राजस्थान में गाय की एक नस्ल मिलती है जिसे कहते है ‘नारी’, शायद यह नाम इसकी नाहर (Tiger) जैसी फितरत होने के कारण पड़ा है। सिरोही के माउंट आबू  क्षेत्र की तलहटी में मिलने वाली यह माध्यम आकर की गाय अपने पतले लम्बे सींगों से बघेरों से भीड़ जाती है। अक्सर जंगल में बघेरो से उन्हें अपने बछड़ो  को बचाते हुए देखा जाता है अथवा कई बार अपने मालिक को वन्यजीव से मुठभेड़ में फंसा देख, यह वन्य जीव पर टूट पड़ती है। यदि इन पर वन्य जीव हमला करते है तो यह आवाज निकाल कर अन्य गायों को अपने पास बुला लेती है, जबकि सामान्य तय अन्य गायों की नस्लें दूर भाग जाती है।

फोटो :- अंजू चोहान

नेशनल ब्यूरो ऑफ़ एनिमल जेनेटिक रिसोर्सेज, करनाल, हरियाणा (NBAGR) ने इसे कुछ समय पहले ही इसे एक अलग मवेशी की नस्ल के रूप में मान्यता दी है। इस नस्ल का विस्तार- राजस्थान के सिरोही, पाली एवं गुजरात के  बनासकांठा, साबरकांठा आदि क्षेत्रों में है। यह नस्ल लम्बी दुरी तय कर चराई के लिए ले जाने के लिए उपयुक्त है।

सफ़ेद और स्लेटी रंग की यह गाय स्वभाव में अत्यन्त गर्म होती है एवं इसके सींग बाहर की और मुड़े होते है, एवं यह कृष्ण मृग (Blackbuck) की भांति घूमे हुए होते है । इनके आँखों की पलकों के बाल सामान्यत सफ़ेद होते है। यह 5-9 लीटर तक दूध दे सकती है, वहीँ इनके नर (बैल) माल वाहन के लिए भी उपयुक्त होते है। कहते है यह गाय अत्यंत बुदिमान नस्ल है जो पहाड़ो के रास्तों में सहजता से चरने चली जाती है एवं कम चराई में अच्छा  दूध देती है।  यह बिमारियों एवं अन्य व्याधियों से भी कम ही ग्रसित होती है साथ ही इनका कम लागत में पालन पोषण संभव है। यदि आप वन्य जीवो से प्रभावित क्षेत्र में रहते है तो यह गाय पलना उपयुक्त होगा।

आज भी हमारी जैव विविधता में कई अनछुए हर्फ़ है, इन्हे संरक्षित रखना हमारी जिम्मेदारी है

 

लेखक:

Dr. Dharmendra Khandal (L) has worked as a conservation biologist with Tiger Watch – a non-profit organisation based in Ranthambhore, for the last 16 years. He spearheads all anti-poaching, community-based conservation and exploration interventions for the organisation.

Mr. Rajdeep SIngh Sandhu (R)  :-is a lecturer of political science. He is interested in history, plant ecology and horticulture.