अरावली राजस्थान की मुख्य पर्वत शृंखला है जो छोटे और मध्य आकर के वृक्षों से आच्छादित है, इन वृक्षों में विविधता तो है परन्तु कुछ वृक्षों ने मानो पूरी अरावली में बहुतायत में मिलते है जिनमें सबसे महत्वपूर्ण वृक्षों का विवरण यहाँ दिया गया है।
- धोक (Anogeissus pendula) :- यदि रेगिस्तान में खेजड़ी हैं तो, अरावली के क्षेत्र में धोक सबसे अधि० 8क संख्या में मिलने वाला वृक्ष हैं। कहते हैं लगभग 80 प्रतिशत अरावली इन्ही वृक्षों से ढकी हैं। अरावली का यह वृक्ष नहीं बल्कि उसके वस्त्र हैं जो समय के साथ उसका रंग बदलते रहते हैं। सर्दियों में इनकी पत्तिया ताम्बई लाल, गर्मियों में इनकी सुखी शाखाये धूसर और बारिश में पन्ने जैसे हरी दिखने लगती हैं। अरावली के वन्य जीवो के लिए यदि सबसे अधिक पौष्टिक चारा कोई पेड़ देता हैं तो वह यह हैं। इनके उत्तम चारे की गुणवत्ता के कारण लोग अक्सर इन्हे नुकसान भी पहुंचाते रहते हैं। इनकी कटाई होने के बाद इनका आकर एक बोन्साई के समान बन जाता हैं, एवं पुनः पेड़ बनना आसान नहीं होता क्योंकि अक्सर इन्हे बारम्बार कोई पालतू पशु चरते रहते हैं, और इनके बोन्साई आकार को बरकरार रखते हैं। यदि खेजड़ी राजस्थान का राज्य वृक्ष नहीं होता तो शायद धोक को यह दर्जा मिलता।
2. तेन्दु एवं विषतेन्दु (Diospyros Melanoxylon) and (Diospyros cordifolia) :- बीड़ी जलाईल ले … जिगर मा बड़ी आग है
बस हर साल इस जिगर की आग को बुझाने के लिए हम बीड़ी के रूप में 3 से 4 लाख टन तेंदू के पत्ते जला देते हैं। तेन्दु का उपयोग बीड़ी के उत्पादन के लिए किया जाता है। देश में इनका अत्यधिक उत्पादन होना , उम्दा स्वाद होना, पते का लचीलापन, काफी समय तक आसानी से नष्ट नहीं होना और आग को बनाए रखने की क्षमता के कारण तेन्दु की पतियों को बीड़ी बनाने के लिए काम लिया जाता है ।जाने कितने लोग बीड़ी बनाने और पते तोड़ने के व्यापर में शामिल है। स्थानीय समुदायों को यह जीवनयापन के लिए एक छोटी कमाई भी देता है। तेंदू चीकू (सपोटा) परिवार से संबंधित है और वे स्वाद में भी कमोबेश इसी तरह के होते है। तेन्दु या टिमरू के फल को खाने का सौभाग्य केवल भालु, स्थानीय समुदाय और वन रक्षको को ही मिलता है।तेंदू के पेड़ का एक और भाई है- जिसे विषतेन्दु (डायोस्पायरस कॉर्डिफोलिया) कहा जाता है, जिसके फल मनुष्यों के लिए खाने योग्य नहीं बल्कि बहुत ही कड़वे होते हैं, लेकिन कई जानवर जैसे कि सिवेट इन्हें नियमित रूप से खाते हैं।विष्तेन्दु वृक्ष एक छोटी हरी छतरी की तरह होता है और चूंकि यह पतझड़ी वन में एक सदाबहार पेड़ है, बाघों को इनके नीचे आराम करना बहुत पसंद है। आदित्य सिंह हमेशा कहते हैं कि अगर आप गर्मियों में बाघों को खोजना चाहते हैं तो विष्तेन्दु के पेड़ के निचे अवस्य खोज करें। मैंने बाघ के पर्यावास की एक तस्वीर साझा की और आपको आसानी से पता चल जाएगा कि बाघों के लिए सबसे अच्छा पेड़ कौन सा है और यह छोटा हरा छाता क्यों एक अच्छा बाघों का पसंदीदा स्थान होता है? आप तस्वीर में पेड़ अवस्य ढूंढे।
3. कडाया ( Sterculia urens ):-इसे स्थानीय रूप से कतीरा, कडाया (कतीरा या कडाया गोंद के लिए प्रसिद्ध) कहा जाता है, लेकिन सबसे लोकप्रिय नाम है ‘घोस्ट ट्री’ है क्योंकि जब वे अपने पत्तों को गिराते देते हैं तो इसके सफेद तने एक मानव आकृति का आभास देते हैं।मेरे वनस्पति विज्ञान के एक प्रोफेसर ने इसे एक प्रहरी वृक्ष के रूप में वर्णित किया है क्योंकि यह आमतौर पर पहाड़ो के किनारे उगने वाला यह पेड़, किलों की बाहरी दीवार पर खड़े प्रहरी (गार्ड) की तरह दिखता है।यह के पर्णपाती पेड़ है और सभी पर्णपाती पेड़ जल संसाधनों का उपयोग बहुत मितव्ययीता से करते है लेकिन इनके पत्तों का आकर विशाल होता है और उनके उत्पादन में कोई कमी नहीं होती। अरावली पहाड़ियों में कतीरा पेड़ के संभवतः सबसे बड़ा पत्ता होते है; उनकी पत्तियाँ बहुत नाज़ुक और पतली होती हैं और वे पूरे वर्ष के लिए कुछ महीनों में पर्याप्त भोजन बनाने में सक्षम भी होती हैं। यह पर्णपाती पेड़ों की एक रणनीति का हिस्सा है कि उनके पास हरे पेड़ों की तुलना में बड़े आकार के पत्ते हैं, जो यह सुनिश्चित करते है कि प्रकाश संश्लेषण की दर और प्रभावशीलता अपेक्षाकृत अधिक रहे ।कतीरा का विशिष्ट सफेद चमकता तना चिलचिलाती धूप को प्रतिबिंबित करदेता हैं और यह भी पानी के नुकसान को कम करने के लिए एक और अनुकूलन है। अधिकांश पर्णपाती पेड़ो पर फूलो की उत्पती उस समय होती है जब वे सरे पत्ते झाड़ा देते है, उस समय के दौरान परागण की संभावना बढ़ जाती है । घनी पत्तियां से होने वाली रुकावटों के कारण परागण में बाधा होती हैं I कुछ मकड़ियों ने पश्चिमी घाट में कीड़ों का शिकार करने के लिए अपने आप को इस पेड़ के साथ अनुकूलित किया है। कतीरा के पेड़ पर कुछ मकड़ियों को आसानी से देखा जा सकता है जैसे कि फूलों पर प्यूसेटिया विरिडान और उनकी तने पर पर हर्नेनिया मल्टीफंक्टा।मानव आवासों के नजदीक, हम तेजी से उन्हें विदेशी सदाबहार पेड़ पौधे लगा रहे है जो जैव विविधता के साथ जल संरक्षण के लिए भी हानिकारक है I
4. गुरजण ( Lannea coromandelica ):-वृक्ष पक्षीयो के बड़े समूहों के लिए पसंदीदा बसेरा है, पत्तों से लदे वृक्ष के बजाय पक्षी इस पर्ण रहित पेड़ की शाखाओं पर बैठना अधिक पसंद करते हैं, जहां से वह अपने शिकारियों पर निगरानी रख सके उत्तर भारत के सूखे मौसम में गुरजण में वर्षा ऋतू के कुछ दिनों बाद ही पते झड़ने लगते हैI यह पुरे वर्ष में आठ माह बिना पत्तियों के गुजरता है। इसकी प्रजाति का नाम कोरोमंडलिका है जो कोरामंडल (चोला मंडल साम्राज्य) से आया हैI यह जंगलो में स्थित प्राचीन भवनो और इमारतों में उगना पसंद करते हैं I
5. कठफडी ( Ficus mollis ):- एक सदाभारी पेड़ हैं, जो पत्थरो और खड़ी चट्टानों को पसंद करता हैं। इनकी लम्बी जड़े चट्टानों को जकड़े रखती हैंजो अरावली और विंध्य पहाड़ियों की सुंदरता को बढ़ाती हैं। इसीलिए इस तरह के पेड़ो को लिथोफिटिक कहते हैं। यह बाज और अन्य शिकारी पक्षियों को ऊंचाई पर घोसले बनाने लायक सुरक्षित स्थान प्रदान करता हैं। स्थानीय लोग मानते हैं यदि इसके पत्ते भैंस को खिलाया जाये तो उसका दुग्ध उत्पादन बढ़ जाता हैं।
6. ढाक / छिला / पलाश ( Butea monosperma ) :- दोपहर की राग भीम पलाशी हो या अंग्रेजो के साथ हुआ बंगाल का प्रसिद्ध पलाशी का युद्ध इन सबका सीधा सम्बन्ध सीधा सम्बन्ध इस पेड़ से रहा हैं- जिसे स्थानीय भाषा में पलाश कहते हैं ।जब इनके पुष्प एक साथ इन पेड़ो पर आते हैं, तो लगता हैं मानो जंगल में आग लग गयी हो अतः इन्हे फ्लेम ऑफ़ थे फारेस्ट भी कहते हैं। इनके चौड़े पत्ते थोड़े बहुत सागवान से मिलते हैं अतः ब्रिटिश ऑफिसर्स ने नाम दिया ‘बास्टर्ड टीक ‘ जो इस शानदार पेड़ के लिए एक बेहूदा नाम हैं। वनो के नजदीक रहनेवाले लोग अपने पशुओ के लिए इनसे अपने झोंपड़े भी बना लेते हैं।
7. झाड़ी ( Ziziphus nummularia ) :-सिक्को के समान गोल-गोल पत्ते होने के कारण झाड़ी को वैज्ञानिक नाम Ziziphus nummularia हैं। यद्पि यह राजस्थान में झड़ी नाम से ही प्रसिद्ध है।एक से दो मीटर ऊंचाई तक की यह कटीली झाडिया बकरी, भेड़ आदि के लिए उपयोगी चारा उपलब्ध कराता हैं। लोग इनके ऊपरी भाग को काट लेते हैं एवं सूखने पर पत्तो को चारे के लिए अलग एवं कंटीली शाखाओ को अलग करके उन्हें बाड़ बनाने काम लिया जाता हैं। झाड़ियों में लोमड़िया, सियार, भालू, पक्षी आदि के लिए स्वादिष्ट फल लगते हैं एवं इनकी गहरी जड़ो से स्थिर हुई मिटटी के निचे कई प्राणी अपनी मांद बनाके रहते हैं। बच्चे भी इनके फल के लिए हमेशा लालायित रहते हैं।
बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी
शेयर करने के लिए धन्यवाद
Impressive conservation area. Good work.Hope the species having limited presence outside conservation area are being raised artificially.
Thanks a lot sir for providing information
दुर्लभ वन्य जीव, सुन्दर दृश्य दिखाने और मुकुंदरा के विभिन्न वृक्षों की दिलचस्प जानकारी देने के लिए धन्यवाद..
धन्यवाद आपका हमे ऐसा अच्छा ज्ञान देने के लिए
बहुत-बहुत धन्यवाद जो हम को आपने जानकारियां दी हैं
बहुत ही उत्तम जानकारी💐