अक्सर लोग मानते हैं कि, बाघ के मरने के बाद उसके मृत शरीर को खाने कोई भी प्राणी नहीं आता क्योंकि मरने के बाद भी उस से डरते हैं।

दो अल्पवयस्क बाघों के गांव वालों द्वारा जहर देकर मारे जाने पर, वन विभाग के आला अफसर ने कहा की इनके शरीर पर घाव के निशान किसी मृतभक्षी प्राणी के नहीं बल्कि किसी नर बाघ द्वारा काटने से हुए है। यदपि इन दोनों बाघों के शरीर लगभग 24  घंटे बाद मिले थे। उन दोनों के शरीर पर कुछ घाव के निशान थे जो किसी जानवर के खाने से हो सकते हैं। यह मरने के बाद भी हो सकते हैं और मरने से पहले के भी। उनका यह कहना था कि, मृत बाघ को कोई मृतभक्षी प्राणी छूता ही नहीं है, क्योंकि बाघ के मरने के बाद भी उसे देख मृतभक्षी डरते है। जंगल में कई मृतभक्षी प्राणी होते हैं परन्तु मुख्य्तता है – सियार, लड़बघ्घा आदि। यह अदुभुत ज्ञान लगता है और ऐसे प्रतीत होता है कि, कोई गहरी और सूक्ष्म जानकारी रखने वाला ही यह जानता है।

परन्तु मेरे अनुभव के अनुसार मॉनिटर लिज़र्ड , कोयें, गिद्ध, नेवला, जंगली सूअर, रैटल आदि भी मृत बाघ को खाने में कोई भय नहीं दिखाएंगे परन्तु मेरा सियार और लकड़बग्घा के बारे में ज्ञान शून्य है।

परन्तु केसरी सिंह जी ने अपनी पुस्तक – ‘हिंट्स ऑन टाइगर शूटिंग’  १९६५ में एक वाकया लिखा है जो पूरी तस्वीर पूरी तरह साफ कर देता है। उनके अनुसार रामसागर- जयपुर के पास एक नर भक्षी बाघ को मारने के समय एक अमेरिकन पोलो के खिलाडी  स्टेफेन ‘लाड्डी’ सानफोर्ड उनके साथ थे। यह उस ज़माने के जाने माने पोलो के खिलाडी हुआ करते थे और जयपुर शहर आज की तरह उस समय भी पोलो का मुख्य केंद्र हुआ करता था। सानफोर्ड एक पोलो प्लेयर होने के साथ साथ जयपुर दरबार के नजदीक भी हुआ करते थे।

लेडी एडविना मौन्टबेटन अमेरिकन पोलो के खिलाडी  स्टेफेन लाड्डी सानफोर्ड के साथ

खैर नर भक्षी को मारने के लिए केसरी सिंह जी ने भेंसे के पड्डे को एक पेड़ पर बंधवाया ताकि वह बाघ को उस और आकर्षित कर सके, साथ ही उन्होंने इसके साथ एक मानव नुमा लगने वाले कपडे के पुतले को भी बांधा ताकि यह तय किया जा सके की वह एक नर भक्षी है या सामान्य बाघ। यदि सामान्य बाघ हुआ तो वह भैंस के पड्डे को मारने नहीं आएगा। यह कितना प्रामाणिक है कह नहीं सकते, परन्तु केसरी सिंह जी लिखते है कि, अर्धरात्रि में बाघ वहां आया और उसने सबसे पहले पुतले पर हमला किया और उसके बाद भैंस के पड्डे को मार गिराया। सानफोर्ड ने बड़ी आसानी से बाघ को एक ही गोली से अपना शिकार बना लिया था।

बाघ के सफल शिकार के बाद उन्होंने तय किया की अब रात भर मचान पर ही बिताना पड़ेगा अतः आरामदायक मचान पर वह दोनों सो गये। रात्रि लगभग दो बजे केसरी सिंह जी की आंख खुली और उन्होंने देखा की एक सियार बाघ की एक टांग को खा रहा था, उन्होंने सोचा इसे भगा देने मात्र से काम नहीं होगा क्योंकि यह पुनः आएगा तो उन्होंने उसे भी एक गोली से मार गिराया। सुबह जब उजाला हुआ तो उन्होंने देखा की सियार ने बाघ के पीछे से एक बड़े हिस्से की चमड़ी को खा कर बर्बाद कर दिया है। केसरी सिंह जी अपने मित्र की ट्रॉफी को इस तरह ख़राब होते देख बारे मायुश हुए।

खैर उन्होंने माना की सियार मृत बाघ से डरे बिना उसे खा सकता है, यह पूर्ण तय गलत होगा की खूंखार बाघ के मृत होने पर प्राणी उस से भयभीत होंगे।

लेखक:

Dr. Dharmendra Khandal (L) has worked as a conservation biologist with Tiger Watch – a non-profit organisation based in Ranthambhore, for the last 16 years. He spearheads all anti-poaching, community-based conservation and exploration interventions for the organisation.

Mr. Ishan Dhar (R) is a researcher of political science in a think tank. He has been associated with Tiger Watch’s conservation interventions in his capacity as a member of the board of directors.