीब पहुँच चुकी थी।
भालू माँ गंभीर संकट में फस चुकी थी, परन्तु उसके बच्चों ने खुद को माँ कि पीठ पर चिपका लिया और माँ ने तुरंत बाघिन पर हमला कर दिया।
और लड़ाई के लिए अपने दो पैरों पर खड़ी हो गई और तेज़-तेज़ आवाज़े लगी। भालू और बाघिन के बीच तेज़ चिल्लाहट में गरमा-गर्मी हुई, जिसे निसंदेह भालू माँ ने जीत लिया और बाघिन जल्दबाजी में पीछे हटने लगी।
तभी पास में खड़ा नर बाघ जो काफी देर से मुठभेड़ को देख रहा था, अपनी शक्ति दिखाने के लिए आगे बढ़ा, परन्तु भालू माँ ने उस पर भी अपना क्रोध दिखाया।
बाघ वहां से दूर चले गए और भालू माँ भी अपने बच्चों को वहां से लेकर चली गई।
यह पूरी घटना कुल 2 मिनट में हुई, जहाँ शुरुआत में लग रहा था कि भालू माँ गंभीर संकट में फस चुकी है और वहीँ कुछ सेकेंड्स में उसने पुरे संघर्ष को नियंत्रित कर लिया और बाघों को वहां से भगा कर अपनी और अपने बच्चों कि रक्षा करी। रणथम्भौर में इस प्रकार की घटना कई बार देखी गयी, परन्तु यह घटना शानदार तरीके से फोटोग्राफ कर दर्ज़ भी की गयी।