राजस्थान में किस प्रकार के डायनासोर मिलते थे, यह विषय हर किसी के लिए अत्यंत जिज्ञासा का विषय है। इस पर लम्बे समय तक पर्दा ही पड़ा रहा, परन्तु वर्ष 1985 में श्री यू बी माथुर ने जैसलमेर से २ किलोमीटर दूर बाबा भारती मंदिर के पास से डायनासोर की दो हड्डियों को पहचान कर यह साबित कर दिया था कि, डायनासोर राजस्थान में उपस्थित रहे हैं।

इसके पश्च्यात जनवरी, 2014 में जयपुर की राजस्थान यूनिवर्सिटी में एक अत्यंत रोचक विषय पर संगोष्ठी आयोजित हुई जिसे 9 वीं इंटरनेशनल जुरैसिक कांग्रेस के नाम से जाना जाता है। इस संगोष्ठी के पश्च्यात कई भागीदार फील्ड यात्रा पर जैसलमेर आये। वहां पहुंचे स्लोवाकिया की कमेनियस यूनिवर्सिटी के जैन स्च्लोगल एवं पोलैंड की वॉरसॉ यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर गरज़ेगोर्ज़ पैन्कोव्स्की को इस यात्रा में कुछ ऐसे पद चिन्ह मिले जो राजस्थान में किसी ने नहीं खोजे थे। यह स्थान जैसलमेर से पूर्व की ओर 16 किलोमीटर दूर जैसलमेर -जोधपुर राजमार्ग से दक्षिण में स्थित थाट गांव के पास (GPS: N26°55’50.1″, E71°03’54.2″)। यह दो विभिन्न प्रकार के डायनासोरों के पद चिन्ह थे। यह पद चिन्ह तलछट की जमीं पर बने थे जो बाद में धीरे धीरे पत्थर में परिवर्तित हो गयी है। इन पद चिन्हो के आधार पर इन दोनों डायनासोरों की प्रजातियों की पहचान भी हुई एवं इन्हे यूब्रोनट्स जीनस की शायद जाइगेनटियस प्रजाति (Eubrontes cf. giganteus) एवं ग्रललाटोर टेनुइस (Grallator tenuis) के रूप में पहचाना गया है। यूब्रोनट्स जीनस की शायद जाइगेनटियस प्रजाति (Eubrontes cf. giganteus) के पद चिन्ह का आकर 35 सेंटीमीटर था वहीँ ग्रललाटोर टेनुइस (Grallator tenuis) के पद चिन्ह का आकार 5.5 सेंटीमीटर पाया गया जो काफी छोटा था।

ग्रेलेटर प्रजाति का एक चित्र (फोटो: गोबिंद राय, 2021)

यूब्रोन्ट्स प्रजाति की एक कंप्यूटर जनित छवि (फोटो: परिहार, 2021)

यह दोनों पदचिन्ह उस ज़माने के समुद्र के किनारे की तलछट अथवा गाद में बने थे जो बाद में स्थायी रूप से पत्थर के समान बन गये। उस समय राजस्थान में समुद्र का किनारा रहा था और अब इस समुद्र को टेथिस सागर के नाम से जाना जाता है।

A- पीली चिकिनी महीन दानेदार बलुआ पत्थर पर यूब्रोंटेस सीएफ ग्लेनरोसेंसिस थेरोपोड डायनासोर के पद चिन्ह । B-यूब्रोंटेस सीएफ ग्लेनरोसेंसिस थेरोपोड डायनासोर के पदचिह्न एक रूपरेखा के साथ। C- यूफ्रोंटेस सीएफ ग्लेनरोसेंसिस थेरोपोड डायनासोर के पदचिह्न का चित्र। (फोटो: परिहार एट अल 2016)

इन दो खोजो ने स्थानीय वैज्ञानिको को भी इस दिशा में कार्य करने की प्रेरणा दी जैसे की जोधपुर के एक वैज्ञानिक डॉ विरेन्द्र सिंह परिहार ने अपने साथियों के साथ मिलकर एक और नयी प्रजाति के डायनासोर के पद चिन्ह यहाँ खोज निकाले है। यह प्रजाति को यूब्रोनट्स ग्लेनरोसेंसिस (Eubrontes glenrosensis) के रूप में पहचाना गया। साथ ही डॉ परिहार ने ग्रललाटोर टेनुइस (Grallator tenuis) के भी नए पद चिन्ह को देखा था। डॉ परिहार एक उभरते हुए जीवाश्म वैज्ञानिक है जो अब इसी दिशा में निरंतर कार्य करना चाहते है।

जैसलमेर में जुरासिक आउटक्रॉप्स के साथ भारत के नक्शे की रूपरेखा पर कच्छ और जैसलमेर घाटियों के स्थानों को दर्शाने वाला एक नक्शा। (फोटो: पिएनकोव्स्की एट अल 2014)

थायट रिज का स्थान जहां 2014 में पिएनकोव्स्की की टीम द्वारा डायनासोर के पैरों के निशान दर्ज किए गए थे (फोटो: पिएनकोव्स्की एट अल 2014)।

इनका मानना है कि, यह १५० मिलियन वर्ष पुराने पद चिन्ह है यानी १५ करोड़ वर्ष पूर्व राजस्थान की धरती पर डायनासोर विचरण करे थे। डॉ परिहार शीघ्र ही कई और बड़ी खोजो को दुनिया के सामने लाने वाले है। यह तीनो डायनसोर प्रजाति थेरोपोड प्रकार के माने गये है जिनकी खास बात थी इनकी हड्डिया खोखली थी एवं पांवो में तीन अनुलियाँ थी। यह सभी मांसाहारी किस्म के डायनसोर होते थे। यूब्रोनट्स प्रजातियों के डायनासोरों की लम्बाई 12 से 15 मीटर हो सकती थी। एक अन्य अनुमान के अनुसार इस प्रजाति का वजन 500 -700 किलोग्राम रहा होगा। ग्रललाटोर प्रजाति के डायनासोरों की ऊंचाई जहाँ २ मीटर (लगभग इंसानो जितनी) रही होगी जबकि लम्बाई ३ मीटर तक मानी गयी है।

यूब्रोंटेस गिगेंटस और ग्रेलेटर टेनुइस से संबंधित दो डायनासोर के पैरों के निशान के विवरण दिखाने वाली फील्ड तस्वीरें और चित्र। अँगुलियों को II, III, IV के रूप में चिह्नित किया गया है (अंक II ट्रैकवे के सबसे निकट था) (फोटो: पिएनकोव्स्की एट अल 2014)।

राजस्थान के जैसलमेर और बाड़मेर जिलों में डायनासोर के और नये प्रमाण मिलने की सम्भावना अत्यंत प्रबल है। इस विषय पर छापे सभी शोध पत्र इंटरनेट पर उपलब्ध है अथवा आप निम्न ईमेल- पर मेल भेजे।
थेरोपोड्स ट्रीअसिक काल जो 232 मिलियन वर्ष पहले से लेकर क्रेटसेओस काल तक यानी लगभग 66 मिलियन वर्ष पहले तक रहे।

डॉ. वी.एस. परिहार जैसलमेर क्षेत्र में डायनासोर के साक्ष्य खोज रहे हैं।

राजस्थान से प्रेषित तीन शोध पात्र निम्न है:
  • MATHUR U.B., PANT S.C., MEHARA S. MATHUR A.K., 1985 — Discovery of dinosaurian remains in Middle Jurassic of Jaisalmer, Rajastan, Western India. Bulletin of the Indian Ge ologists’ Association, 18(2), 59–65
  • २ Grzegorz PIEŃKOWSKI, Paweł BRAŃSKI, Dhirendra K. PANDEY, Ján SCHLÖGL, Matthias ALBERTI, Franz T. FÜRSICH (2014) Dinosaur footprints from the Thaiat ridge and their palaeoenvironmental background, Jaisalmer Basin, Rajastan, India. Volumina Jurassica, 2015, XIII (1): X–X DOI:
  • ३ Parihar V.S., Nama S.L., Gaur V., and S.C. Mathur (2016) New report of Theropod (Eubrontes glenrosensis) dinosaur footprint from the Thaiat Member of Lathi Formation of Jaisalmer Basin, Western Rajasthan, India, Ichnia.
लेखक:

Dr. Dharmendra Khandal (L) has worked as a conservation biologist with Tiger Watch – a non-profit organisation based in Ranthambhore, for the last 16 years. He spearheads all anti-poaching, community-based conservation and exploration interventions for the organisation.

Mr. Ishan Dhar (R) is a researcher of political science in a think tank. He has been associated with Tiger Watch’s conservation interventions in his capacity as a member of the board of directors.

 

Cover photo credit: Parihar, 2021