वर्ष 1980 में भारत के पर्यावरण मंत्री दिग्विजय सिंह ने एक पुस्तक में लिखा है कि,

”हर्षवर्धन ने अपने अकेले के दम पर ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (गोडावण) की ओर विश्व का ध्यान आकर्षित किया है और उन्होंने एक पुरजोर मांग रखी है कि, भारतीय मरुस्थल में बाजदारी के माध्यम से इनका शिकार बंद हो। यह एक पक्षी प्रजाति के संरक्षण की दिशा में उठाया गया एक अत्यंत दुर्लभ उदहारण है। ”
बाज़दरी यानि बाज़ या इस जैसे अन्य शिकारी पक्षियों के माध्यम से शिकार करना। यह एक प्राचीन शिकार का तरीका रहा है जिसने अरब देशों में एक परम्परा की शक्ल लेली है। अरब देशों में एक आज भी कई लोग और मुख्यतया वहां के रॉयल परिवार इस शौक के पीछे पागल है।

ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (गोडावण) (फोटो: श्री नीरव भट्ट)

लगभग 40 पूर्व (1979 ) पहले तक राजस्थान अरब के राजपरिवार से शेख राजस्थान के मरुस्थल में आते थे और बाज़ों की सहायता से तेजी से विलुप्त की और बढ़ते विशाल पक्षी ग्रेट इंडियन बस्टर्ड का शिकार किया करते थे। राजस्थान के एक पक्षी विद्ध हरकीरत सांगा कहते हैं कि, शेखो के पास उस ज़माने में अत्यंत ताकतवर गाड़िया हुआ करती थी जिनमें ६ सिलिंडर से कम कोई नहीं थी। जैसे आज इस्तेमाल होने वाली जिप्सी गाड़ी में भी मात्र ४ सिलिंडर ही है। इन शेखो के द्वारा किये गए नुकसान का हमें कोई अंदाज नहीं है क्योंकि राज्य का वन विभाग या पुलिस उस समय के थार मरुस्थल में इनके पीछे ही नहीं जा पाता था। क्योंकि रास्ते कच्चे थे अथवा थे ही नहीं, जबकि शेख खुले आम शिकार के परमिट के साथ जैसलमेर के वीरान मरुथल में कहीं भी शिकार करते घूम रहे थे। सरकार ने उन्हें बाज से शिकार के लिए आज्ञा पत्र जारी किया हुआ था। इनको शिकार की आज्ञा मिलने के पीछे विदेश नीति और विदेशी मुद्रा महत्वपूर्ण कारण माना जा रहा था।
सभी लोग मूक दर्शक बने यह तमाशा देख रहे थे किसी की हिम्मत और सोच नहीं थी कि, शेखो के खिलाफ कुछ बोले और इस से अधिक सरकार के इस फैसले के खिलाफ कुछ बोले। शैख़ साल दर साल सर्दियों में यही काम करने भारत आते रहते थे।

यह सब देख कर हर्षवर्धन रह नहीं पाए परन्तु लोगों को संरक्षण के प्रति कोई अधिक जागरूकता ही नहीं थी। बाघों के प्रति हमारे मन मस्तिष्क में पहले से एक छवि थी अतः बाघों के प्रति जागरूकता पैदा करना कहीं आसान काम है। ग्रेट इंडियन बस्टर्ड को लोग अधिक जानते ही नहीं थे। यह हर्षवर्धन के लिए मुश्किल काम होने वाला था परन्तु उन्होंने ने कई आंदोलन, धरने और ज्ञापन देकर एक माहौल पैदा किया। निरंतर अख़बारों के माध्यम से आमजन के मध्य ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के बारे में जानकारी बढ़ायी गयी। यह एक व्यक्ति द्वारा चलाया गया इतना सधा हुआ और संगठित आंदोलन था कि, हर व्यक्ति उस समय इस अनजान पक्षी के बारे में बात कर रहा था और भारत के संरक्षण के लम्बे इतिहास और परम्परा की दुहाई देकर शेखो को गाली दे रहा था। परन्तु सरकार फिर भी मूक बानी रही थी। अंततः हर्षवर्धन राजस्थान हाई कोर्ट से एक फैसला लेकर आये जिसने शेखो द्वारा इस तरह ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के शिकार पर पूर्णतया रोक लगवादी थी।


इसी क्रम में हर्षवर्धन ने बस्टर्ड पर एक अंतरष्ट्रीय सिम्पोजियम बुलाई, जिसमें अनेक लोगो ने भाग लिया और पहली बार बस्टर्ड से जुड़े मसलो को एक जगह एकत्रित किया और ‘बस्टर्ड इन डिक्लाइन’ नाम से एक दस्तवेज प्रकाशित किया गया ।

यह उस ज़माने में भारत का ही नहीं अपितु विश्व में किसी एक पक्षी प्रजाति के संरक्षण के लिए किया गया पहला प्रयास था, जिसे आज भी एक मील के पत्थर के रूप में जाना जाता है।

अंततः हर्षवर्धन द्वारा चलायी गयी इस मुहीम से प्रभावित हो कर एक व्यक्ति राजस्थान हाई कोर्ट से एक फैसला लेकर आये जिसने शेखो द्वारा किये जारहे ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के शिकार पर पूर्णतया रोक लगवा दिया।

लेखक:

Dr. Dharmendra Khandal (L) has worked as a conservation biologist with Tiger Watch – a non-profit organisation based in Ranthambhore, for the last 16 years. He spearheads all anti-poaching, community-based conservation and exploration interventions for the organisation.

Mr. Ishan Dhar (R) is a researcher of political science in a think tank. He has been associated with Tiger Watch’s conservation interventions in his capacity as a member of the board of directors.